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महाशिवरात्रि शिव भक्तों के लिए बहुत बड़ा त्योहार होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार हर साल मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा-आराधना करने का विशेष महत्व होता है. महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक, रुद्राभिषेक और मंत्रों का जाप करने से भगवान शिव हर तरह की मनोकामनाओं को पूरी करते हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार महाशिवरात्रि पर कई तरह के उपाय किए जाते हैं जो व्यक्ति के जीवन में कई तरह की परेशानियों और बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है. इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी 2023 को है. आइए जानते हैं इस वर्ष महाशिवरात्रि पर पूजा का शुभ महूर्त और ज्योतिष उपाय।
महाशिवरात्रि पर आर्थिक दिक्कतों को दूर करने के उपाय
महाशिवरात्रि का त्योहार शिवजी की आराधना करने के लिए सबसे खास माना जाता है. अगर किसी को नौकरी या व्यापार में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग का शहद से अभिषेक करें. इस महाशिवरात्रि पर आर्थिक सफलता प्राप्त करने के लिए चांदी के पात्र से भगवान शिव का जलाभिषेक करें और इस दौरान लगातार ऊं नम: शिवाय और ऊं पार्वतीपत्ये नम: का जाप करें. महाशिवरात्रि के पावन दिन पर भगवान शिव की कृपा पाने के लिए शिवलिंग का दही से रुद्राभिषेक करें इससे धन में वृद्धि का फल प्राप्त होगा।
इस महाशिवरात्रि पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए गन्ने के रस से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें. धन प्राप्ति की मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए शिवलिंग पर महाशिवरात्रि के त्योहार के मौके पर शहद और घी से अभिषेक करें. इस महाशिवरात्रि पर सभी तरह की मनोकामनाओं को पूरा करने और भगवान शिव की विशेष कृपा पाने के लिए भगवान शिव की पूजा में चढ़ाने वाली सभी सामग्री को शिवलिंग पर अर्पित करें।
महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त 2023
निशिता काल पूजा: 18 फरवरी को दोपहर 12:16 बजे से 1:06 बजे तक निशिता काल पूजा की अवधि: 50 मिनट महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त: 19 फरवरी, रविवार को सुबह 06:57 बजे से दोपहर 03:33 बजे तक। -
हर इंसान सोते समय कभी न कभी कोई न कोई सपना जरूर देखता है. ये सपने कभी शुभ और मन को खुशी देने वाले होते हैं तो वहीं, कुछ सपने इतने डरावने होते हैं कि आदमी अचानक से नींद से चौंककर उठ जाता है। सपने बुरे हों या फिर अच्छे, इन्हें लेकर मान्यता है कि ये भविष्य में घटने वाली चीजों के बारे में पूर्व संकेत देकर जाते हैं, जब कभी कोई बुरा सपना बार-बार आपको आता है तो उसको लेकर भी कोई न कोई संकेत छिपा रहता है, लेकिन जब यही सपने आपको परेशानी का सबब बन जाए तो आपको इनसे बचने के लिए उन ज्योतिष उपायों को एक बार जरूर आजमाना चाहिए जो आपको इस मुसीबत से मुक्ति दिलाने में मददगार साबित हो सकते हैं।
आइए जानते हैं रात में आने वाले बुरे सपनो से बचने के कुछ कारगर ज्योतिष उपाय-
ज्योतिष अनुसार यदि आपको बार-बार बुरे सपने दिखाई देते हैं तो रात में सोने से पहले हनुमान चालीसा का पाठ करें. संकट मोचन सभी कष्टों को हरने वाले माने जाते हैं, ऐसे में उनका पाठ करने से आपको कोई भी बुरा सपना नहीं आएगा. इसके अलावा आपकी आस्था जिस भी भगवान में हैं उनको याद करके सोएं।
यदि आपके सपने में सांप बार-बार दिखाई देता है तो संभवता यह काल सर्प दोष का संकेत हो सकता है. ऐसे सपनो से बचने के लिए भोलेनाथ की अराधना करें. खास करके सोमवार के दिन शिवलिंग पर जल, दूध और फल अर्पित करें. इसके अलावा सूर्य अराधना भी ऐसे सपनो से बचने के लिए कारगर मानी जाती है।
सोते समय सही दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए. यदि आपको बार-बार डरावने सपने आते हैं तो आपने सोने की दिशा में बदलाव करें. ज्योतिष अनुसार बुरे सपनो से बचने के लिए कोशिश करें कि उत्तर तथा पश्चिम दिशा में सिर करके न सोएं. वहीं, दक्षिण और पूर्व दिशा की ओर सिर रखकर सोना शुभ माना जाता है, और इससे आपको बुरे सपने भी परेशान नहीं करते हैं।
अगर आप डरावने सपनो से छुटकारा पाना चाहते हैं तो कोशिश करें कि अपने बेडरूम जूते-चप्पल न रखें. माना जाता है कि इससे निगेटिविटी फैलती है और आपको मानसिक तौर पर भी परेशान रहने लगते हैं।
क्यों आते हैं बुरे सपने
ऐसा कई लोगों के साथ होता है कि उन्हें एक ही प्रकार के सपने बार-बार आते हैं. इसके कारण उनकी नींद भी टूट जाती है और मन में डर भी बना रहता है कि कहीं कोई अशुभ घटना न घट जाए. उन्हें सपनो में कोई खास व्यक्ति, जगह या घटना बार-बार दिखई देती है. मान्यता है कि यदि ऐसे सपने आपको बार-बार दिखाई देते हैं तो यह असफलता या आत्मविश्वास की कमी को दिखाता है।
बुरे सपनों का क्या होता है मतलब
यदि सपने में बार-बार सांप का दिखाई देनी किसी अशुभ घटना का संकेत माना जाता है. ऐसे सपनो को नजरअंदाज न करके, बल्कि उसके सही उपचार को खोजें।
अगर आपके सपनो में कोई जीवत व्यक्ति मृत दिखाई दे तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है. माना जाता है कि ऐसा होने से उस व्यक्ति की उम्र में वृद्धि होती है. ऐसे सपना बुरा नहीं माना जाता है।
यदि सपने में खुद को उड़ते हुए देखें तो ऐसा होना शुभ माना जाता है. इसके अलावा अगर आप खुद को किसी नदी में नहाते हुए देखें तो इसका मतलब यह होता है कि आपको अपने कार्यक्षेत्र में सफलता मिलने वाली है। -
हर काम में हो रहे हैं विफल तो यह रेखा देखिए
पंडित प्रकाश उपाध्याय
कई बार खूब मेहनत के बावजूद मनवांछित सफलता नहीं मिल पाती। ऐसा होने पर हम मानते हैं कि भाग्य साथ नहीं दे रहा। लेकिन क्या आपको पता है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भाग्योदय का समय तय है। इसे आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि व्यक्ति को अनुकूल परिणाम मिलने में ग्रहों की अनुकूलता होने लगती है। यदि ग्रह आपके अनुकूल हैं तो आपको अपने किए गए प्रयायों के अच्छे परिणाम मिलेंगे, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि भाग्योदय हो गया है तो परिश्रम और कर्म करना ही छोड़ दें। ऐसा करने पर भाग्य अनुकूल होने के बावजूद कोई परिणाम नहीं दे पाएगा। हाथ में भाग्य की अनुकूलता एवं उदय की स्थिति सूर्य रेखा से पता चलती है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि किसी जातक के हाथ में सूर्य रेखा हृदय रेखा के पास से शुरू हो रही है तो इनका भाग्योदय 56 साल के आसपास होगा। लेकिन यह तभी संभव होगा जब जातक के हाथ में अच्छी एवं स्पष्ट सूर्य रेखा भी हो। यह स्थिति होने पर व्यक्ति का चौथा चरण सुखमय होता है।हाथ में मणिबंध या इसके आसपास से शुरू होने वाली सूर्य रेखा भाग्य रेखा के पास एवं समानान्तर अपने स्थान को पहुंच तो हस्तरेखा विज्ञान में इसे अच्छी स्थिति माना गया है। ऐसे लोग जिस काम में भी हाथ डालते हैं वहां सफलता, सम्मान और पैसा सबकुछ पाते हैं। हालांकि स्थिति इसके उलट होने पर यदि सूर्य रेखा ना हो, अथवा कटी एवं टूटी होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में आगे बढ़े तो ऐसे व्यक्ति का जीवन निराशामय हो जाता है। यदि भाग्य रेखा भी नहीं है तो स्थिति और खराब हो सकती है। -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
सनातन परंपरा के अनुसार व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक, उसका जुड़ाव गंगा जल से किसी न किसी प्रकार से होता है. चाहे वो कोई धार्मिक अनुष्ठान हो, कोई शुभ कार्यक्रम या किसी व्यक्ति की अंतिम यात्रा, हर जगाह गंगा जल का उपायोग किया जाता है. मान्यता है कि जो कोई भी गंगा नदी में स्नान करता है या डुबकी लगाता है, उसके जीवन के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे कोई रोग आसानी से छूता भी नहीं है.
जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से मां गंगा की अराधना करते हैं उनकी मनचाही इच्छाएं पूर्ण होती है. इसके साथ-साथ यदि आप गंगा जी से जुड़े कुछ उपाय करते हैं तो आपको और अधिक लाभ मिलता है, साथ ही आपकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आता है. तो आइए जानते है गंगा जल से जुड़े कुछ ज्योतिष उपाय
भगवान शिव की पूजा करते समय गंगा जल का प्रयोग करना बहु शुभ माना जाता है. मान्यता है कि शिव जी की जटाओं से निकली गंगा जी को उनकी पूजा करते समय अवश्य इस्तेमाल करना चाहिए. जो भी भक्त प्रतिदिन शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाता है, उनके जीवन में आने वाली परेशानियां कम हो जाती हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में गंगा जल रखने का विशेष स्थान भी होता है. अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना गया गंगा जल हमेशा घर के ईशान कोण में रखा जाना चाहिए. यदि यह संभव न हो तो, घर में बने पूजा स्थल पर भी आप गंगा जल रख सकते हैं.
अधिकतर लोग गंगा जल को प्लास्टिक के डिब्बे या किसी बोतल में रखते हैं. ज्योतिष अनुसार ऐसा नहीं करना चाहिए. मान्यता है कि पूजा में प्लास्टिक के उपयोग से चाजें अशुद्ध हो जाती हैं.
ज्योतिष अनुसार यदि आपके घर में किसी प्रकार की नकारात्मकता है, या आपके परिवार में किसी न किसी व्यक्ति की तबियत खराब रहती है, तो रोजाना घर में सुबह पूजा करने के बाद, तांबे के लोटे में गंगा जल डालकर, उसे पूरे घर में छिड़के. माना जाता है कि ऐसा करने से सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है. आपका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा.
यदि आपके उपर कर्ज का अधिक बोझ है, या कई प्रयासों के बावजूद आप इससे उभर नहीं पा रहे हैं तो गंगा जल से जुड़े ये उपाय बहुत कारगर साबित होगा. घर की उत्तर दिशा में किसी पवित्र स्थान पर, पीतल के बर्तन में गंगा जल रखने से जीवन में आने वाली बड़ी सी बड़ी समस्याएं हल हो जाती हैं. ऐसा करने से आपकी आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी. - अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के निर्माणाधीन मंदिर में स्थापित होने वाली दो शालिग्राम शिलाएं अयोध्या लाई गई हैं। कहा जाता है कि ये शिलाएं करीब छह करोड़ साल पुरानी हैं। दोनों शिलाएं 40 टन की हैं। एक शिला का वजन 26 टन जबकि दूसरे का 14 टन है।शालिग्राम शिला को काफी पवित्र माना जाता है। ये पत्थर नेपाल की पवित्र काली गंडकी नदी से निकाले गए हैं। छह करोड़ वर्ष पुराने दो शालीग्राम पत्थरों को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि में रखा जाएगा। इन शिलाओं का इस्तेमाल यहां निर्माण हो रहे श्री राम मंदिर में भगवान श्री राम के बाल्य स्वरूप की मूर्ति और माता सीता की मूर्ति बनाने के लिए किया जाएगा।वैज्ञानिक शोध के अनुसार, शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है। धार्मिक आधार पर शालिग्राम का प्रयोग भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालिग्राम वैष्णवों द्वारा पूजी जाने वाली सबसे पवित्र शिला है। इसका उपयोग भगवान विष्णु को एक अमूर्त रूप में पूजा करने के लिए किया जाता है। शालिग्राम की पूजा भगवान शिव के अमूर्त प्रतीक के रूप में 'लिंगम' की पूजा के बराबर मानी जाती है। आज शालिग्राम विलुप्त होने के कगार पर हैं। केवल दामोदर कुंड में कुछ शालिग्राम पाए जाते हैं, जो गंडकी नदी से 173 किमी की दूरी पर है।गौतमीय तंत्र के अनुसार, काली-गंडकी नदी के पास शालाग्राम नामक एक बड़ा स्थान है। उस जगह पर जो पत्थर दिखते हैं, उन्हें शालाग्राम शिला कहा जाता है। हिंदू परंपरा के अनुसार 'वज्र-कीट' नामक एक छोटा कीट इन्हीं शिलाओं में रहता है। कीट का एक हीरे का दांत होता है जो शालिग्राम पत्थर को काटता है और उसके अंदर रहता है। शालिग्राम पर निशान इसे एक विशेष महत्व देते हैं, जो अक्सर भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की तरह दिखाई देते हैं। शालिग्राम अलग-अलग रंगों में मिलते हैं, जैसे लाल, नीला, पीला, काला, हरा। सभी वर्ण बहुत पवित्र माने जाते हैं। पीले और स्वर्ण रंग के शालिग्राम को सबसे शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि यह भक्त को अपार धन और समृद्धि प्रदान करता है। शालिग्राम के कई रुप होते हैं, कुछ अंडाकार तो कुछ में छेद होता है और अन्य में शंख, चक्र, गदा या पद्म आदि के निशान भी बने होते हैं। शालिग्राम अक्सर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों जैसे नरसिंह अवतार, कूर्म अवतार आदि से जुड़े होते हैं।वैष्णवों के अनुसार शालिग्राम 'भगवान विष्णु का निवास स्थान' है और जो कोई भी इसे रखता है, उसे प्रतिदिन इसकी पूजा करनी चाहिए। उसे कठोर नियमों का भी पालन करना चाहिए जैसे बिना स्नान किए शालिग्राम को न छूना, शालिग्राम को कभी भी जमीन पर न रखना, गैर-सात्विक भोजन से परहेज करना और बुरी प्रथाओं में लिप्त न होना।स्वयं भगवान कृष्ण ने महाभारत में युधिष्ठिर को शालिग्राम के गुण बताए हैं। मंदिर अपने अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार के शालिग्राम का उपयोग कर सकते हैं। जिस स्थान पर शालिग्राम पत्थर पाया जाता है वह स्वयं उस नाम से जाना जाता है और भारत के बाहर 'वैष्णवों' के लिए 108 पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है।देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी के विवाह की परंपरा है। एक कथा के अनुसार तुलसी ने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया था इसलिए भगवान विष्णु को शालिग्राम बनना पड़ा और इस रूप में उन्होंने माता तुलसी जो कि लक्ष्मी का ही रुप मानी जाती है उनसे विवाह किया। माना जाता है कि शालिग्राम और भगवती स्वरूपा तुलसी का विवाह करने से सारे अभाव, कलह, पाप, दुख और रोग दूर हो जाते हैं।मान्यतओं के मुताबिक, जिस घर में शालिग्राम की रोज पूजा होती है वहां सभी दोष दूर होते हैं और नकारात्मकता नहीं रहती है। इसके अलावा इस घर में विष्णुजी और महालक्ष्मी निवास करती हैं। शालिग्राम को स्वयंभू माना जाता है इसलिए कोई भी व्यक्ति इन्हें घर या मंदिर में स्थापित करके पूजा कर सकता है। माना जाता है कि शालिग्राम को अर्पित किया हुआ पंचामृत प्रसाद के रूप में लेने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। पूजा में शालिग्राम पर चढ़ाया हुआ जल भक्त यदि अपने ऊपर छिड़कता है तो उसे सभी तीर्थों में स्नान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होता है।----
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5 फरवरी को माघ मास की पूर्णिमा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को धन की देवी भी कहा जाता है। जिस व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की कृपा हो जाती है उसको जीवन में कभी भी आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मां लक्ष्मी के दिन कुछ खास उपाय किए जाते हैं। इन उपायों को करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए क्या करें-
मां को लाल वस्त्र अर्पित करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूर्णिमा के दिन मां को लाल वस्त्र अर्पित करने चाहिए। आप मां को सुहाग का सामना भी अर्पित कर सकते हैं। ऐसा करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है और आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
मां लक्ष्मी को पुष्प अर्पित करें
पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को पुष्प अर्पित करें। अगर संभव हो तो मां लाल रंग के पुष्प अर्पित करने चाहिए।
विष्णु भगवान की पूजा करें
पूर्णिमा के दिन धन- प्राप्ति के लिए विष्णु भगवान की पूजा भी करें। विष्णु भगवान की पूजा करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए हर शुक्रवार को माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करें।
खीर का भोग लगाएं
पूर्णिमा के दिन श्री लक्ष्मीनारायण भगवान और मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। इस उपाय को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है और धन- लाभ होता है। -
मीन राशि का स्वामी गुरु बृहस्पति है। 19 फरवरी से 20 मार्च के बीच जन्मे लोग मीन राशि के होते हैं। इस राशि के लोगों के मन में भय और असुरक्षा की भावना होती है। मीन राशि के लोग संवेदनशील, विचारशील और अत्यधिक भावुक होते हैं। इस राशि के लोग अपने जीवनसाथी के प्रति बेहद समर्पित होते हैं। मीन राशि के लोग आशावादी और निराशावादी दोनों स्वभाव के होते हैं।
रत्नशास्त्र में हर राशि के लिए एक विशेष रत्न के बारे में बताया गया है जिसे धारण करने से ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है और बिगड़े हुए काम बनने लगते हैं। इससे जीवन में आने वाली मुसीबत को पार करने में मदद मिलती है। आइये जानते हैं मीन राशि के लिए भाग्यशाली रत्न।
ज्योतिष शास्त्र की बारहवीं राशि मीन के लिए भाग्यशाली रत्न एक्वामरीन है। इस रत्न को धारण करने से मीन राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण ग्रह नेपच्युन संतुष्ट होता है। यह रत्न मीन राशि वालों के जीवन मे सकारात्मक प्रभाव डालने के साथ ही साथ उन्हें आकर्षक और निडर बनाता है। मन और मस्तिष्क के बीच आपसी तालमेल बिठाने में मदद करता है। मीन राशि की महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति के लिए यह रत्न बहुत मददगार साबित होता है।
मीन राशि की महिलाएं को उचित फैसला लेने में मदद करता है। इसके अलावा मीन राशि के जातक नीलम, ब्लडस्टोन, जेड, माणिक्य, और जैस्पर रत्न धारण कर सकते हैं।
फाइल फोटो -
माघ पूर्णिमा 5 फरवरी को है। संपूर्ण भारत में, विशेषकर प्रयागराज में गंगा स्नान के लिए इस ठंड में भी लाखों लोग आते हैं। आस्थावादियों को इस दिन का सालभर से इंतजार रहता है। उनका यह इंतजार पूरा होने को है। खत्म इसलिए नहीं, क्योंकि सनातन मान्यता के अनुसार कोई चीज खत्म नहीं होती, बस अपना रूप बदलती है। 84 लाख योनियों की अवधारणा इसकी पुष्टि करती है। और फिर यहां तो रूप भी नहीं बदल रहा है। यह एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा के बीच की यात्रा है। पौष से माघ पूर्णिमा। यह यात्रा के आरंभ होने से उसके पूर्ण होने की यात्रा है यानी माघ प्रतिपदा से माघ पूर्णिमा की। भौतिकता से अध्यात्म की यात्रा। सदियों से इस दिन के साक्षी होते आए हैं, वे हजारों-लाखों लोग, जो प्रयागराज में गंगा के तट पर कल्पवासी होते हैं। यह कल्पवास की पूर्णता का दिन है।
हमारी संस्कृति की यही तो विशेषता है कि तमाम तरह के भोगों के बीच व्यक्ति को योगी होने का भी अवसर देती है। माघ का महीना ऐसा ही अवसर है। लेकिन बहुत ही विचित्र और अद्भुत। साधना के लिए वन में कठोर तप नहीं, सिर्फ सूर्योदय से पूर्व स्नान। गंगाजी में स्नान हो जाए तो अच्छा। पूरे माह हो जाए तो बहुत अच्छा वरना सिर्फ एक दिन माघ पूर्णिमा पर ही गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष की साधना का फल मिल जाता है। यह भी न हो पाए तो घर में पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लो तो वह भी अच्छा। इतना भी नहीं हो पा रहा है, तो गंगाजल के छींटे मार लो। और यह भी नहीं तो मानसिक स्नान की भी व्यवस्था है। यानी धर्म आपकी सुविधा का पूरा ध्यान रख रहा है। कितना उदार है हमारा धर्म और कितने व्यावहारिक हैं हमारे धार्मिक विश्वास।
हमारे वैदिक ऋषि इस बात को जानते थे कि मन की शुद्धि के साथ-साथ तन की शुद्धि भी बहुत जरूरी है। क्योंकि गंदे पात्र में रखी हुई अच्छी वस्तु भी खराब हो जाती है इसलिए मन को रखनेवाले तन रूपी पात्र का भी साफ रहना जरूरी है और यों शुरू हुई स्नान की प्रथा।
पौराणिक कथाएं कहती हैं, इस दिन भगवान विष्णु का वास गंगा में होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता भी प्रयाग में गंगा स्नान के लिए आते हैं। गंगा यानी मां। सृष्टि के पालक विष्णु यानी पिता। यह एक पिता के घर आने का भी दिन है। जिस प्रकार एक व्यक्ति दिनभर काम करने के बाद अपने घर लौटता है, उसी प्रकार सृष्टि के कार्यों में व्यस्त श्रीहरि के यह घर लौटने का दिन है। अपने परिवार के पास। पिता जब घर आता है तो परिवार में सभी के लिए कुछ-न-कुछ उपहार भी जरूर लाता है। सुख-समृद्धि, आरोग्यता और मोक्ष-प्राप्ति ऐसे ही उपहार हैं।
हमारे पर्व और धार्मिक मेले दान से भी जुड़े हैं। इसके पीछे भावना है कि हमें अपनी खुशियों को आपस में बांटना चाहिए। माघ पूर्णिमा के दिन ललिता जयंती भी मनाई जाती है। दस महाविद्याओं में ये तीसरी महाविद्या हैं। इन्हें त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। -
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी गई है। इस समय माघ माह चल रहा है। माह महीने को देवताओं का महीना माना गया है। मान्यता है कि माघ माह में स्नान व दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसे में इस महीने में पड़ने वाली एकादशी का महत्व बढ़ जाता है। माङ माह में पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस साल जया एकादशी 1 फरवरी 2023, बुधवार को है। एकादशी के दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मनुष्य पृथ्वी लोक के सभी सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष को जाता है।
जया एकादशी शुभ मुहूर्त 2023-
एकादशी तिथि 31 जनवरी 2023 को सुबह 11 बजकर 53 मिनट से प्रारंभ होगी और 1 फरवरी 2023 को दोपहर 02 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी।
जया एकादशी महत्व-
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य को कष्टों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इतना ही नहीं जया एकादशी की तिथि जन्म एवं पूर्व जन्म के सभी पापों का नाश करने के लिए उत्तम तिथि है।
एकादशी पूजा- विधि:
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
भगवान की आरती करें।
जया एकादशी 2023 व्रत पारण का समय-
जया एकादशी व्रत का पारण 02 फरवरी 2023 को किया जाएगा। व्रत पारण का शुभ समय सुबह 07 बजकर 09 मिनट से सुबह 09 बजकर 19 मिनट तक रहेगा।
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हथेली में सूर्य पर्वत शनि की ओर झुक जाए तो व्यक्ति जज एवं सफल अधिवक्ता होता है। यदि सूर्य पर्वत दूषित हो जाए तो व्यक्ति अपराधी प्रवृत्ति का हो जाता है। यदि सूर्य एवं शुक्र पर्वत उभार वाले है तो व्यक्ति विपरीत लिंग के प्रति शीघ्र एवं स्थायी प्रभाव डालने वाला, धनवान, परोपकारी, सफल प्रशासक, सौंदर्य और विलासिताप्रिय होता है। सूर्य पर्वत पर जाली हो तो गर्व करने वाला, लेकिन कुटिल स्वभाव का होता है। ऐसा व्यक्ति किसी पर विश्वास नहीं करता। तारे का चिह्न होने पर धनहानि होती है, लेकिन प्रसिद्धि अप्रत्याशित रूप से मिलती है। गुणा का चिन्ह हो तो सट्टा या शयेर में धन का नाश हो सकता है। सूर्य पर्वत पर त्रिभुज हो तो उच्च पद की प्राप्ति, प्रतिष्ठा तथा प्रशासनिक लाभ होते हैं। सूर्य पर्वत पर चौकड़ी हो तो लाभ तथा सफलता की प्राप्ति होती है।
सूर्य पर्वत एवं बुध पर्वत के संयुक्त उभार की स्थिति में व्यक्ति में योग्यता, चतुराई तथा निर्णय शक्ति अधिक होती है। ऐसा व्यक्ति श्रेष्ठ वक्ता, सफल व्यापारी या उच्च स्थानों का प्रबंधक होता है। ऐसे व्यक्तियों में धन पाने की असीमित महत्वाकांक्षा होती है। हथेली में सूर्य पर्वत के साथ यदि बृहस्पति का पर्वत भी उन्नत हो तो व्यक्ति विद्वान, मेधावी और धार्मिक विचारों वाला होता है। अनामिका उंगली के मूल में सूर्य का स्थान होता है। सूर्य का उभार जितना अधिक होगा, प्रभाव भी उतना ही अधिक मिलेगा। सूर्य पर्वत का उभार अच्छा, स्पष्ट होने के साथ सरल सूर्य रेखा हो तो व्यक्ति श्रेष्ठ प्रशासक, पुलिसकर्मी, सफल उद्यागेपति होता है। यदि पर्वत अधिक उभार वाला हो और रेखा कटी या टूटी हो तो व्यक्ति अभिमानी, स्वार्थी, क्रूर, कंजूस और अविवेकी होता है। -
अयोध्या के राम मंदिर का काम तेजी से चल रहा है. रामलला की प्रतिमा को लेकर भी लोगों में बहुत ही ज्यादा उत्साह दिख रहा है. अयोध्या के इस भव्य मंदिर में रामलला की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से तैयार की जाएगी. ये शालिग्राम पत्थर नेपाल की गंडकी नदी से लाए जा रहे हैं. जानकारों के मुताबिक, ये पत्थर दो टुकड़ों में है और इन दोनों शिलाखंडों का कुल वजन 127 क्विंटल है. इन शिलाखंडों को 02 फरवरी तक अयोध्या लाया जाएगा.
अयोध्या में राम जन्मभूमि का काम बहुत ही तेजी से चल रहा है. 2024 में जनवरी तक राम जन्मभूमि का ग्राउंड फ्लोर तैयार कर दिया जाएगा. जानकारों के मुताबिक, अभी इन शिलाखंडों को नेपाल के जनकपुर लाया गया है. जनकपुर के मुख्य मंदिर में पूजा-अर्चना की गई. साथ ही इन शिलाखंडों की पूजा भी शुरू हो गई है. विशेष पूजा के बाद इन शिलाखंडों को भारत लाया जाएगा और 31 जनवरी तक ये शिलाखंड गोरखपुर के गोरक्षपुर लाए जाएंगे.
क्या है शालिग्राम पत्थरों की मान्यता
शास्त्रों के मुताबिक, शालिग्राम में भगवान विष्णु का वास माना जाता है. पौराणिक ग्रंथों में माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का जिक्र भी किया गया है. इसलिए इन शिलाखंडों को बहुत ही खास माना जा रहा है. लोगों के मुताबिक, इन शिलाखंडों का धार्मिक महत्व है. क्योंकि इनका संबंध भगवान विष्णु से है.
इन पत्थरों की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ये शिलाखंड ज्यादातर गंडकी नदी में ही पाए जाते हैं. हिमालय के रास्ते में पानी चट्टान से टकराकर इस पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है और नेपाल के लोग इन पत्थरों को खोज कर निकालते हैं और उसकी पूजा करते हैं.
मान्यता के अनुसार, 33 तरीके के शालिग्राम होते हैं. शालिग्राम का पत्थर भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा जाता है. मान्यता है कि जिस घर में शालिग्राम का पत्थर होता है, वहां घर में सुख-शांति बनी रहती है और आपसी प्रेम बना रहता है. साथ ही माता लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है.
गंडकी नदी से निकली शालिग्राम शिला को देखेंगे विशेषज्ञ
शालिग्राम शिला का विशेष महत्व है. हालांकि अभी तकनीकी विशेषज्ञों का पैनल परीक्षण कर भव्य मूर्ति के लिए उसकी अनुकूलता और क्षरण जैसी बातों पर मंथन करेगा. जानकारी के अनुसार, प्रख्यात चित्रकार वासुदेव कामथ के अलावा रामलला की मूर्ति बनाने में पद्मभूषण शिल्पकार राम वनजी सुथार को जिम्मेदारी दी गई है. राम सुथार ने स्टैचू ऑफ़ यूनिटी का भी शिल्प तैयार किया है. हाल ही में अयोध्या में लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि स्वरूप वीणा को स्थापित किया गया है. उस वीणा को राम सुथार और उनके बेटे अनिल राम सुथार ने तैयार किया है.
वहीं मूर्ति बनाने के पहले चरण की ज़िम्मेदारी संभालने वाले चित्रकार वासुदेव कामथ अंतर्रराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार हैं जिन्हें स्केच और पोर्ट्रेट बनाने में विशेष ख्याति प्राप्त है. इसके अलावा मूर्तिकार पद्मविभूषण सुदर्शन साहू, पुरातत्ववेत्ता मनइया वाडीगेर तकनीकी विशेषज्ञ और मंदिर बनाने वाले वास्तुकार भी मूर्ति के निर्धारण में भूमिका निभाएंगे. रामलला की मूर्ति ऐसी होगी जिसमें मंदिर के वास्तु की दृष्टि से समन्वय होगा. रामनवमी के दिन रामलला के ललाट पर सूर्य की किरणें पड़ेंगी.
शिलाओं से बनेगी रामलला की मूर्ति
रामलला की मूर्ति तैयार करने के लिए जिन मूर्तिकारों और कलाकारों का चयन किया गया है. रामलला की मूर्ति 5 से साढ़े 5 फीट की बाल स्वरूप की होगी. मूर्ति की ऊंचाई इस तरह तय की जा रही है कि रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें सीधे रामलला के माथे पर पड़ें. -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
होली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन यानी चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि के दिन होली खेली जाती है. होली के 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं. होलाष्टक का समापन होलिका दहन के साथ ही होता है. इस अवधि में शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं. आइए जानते हैं कि इस साल होलाष्टक कब से लग रहे हैं और इस दौरान कौन से कार्य नहीं करने चाहिए.
होलाष्टक कब से शुरू?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल होलिका दहन 7 मार्च 2023 को होगा. जबकि 8 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी. होली के आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं. इसलिए इस वर्ष 28 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे और 7 मार्च तक रहेंगे.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है?
होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है. पंचांग के अनुसार, इस साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 06 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट से लेकर अगले दिन 07 मार्च को शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगी. होलिका दहन 07 मार्च को किया जाएगा. जबकि 08 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी.
होलाष्टक में न करें ये 5 काम
1. होलाष्टक में शादी-विवाह और सगाई जैसे मांगलिक कार्यों के अलावा मुंडन और नामकरण जैसे संस्कार नहीं करने चाहिए.
2. होलाष्टक में भवन निर्माण, वाहन, प्लॉट या किसी प्रॉपर्टी को खरीदना या बेचना वर्जित है.
3. होलाष्टक में भूलकर भी यज्ञ और हवन जैसे कार्य ना करें.
4. होलाष्टक में शुभ कार्यों की शुरुआत बिल्कुल न करें. अगर आप किसी नई दुकान का शुभारंभ करने वाले हैं तो होलाष्टक से पहले या बाद में करें.
5. होलाष्टक में सोने या चांदी के आभूषण खरीदने से बचें. आप होलाष्टक से पहले या बाद में इन्हें खरीद सकते हैं.
होलाष्टक में क्यों नहीं करते शुभ काम?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार प्रेम के देवता कामदेव ने भोलेनाथ की तपस्या भंग कर दी थी. इससे नाराज होकर भगवान शिव ने कामदेव को फाल्गुन अष्टमी के दिन भस्म कर दिया था. जब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी की उपासना की और कामदेव को फिर से जीवित करने की प्रार्थना की, तब शिवजी को उस पर दया आई. इसके बाद शिवजी ने कामदेव में फिर से प्राण भर दिए. कहते हैं कि तभी से होलाष्टक मनाने की परंपरा चली आ रही है. होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का अंत हो जाता है. -
ये लोग बहुत सावधानी से पार करें समय
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
मेष: अपने उत्साह को बनाए रखें और हर काम को उत्साह के साथ निपटाएं। आपके पिछले निवेश इस महीने शानदार मुनाफा देंगे। क्योंकि अब आपके पास निवेश करने के लिए अतिरिक्त पैसा होगा, इसलिए आपको इसे अपने कर्तव्यों को चुकाने में लगाना चाहिए। अब समय आ गया है कि आप अपने साथी पर अधिक ध्यान दें और उनके साथ समय बिताएं। अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं और स्वतंत्र रूप से व्यक्त करें।
वृषभ: बेवजह जोखिम उठाने के बजाय अपने पेशे में जो सफल रहा है, उसी पर टिके रहें। यदि आप अपने करियर को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो आप कर सकते हैं, लेकिन आपको ऐसी स्थिति नहीं लेनी चाहिए जो आपके कंफर्ट जोन से पूरी तरह बाहर हो। आपका रोमांटिक जीवन थोड़ा उतार-चढ़ाव भरा रहेगा क्योंकि आपका साथी संवेदनशील मामलों पर आपके विचारों की सराहना नहीं कर सकता है।
मिथुन: तुरंत निर्णय लेने की क्षमता सफलता के लिए अहम होगी। इस महीने कॉर्पोरेट जगत में आगे बढ़ने के कई मौके आएंगे। सौदे हो सकते हैं जो व्यवसायियों के लिए फायदेमंद हैं। आपके व्यक्तिगत जीवन और पेशेवर जीवन दोनों में आपके बहुत समय और ध्यान की आवश्यकता होगी, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप दोनों के बीच संतुलन बनाएं। अपनी बुद्धि पर विश्वास करें।
कर्क: आप आराम कर सकते हैं क्योंकि आप अपने निजी और पेशेवर जीवन में जहां हैं उससे खुश हैं। आपके सीनियर अधिकारी आपको अपना समय खुद निर्धारित करने देंगे और ऑफिस में आप जो चाहते हैं वह करेंगे। नए कौशल प्राप्त करके इस समय का बेहतर उपयोग करें जो आपके पेशेवर जीवन में आपकी मदद करेगा। आपके प्रियजन आपको प्रोत्साहित करते रहेंगे और आपको बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करेंगे। अपने फिटनेस स्तर को बनाए रखने के लिए अच्छा खाएं।
सिंह: इस महीने आप जो भी वचन देते हैं, उससे सावधान रहें। आपका वर्तमान पेशा आपके कौशल को निखारने के लिए सही है। इसलिए इस समय इसे न छोड़ें और सही अवसर का इंतजार करें। हर कीमत पर वित्तीय जोखिम लेने से बचना चाहिए और लंबी अवधि के निवेश पोर्टफोलियो को बनाए रखना चाहिए। घर में सुख-समृद्धि वैसी ही रहेगी जैसी आपने उम्मीद की थी। ऐसे में आपको अपने प्रियजनों की सलाह लेनी चाहिए।
कन्या: उम्मीद न खोएं, क्योंकि इस महीने में आपको मनमुताबिक प्रतिफल मिलने की प्रबल संभावना है। एक सोची-समझी योजना बनाएं जो बिना देर किए आपको अपने पेशे में आगे बढ़ाएगी। किसी करीबी दोस्त या परिवार के सदस्य से बात करते समय शब्दों को बहुत सावधानी से चुनें। अपने शब्दों के चयन में सतर्क रहें, क्योंकि आपके साथी को यह पसंद नहीं आ सकता है कि आप कितने सीधे हैं।
तुला राशि: इस माह आपको कुछ सवालों के जवाब पाने की इच्छा होगी। जबकि आप अपनी वर्तमान भूमिका में सफल हो सकते हैं, प्रगति धीमी रही है। पता लगाएं कि आपको आगे बढ़ने से क्या रोक रहा है। इसी तरह अपने साथी को एक विवादास्पद विषय पर चीजों को अपने तरीके से देखने के लिए मजबूर करने की कोशिश करना आपको अड़ियल रूप में प्रस्तुत करेगा। खुले विचारों वाले रहें और दूसरों को विकसित होने में मददकर।
वृश्चिक राशि: इस माह परेशानियों को न बढ़ने दें और तुरंत कार्रवाई करें। समस्या को फिर से होने से रोकने के लिए यह निर्धारित करना महत्वपूर्ण है कि पहले इसका कारण क्या था। अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें और अपनी समय सीमा का सख्ती से पालन करें। कार्यस्थल पर प्रसन्नता का माहौल बनाए रखना महत्वपूर्ण है। अगर आपके पार्टनर को बिजनेस ट्रिप पर जाना है तो समझें और चिंता न करने की कोशिश करें। प्रसन्न स्वभाव रखें।
धनु: आपका करियर एक चौराहे पर है लेकिन आपकी एक्सपरटाइज और ज्ञान आखिरकार रंग लाएगा। वहां एक मौका आपको पदोन्नत किया जाएगा और काम पर अधिक जिम्मेदारी दी जाएगी। अगर आपका प्रेमी असुरक्षित महसूस करता है तो आपको उसे आश्वस्त करना चाहिए। आपने अनजाने में अपने साथी को चिंता का अनुभव कराया है और वे इसे आपसे व्यक्त करने में असमर्थ होंगे। आपका स्वास्थ्य खराब हो सकता है, इसलिए अपना ज्यादा ध्यान रखें।
मकर: अपने जीवनस्तर को उठाने और अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए अपना समय और ऊर्जा लगाएं। समय-समय पर अपनी वित्तीय होल्डिंग का आकंलन करना महत्वपूर्ण है। अगर आप अपने वर्तमान आय स्तर से खुश नहीं हैं, तो इसे बढ़ाने के तरीकों पर गौर करें। अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों और सपनों के बारे में अपने पार्टनर के साथ खुली चर्चा करने का यह एक अच्छा समय है।
कुंभ: पहचानें कि आप मुश्किल कार्यों को निपटाने में सक्षम हैं। काम पर मुश्किलों के बावजूद, आपका अपना अनुभव और ज्ञान इससे निपटने में मदद करेगा। अपने साथी से अपने प्यार का इजहार करने से पहले अपनी भावनाओं पर काबू पाएं। खुद को शांत रखने की पूरी कोशिश करें।
मीन राशि: परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए स्वयं को तैयार करें और यहां तक कि उसे गले लगाने के लिए भी। काम पर एक नई योजना शुरू करना एक अच्छा विचार नहीं है जब तक कि आप इसे चलाने की अपनी क्षमता में विश्वास न करें और आपके पास सभी आवश्यक संसाधन हों। कार्यों को पूरा करने में जल्दबाजी न करें, ऐसा करने से आपके काम की क्वालिटी खराब हो सकती है। अपने पार्टनर की भावनाओं के प्रति सचेत रहें और उन्हें हमेशा प्राथमिकता की तरह महसूस कराएं।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायहम अक्सर अपने घरों में हरियाली लाने के लिए बहुत से पेड़-पौधे लगाते हैं। पर वास्तु शास्त्र के अनुसार हर पौधे हर में तरक्की नहीं लाते हैं, बल्कि कुछ पौधे ऐसे होते हैं, जिन्हें लगाने से घर में दुर्भाग्य आता है और जातक को कंगाली का सामना करना पड़ता है। ऐसे पौधे जीवन में परेशानियों का कारण बनते हैं। कहा जाता है कि यदि ऐसे पौधे आस पास लगे हों तो घर की शांति भंग हो जाती है और परिवार के सदस्यों की तरक्की रुक जाती है। ऐसे में चलिए जानते हैं उन पौधों के बारे में जो घर में नकारात्मकता बढ़ाते हैं...कांटेदार पौधेघर के आसपास किसी भी तरह के कांटेदार पौधे लगाने से बचना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस तरह के पौधे लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। साथ ही इस तरह के पौधे जिंदगी में कई तरह की परेशानियां पैदा कर देते हैं।बबूल का पेड़कभी भी घर के आसपास बबूल का पेड़ नहीं लगाना चाहिए। इस पौधे को लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बबूल के पेड़ में कांटे होते हैं, जो कार्य में बाधा के साथ नकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।बेर का पेड़वास्तु शास्त्र के अनुसार, बेर के पेड़ में कांटे होते हैं, जिसकी वजह से ये पौधा भी घर में नकारात्मकता लाता है। कहा जाता है कि जिस घर में बेर का पेड़ लगा होता है माता लक्ष्मी उस घर से अप्रसन्न होकर चली जाती हैं।नींबू और आंवले का पेड़अक्सर लोग अपने घर या घर के आस पास बगीचे में आंवला और नींबू का पेड़ लगाते हैं। जबकि वास्तु शास्त्र के अनुसार इन्हे भी शुभ नहीं माना गया है। यदि आपके घर में या फिर घर के बाहर नींबू या आंवले का पेड़ लगा है तो उसे हटा दें, क्योंकि इनके मौजूद रहने से घर में क्लेश बढ़ता है।----
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पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में शनि पर्वत बेहद महत्वपूर्ण है और इस पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। शनि पर्वत को ज्योतिष में भाग्य स्थान भी माना गया है। शनि पर्वत पर रेखाओं का पहुंचना जरुरी है। यदि शनि पर्वत पर कोई रेखा ना पहुंचे, लेकिन इस पर एक या दो खड़ी रेखाएं हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में भूखा नहीं मरता। ऐसे व्यक्ति को धन मिलता रहता है। जानिए शनि पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में फल।
-यदि शनि पर्वत पर केंद्र में मछली का निशान बने तो जीवन में धन की प्राप्ति होगी, लेकिन यह चिह्न शनि और गुरु पर्वत पर बने तो व्यक्ति धन और सम्मान दोनों पाता है।
-यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर सीधे शनि पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति को परिवार से संपत्ति मिलती है।
चोरी और रिश्वत से खूब धन बटोरते हैं ऐसे लोग
-यदि जीवन रेखा से कोई रेखा से उदय हो शनि पर्वत पर पहुंचे तो ऐसा व्यक्ति अपने दम पर संपत्ति खड़ी करता है। ऐसे लोगों को परिवार से कोई संपत्ति नहीं मिलती। यदि जीवन रेखा से उदय रेखा थोड़ा अंदर आकर मंगल पर्वत तक पहुंच जाए तो यह बहुत ही शुभ है।
-शनि पर्वत पर वी का चिह्न बने और इसमें पांच या इससे कम शाखाएं निकले तों व्यक्ति करोड़ों रुपये का मालिक होता है।
-यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत पर पहुंच जाए तो ऐसा व्यक्ति का भाग्योदय घर से दूर जाने पर ही होगा। -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
बसंत पंचमी का शुभ त्योहार इस साल 26 जनवरी को मनाया जाएगा. यह माघ महीने के शुक्ल पक्ष पांचवें दिन आता है, जो वसंत ॠ तु के प्रवेश की शुरुआत है। वसंत पंचमी पर लोग विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। वैदिक ज्योतिष में, देवी सरस्वती को बुध द्वारा दर्शाया गया है, जबकि बृहस्पति हमारे ज्ञान और बुद्धि पर शासन करता है। इस वर्ष वसंत पंचमी के दिन बुध धनु राशि में रहेगा जिसका स्वामी गुरु शुभ है। आइए जानें कि इस वर्ष राशि के आधार पर इस शुभ दिन सितारों के संरेखण से छात्रों के सीखने और शैक्षणिक प्रदर्शन पर क्या प्रभाव पड़ेगा...
मेष: आपकी शैक्षणिक सफलता की कुंजी धैर्य और दृढ़ता है। असफलताओं पर ध्यान न दें और अपने लक्ष्यों की दिशा में काम करते रहें। अपने से अधिक अनुभवी लोगों की सलाह को सुनें और उस पर अमल करें। जब व्यापक अध्ययन रणनीतियों को विकसित करने की बात आती है, तो आप कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। यह आपको विषयों में गहराई से जाने और उन्हें अधिक अच्छी तरह से समझने की अनुमति देगा।
वृष: अपने जीवन के सफर पर विचार करते रहें और अपनी अंतर्दृष्टि से सीखते रहें। यदि आप सफल होना चाहते हैं, तो आपको स्कूल और पाठ्येतर गतिविधियों के बीच संतुलन बनाना होगा। पता लगाएँ कि आप वास्तव में किसमें रुचि रखते हैं और आपके समय और ऊर्जा के लिए क्या मायने रखता है। अपने माता-पिता को अपने अपरंपरागत नौकरी पथ पर जीतने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास करने पड़ सकते हैं, लेकिन अपनी दृष्टि लक्ष्य पर रखें।
मिथुन: यदि आप अपनी दिनचर्या में अधिक संगठित और अनुशासित बनने का प्रयास करते हैं, तो आप जहाँ जाना चाहते हैं, वहाँ जा सकते हैं। कुछ नवीन अध्ययन रणनीतियों के साथ आने का प्रयास करें। संबंधित जानकारी को पढ़कर उन विषयों के बारे में अपनी समझ बढ़ाएँ जो आपको सबसे अधिक आकर्षित करते हैं। आपके माता-पिता का प्रोत्साहन कुछ ऐसा है जो आपको प्रेरित करने में मदद कर सकता है।
कर्क: उत्साह के साथ अपने शैक्षणिक लक्ष्यों को हासिल करें। आप बौद्धिक विकास की इच्छा से प्रेरित होते रहेंगे। नई जानकारी की खोज करने और अपने क्षितिज का विस्तार करने के लिए आपके लिए कई संभावित रास्ते खुले हैं। आप जितना अधिक प्रशिक्षण लेंगे, आपको अपनी क्षमताओं पर उतना ही अधिक विश्वास होगा। आपके पास जो कुछ भी है वह समान रूप से आपके ध्यान के योग्य है।
सिंह: आप में जो आंतरिक उत्साह है, वह आपको अपने सभी कार्यों में सफलता दिलाएगा। आप में से जो लोग उच्च अध्ययन करने के इच्छुक हैं, उन्हें यह लग सकता है कि उनके प्रयासों का अच्छा परिणाम मिलेगा। आप अपना समय और ऊर्जा कैसे खर्च करते हैं, इसके बारे में गहरी जागरूकता बनाए रखें। अपनी पढ़ाई के रास्ते में किसी भी चीज़ को आड़े न आने दें, लेकिन अपने बाकी जीवन को भी नज़रअंदाज़ न करें।
कन्या: आपके पास यह आश्वासन होगा कि आपको अपनी पढ़ाई में सबसे पहले जाने की आवश्यकता है। अपनों के साथ बिताया गया समय यादगार रहेगा। आपके जीवन में माता-पिता, शिक्षक और अन्य वयस्क सलाह के लिए अच्छे संसाधन हो सकते हैं। यदि आप प्रमुख स्थान बदलने के बारे में सोच रहे हैं, तो जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें। आप में से कुछ लोगों को आपकी पसंद के संस्थान में आपके आवेदन के संबंध में सकारात्मक खबर सुनने को मिल सकती है।
तुला: उपलब्धि का भाव आपको गर्व से भर देगा। यदि आप शोध करने में रुचि रखते हैं, तो इसे करने का यह एक अच्छा समय है! यह संभव है कि आपने अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने के लिए तैयार होने के लिए पर्याप्त गहन अध्ययन किया हो। अति आत्मविश्वास और आकस्मिक रवैये से बचें अन्यथा आपको बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। अपनी बुद्धि से दूसरों की मदद करने से आपको शक्ति मिलेगी।
वृश्चिक: ध्यान लगाने की अपनी क्षमता को विकसित करने से आपको समय बचाने में मदद मिलेगी। एक ऐसा कोर्स खोजने की कोशिश करें जिसे आप ऑनलाइन ले सकते हैं जो आपको नई चीजें सीखने में मदद करेगा। जो प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं उन्हें अगले समय बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयास करना चाहिए। स्वास्थ्य के लिहाज से आप कैसा महसूस कर रहे हैं, इस पर नजर रखें। आप में से जो विदेश में कॉलेज जाना चाहते हैं, उनके पास ऐसा करने का अवसर है।
धनु: आपकी कड़ी मेहनत, प्रतिबद्धता और एकाग्रता के कारण सफलता आपकी पहुंच के भीतर है। अध्ययन करने और जो आपने सीखा है उसे व्यवहार में लाने के लिए आपकी प्रेरणा आपके लिए अच्छा है। व्यर्थ की खोज में अपना समय बर्बाद न करें, और अपने रास्ते में आने वाली संभावनाओं को जब्त करने की पूरी कोशिश करें। जब आप अपने भविष्य के विकल्पों के बारे में भ्रमित महसूस करें तो दूसरों से सलाह लें।
मकर: अगर आप पढ़ना और अधिक जानना चाहते हैं, तो आपको अपनी निर्णय लेने की क्षमता पर काम करने की ज़रूरत है। अपने पाठ्यक्रम में अच्छा करने के लिए, आपको अधिक समय और प्रयास करने की आवश्यकता है। यह संभव है कि कई विकर्षणों के कारण आप वह नहीं कर पाएंगे जो आपने निर्धारित किया था। चाहे कक्षा में हो या मैदान पर, आपको हमेशा अपना सब कुछ देना चाहिए। जल्द ही आपकी सारी मेहनत रंग लाएगी।
कुम्भ : यदि आप सफल होना चाहते हैं तो आपको अपने समय का बेहतर प्रबंधन करना होगा। कॉलेज या विश्वविद्यालय स्तर पर अंतिम परीक्षा देने वाले छात्र समय के साथ अध्ययन करके अपने ग्रेड बढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं। यदि आप अपने ज्ञान का परीक्षण करना चाहते हैं, तो आप एक पेशेवर मॉक परीक्षा में भाग ले सकते हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने से आपके शैक्षिक और करियर क्षितिज का विस्तार हो सकता है
मीन : खुले दिमाग और चौकस नज़र से आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। जो लोग प्रबंधन का अध्ययन करना चाहते हैं, उनके पास नामांकित होने का अच्छा मौका है। परीक्षा की तैयारी को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यदि नहीं, तो आपसे गलती होने की संभावना है। यदि आपके पास एक खुला दिमाग हो सकता है और जल्दी से नई चीजें सीख सकते हैं, तो आप अपने कौशल और समुदाय में प्रतिष्ठा बढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं। -
पंडित प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म में बसंत पंचमी के पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। भारत में इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत भी हो जाती है। इस साल बसंत पंचमी 26 जनवरी 2023, गुरुवार को मनाया जाएगा। बसंत पंचमी के दिन कुछ चीजों को खरीदना अति शुभ माना गया है। इसके साथ ही विवाह करने के लिए यह दिन उत्तम माना गया है। बसंत पंचमी के दिन अबूझ मुहूर्त भी होता है।
बसंत पंचमी के दिन खरीदें ये चीजें-
1. पीली क्रिस्टल बॉल- बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का खास महत्व है। इस दिन पीली क्रिस्टल बॉल जरूर खरीदनी चाहिए। इसे मेनगेट पर लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चों की पढ़ाई में आने वाली दिक्कतें दूर होती हैं।
2. मोर पंख- बसंत पंचमी के दिन मोरपंख का खास महत्व है। इस दिन मोरपंखी का पौधा अपने घर की पूर्व दिशा में जोड़े में लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में मां सरस्वती व मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
3. बांसुरी- बसंत पंचमी के दिन बांसुरी का विशेष महत्व है। इस दिन बांसुरी मां सरस्वती के चरणों में जरूर अर्पित करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मां सरस्वती की कृपा बनी रहेगी।
बसंत पंचमी 2023 शुभ मुहूर्त-
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, बसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त 26 जनवर 2023, गुरुवार को सुबह 07 बजकर 12 मिनट से शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। मां सरस्वती की पूजा के लिए यह समय सबसे उत्तम रहेगा। -
बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का मेन गेट एक ऐसा रास्ता है। जिसके जरिए हम बाहरी दुनिया में प्रवेश करते हैं। घर का मेन गेट से होकर धन, सुख-समृद्धि और तरह-तरह की ऊर्जा का घर के अंदर प्रवेश होता है। घर का मेन गेट से उस घर में रहने वाले लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वास्तु शास्त्र में घर के मेन गेट को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। आइए जानते हैं घर के मेन गेट से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण वास्तु टिप्स जिसके जरिए आप सुख-समृद्धि और पॉजिटिव एनर्जी को अपने घर की ओर आकर्षित कर सकते हैं।- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का मेन गेट उत्तर- पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए। घर के मेन गेट पर लकड़ी से बना एक नेमप्लेट जरुर लगाएं।- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मेन गेट किसी देवी का चिह् व स्वस्तिक का चिह् अवश्य लगाना चाहिए।- घर के मेन गेट पर भगवान गणेश की मूर्ति रखें। वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करना धन और सौभाग्य को अपनी ओर आकर्षित करता है।- घर के मेन गेट के पास कांच के एक बर्तन में पानी भरकर उसमें फूलों की पंखुड़ियों से भर दें। घर के मेन गेट के आसपास अच्छी रोशनी आने दें।- घर में हमेशा लकड़ी और संगमरमर की दहलीज बनाएं। यह निगेटिव एनर्जी को अवशोषित कर पॉजिटिव एनर्जी के फ्लो को बढ़ाने में मदद करता है।- घर के मेन गेट पर डोरमैट लगाएं जो बाहर से आने वाली गंदगी को अंदर प्रवेश करने से रोक दें।- घर के मेन गेट के पास तुलसी या मनी प्लांट का पौधा लगाएं।- घर के मेन गेट के पास शू रैक, कूड़ेदान, पुराना फर्नीचर या टूटी हुई कुर्सी न रखें। -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
रत्न शास्त्र के अनुसार प्रत्येक रत्न किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति को मजबूत करने के लिए ज्योतिषी उस ग्रह से संबंधित रत्न धारण करने की सलाह देते हैं। ग्रहों के दुष्प्रभाव के कारण अक्सर बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। आज हम आपको कुछ विशेष रत्नों के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्हें धन और वृद्धि के कारक के रूप में देखा जाता है।
नीलम-
नीलम शनिदेव से संबंधित रत्न है। यदि किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो तो उसे इस रत्न को धारण करने की सलाह दी जाती है। नीलम को बेहद शक्तिशाली रत्न माना जाता है। इसके शुभ प्रभाव से मनुष्य की सभी परेशानियां खत्म हो जाती है। इस रत्न की मदद से मनुष्य का सोता हुआ भाग्य भी जाग उठता है। ज्योतिषी परामर्श के बिना भूलकर भी नीलम रत्न धारण नहीं करना चाहिए।
माणिक्य रत्न-
सूर्य से संबंधित इस रत्न को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। माणिक्य रत्न को धारण करने से जीवन में अपार सफलता मिलने लगती है। इस रत्न को धारण करने से पॉजिटिव एनर्जी का वास होता है। घर में सुख समृद्धि का बनी रहती है।
लहसुनिया रत्न-
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु की महादशा चल रही हो उसे जीवन में तरह-तरह की परेशनियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति का आर्थिक परेशानी के साथ ही साथ मानसिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। कुंडली में केतु की बुरे प्रभाव को शांत करने के लिए ज्योतिषी लहसुनिया रत्न धारण करने की सलाह देते हैं। इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है और वह अंदर से ऊर्जावान महसूस करता है।
पन्ना रत्न-
बुध ग्रह से संबंधित इस रत्न को धारण करने से मनुष्य के मनुष्य के वाक कौशल और बौद्धिक गुणों का विकास होता है। इस रत्न को धारण करने वाले व्यक्ति संचार के क्षेत्र में खूब नाम कमाते हैं। -
घर के अंदर प्रत्येक दिशा का अपना एक खास महत्व है। सभी दिशा की अपनी एक विशेष ऊर्जा होती है। खाना बनाने के लिए कौन सी दिशा सही रहेगी, किस दिशा में सोना चाहिए, कहां पढ़ना चाहिए। इन सभी बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। दिशाएं हमारे जीवन को प्रभावित करती है और हम सभी के जीवन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। वास्तु शास्त्र की मदद से हमें दिशाओं का ज्ञान होता है।
जीवन में सफलता और तरक्की पाने के लिए आपकी मेहनत और कौशल का जितना योगदान होता है। ठीक उतना ही महत्व आपकी किस्मत का भी होता है। अपने जीवन का ज्यादातर समय लोग अपने घरों में बिताते हैं। ऐसे में घर और उसके आसपास का वातावरण हमारे जीवनशैली पर बहुत हद तक प्रभावित करता है।
आज हम आपको कुछ आसान से वास्तु टिप्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी मदद से आप अपने काम को सफलता पूर्वक करने के साथ ही साथ जीवन में सफलता और तरक्की को भी हासिल कर सकते हैं।
1. काम करते समय उत्तर दिशा में बैठे, वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा में धन के स्वामी कुबेर का वास होता है।
2. वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोगों को लैपटॉप, मोबाइल या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का इस्तेमाल करते समय उसका चार्जिंग पॉइंट हमेशा कमरे की दक्षिण- पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
3. अगर आप बिजनेस में बहुत अधिक सफलता हासिल करना चाहते हैं तो अपने बिजनेस प्रोडक्ट को कमरे की उत्तर पश्चिम दिशा में रखें।
4. जीवन में कई बार बहुत अहम फैसले लेने पड़ते हैं जो आपके जीवन की दशा और दिशा दोनों ही पूरी तरह से बदलकर रख देते हैं। ऐसे अहम फैसले लेने के लिए घर के पूर्व दक्षिण-पूर्व दिशा में बैठें।
5. दक्षिण दिशा की ओर भूलकर भी कोई खिड़की न बनाएं। -
प्रयागराज। माघ मेला के तृतीय स्नान पर्व मौनी अमावस्या पर शनिवार को 1.5 करोड़ लोगों ने गंगा और संगम में डुबकी लगाई। इस बीच, मेला प्रशासन ने हेलीकॉप्टर से साधु-संतों और श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा की। मौनी अमावस्या और शनि अमावस्या का महायोग होने के कारण भारी संख्या में श्रद्धालु शुक्रवार से ही मेला क्षेत्र में आने लगे थे।
प्रयागराज के मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत ने बताया कि शुक्रवार रात 12 बजे से शनिवार दोपहर 12 बजे तक डेढ़ करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा और संगम में स्नान किया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (माघ मेला) राजीव नारायण मिश्र ने बताया कि मेले की सुरक्षा में 5,000 से अधिक कर्मी तैनात किए गए हैं, जिसमें नागरिक पुलिस, महिला पुलिस, घुड़सवार पुलिस, एलआईयू की टीम, खुफिया विभाग के अधिकारी, राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), जल पुलिस आदि के कर्मी शामिल हैं।
मिश्र के मुताबिक, मेले में ‘रिवर एंबुलेंस' और ‘फ्लोटिंग' (पानी में तैरती) पुलिस चौकी की भी व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि सीसीटीवी कैमरों, शरीर पर धारण करने योग्य कैमरों और ड्रोन कैमरों से लोगों पर नजर रखी जा रही है। मौनी अमावस्या पर मेले में आए प्रमुख संतों-ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर स्वामी सदानंद, सुमेरू पीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानद सरस्वती, किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरि आदि शामिल हैं।
वहीं, उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी शनिवार सुबह संगम में डुबकी लगाई। शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद ने बताया कि प्रयागराज में मौनी अमावस्या पर मौन रहकर संगम में स्नान करने से मन के पाप नष्ट हो जाते हैं और इस बार मौनी अमावस्या पर शनि अमावस्या का महायोग होने से गंगा स्नान विशेष फलदायी है। माघ मेले का अगला स्नान 26 जनवरी को बसंत पंचमी, पांच फरवरी को माघी पूर्णिमा और 18 फरवरी को महाशिवरात्रि पर पड़ेगा, जिसके साथ माघ मेला संपन्न हो जाएगा। - बालोद से पं. प्रकाश उपाध्यायमौनी अमावस्या 21 जनवरी को है। इस बार मौनी अमावस्या के दिन 30 वर्षों बाद एक अद्भुत संयोग का निर्माण हो रहा है। इस दिन खप्पर योग बन रहा है। माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को माघी अमावस्या या मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मौन रहकर दान और स्नान करने का विशेष महत्व है। मौनी अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान करने पर पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या के दिन पितृ संबंधित कार्य करने की परंपरा है। इस दिन पितृ संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।पितृ दोष क्या होता है?ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार कुंडली में दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें और दसवें भाव में सूर्य राहु या सूर्य शनि की युति बनने पर पितृ दोष लग जाता है। सूर्य के तुला राशि में रहने पर या राहु या शनि के साथ युति होने पर पितृ दोष का प्रभाव बढ़ जाता है। इसके साथ ही लग्नेश का छठे, आठवें, बारहवें भाव में होने और लग्न में राहु के होने पर भी पितृ दोष लगता है। पितृ दोष की वजह से व्यक्ति का जीवन परेशानियों से भर जाता है।पितृ दोष दूर करने का उपायइस दोष से मुक्ति के लिए अमावस्या के दिन पितर संबंधित कार्य करने चाहिए। पितरों का स्मरण कर पिंड दान करना चाहिए और अपनी गलतियों के लिए माफी भी मांगनी चाहिए।गाय को भोजन कराएंइस दिन गाय को भोजन अवश्य कराएं। इस बात का ध्यान रखें कि आपको गाय को सात्विक भोजन ही करवाना है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय को भोजन कराने से पितृ दोष दूर हो जाता है।
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रामायण, महाभारत एवं अन्य पौराणिक कहानियों में योद्धाओं की कई पदवी देखने को मिलती है। योद्धाओं को उनके पराक्रम के हिसाब से पदवी दी जाती थी। आज हम इस लेख में उच्च कोटि के योद्धाओं की बात करेंगे।
प्राचीन काल के प्रमुख योद्धाओं को मुख्यत: 6 श्रेणियों में बांटा गया है:अर्धरथी: अर्धरथी एक प्रशिक्षित योद्धा होता था जो अस्त्र-शस्त्रों के संचालन में निपुण होता था। एक अर्धरथी अकेले 2500 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता था। रामायण और महाभारत की बात करें तो इन युद्धों में असंख्य अर्धरथियों ने हिस्सा लिया था। महाभारत युद्ध में योद्धाओं के बल का वर्णन करते हुए पितामह भीष्म ने कर्ण की गिनती एक अर्धरथी के रूप में कर दी थी। कई लोग मानते हैं कि इसी कारण कर्ण ने भीष्म के रहते युद्ध में भाग नहीं लिया था।रथी: एक ऐसा योद्धा जो सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र के संचालन में निपुण हो तथा 2 अर्धरथियों, अर्थात 5000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सके।रामायण: रामायण में कई रथियों ने हिस्सा लिया जिनका बहुत विस्तृत वर्णन नहीं मिलता है। राक्षसों में खर, दूषण, तड़का, मारीच, सुबाहु, वातापि आदि रथी थे। वानरों में गंधमादन, मैन्द एवं द्विविन्द, हनुमान के पुत्र मकरध्वज, शरभ एवं सुषेण को रथी माना जाता था।महाभारत: सभी कौरव, युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव, शकुनि, उसका पुत्र उलूक, उपपांडव (प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक एवं श्रुतसेन), विराट, उत्तर, शिशुपाल पुत्र धृष्टकेतु, जयद्रथ, शिखंडी, सुदक्षिण, शंख, श्वेत, इरावान, कर्ण के सभी पुत्र, सुशर्मा, उत्तमौजा, युधामन्यु, जरासंध पुत्र सहदेव, बाह्लीक पुत्र सोमदत्त, कंस, अलम्बुष, अलायुध, बृहदबल आदि की गिनती रथी के रूप में होती थी। दुर्योधन को 8 रथियों के बराबर माना गया है।अतिरथी: एक ऐसा योद्धा जो सामान्य अस्त्रों के साथ अनेक दिव्यास्त्रों का भी ज्ञाता हो तथा युद्ध में 12 रथियों, अर्थात 60 हजार सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सकता हो।रामायण: लव, कुश, अकम्पन्न, विभीषण, देवान्तक, नरान्तक, महिरावण, पुष्कल, काल में अंगद, नल, नील, प्रहस्त, अकम्पन, भरत पुत्र पुष्कल, विभीषण, त्रिशिरा, अक्षयकुमार, हनुमान के पिता केसरी अदि अतिरथी थे।महाभारत: भीम, जरासंध, धृष्टधुम्न, कृतवर्मा, शल्य, भूरिश्रवा, द्रुपद, घटोत्कच, सात्यिकी, कीचक, बाह्लीक, साम्ब, प्रद्युम्न, कृपाचार्य, शिशुपाल, रुक्मी, सात्यिकी, बाह्लीक, नरकासुर, प्रद्युम्न, कीचक आदि अतिरथी थे।महारथी: ये संभवत: सबसे प्रसिद्ध पदवी थी और जो भी योद्धा इस पदवी को प्राप्त करते थे वे पुरे विश्व में सम्मानित और प्रसिद्ध होते थे। महारथी एक ऐसा योद्धा होता था जो सभी ज्ञात अस्त्र शस्त्रों और कई दिव्यास्त्रों को चलने में समर्थ होता था। युद्ध में महारथी 12 अतिरथियों अथवा 720000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता था। इसके अतिरिक्त जिस भी योद्धा के पास ब्रह्मास्त्र का ज्ञान होता था (जो गिने चुने ही थे) वो सीधे महारथी की श्रेणी में आ जाते थे।रामायण: भरत, शत्रुघ्न, अंगद, सुग्रीव, अतिकाय, कुम्भकर्ण, प्रहस्त, जामवंत आदि महारथी की श्रेणी में आते हैं। रावण, बाली एवं कत्र्यवीर्य अर्जुन को एक से अधिक महारथियों के बराबर माना गया है।महाभारत: अभिमन्यु, बभ्रुवाहन, अश्वत्थामा, भगदत्त, बर्बरीक आदि महारथी थे। भीष्म, द्रोण, कर्ण, अर्जुन एवं बलराम को एक से अधिक महारथियों के बराबर माना गया है। कहीं-कहीं अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के कारण अतिमहारथी भी कहा जाता है किन्तु उसका कोई लिखित सन्दर्भ नहीं है।अतिमहारथी: इस श्रेणी के योद्धा दुर्लभ होते थे। अतिमहारथी उसे कहा जाता था जो 12 महारथी श्रेणी के योद्धाओं अर्थात 8640000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना अकेले कर सकता हो साथ ही सभी प्रकार के दैवीय शक्तियों का ज्ञाता हो।महाभारत: महाभारत काल में केवल भगवान श्रीकृष्ण को अतिमहारथी माना जाता है।रामायण: रामायण में भगवान श्रीराम अतिमहारथी थे। उनके अतिरिक्त मेघनाद को अतिमहारथी माना जाता है क्यूंकि केवल वही था जिसके पास तीनों महास्त्र - ब्रम्हास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र थे। पाशुपतास्त्र को छोड़ कर लक्ष्मण को भी समस्त दिव्यास्त्रों का ज्ञान था अत: कुछ जगह उन्हें भी इस श्रेणी में रखा जाता है। इसके अतिरिक्त भगवान परशुराम और महावीर हनुमान का भी वर्णन कई स्थान पर अतिमहारथी के रूप में किया गया है।अन्य: भगवान विष्णु के अवतार विशेष कर वाराह एवं नृसिंह को भी अतिमहारथी की श्रेणी में रखा जाता है। कुछ देवताओं जैसे कार्तिकेय, गणेश तथा वैदिक युग के ग्रंथों में इंद्र, सूर्य एवं वरुण को भी अतिमहारथी माना जाता है। आदिशक्ति की दस महाविद्याओं, नवदुर्गा एवं रुद्रावतार, विशेषकर वीरभद्र और भैरव को भी अतिमहारथी माना जाता है।महामहारथी: ये किसी भी प्रकार के योद्धा का उच्चतम स्तर माना जाता है। महामहारथी उसे कहा जाता है जो 24 अतिमहारथियों अर्थात 207360000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता हो। इसके साथ ही समस्त प्रकार की दैवीय एवं महाशक्तियाँ उसके अधीन हो। इन्हे परास्त नहीं किया जा सकता। आज तक पृथ्वी पर कोई भी योद्धा अथवा अवतार इस स्तर पर नहीं पहुँचा है। इसका एक कारण ये भी है कि अभी तक 24 अतिमहारथी एक काल में तो क्या पूरे कल्प में भी नहीं हुए हैं। केवल त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र) एवं आदिशक्ति को ही इतना शक्तिशाली माना जाता है। -
जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान जगदीश के मंदिर का आखिर सपनों से क्या है कनेक्शन और क्या है इस पावन धाम से जुड़ी मान्यता, विस्तार से जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
भारत में आस्था से जुड़े कई ऐसे पावन धाम हैं, जो अपने भीतर तमाम तरह के रहस्य को समेटे हुए हैं. नित नए चमत्कार से भरा एक ऐसा मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर में स्थित है, जिसे लोग सपनों का मंदिर कहते हैं. मान्यता है कि जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान श्री विष्णु के दर्शन मात्र से लोगों के सभी दु:ख दूर हो जाते हैं. बेजोड़ वास्तु शैली का उदाहरण माने जाने वाले इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसे बनने में 25 साल लग गए थे. आइए राजस्थान के इस प्रसिद्ध मंदिर धार्मिक महत्व और इतिहास के बारे में विस्तार से जानते हैं.
जगदीश मंदिर का सपने से क्या है संबंध
राजस्थान के इस प्रसिद्ध विष्णु मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी भगवान श्री विष्णु ने यहां के राजा जगत सिंह प्रथम को सपने में दर्शन देकर एक भव्य मंदिर बनाने का आदेश दिया था. मान्यता है कि स्वप्न में भगवान श्री विष्णु ने राजा से कहा कि अब वे यहीं पर आकर निवास करेंगे. इसके बाद उदयपुर के महाराणा जगत सिंह प्रथम ने भगवान श्री विष्णु के इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. जिसे बनाने में कुल 25 साल लग गये और यह 1652 में जाकर पूरा हुआ था.
बेजोड़ है जगदीश मंदिर की वास्तु कला
उदयपुर के जिस मंदिर में स्वयं जगदीश निवास करते हैं, वह नागर शैली में बना हुआ है. लगभग 125 फीट ऊंचाई पर बने इस मंदिर का शिखर भी भी 79 फीट ऊंचा है. मंदिर में भगवान श्री विष्णु की बहुत खूबसूरत काले रंग की प्रतिमा है. भगवान जगदीश के इस मंदिर की शानदार नक्काशी और उसके भीतर काले पत्थरों से बनी भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा का दर्शन करने वाला व्यक्ति खुद को धन्य मानता है.
दर्शन मात्र से दूर होते हैं लोगों के दु:ख-दर्द
उदयपुर के सबसे बड़े मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है कि यहां आने वाले भक्त की भगवान श्री विष्णु पलक झपकते सभी तन और मन की पीड़ा दूर कर देते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले हर शख्स का सपना जरूर पूरा होता है. -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में विवाह रेखा से ना केवल वैवाहिक जीवन का पता लगाया जा सकता है बल्कि विवाह किस उम्र में होगा और जीवनसाथी कैसा होगा, इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है। हस्तरेखा में बुध पर्वत पर हृदय रेखा और कनिष्ठा उंगली के मूल के बीच की चौड़ाई को 50 माना गया है। इसे आप उम्र भी मान सकते हैं। इसी चौड़ाई वाले भाग पर एक या एक से अधिक खड़ी रेखाएं मिलती हैं जो विवाह रेखाएं कहलाती हैं। इनमें से सबसे लंबी रेखा को ही प्रमुख विवाह रेखा माना गया है और विवाह निर्धारण में इसी पर विचार किया जाता है। यदि आपके हाथ में दो रेखाएं हैं तो इसमें लंबी रेखा को मानेंगे। यदि हृदय रेखा के पास विवाह रेखा बन रही है तो आपकी शादी 20-25 साल की उम्र में हेागी, लेकिन यदि रेखा कनिष्ठा उंगली के पास है तो शादी 25 साल के बाद ही हेागी।
यह स्थिति विवाह में देरी को दर्शाती हैं। कई बार में कनिष्ठा उंगली और हृदय रेखा के पास भी खड़ी रेखाएं हैं तो इसका मतलब है कि रिश्ता तय होने के बाद टूट सकता है। हालांकि इस स्थिति में हृदय रेखा के पास रेखाएं छोटी होनी चाहिए। यदि विवाह रेखा हृदय रेखा की ओर झुके तो जीवनसाथी सपोर्ट और प्यार करने वाला होता है, लेकिन यदि विवाह रेखा का मुख उंगली की ओर तो जीवनसाथी से सपोर्ट एवं प्यार नहीं मिल पाता। हाथ में एक से अधिक रेखाएं एक से अधिक शादी का संकेत नहीं देती। इसमें से सबसे बड़ी रेखा विवाह की रेखा है। बाकी छोटी-छोटी रेखाएं रिश्ते होने के बावजूद शादी नहीं होने का संकेत देती हैं। हालांकि बुध पर्वत पर विवाह रेखा के आगे चलकर दोमुखी होना दूसरी शादी का संकेत देती है।



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