- Home
- धर्म-अध्यात्म
-
लाइफ में सुख एवं समृद्धि बनी रहे इसके लिए अमूमन हर कोई कोशिशें करता है, लेकिन लाख जतन के बावजूद कुछ लोगों को असफलता और कठिनाइयां तंग करती रहती हैं. हो सकता है इसके लिए पीछे किसी तरह का दोष हो. ऐसे दोषों को दूर करने के लिए लोग तरह-तरह के ज्योतिष उपाय अपनाते हैं. कुछ लोग वास्तु दोष को दूर करने के लिए वास्तु शास्त्र के बनाए हुए नियमों की मदद लेते हैं. ज्योतिष शास्त्र के उपायों की बात करें तो इनमें से एक है शरीर में काले धागे को बांधना. इस धागे को बांधने का चलन आजकल काफी बढ़ गया है. लोग इसे बाजू, पैर या फिर कमर में बांधते हैं और उन्हें यकीन होता है कि इससे बुरी नजर उनसे दूर रहेगी. कुछ लोग शनि देव के प्रकोप से बचने के लिए काले धागे को धारण करते हैं.
कहते हैं कि शनि देव को काला रंग अति प्रिय होता है और इसलिए इस धागे को बांधना लाभकारी सिद्ध हो सकता है. वैसे काले धागे को हाथ या पैर पर बांधने के कुछ नियम होते हैं, जिनमें बताया गया है कि कुछ राशि के जातकों के लिए ये हानिकारक साबित हो सका है. इस लेख में हम आपको ऐसी राशि के लोगों के बारे में बताएंगे, जिन्हें शरीर में काला धाग नहीं बांधना चाहिए.
वृश्चिक राशि के लोग
इस राशि का स्वामी मंगल ग्रह को माना जाता है और कहते हैं कि काला रंग पहनने से मंगल देव नाराज हो सकते हैं. ऐसे में इस राशि के जातकों को भूल से भी काला धागा हाथ या पैर में नहीं डालना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ऐसी भूल करने वाले लोगों को तरक्की में बाधाएं आ सकती हैं, साथ ही इन्हें शारीरिक समस्याएं भी हो सकती है.
मेष राशि
इस राशि के जातकों को भी काला रंग की चीजों का कल ही उपयोग करना चाहिए. इसका स्वामी भी मंगल ग्रह ही माना जाता है, इसलिए मेष राशि के जातकों को हाथ या पैर में किसी भी प्रकार की काली चीज या काला धागा नहीं डालना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक अगर ये भूल हो जाए, तो इसमें सुधार के लिए मंगल देवता को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए.
शनि ग्रह होता है मजबूत
काला धागा बांधने के लाभ भी हैं. कहते हैं कि जो जातक सही नियमों के तहत काले धागे को पहनता है, उसकी कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति मजबूत हो सकती है. शनि की साढ़े साती और ढैय्या से बचने में काले धागे का अहम रोल रहता है. - हिंदू धर्म में गुरुड़ पुराण में जीवन के बहुत से पहलूओं के बारे में बताया गया है. 18 पुराणों में से एक गुरुड़ पुराण है, जिसमें मरने के बाद आत्मा के सफर की बातों को तो बताया ही गया है. लेकिन साथ ही व्यक्ति को जीवन को बेहतर कैसे बनाया जा सकता है इस बारे में भी व्याख्या की गई है. गरुड़ पुराण में कुछ ऐसी बातों और कामों के बारे में बताया गया है, जो जीवन में अमल करने पर व्यक्ति का जीवन सुखमय व्यतीत होता है. साथ ही, पुण्य की प्राप्ति होती है. आज हम ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में जानेंगे, जिनका जिक्र गुरुड़ पुराण में किया गया है. और जीवन में इन्हें एक बार देख लेने मात्र से ही व्यक्ति का जीवन संवर जाता है.- गुरुड़ पुराण में गाय के दूध के बारे में विशेष रूप से जिक्र किया गया है. कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति गाय का दूध देख लेता है, तो उसे अनेकों पूजा-पाठ के सामान पुण्य की प्राप्ति होती है. बता दें कि हिंदू धर्म को पूजनीय स्थान प्राप्त है.- गरुड़ पुराण में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि जो व्यक्ति गाय को अपने पैरों से जमीन खुरचते हुए देख लेता है, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है.- प्राचीन समय में लोग अपने घरों में ही गौशाला बनवा कर रहते थे. गायों की सेवा करते थे. लेकिन आज कल गौशाला का दिखाना भी कम हो गया है. ऐसे में गुरुड़ पुराण में बताया गया है कि गाय की गौशाला को देखने मात्र से ही शुभ फल की प्राप्ति होती है. और गाय की सेवा से पुण्य की प्राप्ति होती है.- मान्यता है कि गाय के पैरों के दर्शन करना तीर्थ करने के सामन है. इसलिए गाय के पैर छूने की मान्यता है. ऐसा बताया गया है कि गाय के खुरों को देख लेने मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति होती है.- सनातन धर्म में शुद्धि के लिए गोमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेद में भी गोमूत्र का इस्तेमाल कई औषधीयों के लिए किया जाता है. गुरुड़ पुराण के मुताबिक गोमूत्र बहुत ही शुभ होता है. इसे सिर्फ देख लेने से ही पुण्य की प्राप्ति होती है.- गाय के गोबर का इस्तेमाल घरों को लीपने के लिए किया जाता था. और उपलों का इस्तेमाल पूजा पाठ और हवन आदि में किया जाता है. गुरुड़ पुराण में वर्णित है कि अगर गाय घर के सामने गोबर कर दे तो ये शुभ संकेत होते हैं.- अगर कोई व्यक्ति खेतों में लहराती फसल को देखता है तो उसे भी पुण्य की प्राप्ति होती है. साथ ही, इससे दिमाग स्थिर और मन को सुकून मिलता है.-
-
अक्षय तृतीया के दिन को कोई भी नई शुरुआत करने के लिए साल का सबसे शुभ दिन माना जाता है । इस बार अक्षय तृतीया 3 मई को है। अक्षय तृतीया एक हिंदू और जैन वसंत त्यौहार है।
अक्षय तृतीया को जप, दान या पुण्य जैसे कई अच्छे कामों के लिए भाग्यशाली माना जाता है। अक्षय शब्द का मतलब होता है कभी कम नहीं होन। इसका सीधा मतलब ये है कि इस दिन किए जाने वाले कामों का फायदा कभी कम नहीं होगा। इसलिए इस दिन लोग शादी , नई इंवेस्टमेंट या व्यापार भी शुरू करते हैं। बहुत से लोग इस दिन गोल्ड इंवेस्टमेंट भी करते हैं।
क्या है अक्षय तृतीया का इतिहास?
ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया था। इस पात्र ने उनके निर्वासन के दौरान अंतहीन भोजन की आपूर्ति सुनिश्चित की थी.। लोगों ने इस दिन को संपत्ति के बढ़ते रहने की उम्मीद के साथ शुभ मानना शुरू कर दिया। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन कुबेर को धन का मालिक बनाया गया था।
त्यौहार के लिए पूजा करने की विधि
नए कपड़े पहनकर अक्षय तृतीया की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को ज्यादा महत्व दिया जाता है.। भगवान को पीले रंग के कपड़े पहनाकर उनकी पूजा की जाती है। दूध , चावल समेत चने दाल का प्रसाद पूजा में देवी-देवताओं को चढ़ाने के बाद परिवार में बांटा जाता है।
पूजा का मुहूर्त
अक्षय तृतीया की पूजा का मुहूर्त 3 मई 2022 की सुबह 5:39 बजे से लेकर दोपहर के 12:18 बजे के बीच है। इसके अलावा सोना खरीदने के लिए 3 मई को सुबह 5:18 बजे से लेकर अगले दिन यानी 4 मई को सुबह 5:38 बजे के बीच का समय सबसे अच्छा रहेगा। -
हिन्दू धार्मिक कथाओं को पढ़ते कई बार असुर, दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच और बेताल का वर्णन आता है। आम तौर पर हम इन सभी को एक ही मान लेते हैं और इसका उपयोग एक पर्यायवाची शब्द के रूप में करते हैं, किन्तु ये सभी अलग-अलग हैं। आइये इन सभी के बीच के अंतर को जानते हैं।
इनमें से एक "असुर" तो एक प्रतीकात्मक शब्द है। "जो सुर नहीं है वो असुर है।" अर्थात - जो कोई भी देवता नहीं है वो सभी असुर कहलाते हैं। किंतु इस वाक्य में देवता का अर्थ बहुत व्यापक है। मूल रूप से देवता केवल 12 हैं जिन्हें हम आदित्य कहते हैं। महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री अदिति के गर्भ से उत्पन्न 12 पुत्र ही आदित्य अथवा देवता कहलाते हैं। किन्तु यहाँ देवता का अर्थ सभी 33 कोटि देवता, उप-देवता, यक्ष, गन्धर्व इत्यादि है। ये सभी सम्मलित रूप से "सुर" कहलाते हैं। तो इस प्रकार दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच, बेताल इत्यादि को भी हम असुर कह सकते हैं। महर्षि कश्यप ने ब्रह्मापुत्र प्रजापति दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया जिससे समस्त जातियां उत्पन्न हुईं। ये सभी भी उन्हीं में से एक हैं।
दैत्य: महर्षि कश्यप और दक्ष की पुत्री दिति के पुत्र दैत्य कहलाये। इस प्रकार ये देवताओं (आदित्यों) के छोटे भाई हुए। कश्यप और दिति के दो पुत्र - हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष हुए जहां से दैत्य जाति का आरम्भ हुआ। इन्हीं के गुरु भृगु पुत्र शुक्राचार्य थे। इन दोनों की होलिका नामक एक पुत्री भी हुई। हिरण्याक्ष का वध भगवान वाराह ने किया। हिरण्याक्ष का पुत्र ही कालनेमि था जिसने द्वापर तक श्रीहरि के सभी अवतारों से प्रतिशोध लिया और बार-बार उनके हाथों मारा गया। बड़े भाई हिरण्यकशिपु के सबसे छोटे पुत्र प्रह्लाद थे जो महान विष्णु भक्त हुए। उन्हीं को मारने के प्रयास में होलिका मारी गयी। होलिका का पुत्र स्वर्भानु था जिसे हम राहु-केतु के नाम से जानते हैं। अंत में अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नारायण ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। प्रह्लाद के पुत्र विरोचन हुए और विरोचन के पुत्र दैत्यराज बलि हुए। इन्हीं बलि को श्रीहरि ने वामन रूप लेकर पराभूत किया और पाताल का राज्य दे दिया। इन बलि के पुत्र महापराक्रमी बाण हुए जो महान शिवभक्त हुए। कालांतर में इन्हें श्रीकृष्ण ने परास्त किया और इनकी पुत्री उषा श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से ब्याही गयी। बलि की पुत्री वज्रज्वला रावण के भाई कुम्भकर्ण से ब्याही गयी। इनके कुल का भी अनंत विस्तर हुआ।
दानव: ये दैत्यों और आदित्यों के छोटे भाई थे जिनकी उत्पत्ति महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री दनु से हुई। दानवों के 114 कुल चले जिनमें से 64 मुख्य माने जाते हैं। ये आकार में बहुत बड़े होते थे और बहुत बर्बर माने जाते थे। ये दैत्य और राक्षसों की भांति उतने सुसंस्कृत नहीं होते थे। पहली पीढ़ी के दानवों में विप्रचित्ति प्रमुख है जो होलिका का पति था। मय दानव को तो सभी जानते हैं जो असुरों के शिल्पी थे। इन्हीं की पुत्री मंदोदरी रावण की पत्नी थी। इसके अतिरिक्त कालिकेय दानवों का वंश भी बहुत प्रसिद्ध था। कालिकेय कुल में जन्मा विद्युतजिव्ह ही रावण की बहन शूर्पणखा का पति था। बाद में रावण ने युद्ध में उसका वध कर दिया और शूर्पणखा को दंडकवन का राज्य प्रदान किया। दानवों में वृषपर्वा का नाम भी बहुत प्रसिद्ध है जो ययाति की दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा के पिता थे।
राक्षस: ये सभी असुरों में सबसे सुसंस्कृत और विद्वान माने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति की दो कथा प्रसिद्ध है। एक कथा के अनुसार महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री सुरसा के पुत्र ही राक्षस कहलाये। हालांकि राक्षसों की उत्पत्ति की दूसरी कथा ही अधिक मान्य है जिसके अनुसार ब्रह्मा जी के क्रोध से हेति और प्रहेति नामक दो असुरों का जन्म हुआ और वहीं से राक्षस वंश की शुरुआत हुई। प्रहेति तपस्वी बन गया और हेति ने यमराज की बहन भया से विवाह किया जिससे उसे विद्युत्केश नामक पुत्र प्राप्त हुआ। विद्युत्केश की पत्नी सलकंटका थी जिससे उसे सुकेश नामक पुत्र हुआ, जिसे उसने त्याग दिया। तब माता पार्वती ने उसे गोद ले लिया और वो शिव पुत्र कहलाया। सुकेश ने देववती से विवाह किया जिससे उसे तीन पुत्र प्राप्त हुए - माल्यवान, सुमाली एवं माली। सुमाली के 10 पुत्र और 4 पुत्रियां हुई जिनमें से एक कैकसी थी। कैकसी ने ब्रह्मा के पौत्र और महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा से विवाह किया जिससे रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण पैदा हुए। रावण की दो पत्नियों - मंदोदरी और धन्यमालिनी से 7 पुत्र हुए जिनमें मेघनाद ज्येष्ठ था। कुम्भकर्ण के वज्रज्वला से कुम्भ एवं निकुम्भ नामक पुत्र हुए। उसने एक विवाह विराध राक्षस की विधवा कर्कटी से भी किया जिससे भीम नामक पुत्र हुआ। इसी पुत्र को मारकर भगवान शंकर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। विभीषण की पत्नी सरमा से एक पुत्री त्रिजटा हुई। कैकसी की एक पुत्री शूर्पणखा हुई जो विद्युतजिव्ह से ब्याही जिसका वध रावण ने कर दिया। दुर्भाग्य से विभीषण को छोड़ सभी राक्षसों का वध लंका युद्ध में हो गया।
पिशाच: इनका वर्णन हिन्दू ग्रंथों में थोड़ा कम मिलता है किन्तु कुछ ग्रंथों के अनुसार पिशाच महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री क्रोधवर्षा के पुत्र माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त सर्पों और अन्य विषैले जीव की उत्पत्ति भी क्रोधवर्षा से ही हुई। पुराणों में इन्हें मांसभक्षी बताया गया है जो रक्त का पान करते हैं। अन्य सभी असुर भी निशाचर होते थे किन्तु पिशाचों को पूर्ण रूप से निशाचर ही माना गया है। ये इच्छाधारी होते थे और किसी भी रूप को धारण कर सकते थे। पश्चिमी संस्कृति में "वैम्पायर" का जो वर्णन किया जाता है वो वास्तव में हमारे पिशाच का ही स्वरुप है।
बेताल: पिशाचों में जो सर्वाधिक शक्तिशाली होते थे उन्हें ही बेताल कहा जाता है। कई स्थानों पर इन्हे पिशाचों का स्वामी भी बताया गया है। शैव धर्म में इन्हे भगवान शंकर का गण और कई स्थानों पर उनका वाहन भी कहा गया है। कुछ स्थानों पर इन्हे माँ शांतादुर्गा का भाई भी माना गया है। ये काल भैरव के भक्त और सेवक के रूप में नियुक्त होते थे। बेतालों में ही एक शाखा "अग्नि बेताल" की मानी गयी है जो माता काली के भक्त थे। गोवा के अमोना गांव में बेताल स्वामी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। - अक्सर आपने बड़े-बुजुर्गों से सुना होगा कि कभी दूसरों की चीजों को मांगकर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। वास्तु शास्त्र में भी ऐसा करने की मनाही है। वास्तु के अनुसार, कुछ चीजें दूसरों से मांगकर इस्तेमाल करने से हमारे अंदर नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। कहते हैं कि इन छोटी-छोटी चीजों से बड़ा नुकसान हो सकता है। जानिए वास्तु शास्त्र के अनुसार, दूसरों की किन चीजों को मांगकर नहीं करना चाहिए इस्तेमाल-रुमालवास्तु शास्त्र के अनुसार, किसी दूसरे इंसान का रुमाल पास रखने से रिश्तों में दूरियां आ सकती हैं। इसे वाद-विवाद से भी जोड़कर देखा जाता है। इसलिए कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति का रुमाल अपने पास नहीं रखना चाहिए।घड़ीवास्तु शास्त्र में घड़ी को सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों से जोड़कर देखा जाता है। कलाई पर किसी दूसरे व्यक्ति की घड़ी को पहनना अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति का खराब समय शुरू हो सकता है।अंगूठीवास्तु में किसी व्यक्ति की अंगूठी मांगकर पहनना अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने व्यक्ति के सेहत, जीवन व आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।पेनवास्तु शास्त्र के अनुसार, कभी भी किसी व्यक्ति को किसी दूसरे का पेन अपने पास नहीं रखना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से करियर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे धन हानि भी हो सकती है।कपड़े- वास्तु के अनुसार, कभी भी किसी इंसान को दूसरे के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से हमारे अंदर नकारात्मकता का प्रवेश होता है और जीवन में मुश्किलें आती हैं।
- सूर्य ग्रहण का वैज्ञानिक महत्व होने के साथ ही बहुत अधिक ज्योतिष और धार्मिक महत्व भी होता है। सूर्य ग्रहण का सभी राशियों पर शुभ- अशुभ प्रभाव पड़ता है। 30 अप्रैल को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 30 अप्रैल 2022 को सूर्य ग्रहण वृषभ राशि में लगेगा। साल का पहला सूर्य ग्रहण आंशिक होगा। आइए जानते हैं साल का पहला सूर्य ग्रहण सभी राशियों के लिए कैसा रहेगा।मेष राशि- आत्मविश्वास भरपूर रहेगा। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा की मनःस्थिति हो सकती है। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। मित्रों का सहयोग मिलेगा। मन अशान्त रहेगा, परन्तु वाणी में सौम्यता रहेगी। परिवार में धार्मिक कार्यक्रम हो सकते हैं। कारोबार में किसी मित्र का सहयोग मिलेगा।वृष राशि- किसी अज्ञात भय से परेशान हो सकते हैं। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। अति उत्साही होने से बचें। धार्मिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ सकती हैं। किसी धार्मिक भवन के निर्माण में सहयोग कर सकते हैं। आत्मसंयत रहें। क्रोध के अतिरेक से बचें। लेखनादि-बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ेगी। परिश्रम अधिक रहेगा।मिथुन राशि- मन में उतार-चढ़ाव रहेगा। धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। नौकरी में विदेश यात्रा के योग बन रहे हैं। यात्रा लाभप्रद रहेगी। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा की मनःस्थिति रहेगी। माता-पिता को स्वास्थ्य विकार हो सकते हैं। जीवनसाथी का साथ मिलेगा। उच्चाधिकारियों से मतभेद हो सकते हैं।कर्क राशि- आत्मविश्वास में कमी आएगी। शैक्षिक कार्यों के सुखद परिणाम मिलेंगे। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। वाहन के रख-रखाव पर खर्च बढ़ सकते हैं। मानसिक शांति तो रहेगी, लेकिन बातचीत में संयत रहें। वाणी में कठोरता का प्रभाव हो सकता है। भाइयों से धन प्राप्ति के योग बन रहे हैं।सिंह राशि- मानसिक शान्ति रहेगी, परन्तु आत्मविश्वास में कमी भी आ सकती है। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त हो सकते हैं। परिवार का साथ मिलेगा। सन्तान को कष्ट होगा। माता के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहेंगे। कारोबार में धनलाभ के योग हैं। सुखद समाचार की प्राप्ति होगी।कन्या राशि- मन परेशान रहेगा। बातचीत में सन्तुलित रहें। व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। परिवार का साथ मिलेगा। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। किसी मित्र का आगमन हो सकता है। धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी। जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा। लंबी यात्रा के योग बन रहे हैं। यात्रा सुखद रहेगी।तुला राशि- क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा के भाव भी मन में हो सकते हैं। नौकरी में स्थान परिवर्तन के योग बन रहे हैं। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। वाहन सुख में वृद्धि होगी। अनियोजित खर्च बढ़ेंगे। स्वास्थ्य को लेकर कुछ परेशानी हो सकती हैं। मित्रों के सहयोग से कारोबार में तरक्की के मार्ग बनेंगे।वृश्चिक राशि- मन परेशान रहेगा। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। नौकरी में इच्छा-विरुद्ध कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। धार्मिक एवं शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। भवन के निर्माण में व्यवधान आ सकते हैं। लंबे समय से रुका हुआ काम पूरा होगा। शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलेगी।धनु राशि- कला या संगीत में रुचि बढ़ सकती है। नौकरी में स्थान परिवर्तन की सम्भावना बन रही है। परिवार से अलग रहना भी पड़ सकता है। आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे, परन्तु मन में आशंका भी रहेगी। नौकरी में कार्यक्षेत्र में कठिनाइयों सामना करना पड़ सकता है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।मकर राशि- मन परेशान हो सकता है। शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। कारोबार में सुधार होगा। आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहेंगे। नौकरी में अफसरों का सहयोग तो मिलेगा, लेकिन स्थानांतरण की भी संभावना है। मित्रों से भेंट होगी। प्रापर्टी में निवेश कर सकते हैं।कुंभ राशि- आशा-निराशा के भाव मन में रहेंगे। आय में कमी एवं खर्च अधिक की स्थिति हो सकती है। परिवार का साथ मिलेगा। मानसिक शान्ति रहेगी। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते है। आय में वृद्धि होगी। तरक्की के योग बन रहे हैं।मीन राशि- मन परेशान रहेगा। आत्मविश्वास में कमी भी रहेगी। परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं। आत्मसंयत रहें। अपनी भावनाओं को वश में रखें। नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा एवं साक्षात्कार आदि कार्यों में सफलता मिलेगी। लंबी यात्रा के योग बन रहे हैं।
- वास्तु शास्त्र में कुछ विशेष पेड़-पौधों का जिक्र मिलता है, जिन्हें घर में लगाने से बरकत होती है। आज हम आपको ऐसे ही एक पौधे के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और लक्ष्मी का वास रहेगा। इस पौधे का नाम मोरपंखी है। यूं तो लोग घर की शोभा बढ़ाने के लिए इस पौधे को लगाते हैं, लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि इस पौधे को लगाने से जीवन में खुशियां बनी रहती हैं। साथ ही कभी भी पैसों की तंगी नहीं आती है। आइए जानते हैं इस पौधे के बारे में खास बातें...कई जगहों पर इसे विद्या का पौधा भी कहा जाता है। यही वजह कि बचपन में अक्सर लोग अपनी किताब में भी इसे रखते थे, ताकि पढ़ाई में मन लगा रहे। मान्यता है कि मोर पंखी का पौधा घर में लगाने से घर के सदस्यों की बुद्धि तेज होती है।मोरपंखी का पौधा लगाने का सही तरीकावास्तु के अनुसार जब भी आप अपने घर में मोरपंखी का पौधा लगाएं, तो इसे अकेले न लगाकर हमेशा जोड़े में लगाएं। इससे पति-पत्नी का रिश्ता सही रहता है। हमेशा दोनों लोगों में प्यार बना रहता है। साथ ही घर के अंदर कभी भी नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती है। कई बार मोरपंखी का पौधा सूखने लगता है। ऐसा शुभ नहीं होता है। इसलिए जब पौधे सूखने लगें तो उसे हटाकर तुरंत दूसरा मोरपंखी पौधा लगाएं। इस पौधे में नियमित रूप से जल देते रहें।घर की इस दिशा में लगाएं मोरपंखी का पौधायदि परिवार में आपसी कलह की वजह से अशांति बनी रहती है, तो मोरपंखी का पौधा लगाने से छोटी-छोटी बातों पर होने वाले तनाव खत्म हो जाते हैं। ध्यान रखें जहां भी ये पौधा लगाएं वहां पर हल्की-हल्की धूप आती हो। इससे पौधे का विकास होता रहेगा। मोरपंखी के पौधे को भूलकर भी दक्षिण दिशा में ना रखें। इसे हमेशा पूर्व दिशा में लगाएं। इससे आपको घर में अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। साथ ही परिवार में हमेशा खुशी बनी रहेगी। वास्तु शास्त्र के मुताबिक मोर पंखी का पौधा लगाने से घर में बरकत आती है। सकारात्मकता के साथ ही घर में धन की कमी नहीं होती। आय के रास्ते खुलते हैं। यानी इस पौधे की बदौलत घर में सुख समृद्धि का आगमन होता है।
- पूजा-पाठ के दौरान कपूर का प्रयोग खास महत्व रखता है. सनातन धर्म में कपूर को पवित्र माना गया है. कपूर का इस्तेमाल आरती और हवन में किया जाता है. वैदिक ज्योतिष में कपूर के कई उपायों के बारे में भी बताया गया है. इन उपायों को करने से व्यक्ति को ग्रह दोष, वास्तु दोष और कालसर्प योग जैसे कई दोषों से मुक्ति तो मिलती ही है. साथ ही, इसके कई लाभ भी हैं. आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में.कपूर ये उपाय हैं बेहद चमत्कारी1. ज्योतिषीयों का मानना है कि घर में सुबह-शाम कपूर जलाने से घर का वातावरण शुद्ध रहता है. घर में उपस्थित नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में भी कपूर सहायक है. इससे सकारात्मकता का संचार होता है और घर परिवार में सुख-शांति आती है.2. घर के किसी भी कोने या फिर किसी जगह पर वास्तु दोष होने पर उसे दोष मुक्त करने के लिए भी कपूर का इस्तेमाल किया जाता है. एक कटोरी में कुछ कपूर के टुकड़े रखने के बाद उसे दोष वाले स्थान पर रख दें. कुछ दिन में कपूर के टुकड़े खत्म होने पर उसमें नए कपूर के टुकड़े रख दें. ऐसा करने से धीरे-धीरे वास्तु दोष खत्म हो जाते हैं.3. कई बार व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष या फिर कालसर्प दोष होने पर उसकी उन्नति रुक जाती है. बता दें कि व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष राहु और केतु ग्रह के कारण होता है. इन दोषों से मुक्ति पाने के लिए दिन में तीन बार सुबह, शाम और रात के समय कपूर जलाएं.4. शनि दोष दूर करने के लिए शनिवार के दिन नहाने के पानी में कपूर और चमेली के तेल की कुछ बूंदे डालकर स्नान करें. ऐसा करने से शनि दोष दूर होगा. साथ ही, राहु-केतु भी परेशान नहीं करेंगे.5. पति-पत्नी के बीच संबंधों में मिठास न होने पर या फिर अनबन रहने पर शयनकक्ष में कपूर रखने की सलाह दी जाती है. इससे पति-पत्नी के बीच रिश्ते मधुर होने लगते हैं.6. सोते समय अगर बुरे सपने आते हैं या फिर डर जाते हैं, तो शयनकक्ष में कपूर जलाएं. ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं.
- भारतीय रसोई में ऐसी कई चीजें होती हैं, जिनका उपयोग तंत्र-मंत्र व ज्योतिष उपायों में किया जाता है। ऐसी ही एक चीज है छोटी इलाइची। छोटी इलायची अपनी खुशबू के लिए जानी जाती है। लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि चाय और खाने में स्वाद बढ़ाने वाली छोटी सी इलायची आपकी सोई हुई किस्मत को भी जगा सकती है? इलायची के कुछ टोटके आपके जीवन में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।धन प्राप्ति के लिए के लिए उपायअगर आप आर्थिक संकट से परेशान हैं। पैसे आते तो हैं, लेकिन पास में टिकते नहीं तो अपने पर्स में या जहां भी आप पैसे रखते हैं वहां पर 5 हरी इलायची रखें। ऐसा करने पर आय में वृद्धि होती है और पैसे कम खर्च होते हैं।दरिद्रता दूर करने के लिए उपायदरिद्रता दूर करने के लिए के लिए किसी दरिद्र असहाय या किन्नर को एक सिक्का दान करें, साथ ही उसे हरी इलायची खिलाएं। माना जाता है कि ऐसा नियमित तौर पर करने से घर से दरिद्रता दूर होती है।नौकरी में प्रमोशन के लिए करें उपायनौकरी में प्रमोशन चाहते हैं तो एक हरे कपड़े में इलायची को बांधकर रात में तकिए के नीचे रख दीजिए। फिर सुबह उठ कर किसी भी व्यक्ति को दे दीजिए। इससे आपको प्रमोशन मिल सकता है।शुक्र को मजबूत करने के लिए उपाययदि आपका शुक्र कमजोर है, तो एक लोटा जल में दो इलायची डालकर आधा जल होने तक उबालें। अब इसे पानी में मिलाकर स्नान करें। स्नान करते समय ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली का जाप करें, इस उपाय को कर शुक्र को मजबूत कर सकते हैं।शीघ्र विवाह के लिएयदि आप विवाह योग्य हैं और विवाह में देरी हो रही है, तो किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को दो हरी इलाइची के साथ पांच प्रकार की मिठाई गुरु मंदिर में चढ़ाएं। इससे जल्दी ही अच्छे रिश्ते आने लगेंगे।परीक्षा में सफलता के लिएपरीक्षा में सफलता पाने के लिए शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पत्ते पर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाइयां और दो छोटी इलायची पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से रख आएं। साथ ही परीक्षा में सफल होने के लिए प्रार्थना करें। लगातार 3 गुरुवार तक ये उपाय करने से आपको जरूर सफलता मिलेगी।--
- ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार नीलम रत्न व्यक्ति को रंक से राजा बना सकता है। यह रत्न शनिदेव को समर्पित होता है। इस रत्न को हर कोई धारण नहीं कर सकता है। जहां ये रत्न रंक से राजा बना देता है वहीं अशुभ होने पर ये रत्न राजा को भी रंक बना सकता है। ज्योतिष गणनाओं के अनुसार नीलम रत्न को धारण करने से पहले कुंडली का विचार करना जरूरी होता है।नीलम रत्न के फायदेजिन लोगों के लिए नीलम शुभ होता है उन्हें इसका तुरंत फायदा दिखने लगता है।स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।धन- लाभ होने लगता है।नौकरी और व्यापार में तरक्की होने लगती है।नीलम रत्न के अशुभ होने पर इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैनीलम हर किसी को शुभ फल नहीं देता है। जिन लोगों के लिए ये शुभ नहीं है, उन्हें स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।धन- हानि हो सकती है।कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती है।ऐसे करें पहचान नीलम आपके लिए शुभ है या नहींनीलम रत्न को धारण करने से पहले उसको तकीया के नीचे रखकर सोएं। अगर आपको रात में कोई भी बुरा स्वप्न नहीं आता है और अच्छी गहरी नींद आती है तो इसका मतलब है ये रत्न आपके लिए शुभ है। अगर आपको अच्छी और गहरी नींद नहीं आती है तो इस रत्न को धारण न करें।रत्न धारण करने के बाद अशुभ घटना होने पर इस रत्न को तुरंत उतार दें।
- वास्तु शास्त्र में घर में बरकत लाने, खर्चों पर काबू पाने, आय बढ़ाने आदि के लिए कई उपाय बताए गए हैं. साथ ही कुछ चीजों को लेकर आगाह भी किया गया है. इनमें से एक है सोने की दिशा. रात में सोते समय आपका सिर किस दिशा में है, इसका असर आपके जीवन में धन के आगमन, आपके मान-सम्मान, सेहत-रिश्तों आदि सभी पर पड़ता है. लिहाजा अपने सोने की दिशा को लेकर बहुत सजग रहना जरूरी है.सोते समय इन बातों का रखें ध्यान- वास्तु शास्त्र के अनुसार कभी भी उत्तर दिशा की ओर सिर करके न सोएं. ऐसा करने से चुम्बकीय प्रवाह अवरुद्ध होकर बिगड़ जाता है. इससे नींद अच्छे से नहीं आती है. यह स्थिति सिर दर्द, मानसिक बीमारियों का कारण बन सकती है.- दक्षिण दिशा की ओर सिर और उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना सबसे अच्छा माना जाता है. ऐसा करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है. उसकी आयु बढ़ती है. उसे अपने जीवन में खूब रुपया-पैसा, सुख, सम्मान मिलता है.- वहीं पूर्व दिशा में सिर करके सोने से व्यक्ति की याददाश्त, एकाग्रता बढ़ती है. उसका स्वास्थ्य बेहतर होता है. विद्यार्थियों और ऐसे लोग जिनका झुकाव अध्यात्म की ओर है उन्हें पूर्व में सिर करके सोना चाहिए.- पश्चिम दिशा में सिर करके सोना भी ठीक माना जाता है. यह दिशा जल के देवता वरुण की दिशा है. इस दिशा में सिर करके सोने से व्यक्ति को प्रसिद्धि, मिलती है. उसका सम्मान बढ़ता है. उसके जीवन में समृद्धि आती है.
- इंसानी शरीर पर तिल का होना एक सामान्य सी बात है। लेकिन समुद्र शास्त्र के अनुसार शरीर पर तिल होने के कई अर्थ होते हैं। शरीर पर मौजूद इन तिलों से भी व्यक्ति के भविष्य के बारे में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है। तिल विभिन्न आकार और रूप-रंग के होते हैं। शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर मौजूद तिलों का मतलब भी अलग-अलग होता है। कुछ तिल शुभ होते हैं, तो कुछ अशुभ। लेकिन इसमें ये ध्यान देने की बात होती है कि तिल का निशान बहुत छोटा नहीं हो। अगर तिल बड़ा है तब ये प्रभाव डालता अन्यथा नहीं। तो चलिए आज जानते हैं शरीर पर स्थित तिलों के बारे में....गाल पर तिलअगर किसी के दायें गाल पर तिल हो, तो ऐसा व्यक्ति तर्कवादी होता है। साथ ही धन कमाने में अग्रणी होता है।माथे पर तिलमाथे के बीच में तिल का मतलब होता है कि व्यक्ति शांत, बुद्धिमान, मेहनती और दिल का साफ है। वहीं माथे में दाहिनी तरफ तिल होने का मतलब है कि व्यक्ति धनवान है।भौंह पर तिलजिस किसी भी व्यक्ति के भौंह के बीच में तिल होता है, तो इसका मतलब कि वो व्यक्ति एक अच्छा लीडर बनता है। उसके जीवन में आर्थिक संपन्नता हमेशा बनी रहती है। यदि भौंह पर दाहिनी ओर तिल है तो व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में खुशियां प्राप्त होती हैं। वहीं बायीं भौंह पर तिल होना अच्छा नहीं माना जाता।नाक पर तिलसमुद्रशास्त्र में बताया गया है कि यदि किसी की नाक की दाहिनी तरफ तिल है, तो वह व्यक्ति कम मेहनत के बल पर ही अधिक धनवान बन जाता है।कान पर तिलअगर किसी व्यक्ति के कान पर तिल हो तो उसका जीवन भौतिक सुखों से भरा रहता है। वहीं कान के ठीक ऊपर तिल हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है।गर्दन पर तिलमान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति की गर्दन पर ठीक सामने तिल हो, तो वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली और कला से निपुण होता है।पीठ पर तिलयदि किसी की पीठ पर रीढ़ की हड्डी के आसपास तिल हो, तो व्यक्ति सक्सेस और फेम पाता है। वहीं किसी व्यक्ति के कंधों के ऊपर तिल है, तो इसका मतलब वह व्यक्ति साहस के साथ चुनौतियों का सामना करता है।
- माता पार्वती एवं माता लक्ष्मी की भांति माता सरस्वती के भी अनेक रूप हैं, हालांकि उनके अवतारों की संख्या उतनी नहीं है।माता सरस्वती के प्रमुख रूप हैं:महा सरस्वती: ये माता सरस्वती का सर्वोच्च रूप माना जाता है। इनका वर्णन देवी माहात्म्य में विशेष रूप से दिया गया है। महाकाली एवं महालक्ष्मी के साथ महासरस्वती त्रिदेवों के सर्वोच्च रूपों, क्रमश: महादेव, महाविष्णु एवं महाब्रह्मा को परिपूर्ण करती हैं। इस रूप में इनके 8 हाथ हैं, ये वीणा को धारण करती हैं और उजले कमल पर विराजती हैं।विद्या सरस्वती: अपने इस रूप में माता सरस्वती संसार के समस्त ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। कहा जाता है कि संसार में जो भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष ज्ञान फैला है, वो सभी माता के इसी रूप के कारण है।शारदम्बा: माता सरस्वती का ये रूप श्रृंगेरी शारदापीठ का मूल है। इनका मंदिर कर्णाटक के श्रृंगेरी नामक स्थान पर है जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने पर त्रिदेवों के साथ माता पार्वती और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद स्वत: ही प्राप्त हो जाता है।माता सावित्री: अपने इस रूप में माता सरस्वती परमपिता ब्रह्मा की पत्नी के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं। ये संसार की पवित्रता का प्रतीक है। संसार में जो कुछ भी शुद्ध एवं पवित्र है, वो इन्हीं की कृपा से है।माता गायत्री: माता सरस्वती का ये रूप संसार के सभी यज्ञों एवं कर्मकांडों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजित है। हालाँकि इनका मूल भी माता सावित्री को ही माना जाता है किन्तु कई स्थानों पर इन्हें भी ब्रह्मदेव की पत्नी का स्थान प्राप्त है। गायत्री मंत्र को संसार का सबसे शक्तिशाली मंत्र माना गया है जिसके विषय में स्वयं श्रीकृष्ण की विभूतियों में कहा गया है कि "मंत्रों में मैं गायत्री हूँ।"नील सरस्वती: माता का ये रूप भारत के पूर्वात्तर राज्यों में सबसे प्रसिद्ध है। इनके इस रूप को महाविद्याओं में से एक माता तारा का रूप भी माना जाता है। आम तौर पर माता सरस्वती के सभी रूप सौम्य और शांत होते हैं किन्तु नील सरस्वती इनका उग्र स्वरुप है। तंत्र ग्रंथों में इनका विशेष महत्त्व बताया गया है और इनके 100 नामों का उल्लेख है।ब्राह्मणी: अष्ट-मातृकाओं में वर्णित माता ब्राह्मणी माता सरस्वती का ही एक रूप है। ये परमपिता ब्रह्मा की शक्ति को प्रदर्शित करती हैं। ये पीत वर्ण की है तथा इनकी चार भुजाएँ हैं। ब्रह्मदेव की तरह इनका आसन कमल एवं वाहन हंस है।महाविद्या: माता सती के दस रूप, जो दस महाविद्या के नाम से जाने जाते हैं, उनमें से तीन माता सरस्वती का ही रूप मानी जाती हैं:काली (श्यामा): माता का उग्र रूप।मातंगी: माता का सौम्य रूप।तारा: माता का वैभवशाली रूप।अब बात करते हैं माता सरस्वती के अवतारों के विषय में। उनके अवतारों अवतार के बारे में हमें बहुत अधिक वर्णन नहीं मिलता, किन्तु उनके दो अवतार बहुत प्रसिद्ध हैं:सरस्वती नदी: ऋग्वेद में माता के इस रूप के विषय में प्रमुखता से लिखा गया है। गंगा की भांति ये भी संसार के कल्याण के लिए ही अवतरित हुई थी। ऐसी भी मान्यता है कि ये संसार की पहली नदी थी। ये सतयुग में अवतरित होकर द्वापर के अंत में लुप्त हो गयी थी। कलियुग में ये माँ गंगा एवं यमुना के साथ अदृश्य रूप में उपस्थित हैं। कलियुग के अंत में ये गंगा, यमुना, कावेरी एवं नर्मदा के साथ पृथ्वी को सदा के लिए छोड़ देंगी। कई लोग ये मानते हैं कि आज भी सरस्वती नदी पृथ्वी के गर्भ में प्रवाहित होती हैं।माँ शारदा: ये माता सरस्वती का मानव अवतार माना जाता है। कश्मीर के कश्मीरी पंडित एवं हरियाणा के मूल निवासियों में इनके प्रति बहुत श्रद्धा है। इनका भव्य मंदिर शारदा पीठ के नाम से स्थापित है जो लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है। अब वो स्थान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है। इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
- माता लक्ष्मी धन की देवी कहीं जाती हैं। माता लक्ष्मी के वैसे तो कई रूप हैं किन्तु उनमें से 8 सबसे प्रमुख माने जाते हैं जिन्हे हम अष्टलक्ष्मी कहते हैं। इन आठ रूपों में वे सृष्टि के विभिन्न भागों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आइये इनके विषय में कुछ जानते हैं।आदि लक्ष्मी: इन्हे मूल लक्ष्मी या महालक्ष्मी भी कहा जाता है। श्रीमद देवीभागवत पुराण के अनुसार इन्होने ही सृष्टि की रचना की थी। इन्हीं से त्रिदेव, महाकाली, लक्ष्मी एवं महासरस्वती प्रकट हुई। इस संसार के सञ्चालन और पालन हेतु इन्होने श्रीहरि से विवाह किया। ये जीवन उत्पन्न करती हैं एवं सुख समृद्धि देती हैं।धार्या लक्ष्मी: इन्हें वीर लक्ष्मी भी कहा जाता है। भौतिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने में जो भी बढ़ाएं आती हैं, उन्हें ये दूर करती हैं। ये अकाल मृत्यु से भी हमारी रक्षा करती हैं। इन्हे माँ कात्यायनी का रूप भी माना जाता है जिन्होंने महिषासुर का वध किया था। ये युद्ध में विजय दिलाती हैं और वीरों की रक्षा करती हैं। इन्हें माता पार्वती का रूप भी माना जाता है।संतान लक्ष्मी: इनकी पूजा स्कंदमाता के रूप में भी होती है। कुछ रूपों में इनके चार तो कुछ रूपों में आठ हाथ दिखाए गए हैं। इनमें से एक अभय और एक वरद मुद्रा में रहता है। ये गुणवान एवं लम्बी आयु वाले स्वस्थ संतान का आशीर्वाद देती है। ये बच्चों के लिए स्नेह का प्रतीक हैं एवं पिता को कर्तव्य एवं माँ को सुख प्रदान करती हैं।विद्या लक्ष्मी: ये शिक्षा, ज्ञान और विवेक की देवी हैं। बुद्धि और ज्ञान का बल भी हमें इनसे ही प्राप्त होता है। विद्या लक्ष्मी आत्म-संदेह एवं असुरक्षा का नाश करती हैं और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं। विद्यार्थियों को माता लक्ष्मी के इस रूप का ध्यान अवश्य करना चाहिए। ये आध्यात्मिक जीवन जीने में सहायता करती हैं एवं व्यक्ति की क्षमता और प्रतिभा को बाहर लाती हैं। इन्हें माता सरस्वती का दूसरा रूप भी माना जाता है।धान्य लक्ष्मी: ये प्रकृति एवं चमत्कारों की प्रतीक हैं। ये समानता का ज्ञान देती हैं क्यूंकि प्रकृति सबके लिए समान होती हैं। ये भोजन और कृषि का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इनके आठ हाथ हैं जिनमें कृषि उत्पाद भी होते हैं। इन्हें माता अन्नपूर्णा के रूप में भी पूजा जाता है। ये अनाज और पोषण की देवी हैं और इनकी कृपा से ही हमारा घर धन-धान्य से भरा रहता है।गज लक्ष्मी: ये भूमि को उर्वरता प्रदान करती हैं। इनके इस रूप में दोनों ओर से गज शुद्ध जल से इनका अभिषेक करते रहते हैं। कमल पर विराजित इन देवी के चार हाथ हैं जिनमें वे कमल का पुष्प, अमृत कलश, बेल और शंख धारण करती है। ये पशुधन को भी प्रदान करने वाली हैं। ये पशुधन में वृद्धि और हमारे जीवन में पशुओं के माध्यम से समृद्धि की प्रतीक हैं।विजय लक्ष्मी: इन्हें जय लक्ष्मी भी कहा जाता है। इनके आठ हाथ हैं जो अभय मुद्रा में होते हैं। इनकी पूजा कोर्ट-कचहरी की परेशानियों से बचने के लिए विशेष रूप से की जाती है। कठिन परिस्तिथियों में ये साहस बनाये रखने की प्रेरणा देती है। ये निडरता प्रदान करती हैं और हर कठिनाई में विजय दिलाती हैं।धन लक्ष्मी: इन्हें श्री लक्ष्मी भी कहते हैं जो धन और ऐश्वर्य का प्रतीक हैं। जब तिरुपति बालाजी के रूप में श्रीहरि ने कुबेर से ऋण लिया तो उन्हें उस ऋण से मुक्ति दिलाने के लिए माता ने यह रूप लिया। इस रूप की पूजा धन प्राप्ति और ऋण मुक्ति हेतु विशेष रूप से की जाती है। इनके छ: हाथ होते हैं। इस रूप में माता धन, संपत्ति, स्वर्ण, ऐश्वर्य इत्यादि तो देती ही है किन्तु इसके अतिरिक्त इच्छाशक्ति, साहस, दृढ संकल्प एवं उत्साह भी प्रदान करती हैं।
- वास्तु शास्त्र में दिशाओं के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। किस दिशा में क्या करना शुभ होता है और क्या अशुभ वास्तु में इन सब बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। वास्तु के अनुसार, भोजन करते समय भी दिशाओं का ध्यान रखना चाहिए। गलत दिशा में मुंह करके खाना खाने से व्यक्ति को काफी नुकसान झेलने पड़ सकते हैं। जानते हैं खाना खाते समय किस दिशा की ओर मुंह करके नहीं बैठना चाहिए...दक्षिण दिशावास्तु शास्त्र के अनुसार, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिशा की तरफ मुंह करके खाना खाने से दरिद्रता और कंगाली का सामना करना पड़ता है। माना जाता है कि ये दिशा पितरों की दिशा होती है, इसलिए इस दिशा में खाना बनाने या खाने की सलाह नहीं दी जाती है।पूर्व दिशापूर्व दिशा को देवताओं की दिशा माना जाता है। ऐसे में पूर्व दिशा की ओर मुंह करके खाना खाने से सभी तरह की बीमारी दूर होती है। साथ ही इस तरफ मुंह करके खाने से देवताओं की कृपा और आरोग्य की प्राप्ति होती है और आयु बढ़ती है।उत्तर दिशाउत्तर दिशा को भी देव दिशा माना जाता है। ऐसे में इस दिशा की ओर मुंह करके भोजन करने से घर में रुपये पैसों की कमी नहीं होती है। घर के मुखिया और विद्यार्थियों को विशेष तौर पर उत्तर दिशा में ही मुंह करके भोजन करना चाहिए। इससे लाभ होता है।पश्चिम दिशावास्तु शास्त्र के अनुसार व्यापार या नौकरीपेशा से जुड़े लोगों को इस दिशा की ओर मुंह करके भोजन करना चाहिए। इसके अलावा अगर घर में कोई सदस्य बीमार हो तो उसे भी हमेशा पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके ही भोजन करना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से स्वास्थ्य बेहतर होता है।वास्तु शास्त्र के अनुसार, अगर डाइनिंग टेबल पर भोजन कर रहे हैं, तो डाइनिंग टेबल को दक्षिण या पश्चिम की दीवार की तरफ रखें। वहीं कभी भी बिस्तर पर बैठकर खाना न खाएं।वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि घर में मेहमान आए हों, तो उनको दक्षिण या पश्चिम दिशा में बिठाकर खाना खिलाएं और खुद पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके खाएं।
- भारत के हर हिस्से में कई प्राचीन और अनोखे देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें से कई मंदिर का इतिहास हजारों साल से भी अधिक पुराना है। आज हम आपको एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो साल में केवल रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में -यह मंदिर चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ साल में सिर्फ एक दिन ही भक्तों के लिए कपाट खोले जाते हैं। माना जाता है कि साल के बाकी 364 दिन यहाँ यहां देवर्षि नारद भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर के कपाट रक्षाबंधन पर ही खोले जाते हैं और उसी दिन सूर्यास्त से पहले बंद भी कर दिए जाते हैं। भगवान वंशीनारायण मंदिर समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवकाल में हुआ था। मंदिर कत्यूरी शैली में बना हुआ है और इसकी ऊँचाई 10 फीट है। इस मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है और मंदिर में स्थापित प्रतिमा में भगवान विष्णु और भोलेनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं। इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी एक रोचक कथा है।एक पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार राजा बलि ने भगवान नारायण से आग्रह किया कि वे पाताल लोक की देखरेख संभालें। राजा बलि के कहने पर भगवान नारायण ने पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी संभाल ली। तब माता लक्ष्मी उन्हें ढूंढते हुए देवर्षि नारद के पास वंशीनारायण मंदिर पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा। तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को बताया कि भगवान पाताल लोक में द्वारपाल बने हुए हैं। यह सुनकर माता लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं। तब नारद जी ने उन्हें भगवान नारायण को मुक्त कराने का उपाय बताया।देवर्षि नारद ने माता लक्ष्मी से कहा कि आप आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान को वापस मांग लें। तब माता लक्ष्मी ने नारद जी से कहा कि उन्हें पाताल लोक का रास्ता नहीं पता है और उनसे भी साथ चलने को कहा। तब नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक गए और भगवान को मुक्त कराकर ले आए। मान्यता है कि सिर्फ यही दिन था जब देवर्षि नारद वंशीनारायण मंदिर में भगवान की पूजा नहीं कर पाए। उस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशी नारायण की पूजा की। तब से यह परंपरा चली आ रही है।रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के भोग के लिए मक्खन आता है। इस दिन भगवान वंशीनारायण का फूलों से श्रृंगार किया जाता है और श्रद्धालु व स्थानीय ग्रामीण भगवान वंशीनारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं।
- भारत में कई प्राचीन देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें से कई मंदिर का इतिहास हजारों साल से भी अधिक पुराना है। आज हम एक बेहद चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। यहां स्थापित माता की मूर्ति तीन पहर में अलग-अलग स्वरुप बदलती है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में -लहर की देवी का यह मंदिर झांसी (मध्यप्रदेश) के सीपरी में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण बुंदेलखंड के चंदेल राज के समय किया गया था। यहां के राजा का नाम परमाल देव था। राजा के दो भाई थे, जिनका नाम आल्हा-उदल था। कहा जाता है कि आल्हा की पत्नी और महोबा की रानी मछला का पथरीगढ़ के राजा ज्वाला सिंह ने अपहरण कर लिया था। ऐसा कहा जाता है कि आल्हा ने ज्वाला सिंह को पराजित करने और ज्वाला सिंह से रानी को वापस लाने के लिए अपने भाई के सामने अपने पुत्र की बलि इसी मंदिर में चढ़ा दी थी। लेकिन देवी ने इस बलि को स्वीकर नहीं किया और उस बालक को जीवित कर दिया। मान्यताओं के अनुसार जिस पत्थर पर आल्हा ने अपने पुत्र की बलि दी थी, वह पत्थर आज भी इसी मंदिर में सुरक्षित है।लहर की देवी को मनिया देवी के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि लहर की देवी, मां शारदा की बहन हैं। यह मंदिर 8 शीला स्तंभों पर खड़ा है। मंदिर के प्रत्येक स्तंभ पर आठ योगिनी अंकित हैं। इस प्रकार यहां 64 योगिनी मौजूद हैं। मंदिर परिसर में भगवान गणेश, शंकर, शीतला माता, अन्नपूर्णा माता, भगवान दत्तात्रेय, हनुमानजी और काल भैरव के भी मंदिर हैं।माना जाता है कि इस मंदिर में मौजूद लहर की देवी की मूर्ति दिन में तीन बार स्वरूप बदलती है। प्रात:काल में बाल्यावस्था में, दोपहर में युवावस्था में और सायंकाल में देवी मां प्रौढ़ा अवस्था में मां नजर आती हैं। हर पहर में देवी का अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। प्रचलित कथाओं के अनुसार कालांतर में पहूज नदी का पानी पूरे क्षेत्र तक पहुंचा करता था। इस नदी की लहरें माता के चरणों को छूती थीं इसलिए मंदिर में स्थापित मां की मूर्ति को लहर की देवी कहा जाता है। माना जाता है कि मंदिर में विराजमान देवी तान्त्रिक हैं इसलिए यहां पर अनेक तान्त्रिक क्रियाएं भी होती हैं। नवरात्रों में माता के दर्शन के लिए यहां हज़ारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है। नवरात्र में अष्टमी की रात को यहां भव्य आरती का आयोजन होता है।
- हिंदू धर्म, वास्तु शास्त्र, ज्योतिष आदि में हर दिन और यहां तक कि दिन-रात के अलग-अलग समयों को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें बताई गईं हैं। इसके तहत किस काम को करने के लिए कौन सा समय उचित है और कौन सा नहीं, इस बारे में भी विस्तार से बताया गया है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक सूर्यास्त के समय कुछ काम नहीं करने चाहिए क्योंकि इन्हें करने से नकारात्मकता आती है। सूर्यास्त के समय किए गए ये काम जीवन में धन हानि, बीमारियों जैसी मुसीबतों का कारण बनते हैं।सक्रिय रहती हैं नकारात्मक शक्तियांशास्त्रों के मुताबिक सूर्यास्त के समय और इसके बाद नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं इसलिए इस दौरान कुछ काम नहीं करने चाहिए। साथ ही इस समय देवी-देवताओं की आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियों का असर नहीं पड़ता है। आइए जानते हैं शाम के समय कौन से काम नहीं करने चाहिए।- शाम के समय कभी भी घर का मुख्य दरवाजा बंद न रखें। इस समय हमेशा दरवाजा खुला रखें। मान्यता है कि इस समय ही मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं। ऐसे में दरवाजा बंद रखने से मां का आगमन नहीं होता और घर में गरीबी आती है।- शाम के समय तुलसी के पौधे के नीचे दीपक लगाना बहुत शुभ माना गया है, लेकिन इस समय गलती से भी तुलसी के पौधे का न छुएं। शाम को तुलसी जी को छूने से वे नाराज हो जाती हैं।- शाम के समय कभी भी किसी को लहसुन-प्याज, नमक, खट्टी चीजें और सुई नहीं देनी चाहिए। न ही ये चीजें लेनी चाहिए। बेहतर होगा कि जरूरत पडऩे पर ये चीजें या तो बाजार से खरीद लें या जरूरतमंद को इन्हें खरीदने के लिए पैसे दे दें।- शाम के समय किसी भिखारी को खाली हाथ न लौटाएं। उसे अपनी सामथ्र्यनुसार कुछ न कुछ दान दें।- शाम के समय पैसों का लेन-देन न करें। ना ही किसी को उधार दें और ना ही लें। मान्यता है कि इस समय उधार दिया गया पैसा वापस नहीं मिलता है।- शाम के समय घर में कभी न तो सोएं और ना ही झगड़ा करें। शाम के समय लक्ष्मी जी का आगमन होता है और इस समय झगड़ा करने से लक्ष्मी की बजाय उनकी बहन अलक्ष्मी का आगमन हो जाता है, जिससे घर में गरीबी आती है। ऐसी स्थिति आर्थिक हानि कराती है।--
- भारत के लोगों का आस्था में अटूट विश्वास है यहीं कारण कि यहाँ के लोग मंदिरों में पूजा पाठ करने में विश्वास रखते हैं। वैसे तो भारत के सभी मंदिरों में भगवान की मूर्तियां पूजी जाती हैं पर एक ऐसा मंदिर भी भारत में मौजूद है जहाँ माना जाता है कि भगवान स्वयं विराजमान है। यह मंदिर है भगवान तिरुपति बालाजी का जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी मन्दिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। तिरुमला की पहाडिय़ों पर बना श्री वैंकटेश्वर बालाजी मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित है और तिरुपति के सबसे बड़े आकर्षण का केंद्र है। कहा जाता है जो भी व्यक्ति एक बार यहाँ दर्शन कर ले उसके भाग खुल जाते हैं। इस मंदिर की लोकप्रियता से हर कोई वाकिफ है पर क्या आप मंदिर के चमत्कारी रहस्यों के बारे में जानते हैं। आज हम आपको इन्हीं रहस्यों के बारे में बताने वाले हैं-1. मान्यता है कि जब भगवान की पूजा की जाती है तो उनकी मूर्ति मुस्कुराने लगती है। भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी की मूर्ति में माता लक्ष्मी भी समाहित है। मान्यता है कि भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर की मूर्ति इस मंदिर में स्वयं प्रकट हुई थीं।2. कहा जाता है भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी की मूर्ति पर लगे हैं बाल असली हैं। यह बाल कभी भी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं।3. जब आप मंदिर के गर्भ गृह के अंदर जायेंगे तो ऐसा लगेगा कि भगवान श्री वेंकेटेश्वर की मूर्ति गर्भ गृह के मध्य में स्थित है, पर जब आप गर्भ गृह से बाहर आकर मूर्ति को देखेंगे तो प्रतीत होगा कि भगवान की प्रतिमा दाहिनी तरफ स्थित है।4. तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित है लेकिन फिर भी भगवान की मूर्ति से समुद्र की आवाजें सुनाई देती हैं। यहाँ के लोगों का मानना है कि भगवान की यह मूर्ति समुद्र से प्रकट हुई थी इसलिए इससे समुद्र की आवाज सुनाई देती है।5. तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर के द्वार पर एक छड़ी रखी हुई है। इस छड़ी को लेकर अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु धरती पर माता लक्ष्मी को ढूंढऩे आये थे तो यह छड़ी उन्हें उनका पता बता रही थी।6. ऐसी मान्यता है कि यह वहीं छड़ी है जिससे बचपन में भगवान वेंकटेश्वर जी को चोट लगी थी। चोट का निशान आज भी उनकी मूर्ति के चेहरे पर है। इसलिए हर शुक्रवार उनके चेहरे पर चन्दन का लेप लगाया जाता है।7. श्री तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर में श्रृंगार, प्रसाद के चढ़ाये जाने वाली सामग्री तिरुपति बालाजी के गांव से आती है। यह गांव मंदिर से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहाँ बाहरी व्यक्ति के प्रवेश पर प्रतिबंध है।8. श्री वेंकेटेश्वर बालाजी मंदिर में एक ऐसा दीया रखा हुआ है जो हमेशा जलता रहता है और चौंकाने वाली बात यह है कि इस दीपक में कभी भी तेल या घी नहीं डाला जाता। दीपक को सबसे पहले किसने और कब प्रज्ज्वलित किया था, यह बात अब तक रहस्य बनी हुई है।
- ज्योतिष शास्त्र में जिस प्रकार ग्रह-नक्षत्रों से भविष्य के बारे में जानकारी हासिल की जाती है। उसी तरह हस्तरेखा शास्त्र में हथेली की रेखाओं को देखकर भविष्यवाणी की जाती है। हस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक हथेली में मौजूद तिल के निशान भी भविष्य के बारे में बहुत कुछ संकेत देते हैं। ऐसे में जानते हैं कि हथेली में किन जगहों पर स्थित तिल धन-दौलत का संकेत देते हैं।तर्जनी अंगुली पर तिलहस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक जिन लोगों की हथेली की तर्जनी अंगुली पर तिल होता है, वे बेहद भाग्यशाली होते हैं। ऐसे लोगों पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है। साथ ही ऐसे लोग धनवान होने के साथ-साथ सभी सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण रहते हैं। इसके अलावा ये मेहनती स्वभाव के कारण काम करने से पीछे नहीं हटते हैं।मध्यमा अंगुली पर तिलमध्यमा अंगुली पर तिल शुभ संकेतक होता है। जिन लोगों की मध्यमा अंगुली पर तिल का निशान होता है वे तेज-तर्रार होते हैं। साथ ही ऐसे लोग महंगी चीजें खरीदने का शौक रखते हैं। इसके अलावा ऐसे लोग ऐशोआराम में जिंदगी बिताते हैं।कनिष्ठा अंगुली पर तिलहस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक जिन लोगों की सबसे छोटी यानी कनिष्ठा अंगुली पर तिल का निशान होता है वे मान-सम्मान के साथ-साथ खूब धन-दौलत अर्जित करते हैं। साथ ही ऐसे लोगों का व्यक्तित्व भी शानदार होता है।अंगूठे पर तिलहस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक अंगूठे पर तिल का होना शुभ संकेत देता है। जिस जातक के अंगूठे पर तिल होता है वो बहुत ही भाग्यशाली माने जाते हैं। ऐसा व्यक्ति साहित्य और कला का प्रेमी होता है। साथ ही ऐसे लोग व्यापार से अकूत धन अर्जित करने की क्षमता रखते है।
-
हिंदू धर्म में शीघ्र ही प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाने वाले भगवान शिव की पूजा के लिए प्रदोष तिथि अत्यंत ही शुभ मानी गई. मान्यता है कि विधि-विधान से प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति से प्रसन्न होकर महादेव उस पर अपनी पूरी कृपा बरसाते हैं. पंचांग के अनुसार यह व्रत जिस दिन पड़ता है, इसका नाम उसी दिन के नाम पर तय हो जाता है. जैसे यदि सोमवार को प्रदोष व्रत पड़ता है तो उसे सोम प्रदोष और मंगलवार को पड़ता है तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं. आइए जानते हैं कि मार्च माह का आखिरी और चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत कब पड़ेगा और इस व्रत का महात्मय और विधि क्या है.
कब पड़ेगा प्रदोष व्रत
पंचांग के अनुसार भगवान शिव की कृपा दिलाने वाली त्रयोदशी तिथि या फिर कहें प्रदोष व्रत 29 मार्च 2022, मंगलवार को पड़ने जा रहा है. यह मार्च माह का आखिरी और चैत्र मास का पहला प्रदोष व्रत होगा. देश की राजधानी दिल्ली आधारित पंचांग के अनुसार पावन त्रयोदशी 29 मार्च को दोपहर 02:38 बजे से शुरु होकर 30 मार्च 2022, बुधवार की दोपहर 01:19 मिनट तक मान्य रहेगी. प्रदोष व्रत के दौरान भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ समय सायंकाल 06:37 से रात्रि 08:57 बजे तक रहेगा.
भौम प्रदोष व्रत का महत्व
मार्च माह का आखिरी और चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) कहलाएगा क्योंकि यह मंगलवार के दिन पड़ रहा है. मान्यता है कि भौम प्रदोष व्रत को विधि-विधान से रखने पर साधक के जीवन से जुड़े सभी कर्ज दूर होते हैं और शिव की कृपा से उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत वाले दिन साधक को प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करके भगवान शिव के इस पावन व्रत का संकल्प करना चाहिए. इसके बाद विधि-विधान से शिव का पूजन एवं अर्चन करना चाहिए. फिर शाम के समय प्रदोष काल में एक बार फिर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से शिव का विशेष पूजन करते हुए प्रदोष व्रत की पावन कथा को कहना या सुनना चाहिए. प्रदोष व्रत के दिन रुद्राक्ष की माला से शिव के मंत्र का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए.
साल 2022 में आगामी प्रदोष व्रत
14 अप्रैल 2022, गुरुवार – गुरु प्रदोष व्रत
28 अप्रैल 2022, गुरुवार – गुरु प्रदोष व्रत
13 मई 2022, शुक्रवार – शुक्र प्रदोष व्रत
27 मई 2022, शुक्रवार – शुक्र प्रदोष व्रत
12 जून 2022, रविवार – रवि प्रदोष व्रत
26 जून 2022, रविवार – रवि प्रदोष व्रत
11 जुलाई 2022, सोमवार – सोम प्रदोष व्रत
25 जुलाई 2022, सोमवार – सोम प्रदोष व्रत
09 अगस्त 2022, मंगलवार – भौम प्रदोष व्रत
24 अगस्त 2022, बुधवार – बुध प्रदोष व्रत
08 सितंबर 2022, गुरुवार – गुरु प्रदोष व्रत
23 सितंबर 2022, शुक्रवार – शुक्र प्रदोष व्रत
07 अक्टूबर 2022, शुक्रवार – शुक्र प्रदोष व्रत
22 अक्टूबर 2022, शनिवार – शनि प्रदोष व्रत
05 नवंबर 2022, शनिवार – शनि प्रदोष व्रत
21 नवंबर 2022, सोमवार – सोम प्रदोष व्रत
05 दिसंबर 2022, सोमवार – सोम प्रदोष व्रत
21 दिसंबर 2022, बुधवार – बुध प्रदोष व्रत
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.) -
. आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो दिन में दो बार गायब हो जाता है। जी हाँ, गुजरात में स्थित स्तंभेश्वर मंदिर को 'गायब मंदिर' भी कहा जाता है। देश-विदेश से शिव भक्त अपनी मनोकमना पूर्ण होने की कामना के साथ इस मंदिर में आते हैं। आइए जानते हैं भगवान भोलेनाथ के इस अद्भुत मंदिर के बारे में
स्तंभेश्वर मंदिर गुजरात के जम्बूसार तहसील में कवि कंबोई गांव में स्थित है। यह मंदिर वडोदरा से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित होने के कारण वडोदरा के पास सबसे लोकप्रिय दार्शनिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर लगभग 150 साल पुराना है और इसे 'गायब मंदिर' भी कहा जाता है। सालभर मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। खासतौर पर सावन के महीने में इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से महादेव के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं।स्कन्द पुराण में दिए गए उल्लेख के अनुसार स्तम्भेश्वर मंदिर को भगवान कार्तिकेय के ताड़कासुर नाम के राक्षस को नष्ट करने के बाद स्थापित किया था। कहा जाता है कि राक्षस ताड़कासुर भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसने भगवान को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या कीऔर भोलेनाथ ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे एक वरदान मांगने को कहा। तब ताड़कासुर ने आशीर्वाद माँगा कि भगवान शिव के छह दिन के पुत्र के अलावा कोई भी उसे मार न सके। उसकी इच्छा पूरी होने के बाद, ताड़कासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। तब ताड़कासुर के अत्याचार को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भगवान कार्तिकेय की रचना की। ताड़कासुर को मारने वाले भगवान कार्तिकेय भी उसकी शिव भक्ति से प्रसन्न थे। इसलिए, प्रशंसा के संकेत के रूप में, उन्होंने उस स्थान पर एक शिवलिंग स्थापित किया जहां ताड़कासुर का वध किया गया था।एक अन्य संस्करण के अनुसार, ताड़कासुर को मारने के बाद भगवान कार्तिकेय खुद को दोषी महसूस कर रहे थे क्योंकि ताड़कासुर राक्षस होने के बाद भी भगवान शिव का भक्त था। तब भगवान विष्णु ने कार्तिकेय को यह कहते हुए सांत्वना दी कि आम लोगों को परेशान करके रहने वाले राक्षस को मारना गलत नहीं है। हालाँकि, भगवान कार्तिकेय शिव के एक महान भक्त को मारने के अपने पाप से मुक्त होना चाहते थे। इसलिए, भगवान विष्णु ने उन्हें शिव लिंग स्थापित करने और क्षमा के लिए प्रार्थना करने की सलाह दी।मंदिर के गायब होने के पीछे है यह वजहस्तंभेश्वर मंदिर के गायब होने के पीछे की वजह प्राकृतिक है। दरअसल, यह मंदिर समुद्र के किनारे से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है। इसलिए दिन में समुद्र का स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर जलमग्न हो जाता है। फिर कुछ देर में जल का स्तर घट जाता है तो मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है। चूंकि समुद्र का स्तर दिन में दो बार बढ़ जाता है इसलिए मंदिर हमेशा सुबह और शाम के समय कुछ देर के लिए गायब हो जाता है। इस नज़ारे को देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से इस मंदिर में आते हैं। -
हर व्यक्ति सुख-समृद्धि की चाहत करता है. कुछ लोग घर में सुख-शांति और समृद्धि के लिए कई तरह के उपाय भी करते हैं. परंतु कई बार इससे भी सफलता नहीं मिलती है. क्या आप जानते हैं कि फेंगशुई टिप्स के जरिए आप भी जीवन में सुख-शांति और समृद्धि ला सकते हैं. दरअसल फेंगशुई में कुछ टिप्स बताए गए हैं जिसके जरिए वास्तु दोष दूर साकारात्मक ऊर्जा ला सकते हैं. आइए जानते हैं फेंगशुई के कुछ खास टिप्स.
सुख-समृद्धि के लिए फेंगशुई के टिप्स
-फेंगशुई के मुताबिक सौभाग्य के लिए घर के फिट पॉट में 8 गोल्डन फिश और काले रंग की मछली रखनी चाहिए. एक्वेरियम को हमेशा ड्रॉइंग रूम में ही रखना चाहिए.
-फेंगशुई में ड्रैगन को समृद्धि का कारक माना गया है. माना जाता है कि इसे घर की पूरब दिशा में रखने से तरक्की के साथ-साथ धन की प्राप्ति होती है. इसके अलावा इससे घर की निगेटिविटी खत्म होती है.
-फेंगशुई के अनुसार, घर में कछुआ रखने से कामयाबी और खुशहाली आती है. माना जाता है कि कछुआ घर या ऑफिस की उत्तर दिशा में रखना शुभ है. कछुआ लोहे के अलावा अन्य किसी धातु का बना होना चाहिए.
-फेंगशुई में लाफिंग बुद्धा को आर्थिक सफलता का प्रतीक माना गया है. ऐसे में इसे घर या ऑफिस की उत्तर दिशा में रखने से आर्थिक स्थिति अच्छी होती है.
-फेंगशुई में तीन टांग वाला मेंढक बेहद बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि इसे घर या ऑफिस की उत्तर दिशा या मुख्य द्वार में लगाने से धन-वैभव में वृद्धि होती है. साथ ही तरक्की के रास्ते मिलते हैं. - होली के पांचवे दिन रंग पंचमी का पर्व मनाया जाता है. ये पर्व चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को सेलिब्रेट होता है.रंगपंचमी का पर्व वैसे तो महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर की रंगपंचमी पूरे देश में प्रसिद्ध है. इस दिन इंदौर में बहुत बड़ा जुलूस निकलता है. इस जुलूस में लाखों की तादाद में लोग शामिल होते हैं और आसमान में गुलाल उड़ाया जाता है. उड़ते रंग और गुलाल का ये दृश्य बहुत मनमोहक होता है. इस साल रंग पंचमी 2022 का पर्व 22 मार्च मंगलवार को मनाया जाएगा. ऐसे में यहां जानिए रंग पंचमी का महत्व और इस दिन से जुड़ी खास बातें.ये है रंग पंचमी का महत्वरंग पंचमी के दिन अबीर और गुलाल को आसमान की ओर फेंका जाता है. ये गुलाल उस दिन देवी देवताओं को अर्पित किए जाते हैं. मान्यता है कि रंग बिरंगे गुलाल की खूबसूरती देखकर देवता काफी प्रसन्न होते हैं और इससे पूरा वातावरण सकारात्मक हो जाता है. ऐसे में आसमान में फेंका गुलाल जब वापस लोगों पर गिरता है तो इससे व्यक्ति के तामसिक और राजसिक गुणों का नाश होता है, उसके भीतर की नकारात्मकता का अंत होता है और सात्विक गुणों में वृद्धि होती है.राधा कृष्ण के पूजन का दिनरंग पंचमी को राधा कृष्ण के पूजन का दिन माना जाता है और उन्हें अबीर और गुलाल अर्पित किया जाता है. कहा जाता है कि इससे व्यक्ति की कुंडली में मौजूद बड़े बड़े दोष भी समाप्त हो जाते हैं और जीवन प्यार से भर जाता है. इस दिन माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा का भी विधान है, इस कारण तमाम जगहों पर रंग पंचमी को श्रीपंचमी के नाम से भी जाना जाता है.ऐसे करें पूजनरंग पंचमी के दिन आप राधा कृष्ण या लक्ष्मी नारायण जिसकी भी पूजा करते हों, उनकी तस्वीर को उत्तर दिशा में एक चौकी पर रखें. चौकी पर तांबे का कलश पानी भरकर रखें. फिर रोली, चंदन, अक्षत, गुलाब के पुष्प, खीर, पंचामृत, गुड़ चना आदि का भोग लगाएं. भगवान को गुलाल अर्पित करें और आसन पर बैठकर ‘ॐ श्रीं श्रीये नमः’ मंत्र का जाप स्फटिक या कमलगट्टे की माला से करें. विधिवत पूजन के बाद आरती करें और क्षमा याचना करें और उनसे परिवार पर कृपा बनाए रखने की प्रार्थना करें. कलश में रखे जल को घर के हर कोने में छिड़कें. जिस स्थान पर तिजोरी या धन रखने की व्यवस्था है, वहां जरूर छिड़कें. मान्यता है कि इससे घर में बरकत आती है.
- चैत्र नवरात्रि हिंदू कैलेंडर के पहले महीने चैत्र मासमें मनाई जाती है. इस साल 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि शुरू होंगे. इन नौ दिनों का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक भी है. नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. क्योंकि ये नौ दिन ‘चैत्र’ के महीने में पड़ते हैं, इसलिए इसे चैत्र नवरात्रि (Navratri) कहा जाता है. पंचांग के अनुसार इस साल 2 अप्रैल से 11 अप्रैल तक चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. इस दौरान विधि-विधान से मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि में बहुत लोग व्रत भी करते हैं.चैत्र घटस्थापना का शुभ मुहूर्तचैत्र नवरात्रि में घटस्थापना 2 अप्रैल को होगी. हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रतिपदा 1 अप्रैल को सुबह 11:53 बजे से शुरू होकर 2 अप्रैल को 11:58 बजे समाप्त होगी.घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल को सुबह 6.10 बजे से 8.31 बजे तक रहेगा. घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त इसी दिन दोपहर 12 बजे से 12.50 बजे तक रहेगा.राहुकाल2 अप्रैल को सुबह 9.17 बजे से 10.51 बजे तक राहुकाल रहेगा. हिंदू शास्त्रों के अनुसार इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.कलश स्थापना की विधिकलश स्थापना के लिए आपको मिट्टी के बर्तन (कलश), पवित्र स्थान से लाई गई मिट्टी, गंगाजल, आम या अशोक के पत्ते, सुपारी, चावल, नारियल, लाल धागा, लाल कपड़ा और फूल की आवश्यकता होती है. नवरात्रि के पहले दिन कलश की स्थापना की जाती है. कलश स्थापना से पहले मंदिर को अच्छी तरह साफ कर लें और लाल कपड़ा बिछा दें. इसके बाद इस कपड़े पर कुछ चावल रख दें. जौ को मिट्टी के चौड़े बर्तन में बो दें. अब इस पर पानी से भरा कलश रखें. कलश पर कलावा बांधें. इसके अलावा कलश में सुपारी, एक सिक्का और अक्षत डालें. अब ऊपर लाल चुनरी में लपेटा हुआ नारियल रखें और अशोक या आम के पत्ते रखें. मां दुर्गा का ध्यान करें. इसके बाद दीप जलाकर पूजा शुरू करें.पूजा का पहला दिननवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा का प्रथम रूप मानी जाने वाली शैलपुत्री सौभाग्य और शांति की देवी हैं. कहा जाता है नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से सभी प्रकार के सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.







.jpg)

.jpg)




.jpg)
.jpg)











.jpg)