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सेबी बोर्ड बैठक में अहम फैसले, स्टार्टअप आईपीओ और पीएसयू डिलिस्टिंग के नियमों को सरल किया

   नई दिल्ली।  भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शेयर बाजार ढांचे पर अनुपालन बोझ कम करने के लिए कई कदम उठाने की घोषणा की। सेबी ने बुधवार को  जिन अहम उपायों की घोषणा की उनमें स्टार्टअप संस्थापकों को ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) सौंपते समय ईसॉप और तथाकथित अनिवार्य रूप से परिवर्तनीय प्रतिभूतियां रखने की अनुमति देना शामिल हैं। सेबी ने यह भी कहा कि इस कदम से उन कंपनियों को मदद मिलेगी जो ‘रिवर्स फ्लिपिंग’ की योजना बना रही हैं। रिवर्स फ्लिपिंग वह प्रक्रिया है जिसमें कोई कंपनी विदेश से अपने मूल देश में वापस आ जाती है।सेबी ने प्रवर्तकों को डीआरएचपी से एक साल पहले जारी ईसॉप उनके पास रखने की अनुमति दी है। मगर डीआरएचपी सौंपने की प्रक्रिया के दौरान नए ईसॉप जारी नहीं किए जाएंगे।

सेबी ने विदेशी वेंचर अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (एआईएफ) और सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों के नियंत्रण वाले शेयरों को न्यूनतम प्रवर्तक आवश्यकताओं के रूप में मान्यता दे दी।
सेबी बोर्ड की बैठक में क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन पर तो चर्चा नहीं हुई मगर सेबी चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने कहा कि बाजार नियामक ने शुल्कों को अलग करने पर विचार करने के लिए एक कार्यशील समूह का गठन किया है।
सेबी ने नैशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) प्रकरण से जुड़े ब्रोकरों के लिए एक निपटान योजना को भी मंजूरी दे दी है। वेंचर कैपिटल फंडों के लिए भी एक निपटान योजना शुरू की गई है।
सेबी ने ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के लिए एक अलग स्वैच्छिक गैर-सूचीबद्धता (शेयर बाजार से हटने) ढांचा पेश करने का फैसला किया जिनमें सरकार के पास 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है। इसके साथ ही बोर्ड ने उन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए अनुपालन नियमों को आसान बनाने का फैसला किया, जो केवल भारत सरकार के बॉन्ड (आईजीबी) में निवेश करते हैं। सेबी ने निदेशकों और प्रमुख प्रबंध कर्मचारियों सहित चुनिंदा शेयरधारकों के लिए आईपीओ दस्तावेज दाखिल करने से पहले डीमैट रूप में शेयर रखना भी अनिवार्य कर दिया है।
भारत सरकार के बॉन्ड में निवेश करने वाले एफपीआई के लिए नियम सरल एवं नियामकीय अनुपालन सुगम बनाने का फैसला किया गया। सेबी के इस कदम का उद्देश्य भारत में अधिक दीर्घकालिक बॉन्ड निवेशकों को आकर्षित करना है। फिलहाल विदेशी निवेशक तीन रास्तों – सामान्य, स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग (वीआरआर) और पूर्ण सुलभ मार्ग (एफएआर) के जरिये भारतीय ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। इनमें से वीआरआर और एफएआर अधिक बंदिशों के बगैर निवेश की अनुमति देते हैं। जी-सेक में निवेश करने वाले एफपीआई के लिए स्वीकृत छूट के तहत ऐसे एफपीआई के लिए अनिवार्य केवाईसी समीक्षा की अवधि को आरबीआई के प्रावधानों के अनुरूप बनाया जाएगा। 

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