फिल्म के लिए सेंसर बोर्ड से जा भिड़े थे राज कपूर, क्या था 'सत्यम शिवम सुंदरम' का वो किस्सा?
मुंबई। राज कपूर एक ऐसा नाम जो भारतीय सिनेमा में शोमैन के नाम से जाने जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं, कि उन्होंने अपनी फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' को लेकर सेंसर बोर्ड से सीधी भिड़ंत ली थी? आइए जानते हैं, इसके पीछे की वजह क्या थी? वजह थी, फिल्म में दिखाई गई बोल्डनेस और खासकर जीनत अमान के किरदार की पार्शियल न्यूडिटी.
राज कपूर का मानना था, कि महिलाओं की खूबसूरती को दिखाना अश्लीलता नहीं, बल्कि कला का हिस्सा है. उन्होंने इस मुद्दे पर काफी खुलकर अपनी राय दी थी, और ये बातें सामने आई थीं, उनकी बेटी ऋतु नंदा द्वारा लिखी गई किताब 'राज कपूर: द वन एंड ओनली शोमैन' में...
किताब में राज कपूर का एक चर्चित बयान है, "700 मिलियन बच्चे पैदा करने वाले देश को न्यूडिटी से क्या दिक्कत?, हम न्यूडिटी से चौंक जाते हैं. हमें बड़ा होना चाहिए. जिस देश ने सात सौ मिलियन बच्चे पैदा किए हैं, वहां लोग पार्शियल न्यूडिटी से चौंक जाते हैं! हम इतने ढोंगी क्यों हैं? बच्चे पेड़ों पर नहीं उगते. वे बिस्तर पर बनते हैं.''उनका कहना था, कि अगर गांवों तक सिनेमा ले जाना है, तो उन्हें ऐसा कंटेंट देना होगा जो मनोरंजन करे, ना कि हिंसा या हथियारों की तरफ मोड़े. उन्होंने कहा, ''हर तरफ पोस्टरों पर बंदूक और तलवारें दिखती हैं. ऐसे देश में जो अहिंसा का पुजारी है, ये ज्यादा खतरनाक है या मेरी फिल्म?''
जब फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' सेंसर बोर्ड के पास गई, तो राज कपूर ने खुलकर सवाल किया, "आप किसे ज्यादा नुकसानदेह मानते हैं? मेरी फिल्म को या उन हिंसात्मक पोस्टरों को जिनकी आप इजाजत देते हैं?"
"अगर फेलिनी करें तो कला, मैं करूं तो शोषण क्यों?"
राज कपूर पर अकसर महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करने के आरोप लगे, खासकर उनकी फिल्मों 'राम तेरी गंगा मैली', 'बॉबी' और 'सत्यम शिवम सुंदरम' को लेकर, लेकिन उन्होंने कहा कि वो महिलाओं का सम्मान करते हैं, और उनका मकसद कभी भी शोषण नहीं रहा.उन्होंने सवाल उठाया, ''अगर इटली के मशहूर डायरेक्टर फेडरिको फेलिनी महिलाओं को न्यूड दिखाते हैं, तो वो कला बन जाती है, लेकिन मैं वही करूं तो शोषण क्यों?''
बोल्ड फिल्मों के जरिए पेश किया एक अलग नजरिया
राज कपूर ने 70 के दशक में जिस तरह महिलाओं के किरदारों को पर्दे पर उतारा, वो उस समय के लिए काफी क्रांतिकारी था. चाहे 'बॉबी' की टीनएज लव स्टोरी हो या 'सत्यम शिवम सुंदरम' में दिखाया गया सौंदर्य बनाम चरित्र का द्वंद्व, उन्होंने हमेशा कुछ अलग और सोचने पर मजबूर करने वाला दिखाने की कोशिश की. राज कपूर सिर्फ एक फिल्ममेकर नहीं थे, बल्कि वो अपने समय से आगे सोचते थे. उन्होंने समाज के ढोंग पर सवाल उठाया और कला के जरिए अपनी बात कहने की पूरी आजादी मांगी. 'सत्यम शिवम सुंदरम' सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक विचार था, जिसके पीछे खड़े थे, एक बेबाक और बेखौफ राज कपूर.
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