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 अखिल भारतीय फिल्में बांध लेने वाली कहानियों पर नहीं दे रही हैं जोर: राम गोपाल वर्मा

 मुंबई । ‘सिवा' के जरिये तमिल फिल्मों में पदार्पण करने वाले निर्माता-निर्देशक राम गोपाल वर्मा का कहना है कि आज की कई अखिल भारतीय फिल्में दर्शकों को बांध लेने वाली कहानियों के बजाय आंख को भाने वाले तड़क-भड़क भरे पक्षों पर अधिक जोर दे रही हैं। वर्मा अगले महीने ‘सिवा और इसका हिन्दी संस्करण ‘शिवा' थिएटरों में फिर से जारी करेंगे। हैदराबाद में जन्मे फिल्म निर्माता ने कहा कि उनकी 1989 की पहली फिल्म समय की कसौटी पर खरी उतरी है क्योंकि इसमें नायक को एक सामान्य व्यक्ति के रूप में दिखाया गया था। फिल्म में नागार्जुन ने एक कॉलेज छात्र की भूमिका निभाई थी, जो स्थानीय गुंडों, राजनेताओं और एक भ्रष्ट छात्र नेता के गठजोड़ से मुकाबला करता है। वर्मा ने ‘ कहा, "तथाकथित बड़े बजट और अखिल भारतीय फिल्मों के साथ मेरी समस्या यह है कि ये कहानी को प्रभावी बनाने के लिए परिवेश में विश्वसनीयता लाने करने के बजाय, पूरा जोर निर्माण संबंधी पक्षों को दिखाने में लगा देते है। मुझे लगता है कि वे गलत दिशा में जा रहे हैं। वे आपको स्थानों, सेट और हर प्रकार के स्टंट से प्रभावित करना चाहते हैं।" फिल्म "शिवा" के एक लोकप्रिय दृश्य का उदाहरण देते हुए वर्मा ने कहा कि लोगों को आज भी वह पल याद है जब नागार्जुन का किरदार गली में गुंडों से लड़ने के लिए साइकिल की चेन तोड़ता है। उनके अनुसार, नायक सिर्फ एक साधारण आदमी था जो असाधारण परिस्थितियों में पहुंच गया था।

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