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 हिंदू-मुस्लिम विवाद पैदा करने की कोशिश नहीं, सिर्फ तथ्य बता रहा हूं: ‘ताज स्टोरी' पर परेश रावल

 मुंबई । अभिनेता परेश रावल का कहना है कि फिल्म ‘द ताज स्टोरी' में कोई झूठ नहीं है और न ही यह हिंदू-मुस्लिम के बीच विभाजन पैदा करने का प्रयास है। उन्होंने दावा किया कि फिल्म में विश्व प्रसिद्ध स्मारक के बारे में सत्यापित तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं और इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। रावल ने उन तथ्यों के बारे में विस्तार से नहीं बताया जिन्हें फिल्म में प्रस्तुत किया जाना है, लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जो कुछ भी दिखाया गया है, वह शोध पर आधारित है, न कि मनगढ़ंत नाटक।
 एक न्यूज एजेंसी को दिए साक्षात्कार में  उन्होंने कहा, ‘‘हमारे सिनेमा में जगह-जगह बहुत सारा ‘छल-कपट' और झूठ होता है। यहाँ कोई झूठ नहीं, सिर्फ़ तथ्य हैं... जब स्क्रिप्ट आई, तो मैंने उसे पढ़ा और मुझे यह पसंद आई। मुझे उसमें जो सबसे ज़्यादा पसंद आया, वह था उसका शोध। बाद में, मैंने कुछ दोस्तों से तथ्यों की पुष्टि की और पाया कि यह सच था।'' स्वर्णिम ग्लोबल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रस्तुत इस फिल्म का निर्देशन तुषार अमरीश गोयल ने किया है और इसका निर्माण सीए सुरेश झा ने किया है। हालांकि, फिल्म की वास्तविक कहानी अब भी अस्पष्ट है, लेकिन निर्माताओं ने पहले दिए गए एक बयान में कहा था कि यह फिल्म ‘‘ताजमहल के 22 सीलबंद दरवाजों के पीछे छिपे सवालों और रहस्यों को'' उठाती है। निर्माताओं ने दावा किया कि फिल्म ‘‘भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय प्रस्तुत करने का वादा करती है जिसे पहले कभी किसी ने प्रस्तुत करने का साहस नहीं किया''। इस महीने की शुरुआत में फिल्म का पहला पोस्टर उस समय विवादों में घिर गया था, जब उसमें रावल के किरदार को ताजमहल का गुंबद हटाते और उसमें से भगवान शिव की मूर्ति निकलते दिखाया गया था। रावल ने कहा, ‘‘पोस्टर के पीछे का विचार यह है कि लोगों के बीच एक खास धारणा है कि यह ताजमहल नहीं है। कुछ लोग इसे ‘तेजो महालय' कहते हैं। इसलिए प्रचार के दृष्टिकोण से, अगर आप इसे देखें, तो प्रचार का मुख्य उद्देश्य ध्यान आकर्षित करना, रुचि, इच्छा और फिर कार्रवाई करना है, जो एक एआईडीए सिद्धांत है।''
उन्होंने विवाद के बारे में कहा, ‘‘जब लोग इसे देखेंगे तो उन्हें आश्चर्य होगा कि क्या हो रहा है। लेकिन जब आप वास्तव में फिल्म देखेंगे तो आपको समझ आएगा कि ऐसा कुछ भी नहीं है।'' तेजो महालय अवधारणा सिद्धांत के अनुसार, ताजमहल मूल रूप से एक हिंदू मंदिर था, जिस पर बाद में मुगलों ने कब्जा कर लिया। इसका श्रेय मुख्यतः पी.एन. ओक को दिया जाता है, जिन्होंने अपनी 1989 की पुस्तक ‘ताजमहल: द ट्रू स्टोरी' में दावा किया था कि दुनिया भर के कई प्रमुख स्मारक कभी हिंदू मंदिर थे। ताजमहल के मामले में, ओक ने तर्क दिया कि यह मूल रूप से एक शिव मंदिर और राजपूत महल था जिसे ‘तेजो महालय' कहा जाता था। उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर यह घोषित करने का आग्रह किया था कि यह स्मारक एक हिंदू राजा द्वारा निर्मित था, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया था। यह पूछे जाने पर कि क्या किसी स्मारक को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किए जाने पर सवाल उठाना सही है, रावल ने कहा, ‘‘हम ताजमहल के सौंदर्यपरक पहलू या उसकी सुंदरता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। हम केवल इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि वास्तव में क्या हुआ था और इसका निर्माण कैसे हुआ।'' उन्होंने कहा, ‘‘जब आप ताजमहल देखते हैं, तो यह अद्भुत रूप से सुंदर है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। इसकी कलात्मक प्रतिभा पर कोई सवाल ही नहीं उठता। फिल्म में, जब एक किरदार कहता है, ‘क्या हमें इसे तोड़ देना चाहिए?' तो मेरा किरदार जवाब देता है, ‘नहीं, मैं इस पर एक खरोंच भी नहीं चाहता।' यह वाकई एक खूबसूरत संरचना है!'' रावल ने कहा, ‘‘फिल्म देखने के बाद आपको सबकुछ समझ आ जाएगा। लेकिन हाँ, जब आप कुछ सवाल उठाते हैं, तो लोगों की जिज्ञासा बढ़ती है। दरअसल, मुझे लगता है कि पर्यटन बढ़ेगा।'' अभिनेता ने यह भी कहा कि वह इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देते कि लोगों ने अब तक फिल्म को कैसी प्रतिक्रिया दी है। ‘द ताज स्टोरी' में ज़ाकिर हुसैन, अमृता खानविलकर, स्नेहा वाघ और नमित दास जैसे कलाकार भी हैं। यह फिल्म शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी।  

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