जन्मदिन विशेष : 83 बरस की हुईं माला सिन्हा
1957 में आई फिल्म ‘प्यासा’ की स्क्रिप्ट पहले मधुबाला के लिए लिखी गई थी. लेकिन किसी वजह से मधुबाला इस फिल्म में काम नहीं कर पाईं और ये फिल्म माला सिन्हा को मिल गई. इस फिल्म ने माला की किस्मत बदल दी.
मुंबई: ‘रूख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर’, साल 1968 की फिल्म ‘मेरे हुजूर’ का ये गाना आज भी लोगों के जेहनों में यादगार है. जिसकी दो वजह हैं. पहली- रफी साहब की आवाज और दूसरी- इसकी हीरोइन माला सिन्हा की अदाएं. जी हां, इस गाने में माला फिल्म के हीरो जीतेंद्र से तंग आकर गुस्से में बैठी बेहद दिलकश नजर आ रही हैं. आज इन्हीं खूबसूरत अदाकारा का जन्मदिन है. 83वें जन्मदिन पर भी उनके चेहरे पर आज भी वही चमक बरकरार है.
80 के दशक की मशहूर एक्ट्रेस माला सिन्हा ने फिल्म इंडस्ट्री को कई हिट फिल्में दीं. माला सिन्हा उस जमाने में दर्शकों के दिलों पर राज करती थीं. 11 नवंबर 1936 को जन्मीं एक्ट्रेस ने पांच दशक तक सिनेमा जगत में काम किया.
माला के बचपन का नाम आल्डा था. जब वह स्कूल जाती थीं तो उनके दोस्त उन्हें ‘डालडा’ कहकर पुकारते थे. इसलिए उन्होंने बाल कलाकार के रूप में अपना पहला काम पाने के लिए अपना नाम बदलकर बेबी नाज़मा रख लिया. बाद में, एक वयस्क अभिनेत्री के रूप में, उन्होंने अपना नाम बदल कर माला सिन्हा रख लिया.
माला सिन्हा ने बंगाली फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की. प्रख्यात बंगाली निर्देशक अर्धेंदु बोस ने उनके अभिनय को एक स्कूल प्ले में देखा और उनके पिता से अपनी सिनेमाई पहली बंगाली फिल्म ‘रोशनआरा’ (1952) में बतौर नायिका उन्हें लेने की अनुमति ली.
माला एक बंगाली फिल्म के सिलसिले में मुंबई आई थीं. यहां उनकी मुलाकात अपने जमाने की फेमस एक्ट्रेस गीता बाली से हुई. उन्होंने ही माला को डायरेक्टर केदार शर्मा से मिलवाया. केदार शर्मा को माला बहुत पसंद आईं और उन्होंने अपनी फिल्म ‘रंगीन रातें’ में बतौर अभिनेत्री माला को काम दिया.हालांकि फिल्मों में काम करने से पहले माला रेडियो के लिए गाती थीं. वह ऑल इंडिया रेडियो की स्वीकृत गायिका थीं, लेकिन उन्होंने कभी फिल्मों में पार्श्व गायन नहीं किया. एक गायिका के रूप में, उन्होंने 1947 से 1975 तक कई भाषाओं में स्टेज शो किए हैं.1957 में आई फिल्म ‘प्यासा’ की स्क्रिप्ट पहले मधुबाला के लिए लिखी गई थी. लेकिन किसी वजह से मधुबाला इस फिल्म में काम नहीं कर पाईं और ये फिल्म माला सिन्हा को मिल गई. इस फिल्म ने माला की किस्मत बदल दी.
शरारती अंदाज से भी माला दर्शकों के दिलों को जीत चुकी हैं.साल 1959 में बी.आर. बैनर तले यश चोपड़ा के निर्देशन में फिल्म आई ‘धूल का फूल’. इस फिल्म में दर्शकों ने माला का अलग रूप देखा. यश चोपड़ा के ट्रीटमेंट से माला का किरदार ऐसा उभरा कि उन्हें चारों ओर से वाहवाही मिली.
‘मेरे हुजूर’ और ‘प्यासा’ जैसी फिल्मों से उन्होंने सभी के दिलों पर अपनी गहरी छाप छोड़ी.जब फिल्म ‘जहांआरा'(1964) का मुहूर्त हुआ, तो अनेक लोगों ने शंका जताई कि मुस्लिम कल्चर की इस फिल्म में वह क्रिश्चियन लड़की के किरदार के साथ न्याय कर पाएंगी या नहीं. लेकिन ‘जहांआरा’ में माला के अभिनय को सराहा गया.
उनकी शानदार एक्टिंग को काफी सराहा गया.फिल्म ‘मेरे हुजूर’ में माला ने दो प्रेमियों के बीच उलझी नारी के द्वंद्व को इतने उम्दा तरीके से निभाया कि सामने राजकुमार जैसे अभिनेता के होने के बावजूद वह डटी रहीं.फिल्म ‘बहू-बेटी’ में वह जवान विधवा बनी और समाज की बुरी निगाहों से अपने को बचाए रखा. ‘बहारें फिर भी आएंगी’ में उन्होंने साबित किया कि डायरेक्टर भले ही कमजोर हो, वह अपने सशक्त अभिनय से फिल्म को यादगार बनाएंगी. रामानंद सागर की फिल्म ‘आंखें’ भी माला की बेहतरीन फिल्मों में से एक है.माला ने ग्लैमर-गर्ल के साथ पारिवारिक गंभीर फिल्मों के बीच संतुलन कायम करते हुए अपना करियर जारी रखा. बीस साल के अभिनय करियर में उन्होंने अस्सी से ज्यादा फिल्मों में काम कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.83वें जन्मदिन पर भी उनके चेहरे पर आज भी वही चमक बरकरार है.फिल्म ‘मर्यादा’, ‘गीत’ और ‘होली आई रे’ जैसी फिल्मों में माला को परम्परागत भूमिकाएं निभानी पड़ीं. इसलिए ये फिल्में माला के करियर को ऊंचाइयां तो नहीं दे पाईं, मगर माला से दर्शक निराश नहीं हुए.
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