भारत सैन्य अंतरिक्ष सिद्धांत पर कर रहा काम, तीन महीने में सामने आने की उम्मीद: सीडीएस
नयी दिल्ली .प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने सोमवार को कहा कि भारत एक ‘‘सैन्य अंतरिक्ष सिद्धांत'' पर काम कर रहा है, जिसे दो से तीन महीने में सामने लाए जाने की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘‘हम राष्ट्रीय सैन्य अंतरिक्ष नीति पर भी काम कर रहे हैं।' सीडीएस ने यहां भारतीय रक्षा अंतरिक्ष संगोष्ठी के तीसरे संस्करण में अपने उद्घाटन भाषण में हाल के वर्षों में देश द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में किए गए सुधारों और रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी के कार्यों पर जोर दिया। रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी बाहरी अंतरिक्ष में भारत के हितों की रक्षा करने और अंतरिक्ष युद्धों के खतरों से निपटने के लिए क्षमताओं को विकसित करने वाली प्रमुख एजेंसी है। जनरल चौहान ने कहा कि मानवता ऐसे युग के मुहाने पर खड़ी है, जहां अंतरिक्ष क्षेत्र युद्ध के एक नए मैदान के रूप में उभर रहा है। सीडीएस ने ‘‘अंतरिक्ष संस्कृति'' विकसित करने की भी वकालत की, जिसमें सिद्धांत, अनुसंधान और समर्पित युद्ध विद्यालय विकसित करने जैसे तत्व शामिल हों। उन्होंने रक्षा और अंतरिक्ष विशेषज्ञों की सभा में कहा, ‘‘रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी एक सैन्य अंतरिक्ष सिद्धांत लाने पर काम कर रही है, और उम्मीद है कि यह दो या तीन महीने में सामने आ जाएगा। हम एक राष्ट्रीय सैन्य अंतरिक्ष नीति पर भी काम कर रहे हैं।'' चौहान ने रक्षा क्षेत्र के लिए 52 उपग्रहों के समूह को सरकार की मंजूरी का भी उल्लेख किया, जिनमें से 31 उपग्रह निजी क्षेत्र द्वारा निर्मित किए जाएंगे। उन्होंने कहा, ‘‘हम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही उद्देश्यों के लिए 52 से अधिक उपग्रहों को प्रक्षेपित करने जा रहे हैं।'' सीडीएस ने कहा कि रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी वर्तमान सीमाओं को कम करने और ‘‘भविष्य के लिए खुद को तैयार करने'' के लिए एक एकीकृत उपग्रह संचार ग्रिड पर काम कर रही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संभावित खतरों की पहचान करने के वास्ते सैन्य अंतरिक्ष अभियान महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि ये खतरे राज्य द्वारा प्रायोजित या राज्य से इतर तत्वों से उत्पन्न हो सकते हैं। सीडीएस ने कहा, ‘‘हमारे कुछ प्रतिद्वंद्वियों की क्षमताएं तेजी से बढ़ रही हैं। उन्होंने एक विशेष अंतरिक्ष बल बनाया है, उन्होंने कक्षा में कौशल प्रदर्शन किया है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इन पर नजर रखें क्योंकि वे जोखिम-शमन रणनीति का हिस्सा हैं।'' उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीयों के रूप में तथा ‘‘ज्ञान और अनुसंधान के माध्यम से अंतरिक्ष का सम्मान करने वाली संस्कृति के रूप में, हमें स्वयं को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है।'' भारतीय रक्षा अंतरिक्ष संगोष्ठी का आयोजन ‘इंडियन स्पेस एसोसिएशन' (आईएसपीए) द्वारा मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान में किया गया। सदियों से सैन्य चरित्र किस प्रकार विकसित हुआ है तथा युद्ध में समुद्री और अंतरिक्ष संस्कृतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इस पर प्रकाश डालते हुए सीडीएस ने कहा कि अतीत में ‘‘समुद्री संस्कृति'' के कारण ही पुर्तगाली, स्पेनिश, अंग्रेज या डच लोग विश्व पर हावी रहे होंगे। सीडीएस ने कहा, ‘‘इसी तरह, अंतरिक्ष संस्कृति ने अमेरिका और यूरोपीय देशों को हवाई क्षेत्र में वर्चस्व स्थापित करने में मदद की। इन दोनों ही क्षेत्रों का युद्ध पर स्थायी प्रभाव पड़ा है। सैन्य शक्ति वास्तव में इस विशेष संस्कृति के विकास और इसके लिए क्षमताओं के निर्माण के इर्द-गिर्द केंद्रित रही।'' जनरल चौहान ने कहा, ‘‘और आज हम एक ऐसे युग के मुहाने पर हैं, जहां अंतरिक्ष क्षेत्र युद्ध के एक नए मैदान के रूप में उभर रहा है, और यह युद्ध पर हावी होने जा रहा है। युद्ध के सभी तीन प्राथमिक तत्व (भूमि, समुद्र, वायु) अंतरिक्ष पर निर्भर होंगे।'' उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, जब हम कहते हैं कि अंतरिक्ष का इन तीन तत्वों पर प्रभाव पड़ने वाला है, तो यह महत्वपूर्ण है कि हम अंतरिक्ष को समझें। यह भविष्य में युद्ध की बुनियादी संरचना का निर्माण करने जा रहा है।'' सीडीएस ने रेखांकित किया कि अंतरिक्ष संस्कृति ‘‘अंतरिक्ष के उपयोग पर नउ विचारों'' के बारे में है, जो नयी क्षमताओं के निर्माण की दिशा में ‘‘आगे बढ़ेगी''। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि अंतरिक्ष, ब्रह्मांड या ब्रह्मांड विज्ञान के बारे में बात करना हमेशा रोमांचक होता है।
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