देश में मातृ मृत्यु दर 130 प्रति लाख जन्मों से उल्लेखनीय रूप से घटकर 93 हो गई : केंद्र सरकार
नई दिल्ली। भारत में सतत विकास लक्ष्य 2030 की प्राप्ति की दिशा में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में लगातार गिरावट का रुख देखा जा रहा है। मातृ मृत्यु दर अनुपात (एमएमआर) में उल्लेखनीय कमी आई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, यह 2014-16 में प्रति लाख जन्मों पर 130 से 37 अंक घटकर 2019-21 में 93 हो गई है। वहीं, शिशु मृत्यु दर 2014 में 39 प्रति 1000 जन्मों से घटकर 2021 में 27 प्रति 1000 जन्मों पर आ गई। नवजात मृत्यु दर 2014 में 26 प्रति 1000 जन्मों से घटकर 2021 में 19 प्रति 1000 जन्मों पर आ गई। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 2014 में 45 प्रति 1000 जन्मों से घटकर 2021 में 31 प्रति 1000 जन्मों पर आ गई है, प्रजनन दर 2021 में 2.0 पर स्थिर है। इसके अतिरिक्त जन्म के समय लिंग अनुपात 899 से सुधरकर 913 हो गया है।
भारत के महापंजीयक (आरजीआई) द्वारा 7 मई, 2025 को जारी नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में प्रमुख मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य संकेतकों में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है।एसआरएस पर आधारित भारत में मातृ मृत्यु दर पर विशेष बुलेटिन, 2019-21 के अनुसार, देश के मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में उल्लेखनीय कमी आई है। यह 2014-16 में प्रति लाख जन्मों पर 130 से 37 अंक घटकर 2019-21 में 93 हो गई है। इसी प्रकार, नमूना पंजीकरण प्रणाली सांख्यिकीय रिपोर्ट 2021 के अनुसार, शिशु मृत्यु दर संकेतकों में गिरावट का रुझान जारी रहा। देश की शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 2014 में प्रति 1000 जन्मों पर 39 से घटकर 2021 में प्रति 1000 जन्मों पर 27 हो गई है।
वहीं, नवजात मृत्यु दर (एनएमआर) 2014 में प्रति 1000 जन्मों पर 26 से घटकर 2021 में प्रति 1000 जन्मों पर 19 हो गई है। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (यू5एमआर) 2014 में प्रति 1000 जन्मों पर 45 से घटकर 2021 में प्रति 1000 जन्मों पर 31 हो गई है। जन्म के समय लिंग अनुपात 2014 में 899 से सुधरकर 2021 में 913 हो गया है। कुल प्रजनन दर 2021 में 2.0 पर स्थिर है, जो 2014 में 2.3 से उल्लेखनीय सुधार है।
एसआरएस 2021 रिपोर्ट के अनुसार, देश में केरल (20), महाराष्ट्र (38), तेलंगाना (45), आंध्र प्रदेश (46), तमिलनाडु (49), झारखंड (51), गुजरात (53), कर्नाटक (63)।
राज्य पहले ही एमएमआर (2030 तक <=70) का एसडीजी लक्ष्य प्राप्त कर चुके हैं।
वहीं, बारह (12) राज्य/केंद्र शासित प्रदेश पहले ही यू5एमआर (2030 तक <=25) का एसडीजी लक्ष्य प्राप्त कर चुके हैं- केरल (8), दिल्ली (14), तमिलनाडु (14), जम्मू और कश्मीर (16), महाराष्ट्र (16), पश्चिम बंगाल (20), कर्नाटक (21), पंजाब (22), तेलंगाना (22), हिमाचल प्रदेश (23), आंध्र प्रदेश (24) और गुजरात (24)।
इसके अलावा, 6 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश पहले ही एनएमआर का एसडीजी लक्ष्य (वर्ष 2030 तक <=12) प्राप्त कर चुके हैं, जिसमें शामिल हैं -केरल (4), दिल्ली (8), तमिलनाडु (9), महाराष्ट्र (11), जम्मू और कश्मीर (12) और हिमाचल प्रदेश (12)।
दरअसल, सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य योजनाओं को गरिमापूर्ण, सम्मानजनक और उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी देने के लिए एकीकृत किया गया है। यह पूरी तरह से निःशुल्क है। इसमें देखभाल से इनकार करने के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई गई है। वहीं, आयुष्मान भारत विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य आश्वासन पहल है जो प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक का वार्षिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करती है, जिससे वित्तीय सुरक्षा और आवश्यक सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित होती है।
केंद्रित सहयोग यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक गर्भवती महिला को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में निःशुल्क परिवहन, दवा, निदान और पोषण सहायता के साथ-साथ सीजेरियन सेक्शन सहित नि:शुल्क संस्थागत प्रसव का अधिकार हो। समावेशी और न्यायसंगत पहुँच सुनिश्चित करने के लिए, मंत्रालय ने मातृत्व प्रतीक्षा गृह, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य (एमसीएच) विंग, प्रसूति उच्च निर्भरता इकाइयाँ (एचडीयू)/गहन देखभाल इकाइयाँ (आईसीयू) नवजात शिशु स्थिरीकरण इकाइयाँ (एनबीएसयू), बीमार नवजात शिशु देखभाल इकाइयाँ (एसएनसीयू), माँ-नवजात शिशु देखभाल इकाइयाँ, और जन्म दोषों की जाँच के लिए समर्पित कार्यक्रम स्थापित करके स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी मजबूत किया है।
वहीं, समय से पहले प्रसव के लिए प्रसवपूर्व कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स की व्यवस्था, निरंतर सकारात्मक वायुमार्ग दबाव (सीपीएपी) का उपयोग, और सुनने और दृष्टि की जांच के लिए संरचित अनुवर्ती जैसी प्रमुख नैदानिक व्यवस्थाएं नवजात शिशु के जीवित रहने के परिणामों में सुधार करने में योगदान करती हैं। इन उपायों से सालाना लगभग 300 लाख सुरक्षित गर्भधारण और 260 लाख स्वस्थ जीवित जन्म होते हैं।
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