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भीषण गर्मी से बचने के लिए मिट्टी की दीवारें, चेक डैम और नीम के पत्तों का इस्तेमाल कर रहे ग्रामीण

नयी दिल्ली. भारत में भीषण गर्मी के आगामी मौसम से निपटने की तैयारियों के बीच गर्मी की मार झेलने वाले राज्यों के ग्रामीण समुदाय बढ़ते तापमान से खुद को बचाने के लिए पारंपरिक और कम लागत वाले समाधानों की ओर रुख कर रहे हैं। ग्रामीण लोग ‘चेक डैम' बनाने से लेकर देसी पेड़ लगाने और दिनचर्या में बदलाव करने समेत गर्मी से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर उपाय कर रहे हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और राजस्थान समेत उत्तरी और पश्चिमी भारत के राज्यों में लू वाले दिनों की संख्या में 7-8 दिन तक की वृद्धि होने का अनुमान है। देश के सबसे गर्म जिलों में शामिल मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में पिछले साल तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया था। मध्यप्रदेश के मंडला जिले के बीजाडांडी ब्लॉक की मालती यादव को वह समय याद है जब उनके छोटे से गांव में पानी एक दुर्लभ चीज हो गई थी। उन्होंने कहा, "हमारे गांव में गंभीर जल संकट था। जो लोग पहले जाग जाते थे उन्हें पानी मिल जाता था, बाकी लोगों को नहीं मिलता था।" बड़वानी के राजपुर ब्लॉक के भागसुर गांव की निवासी सीमा नरगावे ने बताया कि रात 9-10 बजे तक तो दीवारों में भी आग सी लगती रहती है। हालांकि, मालती और सीमा जैसे कई ग्रामीण आगामी गर्मी से बचने के लिए पारंपरिक ज्ञान पर आधारित और कम लागत वाले समाधानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। आज, मालती और उसके स्वयं सहायता समूह की अन्य महिलाएं चेक डैम बनाने और गांव के छह तालाबों को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम कर रही हैं। उन्होंने कहा, "अब हम भूजल और अपने पंप को रिचार्ज करने के लिए वर्षा जल का भंडारण करते हैं। गर्मियों में भी सभी के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध है।" सीमा ने बताया कि परिवार गर्मी से बचने के लिए ईंट और मिट्टी के घरों और पारंपरिक वास्तुकला की ओर रुख कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "हम अपने मिट्टी के घरों को गाय के गोबर से लीपते हैं और हवा की बेहतर आवाजाही के लिए 'अरहर के डंठल' से छोटे छप्पर वाले कमरे बनाते हैं।" सीमा ने कहा, "हमारी भैंसों की त्वचा गर्मी से जल जाती है और वे दूध देना बंद कर देती हैं। बात केवल पशुओं की नहीं है। लोग, विशेषकर महिलाएं भी परेशान हैं - वे काम करने, खाना पकाने या अत्यधिक गर्मी के दौरान बाहर निकलने में असमर्थ हैं।" सीमा का परिवार पशुओं को ठंडा रखने के लिए नीम के पत्तों और सूती कपड़ों का इस्तेमाल करता है।
झारखंड के गढ़वा जिले में, 40 वर्षीय कुंती देवी जैसे किसान अब दोपहर की कड़ी धूप से बचने के लिए सूर्योदय से पहले ही अपना कामकाज शुरू कर देते हैं। उन्होंने बताया, "पूर्वाह्न 10 बजे तक खेतों में मुझे चक्कर आने लगते हैं।”
आश्रय न होने और अनियमित जल आपूर्ति के कारण, वह और उनके पड़ोसी प्राकृतिक उपचारों पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा, "हम छाछ पीते हैं, हल्का भोजन करते हैं और पेड़ की छाया में रहने की कोशिश करते हैं क्योंकि गर्मी असहनीय हो जाती है।" भीषण गर्मी और कृषि संकट के लिए जाने जाने वाले उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में किसान गर्मी से बचने के लिए बेर, नीम और आम जैसे गहरी जड़ों वाले देसी पेड़ों की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के ललितपुर के एक छोटे किसान घमंडी लाल ने कहा कि यह भी मुश्किल होता जा रहा है।
उन्होंने कहा, "पौधे खरीदना महंगा है, और चूंकि पशुधन की संख्या कम हो गई है, इसलिए हमें अब पर्याप्त गोबर (खाद) भी नहीं मिलता है। यह एक चक्र है, गर्मी हमारी फसलों और उससे लड़ने की हमारी क्षमता को खत्म कर रही है।" महाराष्ट्र के बोबलवाड़ी गांव में साकेला भटनागर घरों को ठंडा रखने के लिए टिन की छतों पर आम व पलाश के पत्ते बिछाती हैं। उन्होंने कहा, "हम न केवल व्यवसाय के लिए बल्कि छाया के लिए भी सीताफल और आम जैसे पेड़ लगाते हैं।कई जिलों में अधिकारी इस तात्कालिकता को समझ रहे हैं।
ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रमुख विश्वास चितले ने कहा, "सरकारी सलाह के अनुसार अब येलो और ऑरेंज हीटवेव अलर्ट के दौरान दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक बाहर रहकर कामकाज करने पर पाबंदी है।” उन्होंने कहा, "लेकिन हमें और आगे बढ़ना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे संवेदनशील लोगों की सुरक्षा के लिए ठंडे आश्रय स्थलों, स्वच्छ पेयजल और थर्मल विश्राम स्थल बनाने की आवश्यकता है।

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