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न्यायालय ने मथुरा में बांके बिहारी मंदिर गलियारा विकसित करने संबंधी योजना को मंजूरी दी

 नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को मथुरा में श्री बांके बिहारी मंदिर गलियारे को विकसित करने की उत्तर प्रदेश सरकार की योजना का मार्ग प्रशस्त कर दिया और इससे श्रद्धालुओं को फायदा मिलेगा। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें कहा गया था कि श्री बांके बिहारी मंदिर की निधि का इस्तेमाल केवल मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि खरीदने और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बनाये गये निरुद्ध क्षेत्र (होल्डिंग एरिया) बनाने के लिए किया जाए। इसने कहा, ‘‘हम उत्तर प्रदेश राज्य को इस योजना को पूरी तरह से लागू करने की अनुमति देते हैं। बांके बिहारी जी ट्रस्ट के पास देवता/मंदिर के नाम पर सावधि जमा है...राज्य सरकार को प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण के लिए सावधि जमा में पड़ी राशि का इस्तेमाल करने की अनुमति है।'' उच्चतम न्यायालय ने हालांकि कहा कि मंदिर और गलियारा बनाने के लिए अधिग्रहित की जाने वाली भूमि देवता/ट्रस्ट के नाम पर होनी चाहिए। इस प्रक्रिया में, इसने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आठ नवंबर, 2023 के आदेश को संशोधित किया, जिसमें राज्य की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार किया गया था, लेकिन राज्य को मंदिर की निधि का इस्तेमाल करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था। पीठ ने कहा कि चूंकि न्यायालय ब्रज क्षेत्र में मंदिरों के प्रशासन और सुरक्षा के मुद्दे पर विचार कर रहा है, इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए मुद्दे पर शीघ्र निर्णय लेना जनहित में है। मंदिर के विकास के लिए राज्य द्वारा पेश प्रस्तावित योजना के तहत, अदालत ने कहा कि मंदिर के चारों ओर पांच एकड़ भूमि अधिग्रहित की जानी थी और उस पर पार्किंग स्थल, भक्तों के लिए आवास, शौचालय, सुरक्षा जांच चौकियां और अन्य सुविधाएं स्थापित कर उसे विकसित किया जाना है। उच्च न्यायालय ने 8 नवंबर, 2023 को अपने आदेश में कहा था कि मंदिर के आसपास की भूमि का अधिग्रहण और उसके परिणामस्वरूप विकास परियोजना तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को गलियारा विकसित करने में 500 करोड़ रुपये से अधिक की लागत आएगी और उसने संबंधित भूमि खरीदने के लिए मंदिर की निधि का उपयोग करने का प्रस्ताव रखा था, जिसे उच्च न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने मथुरा में बांके बिहारी मंदिर की दयनीय स्थिति और उचित प्रशासन एवं सुविधाओं के अभाव की ओर ध्यान दिलाया। इसने कहा कि मंदिर केवल 1,200 वर्ग फुट के सीमित क्षेत्र में फैला हुआ है और यहां प्रतिदिन 50,000 श्रद्धालु आते हैं और यह संख्या सप्ताहांत में 1.5 से 2 लाख और त्योहारों के दौरान पांच लाख से अधिक होती है। सरकार ने कहा कि उत्तर प्रदेश ब्रज योजना एवं विकास बोर्ड अधिनियम, 2015 मथुरा जिले में ब्रज क्षेत्र विरासत के विकास, संरक्षण और रखरखाव के लिए लागू किया गया था। इसने कहा कि अधिनियम के तहत क्षेत्र के मंदिरों के प्रशासन के लिए आवश्यक विशेषज्ञता वाली एक परिषद गठित की गई है और तदनुसार इसकी सेवाओं का उपयोग इन मंदिरों के लिए प्रशासक नियुक्त करने के लिए किया जा सकता है। दूसरी ओर, पीठ ने कहा कि एक दीवानी मुकदमा 25 वर्षों से अधिक समय से लंबित है और केवल ‘कोर्ट रिसीवर' ही मामले को चला रहा है, जो दर्शाता है कि ‘‘कुप्रशासन'' ‘‘गहरा और व्यापक'' है। पीठ ने इसे ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण'' पाया कि ‘रिसीवर' नियुक्त करते समय अदालतों ने इस बात पर विचार नहीं किया कि मथुरा और वृंदावन वैष्णव संप्रदायों के लिए दो सबसे पवित्र स्थान हैं और इसलिए, ‘‘वैष्णव संप्रदायों के व्यक्तियों को ‘रिसीवर' के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए।''

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