भारतीय शहरों को जलवायु जोखिमों से निपटने को 2050 तक 2,400 अरब डॉलर की जरूरत: रिपोर्ट
नयी दिल्ली. भारतीय शहर बाढ़, बढ़ते तापमान और अन्य जलवायु संबंधी जोखिमों के प्रति लगातार संवेदनशील होते जा रहे हैं और 2050 तक मजबूत और कम कार्बन उत्सर्जन वाले बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए 2,400 अरब डॉलर से अधिक के निवेश की आवश्यकता होगी। मंगलवार को जारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय शहरों में आर्थिक वृद्धि के केंद्र बनने की काफी संभावनाएं हैं और 2030 तक 70 प्रतिशत नई नौकरियां शहरों से आएंगी। ‘भारत में मजबूत और समृद्ध शहरों की ओर' शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘प्रतिकूल मौसम की घटनाओं के प्रभावों से निपटने और भविष्य में अरबों डॉलर के नुकसान को रोकने के लिए शहरों को समय पर कदम उठाने की आवश्यकता है।'' आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ साझेदारी में तैयार की गई
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘‘वर्षा से संबंधित बाढ़ से होने वाला वार्षिक आर्थिक नुकसान वर्तमान में चार अरब डॉलर आंका गया है। अगर कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाये गये, तो 2030 तक यह बढ़कर पांच अरब डॉलर और 2070 तक 14 से 30 अरब डॉलर के बीच हो सकता है।'' रिपोर्ट के अनुसार, शहरों का ज्यादातर विस्तार ‘बाढ़ प्रभावित और अत्यधिक गर्मी से प्रभावित संवेदनशील क्षेत्रों' में हो रहा है। रिपोर्ट में दिल्ली, चेन्नई, सूरत और लखनऊ को, खासकर संवेदनशील क्षेत्रों में बस्तियों के विस्तार के कारण अधिक तापमान के प्रभावों और बाढ़ के जोखिमों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील शहरों में चिह्नित किया गया है। इसमें कहा गया है, ‘‘दिल्ली में, बढ़ते तापमान और शहरी बाढ़ से जुड़े जोखिम हैं। गर्मी का दबाव भी बढ़ने की आशंका है। 1983 और 2016 के बीच, भारत के 10 सबसे बड़े शहरों में खतरनाक स्तर के तापमान के संपर्क में 71 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह सालाना 4.3 अरब से बढ़कर 10.1 अरब व्यक्ति-घंटे हो गया।'' रिपोर्ट में गर्मी से लोगों की मृत्यु पर चिंता जताई गई है।
इसमें कहा गया है, ‘‘अगर उत्सर्जन मौजूदा स्तर पर जारी रहा, तो 2050 तक गर्मी से संबंधित मौतों की सालाना संख्या 1,44,000 से बढ़कर 3,28,000 से ज्यादा हो सकती है। अधिक तापमान से दबाव की स्थिति के कारण भारत के प्रमुख शहरों में लगभग 20 प्रतिशत कार्य घंटे बर्बाद हो सकते हैं।'' रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल तापमान में कमी लाने के उपायों से ही भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 0.4 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है और 2050 तक सालाना 1,30,000 लोगों की जान बचाई जा सकती है।
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