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हिमाचल में बहुपति प्रथा के पीछे ज़मीन बचाना और परिवार को जोड़े रखना है मुख्य कारण

शिमला/ हिमाचल प्रदेश में बहुपति प्रथा (एक महिला के कई पति होना) कोई नई बात नहीं है। इस परंपरा से जुड़े कई जानकारों का कहना है कि राज्य के कुछ हिस्सों में यह प्रथा इसलिए चली आ रही है ताकि परिवार एकजुट रहे और ज़मीन का बंटवारा न हो। यह पुरानी परंपरा एक बार चर्चा में तब आई जब सिरमौर जिले के ट्रांसगिरी क्षेत्र के शिलाई गांव में हाटी जनजाति के दो भाइयों ने हाल ही में एक ही महिला से शादी की। राजस्व, बागवानी और जनजातीय मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा, ‘‘यह कोई नई परंपरा नहीं है। बहुपति प्रथा प्राचीन जनजातीय परंपरा और संस्कृति का हिस्सा रही है, जिसका उद्देश्य जमीन को बंटने से बचाना है। यह प्रथा किन्नौर और सिरमौर जिले के कुछ हिस्सों में आज भी प्रचलित है।'' नेगी किन्नौर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक हैं।
 सुनीता चौहान नामक महिला ने प्रदीप और कपिल नेगी से शादी की और कहा कि उन्हें इस परंपरा पर गर्व है और उन्होंने यह निर्णय संयुक्त रूप से लिया है। शिलाई विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले उद्योग मंत्री हर्षवर्धन ने कहा, ‘‘यह परंपरा पुरानी है और शिलाई में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां ऐसी शादी नहीं हुई होगी।'' हिमाचल प्रदेश के राजस्व कानून इस परंपरा को मान्यता देते हैं, जिसे ‘‘जोड़ीदारा'' कहा जाता है। इस परंपरा को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 494 और 495 के तहत भी मान्यता प्राप्त है। हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री वाई.एस. परमार ने इस परंपरा पर शोध किया था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से ‘‘हिमालय में बहुपति प्रथा: सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि'' विषय पर पीएच.डी की थी। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में डॉ. वाई एस परमार पीठ के पूर्व अध्यक्ष ओ पी शर्मा ने  बताया, ‘‘वाई.एस. परमार के शोध के अनुसार, बहुपति प्रथा हिमालय के सभी पांच खंडों कश्मीर से लेकर नेपाल तक प्रचलित थी। इस प्रथा के पीछे मनोवैज्ञानिक, जैविक और आर्थिक कारण थे।'' शर्मा ने कहा कि योद्धा समुदाय के कुछ वर्ग विशेषकर खासू और टोड यह मानते हैं कि महाभारत के पांडव उनके पूर्वज हैं और वे स्वेच्छा से इस परंपरा को आज भी निभाते हैं। उन्होंने कहा कि परमार ने बिगड़े लिंगानुपात के आंकड़ों का हवाला दिया था, जिसमें दिखाया गया था कि लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कम थी। शर्मा ने कहा, ‘‘छोटी जमीनों को एकसाथ बनाए रखना और शादियों में कम खर्च होना इस परंपरा के पीछे के आर्थिक कारण थे।'' विधि के छात्र कृष्ण प्रताप सिंह ने कहा, ‘‘अगर सह-जीवन साथी संबंध को स्वीकार किया जा सकता है तो फिर सदियों पुरानी परंपराओं से दिक्कत क्यों? मेरे गांव कोटी (सिरमौर ज़िला) में 15-20 ऐसे परिवार हैं, जहां एक महिला की शादी एक से ज़्यादा पुरुषों से हुई है और हम चाहते हैं कि यह परंपरा आगे भी बनी रहे।'' बलमा देवी ने कहा, ‘‘ऐसे विवाह में परिवार के रिश्ते मजबूत रहते हैं और ज़मीन भी बंटने से बची रहती है।'' संत राम ने कहा, ‘‘बहुपति प्रथा एक पुरानी परंपरा है जिसमें भाईचारा बना रहता है और खर्चे भी ठीक से संभाले जा सकते हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘हम चार भाइयों की शादी दो महिलाओं से हुई है।''
 हाटी समुदाय हिमाचल प्रदेश-उत्तराखंड सीमा पर रहने वाला एक सघन समुदाय है, जिसे तीन साल पहले अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था। इस जनजाति में बहुपति प्रथा सदियों से प्रचलित थी, लेकिन अब महिलाओं में बढ़ती साक्षरता और समुदाय की आर्थिक स्थिति में सुधार के चलते इसके मामले पहले की तरह सामने नहीं आते, क्योंकि यह एक बेहद साधारण रस्म हुआ करती थी। हाटी समुदाय की प्रमुख संस्था केंद्रीय हाटी समिति के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने कहा कि यह परंपरा हजारों साल पहले इसलिए शुरू की गई थी ताकि परिवार की खेती की जमीन का आगे विभाजन न हो सके। उन्होंने  बताया कि इस परंपरा का एक और उद्देश्य संयुक्त परिवार में भाईचारा और आपसी समझ को बढ़ावा देना था, जहां कभी-कभी अलग-अलग माताओं से जन्मे दो या अधिक भाइयों की शादी भी एक ही दुल्हन से कराई जाती थी। इस प्रथा का तीसरा कारण सुरक्षा की भावना है।
 शास्त्री ने कहा, ‘‘यदि आपका परिवार बड़ा है और उसमें अधिक पुरुष हैं तो आप आदिवासी समाज में अधिक सुरक्षित हैं।'' उन्होंने कहा कि यह परंपरा दूर-दराज़ के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में बिखरी हुई कृषि ज़मीन की देखभाल और खेती के लिए मददगार होती है, क्योंकि ऐसी ज़मीन को संभालने के लिए लंबे समय तक पूरे परिवार की आवश्यकता होती है।

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