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आयुर्वेदिक कफ सिरप और घरेलू उपचार बच्चों के लिए सुरक्षित : विशेषज्ञ

नयी दिल्ली.  बच्चों को दी जाने वाली खांसी की दवाइयों की गुणवत्ता को लेकर चिंता के बीच विशेषज्ञों का मानना है कि आयुर्वेदिक उपचार पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी विकल्प है। भारतीय चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े अखिल भारतीय चिकित्सक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. आर.पी. पाराशर ने कहा कि आयुर्वेदिक कफ सिरप, जड़ी-बूटियां और घरेलू उपचार दो साल से अधिक उम्र के बच्चों को बिना किसी डर के दिए जा सकते हैं। यह टिप्पणी मध्यप्रदेश में कथित जहरीले कफ सिरप के सेवन से कई बच्चों की मौत के बीच की गई है।
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) ने तीन अक्टूबर को सभी राज्यों को एक परामर्श जारी कर दो वर्ष से कम आयु के बच्चों को खांसी और सर्दी की दवाइयां देने पर प्रतिबंध लगा दिया था। परामर्श के अनुसार, आमतौर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप नहीं देने की सलाह दी जाती है। पांच साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को किसी भी प्रकार की दवा देने के बाद उसका सावधानीपूर्वक नैदानिक ​​मूल्यांकन, कड़ी निगरानी और उचित खुराक, कम से कम अवधि और कई दवाओं के संयोजन से बचने के सख्त पालन के बाद किया जाना चाहिए। परामर्श में बच्चों के लिए कफ सिरप के विवेकपूर्ण और तर्कसंगत नुस्खे पर भी जोर दिया गया।
डा. पाराशर ने बताया कि छह माह से कम उम्र के बच्चों को खांसी, जुकाम या ठंड लगने पर उनकी छाती पर हल्के गर्म घी या तेल से मालिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा, "बच्चों की माताओं को ऐसे खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए जिसकी प्रकृति ठंडी होती हैं और शरीर में 'कफ' और 'दोष' बढ़ाते हैं। छह महीने से अधिक उम्र के बच्चों को तुलसी, अदरक, लौंग, काली मिर्च और खजूर के साथ दूध उबालकर पिलाया जा सकता है।" उन्होंने बताया कि यह दूध उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा और खांसी-जुकाम से तुरंत राहत प्रदान करेगा। आयुर्वेदिक कफ सिरप तुलसी, मुलेठी, काकड़सिंगी, भारंगी, पुष्करमूल, बहेड़ा, पुदीना, पिप्पली, काली मिर्च, दालचीनी, तेजपत्ता जैसी जड़ी-बूटियों से बनाए जाते हैं। डा. पाराशर ने बताया कि इनका बच्चों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। इसके अलावा, बच्चों को सितोपलादि चूर्ण और तालिशादि चूर्ण शहद में मिलाकर दिया जा सकता है या वासावलेह और अगस्त्य हरीतकी जैसी औषधियाँ भी दी जा सकती हैं। उन्होंने बताया कि ये सभी औषधियां बच्चों के लिए पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी हैं।
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एम्स) के निदेशक डा. प्रदीप कुमार प्रजापति ने बताया कि आहार और जीवनशैली में मामूली बदलाव से खांसी और जुकाम से बचा जा सकता है या उसका इलाज किया जा सकता है। प्रजापति ने कहा, "मौसम में बदलाव के दौरान होने वाली एलर्जी के कारण बच्चे कई बार खांसी और जुकाम से पीड़ित हो जाते हैं। खान-पान और जीवनशैली में मामूली बदलाव से खासकर एलर्जी के कारण होने वाली खांसी और जुकाम से बचा जा सकता है और उसका इलाज भी किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में हल्दी वाला गर्म दूध काफी फायदेमंद साबित होता है। कई मामलों में भाप लेना पर्याप्त होता है।"

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