अमेरिका सहित कुछ देश तेल और गैस का इस्तेमाल कम करने में बाधा डाल रहे: रिपोर्ट
नयी दिल्ली. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित चार विकसित देश पेरिस समझौते के बाद से तेल और गैस का इस्तेमाल चरणबद्ध ढंग से खत्म करने में बाधा डाल रहे हैं। मंगलवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और नॉर्वे इस दिशा में प्रगति को पटरी से उतारने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। दूसरी ओर बाकी दुनिया ने जीवाश्म ईंधन उत्खनन को या तो धीमा कर दिया है या कम कर दिया है। शोध संस्थान ऑयल चेंज इंटरनेशनल ने ‘‘ग्रह विध्वंसक: पेरिस समझौते के बाद से वैश्विक उत्तरी देश हालात को बिगाड़ रहे'' शीर्षक वाली रिपोर्ट में यह बात कही।
इसमें कहा गया कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और नॉर्वे ने मिलकर 2015 और 2024 के बीच अपने तेल और गैस उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि की, जबकि शेष विश्व में कुल मिलाकर उत्खनन में दो प्रतिशत की गिरावट आई। पेरिस समझौते के बाद से तेल और गैस उत्खनन में हुई शुद्ध वैश्विक वृद्धि में अकेले अमेरिका का योगदान 90 प्रतिशत से अधिक रहा है। इससे प्रतिदिन लगभग 1.1 करोड़ बैरल तेल के बराबर उत्पादन बढ़ा है, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में पांच गुना से भी अधिक है। प्रमुख उत्पादकों में ऑस्ट्रेलिया का उत्पादन 77 प्रतिशत बढ़ा, जबकि कनाडा और नॉर्वे ने क्रमशः 28 प्रतिशत और सात प्रतिशत उत्पादन बढ़ाया। इसके विपरीत सऊदी अरब, अल्जीरिया और कतर जैसे कई वैश्विक दक्षिण देशों ने उत्पादन को स्थिर रखा है या इसे कम कर दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये देश तेल और गैस राजस्व पर कहीं अधिक निर्भर हैं, फिर भी वे जीवाश्म ईंधन से दूर जाने के लिए अमीर देशों की तुलना में अधिक संयम बरत रहे हैं। ऑयल चेंज इंटरनेशनल के वैश्विक नीति प्रमुख रोमेन इउआलेन ने कहा, ‘‘10 साल पहले पेरिस में, देशों ने तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का वादा किया था, जो जीवाश्म ईंधन के विस्तार और उत्पादन को खत्म किए बिना असंभव है। जलवायु संकट के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार अमीर देशों ने यह वादा नहीं निभाया है। इसके बजाय, उन्होंने आग में घी डाला है और आवश्यक धनराशि रोक दी है।''


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