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दिवाली के दौरान कार्बाइड गन से आंखों में चोट लगने के मामले पहली बार एम्स-दिल्ली में आये

 नयी दिल्ली. दिवाली के दौरान कार्बाइड गन से आंख चोटिल होने के मामले पहली बार दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में आये हैं और विशेषज्ञों ने ऐसे रासायनिक पटाखों के निर्माण, बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। चिकित्सकों के अनुसार, इस साल पटाखों से आंखों की चोट के मामले में एम्स स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। उन्होंने बताया कि आंखों की चोट के 190 मामले यहां आये, जिनमें से 18-20 चोट के मामले कार्बाइड गन के थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र की प्रमुख डॉ. राधिका टंडन ने बताया कि पिछले साल दिवाली के दौरान 160 लोगों ने नेत्र संबंधी चोटों के लिए प्रमुख राष्ट्रीय रेफरल संस्थान में उपचार का अनुरोध किया था। डॉ. टंडन ने कहा, ‘‘इस बार यह संख्या बढ़कर 190 हो गई है और त्योहार के बाद भी मरीजों के आने का सिलसिला जारी है। यह पिछले साल की तुलना में आंखें चोटिल होने के मामलों में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।" उन्होंने कहा, "इस बार एक परेशान करने वाला रुझान यह देखने को मिला कि रासायनिक जलन जैसी गंभीर चोटें सामने आई हैं। 190 मामलों में से 18-20 मरीज कार्बाइड गन से सीधे जुड़ी आंखों की चोट के इलाज के लिए अस्पताल आए।'' ये कार्बाइड गन पीवीसी पाइप से बनायी जाती है। कैल्शियम कार्बाइड के पानी के साथ प्रतिक्रिया करके एसिटिलीन गैस बनती है और इसमें चिंगारी के संपर्क में आने पर विस्फोट होता है। पाइप से निकलने वाले प्लास्टिक के टुकड़े छर्रे की तरह छिटक कर गंभीर चोट पहुंचा सकते हैं। किसान पिछले कई सालों से इसका इस्तेमाल बंदरों और पक्षियों को भगाने के लिए करते आ रहे हैं। इस साल, यह बच्चों के हाथों में पटाखा बन गयी। विशेषज्ञों का कहना है कि कार्बाइड गन से होने वाले विस्फोट के बाद निकलने वाले धुएं से कई बाहरी कण कॉर्निया में धंस जाते हैं, जिससे आंखों को गंभीर चोटें पहुंचती है। विशेषज्ञों ने ऐसे खतरनाक उपकरणों के सख्त नियमन और निषेध की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है। यह मांग देश भर में, खासकर बच्चों में, रासायनिक पटाखों के कारण आंखों की गंभीर चोट के मामलों में वृद्धि के बीच आई है। दिवाली पर कार्बाइड गन के इस्तेमाल से लगी चोटों के कारण मध्य प्रदेश के भोपाल और पड़ोसी विदिशा जिले में 100 से अधिक लोग अस्पताल में भर्ती हुए, जिनमें अधिकतर 8 से 14 साल के बच्चे थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र की प्रोफेसर डॉ. नम्रता शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि बहुत से लोग ऑनलाइन वीडियो देखकर कार्बाइड गन बनाना सीख रहे हैं। उन्होंने आगाह किया कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने की ज़रूरत है और स्कूल स्तर पर जागरूकता गतिविधियां चलाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एम्स-दिल्ली में आंखों में चोट लगने के आये कुल 190 मामलों में से 44 प्रतिशत दिल्ली-एनसीआर से, जबकि 56 प्रतिशत पड़ोसी राज्यों, मुख्यतः उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों से आए थे। डॉक्टर ने बताया कि 17 प्रतिशत मरीज़ों की दोनों आंखों में चोट लगी थी, जो इन चोटों के उच्च जोखिम वाले स्वरूप को दर्शाता है।

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