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 हिंद-प्रशांत क्षेत्र को दबाव से मुक्त होना चाहिए, सामूहिक सुरक्षा हर देश की संप्रभुता की कुंजी: राजनाथ

नयी दिल्ली.। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को कहा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में कानून के शासन और नौवहन की स्वतंत्रता पर भारत का जोर किसी देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि सभी हितधारकों के हितों की रक्षा के लिए है। राजनाथ की यह टिप्पणी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों को लेकर वैश्विक स्तर पर बढ़ती चिंताओं की पृष्ठभूमि में आई है। कुआलालंपुर में आसियान के सदस्य देशों और समूह के वार्ता साझेदारों के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए राजनाथ ने कहा कि भारत का मानना ​​है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र खुला, समावेशी और किसी भी तरह के “दबाव” से मुक्त होना चाहिए। उन्होंने क्षेत्र के प्रत्येक राष्ट्र की संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिए “सामूहिक सुरक्षा” का दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया। राजनाथ ने कहा, “कानून के शासन पर भारत का जोर, खास तौर पर संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के पालन और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौवहन एवं उड़ान की स्वतंत्रता की उसकी वकालत, किसी देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि सभी क्षेत्रीय हितधारकों के सामूहिक हितों की रक्षा के लिए है।” उन्होंने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है, जब आसियान के कई सदस्य और लोकतांत्रिक देश विवादित दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के बीच यूएनसीएलओएस के लगातार पालन की मांग कर रहे हैं। आसियान रक्षा मंत्रियों के मीटिंग प्लस (एडीएमएम-प्लस) सम्मेलन को संबोधित करते हुए राजनाथ ने कहा कि दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के साथ भारत के रणनीतिक संबंध लेन-देन की प्रवृत्ति के नहीं हैं, बल्कि दीर्घकालिक और सिद्धांत-आधारित हैं तथा इस साझा विश्वास पर केंद्रित हैं कि क्षेत्र को खुला, समावेशी एवं “दबाव” मुक्त होना चाहिए। उन्होंने कहा, “भविष्य की सुरक्षा केवल सैन्य क्षमताओं पर निर्भर नहीं करेगी, बल्कि साझा संसाधनों के प्रबंधन, डिजिटल एवं भौतिक बुनियादी ढांचे की सुरक्षा और मानवीय संकटों के प्रति सामूहिक प्रतिक्रिया पर भी निर्भर करेगी।” रक्षा मंत्री ने कहा कि एडीएमएम-प्लस सम्मेलन रणनीतिक संवाद को व्यावहारिक परिणामों से जोड़ने और क्षेत्र को शांति एवं साझा समृद्धि की ओर ले जाने वाला सेतु बन सकता है। उन्होंने कहा, “भारत इस ढांचे में अपनी भूमिका को साझेदारी और सहयोग की भावना के नजरिये से देखता है। हमारा दृष्टिकोण लेन-देन वाला नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और सिद्धांत-आधारित है।” राजनाथ ने कहा, “हमारा मानना ​​है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र खुला, समावेशी और किसी भी तरह के दबाव से मुक्त होना चाहिए।” उन्होंने कहा, “आइए हम सब मिलकर आसियान के नेतृत्व वाले समावेशी क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे की रक्षा और मजबूती के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें, जिसने हमारे क्षेत्र की बहुत सराहनीय सेवा की है।” एडीएमएम-प्लस एक मंच है, जिसमें आसियान के 11 सदस्य देशों-ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलीपीन, सिंगापुर, थाईलैंड, तिमोर-लेस्ते और वियतनाम के अलावा समूह के आठ वार्ता साझेदार-भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, रूस तथा अमेरिका शामिल हैं। राजनाथ ने कहा कि भारत आपसी हितों के सभी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने, संवाद को बढ़ावा देने और मजबूत क्षेत्रीय तंत्र के जरिये शांति एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, “पिछले 15 वर्षों का अनुभव हमें कुछ बातें स्पष्ट रूप से सिखाता है, जैसे-समावेशी सहयोग प्रभावी होता है; क्षेत्रीय नियंत्रण वैधता लाता है और सामूहिक सुरक्षा हर व्यक्ति की व्यक्तिगत संप्रभुता को मजबूत करती है।” रक्षा मंत्री ने कहा, “आने वाले वर्षों में यही सिद्धांत एडीएमएम-प्लस और आसियान के प्रति भारत के दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करते रहेंगे।” उन्होंने कहा कि भारत अपने ‘महासागर' (क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक एवं समग्र उन्नति) दृष्टिकोण की भावना के अनुरूप इस प्रयास में रचनात्मक योगदान जारी रखने के लिए तैयार है। राजनाथ ने कहा, “भारत आसियान और एडीएमएम-प्लस देशों के साथ अपने रक्षा सहयोग को क्षेत्रीय शांति, स्थिरता तथा क्षमता निर्माण में योगदान के रूप में देखता है।” उन्होंने कहा कि एडीएमएम-प्लस ने पिछले 15 वर्षों में यह साबित कर दिया है कि विश्वास, समावेशिता और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित सहयोग न केवल आवश्यक है, बल्कि संभव भी है। राजनाथ ने कहा, “अब, इसके अगले चरण को इन पैमानों के अनुरूप उभरती वास्तविकताओं के हिसाब से ढलना होगा।” उन्होंने कहा, “एडीएमएम-प्लस का उदय हमारे क्षेत्र की बदलती सुरक्षा वास्तविकताओं को दर्शाता है। अब यह मंच साइबर खतरों, समुद्री क्षेत्र जागरूकता और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा जैसे नये क्षेत्रों में भी सक्रिय है।” राजनाथ ने कहा, “इस मंच ने यह साबित कर दिया है कि गैर-पारंपरिक सुरक्षा सहयोग राष्ट्रों के बीच विश्वास निर्माण का एक प्रभावी जरिया हो सकता है।” उन्होंने कहा कि भारत के लिए एडीएमएम-प्लस उसकी ‘एक्ट ईस्ट' नीति और व्यापक हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण का अभिन्न हिस्सा है। एडीएमएम-प्लस, आसियान के व्यापक ढांचे के अंतर्गत एक प्रमुख मंच है। भारत 1992 में आसियान का वार्ता साझेदार बना और एडीएमएम-प्लस का पहला सम्मेलन अक्टूबर 2010 में हनोई में आयोजित किया गया। राजनाथ ने कहा, “भारत ने जलवायु लचीलेपन को रक्षा सहयोग में एकीकृत करने की आवश्यकता पर हमेशा बल दिया है। पर्यावरणीय तनाव, संसाधनों की कमी और संघर्ष के बीच संबंध इस विषय को क्षेत्रीय सुरक्षा एजेंडे का एक अनिवार्य घटक बनाता है।” उन्होंने कहा कि भारत का हिंद-प्रशांत सुरक्षा दृष्टिकोण रक्षा सहयोग को आर्थिक विकास, प्रौद्योगिकी साझाकरण और मानव संसाधन की प्रगति से जोड़ता है। रक्षा मंत्री ने कहा, “सुरक्षा, विकास और स्थिरता के बीच परस्पर संबंधों की यह मजबूत कड़ी भारत और आसियान के बीच साझेदारी की मूल भावना है।” उन्होंने कहा कि मलेशिया की अध्यक्षता में “समावेशिता और स्थिरता” पर आसियान का जोर बेहद प्रासंगिक और समयानुकूल है। राजनाथ ने कहा, “सुरक्षा के संदर्भ में समावेशिता का अर्थ है कि सभी देश, चाहे उनका आकार या क्षमता कुछ भी हो, क्षेत्रीय व्यवस्था के निर्माण में समान भागीदार बनें और इससे लाभान्वित हों।” उन्होंने कहा, “स्थायित्व का अर्थ ऐसा सुरक्षा ढांचा बनाना है, जो झटकों के प्रति लचीला हो, नयी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार हो और अल्पकालिक संरेखण के बजाय दीर्घकालिक सहयोग पर आधारित हो।” राजनाथ ने सिंगापुर के रक्षा मंत्री चान चुन सिंग, न्यूजीलैंड की रक्षा मंत्री जूडिथ कोलिंस, वियतनाम के रक्षा मंत्री फान वान गियांग और दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री आह्न ग्यू-बैक के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय बैठकें भी कीं।

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