देश में सौर विनिर्माण क्षमता इस साल 125 गीगावाट पार कर जाने की उम्मीद: रिपोर्ट
नयी दिल्ली. देश में सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता 2025 तक 125 गीगावाट को पार कर जाने की उम्मीद है। यह लगभग 40 गीगावाट की घरेलू मांग से तीन गुना से भी अधिक है। वैश्विक शोध और परामर्श कंपनी वुड मैकेंजी ने यह बात कही है। यह वृद्धि सरकार की उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का नतीजा है, जिसने विनिर्माण के तेजी से बढ़ाने में मदद की है। हालांकि, उद्योग को अब अत्यधिक क्षमता के जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। यह अमेरिका को निर्यात में भारी गिरावट से और भी बढ़ गया है। अमेरिका के भारत पर 50 प्रतिशत जवाबी शुल्क के कारण 2025 की पहली छमाही में मॉड्यूल निर्यात में 52 प्रतिशत की गिरावट आई है। कई विनिर्माताओं ने अपनी अमेरिकी विस्तार योजनाओं को रोक दिया है और घरेलू बाजार पर फिर से ध्यान दे रहे हैं। वुड मैकेंजी ने आगाह किया है कि लागत को प्रतिस्पर्धी बनाए रखना एक चुनौती बनी हुई है।
आयातित सेल से असेंबल मॉड्यूल पूरी तरह से आयातित चीनी मॉड्यूल की तुलना में कम से कम 0.03 डॉलर प्रति वाट महंगे हैं। वहीं पूरी तरह से ‘मेड इन इंडिया' मॉड्यूल की कीमत सरकारी समर्थन के बिना उनके चीनी समकक्षों की तुलना में दोगुनी से भी अधिक हो सकती है। घरेलू उत्पादकों को समर्थन देने के लिए मॉडल और विनिर्माताओं की अनुमोदित सूची (एएलएमएम) और चीनी मॉड्यूल पर प्रस्तावित 30 प्रतिशत डंपिंग रोधी शुल्क सहित सुरक्षात्मक उपाय लागू किए जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में चीन की सौर आपूर्ति श्रृंखला का एक बड़े पैमाने पर विकल्प बनने की क्षमता है। लेकिन दीर्घकालिक सफलता अनुसंधान एवं विकास, प्रौद्योगिकी निवेश और अफ्रीका, लातिनी अमेरिका और यूरोप जैसे निर्यात बाजारों में विविधीकरण पर निर्भर करेगी। वुड मैकेंजी में सौर आपूर्ति श्रृंखला अनुसंधान प्रमुख याना ह्रीशको ने कहा, ‘‘भारत सरकार की पीएलआई योजना कारखानों में उत्पादन को बढ़ावा देने में बेहद कारगर रही है, लेकिन उद्योग अब तेजी से बढ़ती क्षमता को चेतावनी के संकेत के रूप में देख रहा है। यह चीन में हाल ही में कीमतों में आई गिरावट से पहले के संकेत जैसे ही हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘चुनौती क्षमता निर्माण से हटकर लागत-प्रतिस्पर्धी क्षमता हासिल करने और निर्यात बाजारों में विविधता लाने की हो गई है।''


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