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वन्दे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ: भारतीय सेना ने किया मां भारती को नमन

 नई दिल्ली।   राष्ट्रभक्ति और मातृभूमि के प्रति समर्पण के प्रतीक ‘वन्दे मातरम्’ की 150 वर्षों की गौरवशाली यात्रा को देश याद कर रहा है। आज शुक्रवार को ‘वन्दे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ के इस ऐतिहासिक अवसर पर भारतीय सेना ने मां भारती को नमन किया। बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1875 में रचित “वंदे मातरम्” केवल एक गीत नहीं था, यह वह जयघोष था जिसने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी और हर भारतीय के हृदय में राष्ट्रप्रेम की ज्वाला प्रज्वलित की।

 भारतीय सेना ने कहा
 भारतीय सेना ने वन्दे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर कहा, “बंकिम चंद्र चटर्जी की कलम से जन्मा, वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं – यह हमारी आत्मा की पुकार था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को जीवन दिया और राष्ट्रभक्ति को स्वर।” देश के सैन्य प्रतिष्ठानों, रेजिमेंटल केंद्रों और सीमा चौकियों व विभिन्न सैन्य अभियानों एवं आयोजनों में वंदे मातरम् गर्व के साथ गाया जाता है। सैनिक राष्ट्रध्वज फहराकर, इस गीत को सामूहिक रूप से गाते आए हैं और देश के प्रति अपनी निष्ठा का संकल्प दोहराते हैं।सेना ने अपने संदेश में कहा, “150 वर्षों बाद भी इसकी गूंज हर सैनिक के कदमों में, हर सलामी में, हर बलिदान में सुनाई देती है। वंदे मातरम् – माँ भारती के चरणों में समर्पित हर एक सैनिक के हृदय की अमर पुकार है।”
1882 में आनंदमठ उपन्यास में वन्दे मातरम् प्रकाशित हुआ था
गौरतलब है कि बंकिम चंद्र की कलम से जन्मा यह गीत करोड़ों देशवासियों की आत्मा की पुकार बना। इसने हमें गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने की शक्ति दी। आज भी ‘वंदे मातरम्’ हर सैनिक के दिल की अमर ध्वनि है। वंदे मातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी (1838–1894), 19वीं सदी के बंगाल की सबसे जानी-मानी हस्तियों में से एक थे। 19वीं सदी के दौरान बंगाल के बौद्धिक और साहित्यिक इतिहास में उनकी बहुत महत्‍वूपर्ण भूमिका है। एक जाने-माने उपन्‍यासकार, कवि और निबंधकार के तौर परउनके योगदान ने आधुनिक बंगाली गद्य के विकास और उभरते भारतीय राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
1882 में आनंदमठ उपन्यास में वन्दे मातरम् प्रकाशित हुआ था। यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बना। 1905 के बंग-भंग आंदोलन से लेकर 1947 की आजादी तक यह राष्ट्रभक्ति का सूत्रधार रहा। रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध किया था। यह देश की सभ्यतागत, राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना का अभिन्न अंग बन चुका है।
150 वर्षों बाद भी वंदे मातरम् भारत की आत्मा में जीवित है
आज 150 वर्षों बाद भी वंदे मातरम् भारत की आत्मा में जीवित है। हर सैनिक की चाल में, हर ध्वज की लहर में और हर भारतीय की सांस में बसता है। यह देश की सभ्यतागत, राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना का अभिन्न अंग बन चुका है।

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