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भारत-रूस संबंध वैश्विक स्तर पर ‘सबसे स्थिर' संबंधों में से एक है: जयशंकर

नयी दिल्ली. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को कहा कि भारत-रूस साझेदारी पिछले 70-80 वर्षों में ‘‘सबसे स्थिर और अहम संबंधों'' में से एक रही है और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नयी दिल्ली यात्रा का उद्देश्य आर्थिक सहयोग पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए इन संबंधों को ‘‘फिर से परिभाषित'' करना था। जयशंकर ने इस विचार से असहमति जताई कि पुतिन की यात्रा भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर जारी वार्ताओं को जटिल बना सकती है। जयशंकर ने ‘हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट' में कहा, ‘‘नहीं, मैं आपसे असहमत हूं। मुझे लगता है कि हर कोई जानता है कि भारत के दुनिया के सभी प्रमुख देशों के साथ बेहतर संबंध हैं।'' जयशंकर से पूछा गया था कि क्या पुतिन की नयी दिल्ली की दो दिवसीय यात्रा का प्रस्तावित व्यापार समझौते के लिए अमेरिका के साथ वार्ता पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि किसी भी देश की ऐसी अपेक्षा उचित नहीं है कि उसे यह कहने या दखल देने का हक है कि हमारे दूसरे देशों के साथ रिश्ते कैसे हों।'' उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि याद रखिए, दूसरे देश भी वही अपेक्षा कर सकते हैं। मेरा मानना है कि हमने हमेशा स्पष्ट किया है कि हमारे अनेक देशों के साथ संबंध हैं। हमारे पास अपनी पसंद की आजादी है।” जयशंकर ने कहा, ‘‘हम जिसे रणनीतिक स्वायत्तता कहते हैं, उसके बारे में लगातार बात करते रहे हैं और वह जारी भी है। मुझे समझ नहीं आता कि किसी के पास इसके विपरीत अपेक्षा करने का कोई कारण क्यों होना चाहिए।'' विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि ट्रंप प्रशासन का ध्यान व्यापार पर रहा है और कहा कि इस दिशा में भारत का दृष्टिकोण पूरी तरह से राष्ट्रीय हितों से प्रेरित है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि इस समय व्यापार सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह स्पष्ट रूप से वाशिंगटन की सोच का केन्द्र बिन्दु है, यह पहले की सरकारों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, जिसे हमने पहचाना है और हम इसका सामना करने के लिए तैयार हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हम उचित शर्तों पर इसका सामना करने के लिए तैयार हैं। मेरा मतलब है, आपमें से जो लोग सोचते हैं कि कूटनीति का मतलब किसी और को खुश करना है, तो माफ कीजिए, मेरी कूटनीति की यह धारणा नहीं है। मेरे लिए, कूटनीति का मतलब हमारे राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है।'' अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत का भारी-भरकम शुल्क (टैरिफ) लगा दिया है, जिसमें नयी दिल्ली द्वारा रूसी कच्चे तेल की खरीद पर 25 प्रतिशत शुल्क भी शामिल है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष वर्तमान में प्रस्तावित व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि हमारे अपने-अपने व्यापारिक हितों के लिए एक समाधान बिंदु हो सकता है जिसपर दोनों पक्ष समहमत हों। जाहिर है, इस पर कठिन बातचीत होगी क्योंकि इसका इस देश में आजीविका पर असर पड़ेगा।'' जयशंकर ने कहा, ‘‘आखिरकार, हमारे लिए मजदूरों, किसानों, छोटे व्यवसायों और मध्यम वर्ग के हित ही मायने रखते हैं। जब हम अमेरिका जैसे देश के साथ व्यापार समझौते पर विचार करते हैं, तो आपको अपनी स्थिति और प्रस्ताव पर रखी जाने वाली बातों को लेकर बेहद विवेकपूर्ण होना चाहिए।'' राष्ट्रपति पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा पर जयशंकर ने कहा कि भारत जैसे ‘‘बड़े'' और ‘‘उभरते'' देश के लिए अपनी पसंद की स्वतंत्रता के अनुरूप दुनिया में अधिक से अधिक देशों के साथ बेहतर सहयोग को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अगर आप भारत-रूस संबंधों को देखें, तो दुनिया ने पिछले 70-80 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। मैंने पहले भी कहा है और मैं इसे फिर से कहूंगा कि भारत और रूस के बीच संबंध दुनिया के सबसे स्थिर और मजबूत संबंधों में से एक रहे हैं।'' जयशंकर ने कहा, ‘‘यहां तक कि रूस के भी चीन, अमेरिका या यूरोप के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। इनमें से कई देशों के साथ हमारे संबंधों में भी उतार-चढ़ाव आए हैं।'' उन्होंने कहा कि किसी भी रिश्ते में यह स्वाभाविक है कि उसके कुछ पहलू विकसित होते हैं और कुछ नहीं। उन्होंने कहा, ‘‘रूस के मामले में, विभिन्न कारणों से जो हुआ, मुझे लगता है कि उन्होंने पश्चिम और चीन को अपने प्राथमिक आर्थिक साझेदार के रूप में देखा। हमने भी शायद यही सोचा था।'' जयशंकर ने कहा, ‘‘तो इस संबंध का आर्थिक पक्ष किसी न किसी तरह गति नहीं पकड़ पाया। आप इसे आंकड़ों में देख सकते हैं।” उन्होंने कहा कि पुतिन की यात्रा कई मायनों में संबंधों को पुनः परिभाषित करने के लिए थी। उन्होंने कहा कि उर्वरकों पर संयुक्त उद्यम पर सहमति एक अन्य प्रमुख उपलब्धि थी। उन्होंने कहा, ‘‘ब्राजील के बाद हम दुनिया के दूसरे सबसे बड़े उर्वरक आयातक हैं। यह हमारे सामने बार-बार आने वाली समस्या है। और इसलिए भी क्योंकि उर्वरक के स्रोत बहुत अस्थिर रहे हैं। इसलिए हमने उर्वरकों पर एक महत्वपूर्ण और ठोस संयुक्त उद्यम बनाने पर सहमति जताई है।'' चीन के साथ भारत के संबंधों पर जयशंकर ने कहा कि नयी दिल्ली ने जो मुख्य बात कही वह यह थी कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द अच्छे संबंधों के लिए पूर्व शर्त है और इसे बनाए रखा जा रहा है तथा इसे और मजबूत बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन ऐसा नहीं है कि संबंधों में यही एकमात्र मुद्दा था। कई अन्य मुद्दे भी थे, जिनमें से कुछ गलवान से पहले के थे। इसलिए व्यापार के मुद्दे हैं, निवेश के मुद्दे हैं, प्रतिस्पर्धा के मुद्दे हैं, सब्सिडी के मुद्दे हैं, निष्पक्षता के मुद्दे हैं, पारदर्शिता के मुद्दे हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘ये भी वास्तविक मुद्दे हैं। हम इनमें से कुछ को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। इनमें से कुछ सरल हैं, कुछ कठिन।'' पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि भारत की ज्यादातर समस्याएं उस देश की सेना से उत्पन्न होती हैं और उन्होंने आतंकवादी समूहों को उसके समर्थन का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जैसे अच्छे आतंकवादी और बुरे आतंकवादी होते हैं, वैसे ही अच्छे सैन्य नेता भी होते हैं और कुछ इतने अच्छे नहीं भी होते। उनकी टिप्पणी को मुनीर के संदर्भ में देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हमारे लिए पाकिस्तानी सेना की वास्तविकता हमेशा से यही रही है और हमारी अधिकांश समस्याएं वास्तव में उन्हीं से उत्पन्न होती हैं। जब आप आतंकवाद को देखते हैं, जब आप प्रशिक्षण शिविरों को देखते हैं, जब आप भारत के प्रति लगभग वैचारिक शत्रुता की नीति को देखते हैं, तो यह कहां से आती है? यह उस देश की सेना से आती है।'' जयशंकर ने कहा कि भारत और पाकिस्तान को बिल्कुल भी जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
 उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान की स्थिति पर गौर कीजिए। दोनों पक्षों की क्षमता, छवि और स्थिति में कितना अंतर है और साफ-साफ कहें तो उनकी प्रतिष्ठा देखिए। हमें जरूरत से ज्यादा जुनूनी होकर खुद को उनसे जोड़कर नहीं देखना चाहिए। यह एक चुनौती है, कुछ मुद्दे हैं जिनसे हमें निपटना होगा।'' बांग्लादेश के बारे में विदेश मंत्री ने कहा कि भारत उस देश का शुभचिंतक है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम एक लोकतांत्रिक देश के रूप में सोचते हैं, कोई भी लोकतांत्रिक देश लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से लोगों की इच्छा को सुनिश्चित होते देखना पसंद करता है।'' उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जो भी निकलेगा, उसमें संबंधों के बारे में संतुलित और परिपक्व दृष्टिकोण होगा और उम्मीद है कि चीजें बेहतर होंगी।'' यह पूछे जाने पर कि क्या बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में ही रहेंगी, उन्होंने कहा, ‘‘वह एक खास परिस्थिति में यहां आई थीं और मुझे लगता है कि उनके साथ जो कुछ भी हुआ, उसमें यही परिस्थिति एक कारक है। लेकिन फिर भी, इस संबंध में निर्णय उन्हें खुद ही करना होगा।''
 

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