एनडीएए के तहत बड़ी घोषणा: अमेरिका की परमाणु और हिंद-प्रशांत रणनीतियों में भारत प्रमुख भागीदार
नई दिल्ली। अमेरिका के नए रक्षा प्राधिकरण विधेयक (NDAA) में भारत को इंडो-प्रशांत क्षेत्र और परमाणु नीति में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है। विधेयक में कहा गया है कि अमेरिका भारत के साथ उसकी परमाणु दायित्व नीति पर निरंतर बातचीत करेगा और भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करेगा जो चीन की चुनौती का सामना करने के लिए नई रक्षा व्यवस्था तैयार कर रहे हैं।
अमेरिकी कांग्रेस के नेताओं ने वित्त वर्ष 2026 के लिए राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (NDAA) का संयुक्त मसौदा जारी किया है। इस अधिनियम में भारत को अमेरिका की कई रणनीतियों- जैसे नागरिक परमाणु सहयोग, रक्षा सह-उत्पादन और समुद्री सुरक्षा में विशेष स्थान दिया गया है। यह बिल छह दशकों से हर साल पारित होता आया है और इस सप्ताह के अंत में इसके हाउस से पारित होने की उम्मीद है।
विधेयक में एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि अमेरिका और भारत मिलकर एक संयुक्त परामर्श तंत्र स्थापित करेंगे, जो 2008 के नागरिक परमाणु समझौते के क्रियान्वयन की नियमित समीक्षा करेगा। साथ ही भारत के घरेलू परमाणु दायित्व नियमों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने पर चर्चा होगी। इसके अलावा, इन मुद्दों पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तर पर ‘‘एक रणनीति विकसित करने’’ का कार्य भी इसी तंत्र को सौंपा गया है। अमेरिका को पांच वर्षों तक हर साल इस समीक्षा की रिपोर्ट कांग्रेस में पेश करनी होगी।
विधेयक के अन्य हिस्सों में भारत को वैश्विक नागरिक परमाणु सहयोग में “सहयोगी देश” के रूप में चिन्हित किया गया है। कानून प्रशासन को अमेरिकी परमाणु निर्यात का विस्तार करने के लिए 10 वर्षीय रणनीति बनाने और रूस तथा चीन से होने वाली प्रतिस्पर्धा का विश्लेषण करने का निर्देश देता है।
इंडो-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े प्रावधानों में भारत को प्राथमिक सहयोगियों की सूची में शामिल किया गया है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस और न्यूजीलैंड भी हैं। इन देशों के साथ मिलकर रक्षा उद्योग, आपूर्ति श्रृंखला और नई तकनीकों पर संयुक्त कार्य को आगे बढ़ाया जाएगा।
अमेरिकी रक्षा मंत्री को इस दिशा में समझौते करने, तकनीकी सहायता प्रदान करने और उद्योग तथा शिक्षण संस्थानों को जोड़ने का अधिकार होगा, ताकि संयुक्त उत्पादन और विकास को प्रोत्साहन मिल सके।
संसद ने यह भी कहा है कि अमेरिका को क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वाड) सहित भारत के साथ अपना जुड़ाव बढ़ाना चाहिए, ताकि इंडो-प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला रखा जा सके। इसमें सैन्य अभ्यास, रक्षा व्यापार, मानवीय सहायता और समुद्री सुरक्षा शामिल हैं। चीन को रोकने के लिए अमेरिका अपनी क्षेत्रीय उपस्थिति और साझेदारी भी बढ़ाएगा।
विधेयक में भारतीय महासागर क्षेत्र के लिए एक विशेष राजदूत नियुक्त करने का प्रावधान भी है, जिसका कार्य इस क्षेत्र में अमेरिका की कूटनीति का समन्वय करना और चीन के प्रभाव का संतुलन तैयार करना होगा।इन सभी कदमों से स्पष्ट होता है कि भारत अब अमेरिका की क्षेत्रीय रणनीति का केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण साझेदार बन चुका है। हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग काफी मजबूत हुआ है।






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