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सुधा मूर्ति ने स्कूलों में ‘वंदे मातरम्' गायन अनिवार्य करने का आग्रह किया

 नयी दिल्ली.  राज्यसभा की मनोनीत सदस्य सुधा मूर्ति ने मंगलवार को सरकार से प्राथमिक और उच्च विद्यालयों में राष्ट्र गीत 'वंदे मातरम्' का गायन अनिवार्य करने का आग्रह किया। इस गीत की रचना की 150वीं वर्षगांठ पर उच्च सदन में हुई चर्चा में भाग लेते हुए मूर्ति ने कहा, ‘‘मैं यहां एक सांसद, समाजसेवी या लेखिका के रूप में नहीं खड़ी हूं। मैं यहां भारत माता की एक बेटी के रूप में खड़ी हूं।'' उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में इस गीत की भूमिका को याद करते हुए कहा, ‘‘जब भारत परतंत्र था, तो हमारा आत्मविश्वास डगमगा गया था और हम निराश थे।'' मनोनीत सदस्य ने कहा, ‘‘उस समय, वंदे मातरम् ज्वालामुखी के लावा की तरह फूट पड़ा। मैं हुबली के एक छोटे से कस्बे से हूं। मेरे दादाजी बताया करते थे कि यह ब्रिटिश राज के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक था। वंदे मातरम् में एक जादुई स्पर्श था।'' विद्यालयों में इस गीत को पढ़ाने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों को अगर यह नहीं पढ़ाया गया तो वे ‘वंदे मातरम्' का पूरा पाठ भूल जाएंगे।' मूर्ति ने शिक्षा विभाग से, खासकर प्राथमिक और उच्च विद्यालयों में, राष्ट्रीय गीत को अनिवार्य बनाने का अनुरोध किया। चर्चा में हिस्सा लेते हुए शिवसेना सदस्य मिलिंद देवरा ने कहा कि संगीतकार ए.आर. रहमान द्वारा ‘वंदे मातरम्' गीत की प्रस्तुति ने उन सभी लोगों को गलत साबित कर दिया है जो 88 साल पहले राष्ट्र गीत को छोटा करने के लिए ज़िम्मेदार थे। उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्' केवल हमारा राष्ट्र गीत नहीं है, बल्कि यह वास्तव में भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि आज वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य से कहना चाहेंगे कि ए.आर. रहमान का संस्करण एक गौरवान्वित भारतीय द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जो संयोग से एक मुसलमान भी हैं। शिवसेना सदस्य ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पूरा ‘वंदे मातरम्' कभी-कभी ही सुना जाता है।
 नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य चौधरी मोहम्मद रमज़ान ने कहा कि ‘वंदे मातरम्' गीत का जो अंश छोड़ा गया है, उसमें देवी-देवताओं की पूजा की बात है और इस्लाम मूर्ति पूजा की इजाजत नहीं देता। उन्होंने कहा, ‘‘हम हिंदू, ईसाई और सिखों का सम्मान करते हैं। अगर आप गाना चाहते हैं, गाए। हम इसका सम्मान करते हैं... इस्लाम देवी-देवताओं की पूजा की इजाज़त नहीं देता है। इसीलिए सिर्फ उन्हीं छंदों को लिया गया है।" उन्होंने मोहम्मद इक़बाल द्वारा रचित 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा' का भी जिक्र किया और कहा कि यह गीत एक मुसलमान ने उर्दू में लिखा है। 

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