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  श्रीराम के वो कौन वंशज थे जिन्होंने महाभारत युद्ध में कौरवों की तरफ से भाग लिया
 महाभारत के सन्दर्भ में एक प्रश्न बहुत प्रमुखता से पूछा जाता है कि क्या महाभारत के समय ऐसा कोई राजा था जो श्रीराम के वंश से सम्बंधित हो। तो इसका उत्तर है हाँ। महाभारत काल में श्रीराम के वंश के एक राजा थे जिन्होंने युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। उनका नाम था बृहद्बल।
 विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार बृहद्बल श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज थे। श्रीराम से 32वीं पीढ़ी में इनका जन्म हुआ और ये कोसल राज्य के अंतिम प्रतापी राजा माने जाते हैं।   ब्रह्मा से 66वीं पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ। उसके बाद श्रीराम के पुत्र कुश का कुल चला जिसमें श्रीराम से 32वीं पीढ़ी में बृहद्बल जन्में। इस प्रकार ब्रह्मा से 97वीं पीढ़ी में इनका जन्म हुआ।
 संक्षेप में यदि जानें तो ये क्रम इस प्रकार है: श्रीराम -> कुश -> अतिथि -> निषध -> नल -> नभस -> पुण्डरीक -> क्षेमधन्वा -> देवानीक -> अहीनगर -> रूप -> रुरु -> पारियात्र -> दल -> शल -> उक्थ -> वज्रनाभ -> शंखनाभ -> व्यथिताश्व -> विश्वसह -> हिरण्यनाभ -> पुष्य -> ध्रुवसन्धि -> सुदर्शन -> अग्निवर्णा -> शीघ्र -> मुरु -> प्रसुश्रुत -> सुगन्धि -> अमर्ष -> महास्वन -> विश्रुतावन्त -> बृहद्बल। 
 महाभारत काल में कोसल साम्राज्य पांच भागों में विभक्त हो गया। ये थे - उत्तर कोसल, दक्षिण कोसल, पूर्व कोसल, मध्य कोसल एवं मध्य कोसल का दक्षिणी भाग। पूर्व कोसल को जरासंध ने जीत लिया। बाद में भीम ने जरासंध का वध कर पूर्व कोसल को इंद्रप्रस्थ के आधीन कर लिया। मध्य कोसल वो भाग था जहां श्रीराम ने राज्य किया और महाभारत काल में भी अयोध्या उसकी राजधानी थी। उस समय धीर्गयाघ्न्य उसके राजा थे। राजसूय यज्ञ से पहले चारों पांडवों ने दिग्विजय किया और भीम ने अपने दिग्विजय के दौरान धीर्गयाघ्न्य को परास्त कर मध्य कोसल और उत्तर कोसल पर अधिकार कर लिया। 
 दक्षिण कोसल वो स्थान था जहां से श्रीराम की माता कौशल्या आती थी। ये श्रीराम का ननिहाल था। राजसूय यज्ञ से पहले अपने दिग्विजय के दौरान सहदेव ने दक्षिण कोसल पर अधिकार प्राप्त किया था। कोसल साम्राज्य का जो पांचवा भाग था जो मध्य कोसल का दक्षिणी हिस्सा था, वहीं पर कुश के वंशज बृहद्बल का शासन था। 
 हालाँकि कोसल प्रदेश महाभारत काल तक पांच हिस्सों में बंट गया था किन्तु फिर भी महाभारत में बृहद्बल को ही "कोसल नरेश" बताया गया है। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उनके सम्मलित होने का वर्णन है। हालाँकि जब बाद में पांडवों को वनवास हुआ तब अपनी दिग्विजय यात्रा में कर्ण ने पुन: बृहद्बल को परास्त कर कोसल साम्राज्य को हस्तिनापुर के आधीन कर लिया। यही कारण है कि बृहद्बल और कोसल साम्राज्य ने महाभारत युद्ध में कौरवों का साथ दिया। महाभारत के सभा पर्व के 31वें अध्याय में बृहद्बल का वर्णन मिलता है। 
 सह सर्वैस तदा मलेच्छै: सागरानूपवासिभि:
पार्वतीयाश च राजान? राजा चैव बृहद्बल:
 अर्थात: राजा भगदत्त सभी मलेच्छ राजाओं, सागर तट के अन्य राजाओं, पर्वतों के राजाओं एवं महाराज बृहद्बल के साथ राजसूय यज्ञ में आये। 
 महाराज बृहद्बल की गिनती कौरव सेना के प्रमुख योद्धाओं में की जाती है। अपने पक्ष के योद्धाओं का वर्णन करते समय भीष्म पितामह ने बृहद्बल की गिनती एक रथी योद्धा के रूप में की थी। उन्होंने 13 दिनों तक पांडवों की सेना से घोर युद्ध किया और उनके कई योद्धाओं का वध किया।  युद्ध के 13वें दिन जब गुरु द्रोण ने चक्रव्यूह की रचना की तो बृहद्बल को उन्होंने उस चक्रव्यूह के दूसरे द्वार की रक्षा का दायित्व दिया। जब अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश किया तो प्रथम द्वार तो उन्होंने सहज ही तोड़ दिया किन्तु चक्रव्यूह के मध्य में जाने के मार्ग में दूसरे द्वार के रक्षक के रूप में उनका सामना बृहद्बल से हुआ। 
 बृहद्बल ने बहुत वीरता से युद्ध लड़ा और अभिमन्यु को बहुत देर तक उसी द्वार पर रोके रखा। दोनों में बहुत भीषण युद्ध हुआ किन्तु अंतत: अभिमन्यु ने अपने बाणों से बृहद्बल का वक्षस्थल चीर दिया जिससे वे वीरगति को प्राप्त हुए। बृहद्बल की मृत्यु के बाद उनके राज्य को उनके ज्येष्ठ पुत्र बृहत्क्षण ने संभाला। 

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