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जन्माष्टमी पर षोडषोपचार पूजा से करें कान्हा को प्रसन्न, यहां जानें विधि
 भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी पर यदि पूजा सोलह विधि-विधानों के साथ की जाए तो उसे षोडशोपचार पूजा विधि कहा जाता है। यह पूजा विशेष रूप से मंदिरों में विधिपूर्वक संपन्न की जाती है, लेकिन घरों में भी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार पंचोपचार विधि से पूजन किया जा सकता है। इस वर्ष 16 अगस्त 2025 को गृहस्थ लोग बालकृष्ण की मूर्ति का पंचामृत स्नान कराकर, उन्हें पालने में विराजमान कर वस्त्र धारण करवाएं और सुगंधित इत्र लगाएं। पूजा के अंत में उन्हें फल, मिठाई, धनिया, चावल, आटे या पंचमेवे से बनी पंजीरी का नैवेद्य अर्पित करें। 
मंदिरों में जब श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है, तो षोडशोपचार विधि से पूजन होता है  जिसमें भगवान को वस्त्र, आभूषण, पुष्प, धूप-दीप समर्पित किए जाते हैं और विशेष प्रकार के मिष्ठान्न जैसे सेठौरा, नारियल, छुहारा आदि का भोग लगाया जाता है। पूजन के सभी सोलह चरणों के लिए अलग-अलग मंत्र होते हैं, और पूजा का अंतिम चरण आरती होती है, जो सोलहवां मंत्र माना जाता है। इस दिव्य रात्रि में भक्तजन जागरण कर श्रीकृष्ण की स्तुति और भजन करते हैं, जिससे वातावरण पूर्णतः भक्तिमय हो उठता है।
षोडशोपचार पूजा का पहला चरण
षोडशोपचार पूजन की शुरुआत ध्यान से होती है, जिसमें भक्त भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य मूर्ति के सामने बैठकर उन्हें अपने मन में आह्वान करते हैं और उनकी छवि का स्मरण करते हैं। यह पूजा का पहला और अत्यंत महत्वपूर्ण चरण होता है।
इस चरण में भगवान के स्वरूप का मन ही मन ध्यान करते हुए यह मंत्र बोला जाता है:
"ॐ तम अद्भुतं बालकं अम्बुजेक्षणं, चतुर्भुजं शंख गदा आयुध धारिणम्। श्रीवत्स लक्ष्म्यं, गले शोभित कौस्तुभं, पीतांबरं घने मेघ जैसे श्यामवर्ण। बहुमूल्य वैढूर्य मुकुट और कुंडल से सुशोभित, स्वर्ण कंगनों से चमकते हुए, ऐसे श्रीकृष्ण का वसुदेव ने दर्शन किया।
चतुर्भुज भगवान कृष्ण का ध्यान करें, जो शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं, पीतांबर पहने हैं, गले में माला और कौस्तुभ मणि सुशोभित है।
ॐ श्रीकृष्णाय नमः।
इसके बाद कहा जाता है:
"ध्यानात् ध्यानं समर्पयामि" अर्थात मैं भगवान श्रीकृष्ण को ध्यान अर्पित करता हूँ।
इस प्रकार ध्यान करके पूजन की शुरुआत होती है, जिससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है और मन स्थिर होकर पूजा के आगे के चरणों के लिए तैयार होता है।
षोडशोपचार श्रीकृष्ण पूजन विधि
दूसरा चरण – आवाहन
हाथ जोड़कर भगवान श्रीकृष्ण का आवाहन करें और प्रार्थना करें कि वे अपने बंधु-बांधवों सहित पधारें और यहीं विराजें।
मंत्र:
"ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्। स-भूमिं विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्यशाङ्गुलम्। आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव। ॐ श्री क्लीं कृष्णाय नमः। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्ण आवाहयामि।"
तीसरा चरण – आसन
भगवान को सुंदर रत्नजड़ित आसन अर्पित करें।
मंत्र:
"ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-संयुक्तम्। स्वर्ण-सिंहासन चारू गृह्यताम् भगवन् कृष्ण पूजितः। ॐ श्री कृष्णाय नमः। आसनम् समर्पयामि।"चौथा चरण – पाद्य
भगवान के चरण धोने के लिए पंचपात्र से जल अर्पित करें।
मंत्र:
"अच्युतानन्द गोविंद प्रणतार्ति विनाशन। पाहि मां पुण्डरीकाक्ष प्रसीद पुरुषोत्तम। ॐ श्री कृष्णाय नमः। पादयोः पाद्यम् समर्पयामि।"
पांचवां चरण – अर्घ्य
गंध, फूल और अक्षत मिश्रित अर्घ्य भगवान को अर्पित करें।
मंत्र:
"ॐ पालनकर्ता नमस्ते स्तु गृहाण करुणाकरः। अर्घ्यं च फलसंयुक्तं गन्धमाल्याक्षतैर्युतम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः। अर्घ्यम् समर्पयामि।"
छठा चरण – आचमन
भगवान को आचमन के लिए जल दें।
मंत्र:
"नमः सत्याय शुद्धाय नित्याय ज्ञानरूपिणे। गृहाणाचमनं कृष्ण सर्वलोकैक नायक। ॐ श्री कृष्णाय नमः। आचमनीयं समर्पयामि।"
सातवां चरण – स्नान
भगवान की मूर्ति को क्रम से जल, दूध, दही, मक्खन, घी, शहद और अंत में फिर से जल से स्नान कराएं।
मंत्र:
"गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा। सरस्वत्यादि तीर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः। स्नानं समर्पयामि।"
आठवां चरण – वस्त्र
भगवान को नए वस्त्र पहनाएं और पालने में विराजमान करें।
मंत्र:
"देहालंकारणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे। ॐ श्री कृष्णाय नमः। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।"
नवां चरण – यज्ञोपवीत
भगवान को यज्ञोपवीत अर्पित करें।
मंत्र:
"ॐ श्री कृष्णाय नमः। यज्ञोपवीतम् समर्पयामि।"
दसवां चरण – चंदन
भगवान को चंदन का लेप अर्पित करें।
मंत्र:
"ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः।"
ग्यारहवां चरण – गंध/धूप
भगवान को धूप या अगरबत्ती दिखाएं।
मंत्र:
"गन्धो ढ्यः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः।"बारहवां चरण – दीपक
घी का दीपक प्रज्वलित कर भगवान के सामने रखें।
मंत्र:
"भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने। त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते। ॐ श्री कृष्णाय नमः। दीपं समर्पयामि।"
तेरहवां चरण – नैवेद्य
भगवान को मिठाई, फल, दूध-दही-घी आदि का भोग अर्पित करें।
मंत्र:
"शर्कराखण्ड खाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च। नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः।"
चौदहवां चरण – ताम्बूल
पान के पत्ते में सुपारी, लौंग, इलायची और मीठा रखकर अर्पित करें।
मंत्र:
"ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः।"
पंद्रहवां चरण – दक्षिणा
अपनी सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा अर्पित करें।
मंत्र:
"ॐ श्री कृष्णाय नमः। दक्षिणां समर्पयामि।"
सोलहवां चरण – आरती
अंत में घी का दीपक लेकर भगवान श्रीकृष्ण की आरती करें और प्रिय कृष्ण भजन/आरती गाएं।

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