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 हरतालिका तीज पर माता गौरी और भगवान शिव की ऐसे करें आराधना....

 पंडित प्रकाश उपाध्याय

 हरतालिका तीज पर कुंआरी कन्याएँ और सुहागिन स्त्रियां  माँ गौरी व भगवान शंकर की पूजा एवं व्रत करती हैं। यह त्यौहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया यानी कल मनाया जाएगा। हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ क्रमश: हरत अर्थात अपहरण, आलिका का अर्थ स्त्रीमित्र (सहेली) तथा तीज-तृतीया तिथि से लिया गया है। हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, देवी पार्वतीजी की उनकी सहेलियां अपहरण कर उन्हें घने जंगल में ले गई थीं। जिससे कि पार्वतीजी के पिता उनका विवाह, उनकी ही इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें।

 हरतालिका तीज व्रत विधि एवं नियम

हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती, गणेश एव रिद्धि सिद्धि जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती हैं।विविध पुष्पों से सजाकर उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर चौकी रखी जाती हैं। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। सभी प्रतिमाओं को केले के पत्ते पर रखा जाता हैं। सर्वप्रथम शुद्ध घी का दीपक जलाएं। तत्पश्चात सीधे (दाहिने) हाथ में अक्षत रोली बेलपत्र, मूंग, फूल और पानी लेकर इस मंत्र से संकल्प करें:उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रत महं करिष्ये। इसके बाद कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल कलावा बाँध कर पूजन किया जाता हैं कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर विधिवत पूजन होता हैं। कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं। उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं। तत्पश्चात माता गौरी की पूजा की जाती हैं। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं। इसके बाद अन्य देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है। इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती हैं। इसके पश्चात आरती की जाती हैं जिसमें सर्वप्रथम गणेश जी की पुन: शिव जी की फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण भी करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। प्रात: अंतिम पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोड़ा जाता हैं। अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं।

 भगवती-उमा की पूजा के लिए ये मंत्र बोलना चाहिए:

 ॐ उमायै नम:

ॐ पार्वत्यै नम:

ॐ जगद्धात्र्यै नम:

ॐ जगत्प्रतिष्ठयै नम:

ॐ शांतिरूपिण्यै नम:

ॐ शिवायै नम:

 भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए:

ॐ हराय नम:

ॐ महेश्वराय नम:

ॐ शम्भवे नम:

ॐ शूलपाणये नम:

ॐ पिनाकवृषे नम:

ॐ शिवाय नम:

ॐ पशुपतये नम:

ॐ महादेवाय नम:

  हरतालिका व्रत पूजन की सामग्री

-फुलेरा विशेष प्रकार से फूलों से सजा होता है।

-गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत।

-केले का पत्ता।

- विविध प्रकार के फल एवं फूल पत्ते।

-बेल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, तुलसी मंजरी।

-जनेऊ, नाडा, वस्त्र,।

-माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामग्री, जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, महावर, मेहँदी आदि एकत्र की जाती हैं। इसके अलावा बाजारों में सुहाग पूड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं।

- घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, नारियल, कलश।

- पंचामृत: घी, दही, शक्कर, दूध, शहद।

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