चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार- प्राचीन मायापुरी
हरिद्वार, उत्तराखंड राज्य में एक पवित्र नगर और नगर निगम बोर्ड है। हिन्दी में, हरिद्वार का अर्थ हरि (ईश्वर) का द्वार होता है। हरिद्वार का उल्लेख पौराणिक कथाओं में कपिलस्थान, गंगाद्वार और मायापुरी के नाम से भी किया गया है। यह चार धाम यात्रा के लिए प्रवेश द्वार भी है (उत्तराखंड के चार धाम हैं-बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री), इसलिए, भगवान शिव के अनुयायी और भगवान विष्णु के अनुयायी इसे क्रमश: हरद्वार और हरिद्वार के नाम से पुकारते हंै। महाभारत के वाणपर्व में धौम्य ऋषि, युधिष्ठिïर को भारत के तीर्थ स्थलों के बारे में बताते हैं जहां पर गंगाद्वार, यानी, हरिद्वार और कनखल के तीर्थों का भी उल्लेख किया गया है। कपिल ऋषि का आश्रम भी यहां स्थित था, जिससे इसे इसका प्राचीन नाम, कपिल या कपिल्स्थान मिला।
कहा जाता है की भगवान विष्णु ने एक पत्थर पर अपने पग-चिन्ह छोड़े हैं जो हर की पौडी में एक ऊपरी दीवार पर स्थापित है, जहां हर समय पवित्र गंगाजी इन्हें छूती रहती हैं।
हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। 3 हजार 139 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गौमुख (गंगोत्री हिमनद) से 253 किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में गंगा के मैदानी क्षेत्रों में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार के नाम सा भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जहां पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहां अमृत की कुछ बूंदें भूल से घड़े से छलक गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस घड़ेे को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं, और ये स्थान हैं-उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, और इलाहाबाद। आज ये वे स्थान हैं जहां कुम्भ मेला चारों स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर प्रति 3 वर्षों में और 12वें वर्ष इलाहाबाद में महाकुम्भ आयोजित किया जाता है।
हरिद्वार में वह स्थान जहां पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्मï कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है ईश्वर के पवित्र पग। हर-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहां आते हंंै। यहां स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।
हरिद्वार जिला, सहारनपुर डिवीजनल कमिशनरी के भाग के रूप में 28 दिसंबर 1988 को अस्तित्व में आया। बाद में यह नवगठित राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल), का भाग बन गया। आज, यह अपने धार्मिक महत्व के अलावा राज्य के एक प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र के रूप में, तेज़ी से विकसित हो रहा है।


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