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  प्रवचन : संसार में सम्पन्न लोगों की पूछ-परख होती है, परन्तु कृपासिन्धु भगवान साधनहीन दीनजनों से प्यार करते हैं!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 333

★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 39-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि संसार साधनसम्पन्न की पूछ-परख करता है परन्तु कृपासिन्धु भगवान साधनहीन दीन जनों की ओर कृपादृष्टि रखते हैं....

सब साधन संपन्न कहँ, पूछत सब संसार।
साधनहीन प्रपन्न कहँ, पूछत नंदकुमार।।39।।

भावार्थ - संसारी लोग उसी से प्यार करते हैं, जिसके पास संसारी वैभव होता है। किंतु श्यामसुंदर अकिंचन से प्यार करते हैं।

व्याख्या - मायाधीन जीव परमानंद से वंचित है। अतः उसी की प्राप्ति के हेतु भ्रमवश मायिक विषयों को चाहता है। यह स्वार्थ तब तक रहेगा, जब तक प्रेमानंद नहीं प्राप्त कर लेता। अतः कोई भी माता, पिता, भ्राता, भर्ता ऐसा नहीं हो सकता जो दूसरे के सुख के लिये कुछ करे। यथा वेद कहता है;

न वा अरे पत्युः कामाय पतिः प्रियोभवति...।

जहाँ भी संसारी स्वार्थ पूर्ति होती है वहीं प्यार करता है। स्वार्थ समाप्त, तो प्यार भी समाप्त। अतः धनादि वैभव की प्राप्ति द्वारा आनंद प्राप्ति मानने वाले अज्ञानी व्यक्ति, वैभव वालों की चमचागीरी करते रहते हैं। किंतु उस सेठ के दिवालिया होते ही ऐसे रफूचक्कर हो जाते हैं, जैसे वृक्ष के फल समाप्त होते ही पक्षीगण उड़ जाते हैं। किंतु भगवान् तो परिपूर्ण हैं। आत्माराम हैं। साथ ही अकारण करुण भी हैं। अतः जो जीव उनकी शरण में जाता है, वह सदा को आनंदमय हो जाता है। किंतु वैभवयुक्त व्यक्ति जा ही नहीं सकता। वैभव का मद उसे स्वयं भगवान् बना देता है। इसी से कुंती ने संसार का अभाव वरदान स्वरूप माँगा था। अतः वैभवों से दूर रहना चाहिये।

०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' व्याख्या, दोहा संख्या 39
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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