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पैरालंपिक ऊंची कूद चैंपियन प्रवीण कुमार की नजर विश्व पैरा चैंपियनशिप में पहला स्वर्ण पदक जीतने पर
 नयी दिल्ली.  महज 22 साल की उम्र में चौथी बार  विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लेने को तैयार पैरालंपिक ऊंची कूद चैंपियन प्रवीण कुमार का लक्ष्य शनिवार से यहां शुरू होने वाले इस आयोजन में अपना पहला स्वर्ण पदक जीतने का है। प्रवीण ने 2019 में 16 साल की उम्र में पहली बार दुबई में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लिया था। वह तब टी64 स्पर्धा में चौथे स्थान पर रहे थे और कांस्य पदक से चूक गए थे। टी64 स्पर्धा उन खिलाडियों के लिए होती है जिनके निचले पैर में चलने-फिरने की समस्या होती है या घुटने के नीचे एक या दोनों पैर नहीं होते हैं। प्रवीण ने 2023 के पेरिस सत्र में कांस्य पदक जीता था और 2024 में जापान के कोबे में फिर से चौथे स्थान पर रहे थे। उन्होंने दिल्ली में होने वाले आयोजन से पहले ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘यह मेरी चौथी विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप होगी और मैंने एक कांस्य पदक जीता है। मेरा लक्ष्य 2.10 मीटर का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना है। मुझे लगता है कि मैं इसे हासिल कर घरेलू दर्शकों के सामने स्वर्ण जीत सकता हूं।'' उन्होंने कहा, ‘‘ मैं अगर अपना व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर 2.10 मीटर के लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहा तो मैं किसी भी पदक से खुश रहूंगा। फिलहाल, मेरा व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ 2.08 मीटर है।'' एक पैर में विकार के साथ जन्में प्रवीण गौतम बुद्ध नगर के जेवर तहसील के गोविंदगढ़ गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने कहा कि 2024 के सत्र में चोट के कारण उनका प्रदर्शन प्रभावित हुआ। वह उस आयोजन में 1.94 मीटर के प्रयास के साथ चौथे स्थान पर रहे थे। प्रवीण ने कहा, ‘‘ मैं छलांग लगाने के लिए जिस पैर का इस्तेमाल करता हूं उस में चोट लग गयी थी। इस वजह से मैं ठीक से कूद नहीं पा रहा था। पेरिस पैरालंपिक से पहले यह चोट ठीक हो गई, जहां मैंने स्वर्ण पदक जीता था। अब, ईश्वर की कृपा से मुझे कोई चोट नहीं है। इसलिए मैं अपने प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूँ।'' उन्होंने कहा, ‘‘इस बार, मुझे लगता है कि मेरे साथ सब कुछ ठीक चल रहा है। मैं स्वर्ण पदक जीतने की कोशिश करूंगा।'' प्रवीण ने 2021 में तोक्यो पैरालंपिक में रजत और 2023 में एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण पदक भी जीता था। प्रवीण ने कहा कि स्कूल के स्तर पर सामान्य छात्रों को पछाड़ने से उन्हें खेल को गंभीरता से लेने की प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं नौवीं कक्षा में था तब मैंने पहली बार ऊंची कूद में भाग लिया। मैंने स्कूल के खेल दिवस में सामान्य खिलाड़ियों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते हुए अपना पहला स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद मैं इस खेल में आगे बढ़ने लगा।''  उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन बीच में मेरे शिक्षकों ने मुझे रोक दिया। उन्होंने कहा, ‘तुम दिव्यांग हो। तुम्हें खेल से दूर रहना चाहिए।' उन्होंने मुझे कई जगह रोका। लेकिन, मैंने सोचा, ‘मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता?' मैंने फैसला किया कि मैं खेल में अपना करियर बनाऊंगा।'' प्रवीण ने कहा कि वह 2018 में पैरा खेलों से जुड़ने से पहले सामान्य खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा करते थे। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने सीबीएसई क्लस्टर प्रतियोगिता में सक्षम खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा की और पहली बार रजत पदक जीता।  मैं इसके बाद सीबीएसई राष्ट्रीय स्कूल खेलों में गया और स्वर्ण पदक जीता। 2018 में मैं पैरा खेलों में शामिल हुआ और पहली बार भारत के लिए खेला।'' प्रवीण ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में पैरा खेलों के बारे में जागरूकता पूरी तरह से बदल गई है। उन्होंने कहा, ‘‘देवेंद्र झाझरिया ने 2004 में अपना पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीता था। हमें इसके बारे में पता नहीं था। लेकिन 2016 में जब झाझरिया ने एक और स्वर्ण पदक जीता तो बहुत से लोगों को पैरा खेलों के बारे में पता चला।'' प्रवीण ने कहा, ‘‘हमें 2021 में तोक्यो पैरालंपिक में 19 पदक मिले, हमने पेरिस में इनकी संख्या बढ़ाकर 29 कर दी। पहले लोग सोचते थे कि वे पैरा खेलों में आगे कैसे बढ़ सकते हैं। लेकिन अब उन्हें किसी से पूछने की जरूरत नहीं है। वे सीधे आकर कोशिश कर सकते हैं।''

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