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- हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि का यह पावन पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। भगवान भोलेनाथ की पूरे विधि विधान से महाशिवरात्रि के दिन पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन महादेव का व्रत रखने से सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के लिंग स्वरूप का पूजन किया जाता है। यह भगवान शिव का प्रतीक है। शिव का अर्थ है- कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है सृजन। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने ही धरती पर सबसे पहले जीवन का प्रचार-प्रसार किया था, इसीलिए भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है। आइए जानते हैं महाशिवरात्रि की तिथि, शुभ पूजन मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।महाशिवरात्रि तिथिचतुर्दशी तिथि आरंभ: 1 मार्च, मंगलवार, 03:16 am सेचतुर्दशी तिथि समाप्त: 2 मार्च, बुधवार, 1:00 am तकचारों प्रहर का पूजन मुहूर्तआइए जानते हैं इस दिन चार पहर की पूजा का समयमहाशिवरात्रि पहले पहर की पूजा: 1 मार्च 2022 को 6:21 pm से 9:27 pm तकमहाशिवरात्रि दूसरे पहर की पूजा: 1 मार्च को रात्रि 9:27 pm से 12:33 am तकमहाशिवरात्रि तीसरे पहर की पूजा: 2 मार्च को रात्रि 12:33 am से सुबह 3:39 am तकमहाशिवरात्रि चौथे पहर की पूजा: 2 मार्च 2022 को 3:39 am से 6:45 am तकमहाशिवरात्रि पूजा का महत्वमहाशिवरात्रि पर्व के यदि धार्मिक महत्व की बात की जाए तो महाशिवरात्रि शिव और माता पार्वती के विवाह की रात्रि मानी जाती है। मान्यता है इस दिन भगवान शिव ने सन्यासी जीवन से ग्रहस्थ जीवन की ओर रुख किया था। महाशिवरात्रि की रात्रि को भक्त जागरण करके माता-पार्वती और भगवान शिव की आराधना करते हैं। मान्यता है जो भक्त ऐसा करते हैं उनकी सभी मनोकामना पूरी होती है।महाशिवरात्रि की पूजा विधिमहाशिवरात्रि के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर लें।इसके उपरांत एक चौकी पर जल से भर हुए कलश की स्थापना कर शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र रखें।इसके बाद रोली, मौली, अक्षत, पान सुपारी ,लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगटटा्, धतूरा, बिल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें।इसके बाद भगवान शिव की आरती पढ़ें।यदि आप रात्रि जागरण करते हैं तो उसमें भगवान शिव के चारों प्रहर में आरती करने का विधान है।
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बसंत पंचमी के दिन से शीत ऋतु समाप्त हो जाती है और बसंत ऋतु का आगाज होता है. इस दौरान प्रकृति स्वयं का सौंदर्यीकरण करती है. पुरानी चीजों को त्यागकर पेड़ों पर नई पत्तियां और नई कोपलें नजर आती हैं. पीले रंग की सरसों की फसल खेतों में लहलहाती है. माना जाता है कि इसी दिन माता सरस्वती भी प्रकट हुई थीं, इसलिए बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की विशेष रूप से पूजा होती है. उत्तर भारत में इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व है. लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और पीली ही चीजें भगवान को अर्पित करते हैं.
इस बार बसंत पंचमी आज 5 फरवरी 2022 को मनाई जा रही है. इस पावन अवसर पर यहां जानिए बसंत पंचमी से जुड़ी खास बातें.
– कहा जाता है कि माता सरस्वती के जन्म से पहले ये संसार मौन था. इसमें बहुत नीरसता थी. लेकिन बसंत पंचमी के दिन जब माता सरस्वती प्रकट हुई तो उनके वीणा का तार छेड़ते ही संसार के जीव जंतुओं में वाणी आ गई. वेद मंत्र गूंज उठे. तब भगवान श्रीकृष्ण ने माता सरस्वती को वरदान दिया कि आज का ये दिन आपको समर्पित होगा. इस दिन लोग आपकी पूजा करेंगे. आप ज्ञान, वाणी और संगीत की देवी कहलाएंगी.
– बसंत पंचमी के दिन तमाम घरों में कॉपी-किताबों की पूजा के बाद छोटे बच्चे को पहली बार लिखना सिखाया जाता है. मान्यता है कि इससे बच्चे कुशाग्र बुद्धि के होते हैं और उन पर माता सरस्वती की हमेशा कृपा बनी रहती है. ऐसे बच्चे खूब तरक्की करते हैं.
– बसंत पंचमी के दिन भारत में तमाम जगहों पर पतंग उड़ाई जाती है. कहा जाता है कि पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ था. इसके बाद फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुंचा.
– बसंत पंचमी के दिन देश के तमाम हिस्सों में अलग अलग मिष्ठान बनाकर दिन को सेलिब्रेट किया जाता है. बंगाल में बूंदी के लड्डू और मीठा भात चढ़ाया जाता है. बिहार में खीर, मालपुआ और बूंदी और पंजाब में मक्के की रोटी, सरसों का साग और मीठा चावल चढाया जाता है. उत्तर प्रदेश में भी पीले मीठे चावल प्रसाद के तौर पर बनाएं जाते हैं.
– बसंत पंचमी के दिन होलिका दहन के लिए लकड़ियों को इकट्ठा करके एक सार्वजनिक स्थान पर रख दिया जाता है. अगले 40 दिनों के बाद, होली से एक दिन पहले श्रद्धालु होलिका दहन करते हैं. इसके बाद होली खेली जाती है.
– कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन श्रीराम गुजरात और मध्य प्रदेश में फैले दंडकारण्य इलाके में मां सीता को खोजते हुए आए थे और यहीं पर मां शबरी का आश्रम था. इस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, उनका मानना है कि श्रीराम उसी शिला पर आकर बैठे थे. वहां शबरी माता का मंदिर भी है
– कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी का वध करके आत्मबलिदान दिया था. - घर बनाते समय वास्तु को विशेष महत्व दिया जाता है। इसी के अनुसार घर के सभी हिस्सों का निर्माण किया जाता है। हालांकि बहुत से लोग घर बनाते समय वास्तु पर विचार करते हैं, लेकिन वे अक्सर लिविंग रूम के बारे में भूल जाते हैं। वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार एक बार घर बन जाने के बाद लिविंग रूम को वास्तु के अनुसार सजाना चाहिए। इससे लिविंग रूम में सकारात्मक ऊर्जा आती है। जरा सी लापरवाही घर में कलह और परेशानी का कारण बन सकती है। अगर आप भी अपने लिविंग रूम से नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखना चाहते हैं तो आप ये वास्तु टिप्स आजमा सकते हैं।वास्तु के अनुसार इस तरह का होना चाहिए लिविंग रूम-वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार एक लिविंग रूम में ज्यादा से ज्यादा खिड़कियां होनी चाहिए। इससे लिविंग रूम में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जब भी आप लिविंग रूम बनाने प्लान बनाएं तो लिविंग रूम में ज्यादा से ज्यादा खिड़कियां बनाना सुनिश्चित करें।-आपका लिविंग रूम अन्य कमरों के समान नहीं होना चाहिए। लिविंग रूम सबसे बड़ा होना चाहिए। लिविंग रूम में ऐसी तस्वीर न लगाएं जो रोने, शोक और विवाद से संबंधित हो। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा आती है। घर में कलह की उत्पन्न होता है। इससे घर की शांति भंग होती है। लिविंग रूम में बिजली के उपकरणों को दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। आप इस दिशा में एक रैक या अलमारी बना सकते हैं। इसके अलावा दक्षिण की दीवार पर टीवी लगाएं।-लिविंग रूम में टेबल और कुर्सी जैसे फर्नीचर को इस तरह से व्यवस्थित करें कि आपको चलने फिरने में दिक्कत न हो। लिविंग रूम का निर्माण उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में करना शुभ होता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।-घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखने के लिए रोजाना शाम को मोमबत्ती या मिट्टी का दीपक जलाएं। आप इन्हें पूजा स्थल या मेडिटेशन स्थल पर जला सकते हैं।-लिविंग रूम में पानी के बाउल में फूल रखें। आर्टिफिशियल की बजाए असली फूलों का इस्तेमाल करें। इससे न केवल घर में सुंगध होगी बल्कि इससे सकारात्मक वातावरण रहेगा।-साथ ही अपनी दीवारों और छत के रंगों को अलग-अलग रखें। सीधे शब्दों में कहें तो दीवार और छत अलग-अलग रंगों की होनी चाहिए।
- वैसे तो इंसान कर्ज यानि ऋण से बचना चाहता है. लेकिन शास्त्रों के मुताबिक जन्म से ही इंसान पांच प्रकार के ऋण से युक्त हो जाता है. ये ऋण हैं- मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण और मनुष्य ऋण. कते हैं कि जो मनुष्य ऋणों को नहीं उतारता है, उसे कई प्रकार के दुख और संताप झेलने पड़ते हैं. आगे जानते हैं इस बारे में.मातृ ऋण (Matri Rin)शास्त्रों में माता का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा बताया गया है. मातृ ऋण में माता और मातृ पक्ष के सभी लोग जैसे-नाना, नानी, मामा-मामी, मौसा-मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं शामिल . ऐसे में मातृ पक्ष या माता के प्रति किसी प्रकार का अपशब्द बोलने या कष्ट देने से अनेक प्रकार का कष्ट झेलना पड़ता है. इतना ही नहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में कलह-क्लेश होते रहते हैं.पितृ ऋण (Pitra Rin)पिता की छत्रछाया में कोई इंसान पलता-बढ़ता है. पितृ ऋण में पितृ-पक्ष के लोग जैसे दादा-दादी, ताऊ, चाचा और इनके पहले की तीन पीढ़ीयों के लोग शामिल होते हैं. शास्त्रों के मुताबिक पितृ भक्त बनना हर इंसान का परम कर्तव्य है. इस धर्म का पालन नहीं करने पर पितृ दोष लगता है. जिससे जीवन में तमाम तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इतनी ही नहीं इस दोष के प्रभाव से जीवन में दरिद्रता, संतानहीनता, आर्थिक तंगी और शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है.देव ऋण (Dev Rin)माता-पिता के आशीर्वाद के कारण ही गणेशजी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं. यही कारण है कि हमारे पूर्वज भी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले कुलदेवी या देवता की पूजा करते थे. इस नियम का पालन न करने वालों के देवी-देवता का श्राप लगता है.ऋषि ऋण (Rishi Rin)मनुष्य का गोत्र किसी न किसी ऋषि से जुड़ा है. गोत्र में संबंधित ऋषि का नाम जुड़ा होता है. इसलिए पूजा-पाठ में ऋषि तर्पण का विधान है. ऐसे में ऋषि तर्पण नहीं करने वालों को इसका दोष लगता है. जिससे मांगलिक कार्यों में बाधा आती है और यह क्रम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है.मनुष्य ऋण (Manushya Rin)माता-पिता के अलावा इंसान को समाज के लोगों से भी प्यार दुलार और सहयोग प्राप्त होता है. इसके अलावा इंसान जिस पशु का दूध पीता है, उसका कर्ज भी उतारना पड़ता है. साथ ही कई बार ऐसा भी होता है कि मनुष्य, पशु-पक्षी भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारी मदद करते हैं. ऐसे में इनके ऋण भी चुकाने पड़ते हैं. कहते हैं कि मनुष्य ऋण के कारण ही राजा दशरथ के परिवार को कष्ट झेलना पड़ा.
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धनवान बनने की चाहत किसे नहीं होती। व्यक्ति धनवान बनने के लिए दिन-रात कोशिश में जुटे रहते हैं। लेकिन हस्तरेखा में ऐसे बहुत से चिह्न होते हैं जो व्यक्ति के धनवान बनने का इशारा करते हैं। यदि ये चिह्न आपकी हथेली में हैं तो आप निश्चित रूप से धनवान होंगे। इसके लिए सूर्य पर्वत बहुत महत्वपूर्ण है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि सूर्य पर्वत पर मछली का चिह्न बना है तो तय मानिए यह आपको जीवन में नाम और पैसा मिलेगा। ऐसे चिह्न वाले लोग अत्यधिक धनवान होते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में धनवान और मान-सम्मान पाने वाले व्यक्ति होते हैं। मछली का चिह्न जितना बड़ा होगा, उसका असर उतना ज्यादा रहेगा।
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यदि गुरु पर्वत पर भी मछली का निशान बनता है तो यह भी व्यक्ति के जीवन में धनवान बनने का संकेत देता है। ऐसे व्यक्ति बड़ा काम करते हैं। यदि इस पर्वत पर मछली के निशान के साथ तर्जनी उंगली भी लंबी है तो ऐसे व्यक्ति अधिकारी अथवा प्रभावशाली राजनेता होते हैं। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार सूर्य पर्वत पर चक्रनुमा कोई निशान मिलता है तो भी व्यक्ति जीवन में राजनीति अथवा सरकारी क्षेत्र से जुड़कर पैसा कमाते हैं। इस तरह के लोग अपने जीवन में धनवान होते हैं। शनि पर्वत पर चक्र का निशान मिलना राजनीति की ओर ले जाता है। ऐसे लोग करोड़पति होते हैं। इनके पास धन की कोई कमी नहीं होती। हाथ में यह निशान अकूत धन-संपत्ति का संकेत है। चंद्रमा पर चक्र का निशान व्यक्ति को विदेश से धन कमाने का इशारा करता है। इस तरह के लोग बहुतायत में विदेश से धन कमाते हैं। यदि सूर्य पर्वत पर पद्म का निशान है तो भी व्यक्ति बहुत धनवान होता है। ऐसे व्यक्ति उच्च स्तरीय पदाधिकारी होता है। -
साल 2022 में कुल 4 ग्रहण होंगे। पहला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल को पड़ेगा। वैसे ग्रहण एक खगोलीय घटना है जिसका वैज्ञानिक आधार होता है। लेकिन ज्योतिषशास्त्र में इसके बारे में कई मान्यताएं व महत्व/प्रभाव बताए गए हैं। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार 30 अप्रैल का सूर्य ग्रहण भारत समेत विश्व के कई देशों में दिखाई देगा। भारत में इसे आंशिक सूर्य ग्रहण माना गया है। इसके बाद अगला ग्रहण मई महीने में होगा जोकि एक चंद्र ग्रहण है।
आगे देखिए इस साल के आगामी ग्रहणों की तारीखें व समय-
आपको बता दें कि ज्योतिषशात्र के अनुसार, सभी चंद्र ग्रहण अमावस्या के तिथि को पड़ते हैं जबकि सूर्य ग्रहण पूर्णिमा तिथि को होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दिन कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। हालांकि इस दिन पूजा-पाठ का विशेष महत्व बताया गया है। ग्रहण के दौरान लोग गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए जिससे कि उनके गर्भ में पल रहे शिशु पर किसी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव न पड़े। ग्रहण के 12 घंटे पहले और 12 घंटे बाद के समय को सूतक काल के रूप में जानते हैं। सूतक काल के दौरान कोई भी नया काम नहीं करना चाहिए। इस दौरान मंदिरों के कपाट भी बंद रखे जाते हैं और ग्रहण समाप्ति के बाद देवी-देवताओं को स्नान कराकर मंदिर फिर से खोले जाते हैं।
आगामी ग्रहणों की तारीखें ---
30 अप्रैल 2022 - सूर्य ग्रहण
16 मई 2022 - चंद्र ग्रहण
25 अक्टूबर 2022- सूर्य ग्रहण
08 नवंबर 2022 - चंद्रग्रहण
सूतक काल में बरतें ये सावधानियां----
1- धार्मिक व ज्योतिषीय दृष्टिकोण से सूतक काल में बालक, वृद्ध एवं रोगी को छोड़कर अन्य किसी को भोजन नहीं करना चाहिए।
2- सूतक काल लगते ही तुलसी या कुश मिश्रित जल को खाने-पीने की चीजों में रखना चाहिए। लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तुलसी दल या कुश को ग्रहण के बाद निकाल देना चाहिए। कहते हैं ग्रहण का असर तुलस दल ले लेता है और आपकी चीजों को दूषित नहीं होने देता । इसलिए ग्रहण समाप्त होने के बाद इसे निकाल लेना चाहिए।
3- गर्भवतियों को खासतौर से सावधानी रखनी चाहिए।
4- मान्यता है कि सूतक के दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते। घर में भी मंदिर को कपड़े से कवर कर देना चाहिए। इस दौरान कोई पूजा पाठ नहीं किया जाता है।
5- ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
6- ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।
7- ग्रहण (Solar) को खुली आंखों से न देखें।
8- ग्रहणकाल के दौरान गुरु प्रदत्त मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। - ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी होती है कि नमक का अधिक सेवन सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. नमक (Vastu tips of Salt) किचन की अहम चीजों में से एक होता है. वैसे ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के मुताबिक भी नमक का जीवन में बहुत महत्व होता है. किसी भी स्थान को शुद्ध करने के लिए नमक का इस्तेमाल किया जाता है. कहीं पर नमक की मदद से नेगेटिव एनर्जी को दूर किया जाता है. कहते हैं कि नमक घरों के माहौल को शुद्ध और स्वस्थ रखने में भी कारगर होता है. भले ही ये घर के लिए फायदेमंद हो, लेकिन मान्यता है कि कभी-कभी इसका इस्तेमाल प्रतिकूल प्रभाव भी छोड़ सकता है. देखा जाए तो वास्तु के मुताबिक इसके कई सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव भी होते है. आज हम आपको इन्हीं नेगेटिव और पॉजिटिव इफेक्ट्स के बारे में बताने जा रहे हैं.नमक के सकारात्मक प्रभाव1. कभी-कभी नकारात्मकता शरीर पर इतनी हावी हो जाती है कि लोग थका हुआ महसूस करते हैं. ऐसे में इस नेगेटिविटी को दूर करने के लिए आप नमक के पानी का स्नान कर सकते हैं. कहते हैं कि इससे प्रभावित व्यक्ति पॉजिटिव फील करने लगता है.2. घर में शांति और पॉजिटिविटी बनाए रखने में भी नमक कारगर माना जाता है. इसके लिए घर के किसी कोने में एक कटोरी में नमक का पानी रखना चाहिए. ये तरीका घर से नेगेटिविटी को दूर करता है. हालांकि, अगर दिन इस पानी को घर के बाहर जाकर जरूर फेंक दें.3. नमक से एक और सकारात्मक प्रभाव की बात की जाए तो बता दें कि ये नींद न आने की समस्या को भी दूर करने में सक्षम माना जाता है. बस जिस कमरे में आप सोने जा रहे हैं, वहां नमक रख लें. कहते हैं कि इससे सुकून की नींद आती है.नमक के नकारात्मक प्रभाव1. कभी-कभी लोगों से किचन में गलती से नमक गिर जाता है. इसे शुभ नहीं माना जाता, क्योंकि कहते हैं कि इससे घर में नेगेटिविटी आती है. अगर गलती से नमक किचन में गिर भी जाए, तो उसे कपड़े से साफ करें. अक्सर लोग गिरे हुए नमक को झाड़ू से साफ करने की भूल कर देते हैं, जो बहुत अशुभ माना जाता है.2. ज्यादातर लोगों को खान में ऊपर से नमक डालकर खाने की आदत होती है. इस दौरान भी नमक का नकारात्मक प्रभाव बुरा असर डाल सकता है. दरअसल, ग्रहणी अगर अपने हाथ से खाना खाने वाले के हाथों में नमक दे, तो ये भी घर में नेगेटिविटी या झगड़े की वजह बन सकता है.3. नमक से किए गए उपाय के बाद उसे वहां से हटाने के भी कुछ नियम होते हैं. घर में रखे गए नमक के पानी को दोबारा इस्तेमाल में लिया जाए, तो घर में पॉजिटिविटी के बजाय नेगेटिविटी आने लगती है. बेहतर रहेगा कि इस पानी को घर के बाहर जाकर फेंका जाए.
- हम सभी के शरीर के तमाम हिस्सों पर तिल होते हैं. ये तिल काले, भूरे और लाल रंग के हो सकते हैं. ये तिल अगर आपके चेहरे (Moles on Face) पर हों, तो इन्हें खूबसूरती से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन ज्योतिष (Astrology) के मुताबिक ये तिल आपके जीवन के कई रहस्यों के बारे में बताते हैं. समुद्र शास्त्र की मानें तो तिल के जरिए व्यक्ति के जीवन से जुड़े कई रहस्यों को आसानी से उजागर किया जा सकता है. कुछ जगहों पर तिल का होना भाग्यशाली बनाता है, तो कई बार इन्हें दुर्भाग्य से भी जोड़कर देखा जाता है।यहां जानिए समुद्र शास्त्र (के मुताबिक आपके चेहरे के तिल क्या बताते हैं----– यदि किसी महिला या पुरुष के बाएं गाल पर तिल हो तो इसका मतलब है कि उसका वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल होगा. ऐसे लोगों को अपने वैवाहिक जीवन में बहुत मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता. उनकी मैरिड लाइफ खुशहाल रहती है.– अगर आपके होंठ के पास तिल है तो इसके कई मायने हो सकते हैं. होंठ के नीचे का तिल आपके सुखद और अमीरी के साथ जीवन जीने की ओर इशारा करता है. ऐसे लोगों को कुछ भी प्राप्त करने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती. वहीं होंठ के ऊपर का तिल आपके व्यक्तित्व और खूबसूरती को आकर्षक बनाता है. ऐसे लोगों को महंगी चीजों को इस्तेमाल करने का बहुत शौक होता है.– जिन लोगों के दोनों भौहों के बीच में तिल होता है, उनकी उम्र काफी मानी जाती है. ये लोग काफी उदार दिल वाले होते हैं और लोगों की मदद के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.– वहीं माथे पर तिल ये बताता है कि आपको जीवन में जो भी हासिल होगा, वो काफी संघर्ष के बाद मिलेगा. वहीं जिनके नाक पर तिल होता है, ऐसे लोग कई तरह की प्रतिभाओं में निपुण होते हैं. लेकिन इन्हें गुस्सा जल्दी आता है.– दाहिने गाल पर तिल का होना ये संकेत देता है कि व्यक्ति खूब बुद्धिमान है. ऐसे लोगों को अपने भाग्य से ज्यादा खुद पर यकीन करना चाहिए. अगर आप कुछ ठान लेंगे तो उसे हर हाल में पूरा करके ही दम लेंगे.– ठुड्डी पर तिल वाले लोग काफी दिल के साफ माने जाते हैं. जिनकी ठुड्डी पर दाहिनी तरफ तिल होता है, वो काफी कलात्मक और खुशमिजाज होते हैं और ठुड्डी पर बांयीं ओर जिसके तिल होता है, वो काफी कंजूस माने जाते हैं।
- भगवान गणेश माता पार्वती और महादेव के पुत्र हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) भी श्रीगणेश को ही अपना पुत्र मानती है? गणपति को माता लक्ष्मी का दत्तक पुत्र कहा जाता है. दीपावली पर माता लक्ष्मी की श्रीगणेश के साथ पूजन माता और पुत्र के रूप में होता है. कहा जाता है कि लक्ष्मी के साथ अगर गणपति का भी पूजन किया जाए तो माता अत्यंत प्रसन्न होती हैं और ऐसे भक्तों पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाकर रखती हैं. भगवान गणेश माता लक्ष्मी के पुत्र कैसे बने, इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है. यहां जानिए उस कथा के बारे में.गणपति को माता लक्ष्मी ने लिया था गोदमाता लक्ष्मी को जगत जननी कहा जाता है, क्योंकि वे जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पत्नी हैं. सारा संसार माता लक्ष्मी के ही प्रेम और माया से चलता है. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी को इस बात का घमंड हो गया कि संसार में हर कोई लक्ष्मी को ही पाना चाहता है. लक्ष्मी के बगैर किसी का काम ही नहीं चल सकता.मां लक्ष्मी के इस अभिमान को श्री हरि ने भांप लिया, तब विष्णु जी ने सोचा कि माता का ये अहंकार समाप्त करना बहुत जरूरी है. इसलिए उन्होंने कहा कि ये सच है कि देवी लक्ष्मी के बगैर संसार में कुछ नहीं हो सकता. सारा संसार आपको पाने के लिए व्याकुल रहता है, लेकिन फिर भी देवी आप अपूर्ण हैं. नारायण की बात सुनकर माता लक्ष्मी को बहुत बुरा लगा और उन्होंने नारायण से पूछा कि वे अपूर्ण कैसे हैं?तब विष्णु जी ने उनसे कहा कि जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती है, तब तब वह पूर्ण नहीं होती है. ये जानकर मां लक्ष्मी अत्यंत पीड़ा का अनुभव हुआ और वे अपने मन की बात कहने अपनी सखी पार्वती के पास पहुंचीं. उन्होंने कहा कि नि:संतान होना बेहद परेशान कर रहा है. इसलिए हे पार्वती क्या आप अपने दोनों पुत्रों में से एक को मुझे गोद दे सकती हैं? माता पार्वती ने उनका दुख दूर करने के लिए ये बात मान ली और गणपति को माता लक्ष्मी को सौंप दिया. इसके बाद से गणपति माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहलाने लगे.इसके बाद मां लक्ष्मी ने कहा कि आज से जिस घर में लक्ष्मी के साथ उसके दत्तक पुत्र गणेश की भी पूजा होगी, वहां मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहेगी. यही कारण है कि गणपति के साथ लक्ष्मी की प्रतिमा मां विराजमान होती हैं और दोनों की पूजा हमेशा साथ की जाती है.
- माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मां सरस्वती (Maa Saraswati) के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस पर्व को बसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन बुद्धि, विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है. इसी दिन से बसंत ऋतु की भी शुरुआत हो जाती है. इस मौसम में माता सरस्वती को पीले रंग की चीजों को अर्पित किया जाता है. माता सरस्वती का पसंदीदा भोग मीठे चावल को माना जाता है. इस बार बसंत पंचमी 5 फरवरी को शनिवार के दिन मनाई जाएगी. ऐसे में आप माता सरस्वती का पसंदीदा भोग अपने हाथों से तैयार करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं.जानिए मीठे चावल को बनाने का तरीका---मीठे चावल बनाने की सामग्री-चावल- 1 कप -चीनी – 3 कप -देशी घी – 2 चम्मच -पानी – जरूरत के अनुसार -तेजपत्ता – 1 -हल्दी – आधा चम्मच -कटे हुए काजू – 1 चम्मच -केसर – 15 पत्ती -छोटी इलायची- 4 -लौंग – 2 -कटे हुए बादाम – 1 चम्मचमीठे चावल को बनाने का तरीका– मीठे चावल को बनाने के लिए सबसे पहले चावल को बीनकर और धोकर करीब आधे घंटे के लिए भिगो दें. भिगोने से चावल अच्छे से पकता है और खिला खिला बनता है.– इस बीच इलायची को छीलकर पीस लें और काजू, बादाम को छोटे टुकड़ों में काट लें. जितना पानी चावल पकाते समय इस्तेमाल करना हो, उतना पानी लेकर हल्का सा गुनगुना करें और उसमें तीन कप चीनी डाल दें, ताकि चीनी पानी में अच्छे से घुल जाए.– अब आप गैस पर कुकर रखें और गैस जलाएं. जिस पानी में चावल भिगोए हैं, उस पानी को चावल से हटा दें. कुकर में घी डालें और गर्म करें. इसके बाद तेजपत्ता, लौंग और पिसी इलायची डालें.– अब इसमें हल्दी डालकर चावल डालें और सारी चीजों को अच्छी तरह से मिक्स करें. इसके बाद आप चीनी मिला हुआ पानी डाल दें. चावल में दो सीटी लगाकर चावल को पकाएं. चावल पकने के बाद इसमें काजू और बादाम डालकर चावल को गार्निश करें.सुझाव : आप चाहें तो चावल को अलग से पकाकर कड़ाही में घी डालकर फ्राई भी कर सकते हैं. ऐसे में फ्राई करने के दौरान शक्कर डालें.
- शरद ऋतु के समाप्त होते ही बसंत ऋतु आती है. बसंत पंचमी बसंत ऋतु में आने वाला खास त्योहार है. हर साल माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ये त्योहार मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती प्रकट हुई थीं. उनके प्रकट होने के साथ ही चारों ओर ज्ञान और उत्सव का वातावरण उत्पन्न हो गया और वेदमंत्र गूंजने लगे थे. मां सरस्वती को ज्ञान और संगीत की देवी कहा जाता है. इस कारण ये दिन विद्यार्थियों और संगीत प्रेमियों के लिए विशेष होता है. इस बार बसंत पंचमी 5 फरवरी को शनिवार के दिन मनाई जाएगी. अगर आप भी विद्यार्थी हैं या किसी विशेष परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से काफी लाभ हो सकता है.प्रतियोगिता की तैयारी करने वालों के लिएअगर आप किसी उच्च शिक्षा या फिर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा के समय अपनी किताबों की भी पूजा करें और ब्राह्मण को वेदशास्त्र दान करें.पढ़ाई में मन न लगता हो तोअगर आपके बच्चों का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता है तो बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का चित्र अपने कमरे में लगाएं और हरे रंग का फल अर्पित करें.बच्चे को कुशाग्र बुद्धि का बनाने के लिएअगर आपका बच्चा ढाई से तीन साल का है, तो बसंत पंचमी के दिन चांदी की कलम या फिर अनार की लकड़ी से बच्चे की जीभ पर ॐ लिखें. इसके अलावा बच्चों को लाल कलम से एक नोटबुक पर ॐ ऐं लिखवाएं. इससे बच्चा कुशाग्र बुद्धि का और ज्ञानी बनता है.एकाग्रता बढ़ाने के लिएअगर बच्चे की एकाग्रता बढ़ानी है तो बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती के पूजन के बाद उसे छह मुखी रुद्राक्ष धारण करवाएं. पूजा के बाद बच्चे की स्टडी टेबल पर माता सरस्वती की तस्वीर स्थापित करें और बच्चे से कहें कि पढ़ाई से पहले नियमित रूप से माता को प्रणाम करना है. ऐसा रोजाना करने से मां सरस्वती का आशीर्वाद मिलेगा और एकाग्रता भी बढ़ेगी.
- हिंदू धर्म में रात में नाखूनों और बालों को काटना अशुभ बताया जाता है. मान्यता है कि शाम के समय देवी लक्ष्मी का घर में प्रवेश होता है. ऐसे में बालों और नाखूनों को काटने से घर में गंदगी होती है और इसे माता लक्ष्मी का अनादर माना जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं. इससे घर में धन हानि होती है और दरिद्रता आ जाती है. इस मान्यता को सच मानकर तमाम लोग इस नियम का पालन करते हैं. लेकिन वास्तव में हर मान्यता के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक तथ्य छिपा होता है, जिन पर अक्सर लोग ध्यान नहीं देते. यहां जानिए रात में नाखून और बाल न काटने की मान्यता के पीछे वास्तविक वजह क्या है !ये है वास्तविक वजहदरअसल इस तरह के कोई भी नियम काफी पहले बनाए गए हैं. उस समय में घरों में रोशनी के अच्छे प्रबंध नहीं हुआ करते थे. लोग जुगाड़ से किसी तरह रोशनी का प्रबन्ध करते थे. इस कारण ज्यादातर काम सूर्य अस्त होने से पहले ही निपटाने का नियम था. रात के समय कैंची से नाखून काटने से चोट लगने की आशंका रहती थी, वहीं बाल इधर उधर उड़ते थे. इसलिए हमारे पूर्वजों ने इस काम को रात में करने से मना किया. लोग इस नियम का पालन ठीक से करें, इसलिए इसे दुर्भाग्य का कारण बताकर धर्म से जोड़ दिया गया. तब से आज तक इस नियम का पालन किया जा रहा है.ये भी है कारणरात में बाल और नाखून न काटने का एक कारण ये भी था कि नाखून मजबूत होते हैं. इन्हें कैंची से काटने पर ये छिटक कर दूर गिरते हैं, वहीं बाल उड़कर गंदगी फैलाते हैं. ऐसे में इनके खाने की किसी चीज में पहुंचने की आशंका रहती थी. बालों और नाखूनों में कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं, जो खाने को दूषित करते हैं. ऐसे में व्यक्ति के पेट में भी गंदगी जाने की आशंका बढ़ जाती है. इस कारण रात के समय नाखून और बाल न काटने का नियम बना दिया गया.
- सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है. कुंडली में अगर सूर्य कमजोर स्थिति में हो या व्यक्ति सूर्य की महादशा को झेल रहा हो तो उसकी सेहत और मान-प्रतिष्ठा प्रभावित होती है. कॅरियर में तमाम समस्याएं आती हैं, जिससे आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है. व्यक्ति के संबन्ध पिता से बिगड़ने लगते हैं और निर्णय क्षमता भी कमजोर होने लगती है. यदि आपके जीवन में भी ऐसा कुछ घटित हो रहा है तो गुड़ से जुड़े कुछ उपाय करने से आपको राहत मिल सकती है. ज्योतिष में गुड़ को सूर्य का कारक माना गया है. यहां जानिए गुड़ से जुड़े कुछ ज्योतिषीय उपायों के बारे में.नौकरी के लिएअगर आपका कॅरियर मुश्किल में है और आप बेहतर नौकरी चाहते हैं, तो नौकरी की तलाश करने से पहले रोटी में गुड़ मिलाकर गाय को खिलाएं. इंटरव्यू के लिए जाते समय गुड़ खाकर और जल पीकर घर से निकलें. आपको इसके सकारात्मक परिणाम मिलेंगे.सूर्य की स्थिति को प्रबल करने के लिएसूर्य की कमजोर स्थिति को प्रबल करने के लिए रविवार के दिन 800 ग्राम गेंहू और इतनी ही मात्रा में गुड़ लेकर किसी मंदिर में रख देना दें. इसके अलावा नियमित रूप से सूर्य देवता को अर्घ्य देने की आदत डालें.तनाव दूर करने के लिएअगर तमाम परेशानियों को झेलते झेलते आपके जीवन में काफी तनाव आ गया है, जिसके कारण आप रात में ठीक से सो भी नहीं पाते, तो रविवार के दिन दो किलो गुड़ को एक लाल कपड़े में बांधकर अपने बेडरूम में किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें. इससे आपकी समस्या दूर हो जाएगी.पिता से संबन्ध सुधारने के लिएपिता का कारक सूर्य होता है. अगर सूर्य की अशुभ स्थिति के कारण पिता और पुत्र के संबन्धों में खटास आ गई है तो गुड़ का एक उपाय लगातार तीन रविवार तक करना चाहिए. इसके लिए सवा किलो गुड़ को बहते हुए जल में लगातार तीन रविवार तक प्रवाहित करें.यश प्राप्त करने के लिएसूर्य से जुड़ी बीमारियों में राहत पाने और मान-प्रतिष्ठा व यश में वृद्धि के लिए रोजाना तांबे के लोटे में रोली, अक्षत और थोड़ा गुड़ डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें. अगर रोजाना ये संभव न हो, तो कम से कम रविवार के दिन सुबह जल्दी उठकर ऐसा जरूर करें.
- फेंगशुई के अनुसार लाफिंग बुद्धा की मूर्ति नकारात्मकता को दूर करती है. आप इसे घरों, रेस्तरां, व्यवसाय के स्थानों आदि में रख सकते हैं. लाफिंग बुद्धा को घर या व्यवसाय में धन और समृद्धि लाने के लिए जाना जाता है. ये मूर्ति न केवल घर और कार्यालय की शोभा को बढ़ाती है बल्कि ये सकारात्मकता का संचार भी करती है. ये मूर्ति गुड लक लाने के लिए घर में रखी जाती हैं. लोग लाफिंग बुद्धा की मूर्ति को सुख-समृद्धि का प्रतीक मानते हैं. लाफिंग बुद्धा की मूर्ति कहां स्थापित करनी चाहिए और इस मूर्ति को कैसे रखा जाना चाहिए इसके क्या नियम हैं आइए जानें.कार्य डेस्क या स्टडी रूम में रखेंआप अपने ऑफिस में लाफिंग बुद्धा को अपने डेस्क पर रख सकते हैं. इससे आपको अपने करियर में बेहतरीन संभावनाएं तलाशने में मदद मिलती है. छात्र इस मूर्ति को अपने स्टडी टेबल पर रख सकते हैं. ऐसा करने से पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ती है. इसके अलावा ये मूर्ति नकारात्मकता ऊर्जा, झगड़ों और बहस को रोकने में मदद करती है. फेंगशुई के नियम के अनुसार लाफिंग बुद्धा को अपने घर में दक्षिण पूर्व दिशा में रखें. इससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है. घर के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम के लिए लाफिंग बुद्धा पूर्व दिशा में भी रख सकते हैं. लाफिंग बुद्धा दोनों हाथों को उठाकर हंस रहे हों ऐसी मूर्ति इस दिशा में रखें.लाफिंग बुद्धा रखने से कहां बचेंफेंगशुई और बौद्ध धर्म में लाफिंग बुद्धा का बहुत सम्मान किया जाता है. लाफिंग बुद्धा की मूर्ति पूजा और सम्मान की चीज है. अगर आप इस मूर्ति का अनादर करते हैं, तो कहा जाता है कि ये सब उलट देती है और दुर्भाग्य लाती है. ऐसा करने से नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. इसलिए इसे रखते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. इस मूर्ति को कभी भी बाथरूम, किचन या फर्श पर न रखें. फेंगशुई के अनुसार इन जगहों को अशुभ माना जाता है.कैसे रखेंमूर्ति की ऊंचाई कम से कम आंखों के स्तर पर होनी चाहिए. मूर्ति को नीचे से देखना सम्मान की बात है न कि ऊपर से नीची देखना. ये किसी भी छवि या मूर्ति के लिए अच्छा है जो धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व की है. ये महत्वपूर्ण है कि आप भाग्य को आकर्षित करने के लिए लाफिंग बुद्धा की मूर्ति को मुख्य द्वार की सामने स्थापित करें. आप लाफिंग बुद्धा को उपहार के रूप में भी दे सकते हैं. आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहें तो बुद्धा की मूर्ति घर पर ला सकते हैं. इससे न केवल घर की सुख शांति बनी रहेगी बल्कि आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा.वू लू धारण किए हुए लाफिंग बुद्धा को पूर्व दिशा में रखेंअपने और परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आप घर में वू लू धारण किए हुए लाफिंग बुद्धा की मूर्ति रख सकते हैं. इस मूर्ति को पूर्व दिशा में रखें. इससे घर के सभी सदस्यों की सेहत दुरूस्त रहेगी.
- हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस बार मौनी अमावस्या 01 फरवरी 2022 के दिन पड़ रही है। माघ अमावस्या पर गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है।हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व होता है। अमावस्या तिथि पर दान, स्नान और पूजा-पाठ करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस बार मौनी अमावस्या 01 फरवरी 2022 के दिन पड़ रही है। माघ अमावस्या पर गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। इस दिन मौन व्रत करके पितरों को तर्पण और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। माघ के महीने में अमावस्या तिथि पर पितृदोष से छुटकारा पाने के लिए विशेष तिथि होती है। इस दिन पितरगण को प्रसन्न करने के लिए गंगा स्नान के बाद उन्हें तर्पण, पिंडदान और दान करने की परंपरा होती है। सालभर में सभी पड़ने वाली सभी अमावस्या में मौनी अमावस्या पर पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए खास मानी गई है। मान्यता है मौनी अमावस्या तिथि पर कुछ उपाय करने से पितृदोष से मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं मौनी अमावस्या तिथि पर आप किन-किन उपायों का अपनाकर पितृदोष से मुक्ति पा सकते हैं।पितृदोष से मुक्ति पाने के उपाय- ऐसी मान्यता है कि भगवान सूर्य को रोजाना सुबह जल अर्पित करने से जातक के जीवन से सभी तरह दोष फौरन ही दूर हो जाते हैं। ऐसे में पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए मौनी अमावस्या पर पितरों का ध्यान करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें। सूर्यदेव को जल देने के साथ उसमें लाल फूल, काला तिल और अक्षत डालकर सूर्य मंत्र जरूर बोलें।- मौनी अमावस्या पर स्नान के बाद पीलल के पेड़ की पूजा जरूर करनी चाहिए। मान्यता है पीपल के पेड़ में सभी देवी- देवताओं समेत पितरगण भी निवास करते हैं। ऐसे में पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए और पितरों को तर्पण करने के लिए फूल,जल और दीपक जलाएं।- मौनी अमावस्या तिथि पर गंगास्नान के बाद गरीबों और जरूरमंदों को काले तिल से बने हुए लड्डू, तिल का तेल, कंबल और वस्त्रों का दान करना चाहिए। इस उपाय से पितृदोष की शांति होती है।- मौनी अमावस्या पर जानवरों को रोटी भी खिलाएं। इसके अलावा इस दिन चीटियों को आटे में चीनी मिलाकर खिलाने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।-
- किचन घर का अहम स्थान होता है. मान्यता है कि रसोई में मां लक्ष्मी और अन्नपूर्णा का वास होता है. इसलिए कहा जाता है कि किचन को हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिए. लेकिन कुछ बातों को नजरअंदाज करने में घर में नकारात्मक ऊर्जा फैलने लगती है. जिसका प्रभाव परिवार के सभी सदस्यों पर पड़ता है. वास्तु शास्त्र के मुताबिक किचन में कुछ वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि इससे परेशानियां बढ़ने लगती है. ऐसे में जानते हैं कि रसोई में कौन-कौन से सामान नहीं रखना चाहिए.आईना या शीशाघर को सुंदर बनाने के लिए कुछ लोग किचन में भी आईना लगवा लेते हैं. वास्तु शास्त्र के मुताबिक रसोई में आईना का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. दरअसल किचन में चूल्हा अग्नि देव का सूचक है. यदि दर्पण में अग्नि का प्रतिबिंब दिखाई देता है तो घर में अशुभ हो सकता है. इसके घर में आपसी कलह होता है. इसके अलावा घर की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ने लगती है.गुथा हुआ आटाअक्सर महिलाएं किचन में रोटी पकाने के बाद गुथा हुआ बचा आटा फ्रिज में रख देती हैं और सुबह फिर से इसका इस्तेमाल करती हैं. वास्तु के मुताबिक यह सही नहीं है. किचन में गुथा हुआ आटा रखने से शनि और राहु का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. जिस कारण जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं आती हैं.दवाईयांकिचन में काम करते वक्त चोट लगना या हाथ पकना आम बात है. इसके लिए दवाईयां या बैंडेज इत्यादि किचन में रख देते हैं, ताकि ये जरूरत पड़ने पर काम आए. लेकिन वास्तु शास्त्र के मुताबिक किचन में किसी भी प्रकार की दवाईयां नहीं रखनी चाहिए. क्योंकि इसका नरारात्मक असर सेहत पर पड़ता है. साथ ही अनावश्यक खर्च बढ़ने लगते हैं.टूटे हुए बर्तनकिचन में कई प्रकार के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है. कुछ बर्तन बहुत इस्तेमाल होने के बाद टूट जाते हैं. लेकिन कई बार कुछ हद तक टूटे बर्तनों के इस्तेमाल भी किए जाते हैं. लेकिन वास्तु के अनुसार ये अच्छा नहीं है. किचन में टूटे-फूटे बर्तनों का इस्तेमाल करने से परिवार में सदस्यों के बीच मतभेद बढ़ने लगता है.
- हिंदू धर्म में भगवान की पूजा-पाठ और उपासना करने का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि पूजा-पाठ, जाप और पूजा सामग्री अर्पित करने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं। हिंदू धर्म में कोई भी पूजा या धार्मिक अनुष्ठानों फूलों को अर्पित किए बिना पूरा नहीं माना जाता है। देवी-देवताओं की आराधना में शामिल सभी सामग्रियों में सबसे पहले और खास चीज पुष्प ही होते हैं। हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की अलग-अलग समय पर पूजा करने का विधान होता है और हर एक देवी-देवता की उपासना करने की विधि भी अलग-अलग होती है। शास्त्रों में बताया है कि कौन से फूल किस देवी-देवता को विशेष रूप से प्रिय होते हैं और कौन से फूल अर्पित करना वर्जित होता है। भगवान को उनके प्रिय फूल अर्पित करने पर वे जल्दी प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामनाएं जल्दी पूरा करते हैं।श्रीगणेशजी - सभी देवी-देवताओं में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। शास्त्रों का मानना है कि गणेशजी को तुलसीदल को छोड़कर सभी प्रकार के फूल चढाएं जा सकते हैं। गणेश जी को दूर्वा अत्यंत प्रिय है।भगवान शंकर- भगवान शिव ऐसे देवता हैं जो सिर्फ एक लोटे जल से प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव को धतूरे के फूल, हरसिंगार, नागकेसर के सफेद पुष्प, कनेर, कुसुम, आक, कुश आदि के फूल चढ़ाने का विधान है। भगवान शिव को केवड़े का फूल चढ़ाना वर्जित माना गया है।भगवान विष्णु- विष्णु भगवान तुलसी दल चढ़ाने से अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं। तुलसी के पत्ते के अलावा भगवान विष्णु को कमल, मौलसिरी, जूही, कदम्ब, केवड़ा, चमेली, अशोक, मालती, वासंती, चंपा, वैजयंती के फूल अति प्रिय हैं। कार्तिक मास में भगवान नारायण की केतकी के फूलों से पूजा करने का बहुत महत्व है। लेकिन विष्णुजी को आक और धतूरा नहीं चढ़ाना चाहिए।भगवान श्रीकृष्ण- भगवान श्रीकृष्ण को उनके बाल रूप में पूजा जाता है, जिसे लड्डू गोपाल कहते हैं। कान्हा जी को तुलसी का भोग बहुत ही प्रिय होता है। इसके अलावा भगवान कृष्ण को कुमुद, करवरी, चणक , मालत, पलाश व वनमाला के फूल प्रिय हैं।मां दुर्गा- मां दुर्गा को लाल रंग के पुष्य विशेष प्रिय होते हैं। खासतौर पर गुडहल और गुलाब के फूल। इसके अलावा बेला, सफेद कमल, पलाश, गुलाब, चंपा के फूल चढ़ाने से भी देवी प्रसन्न होती हैं।लक्ष्मीजी- मां लक्ष्मी का सबसे अधिक प्रिय पुष्प लाल और श्वेत कमल है। उन्हें पीला फूल चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है। इन्हें लाल गुलाब का फूल भी काफी प्रिय है।हनुमान जी - राम भक्त हनुमान को लाल रंग बहुत ही प्रिय होता है। हनुमानजी की पूजा में लाल पुष्प अर्पित करना विशेष फलदाई हैं। इसलिए इन पर लाल गुलाब, लाल गेंदा, गुड़हल व अनार आदि पुष्प चढ़ाए जाते हैं।मां काली- माँ काली की पूजा में लाल रंग के पुष्प चढ़ाए जा सकते हैं। गुड़हल का पुष्प इनको बहुत प्रिय हैं और मान्यता है कि इनको 108 लाल गुड़हल के फूल या माला अर्पित करने से मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है।मां सरस्वती - विद्या की देवी मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए सफेद या पीले रंग का फूल चढ़ाए जाते हैं। सफेद गुलाब , सफेद कनेर या फिर पीले गेंदे के फूल से भी मां सरस्वती वहुत प्रसन्न होती हैं।शनि देव - शनिदेव का प्रिय रंग नीला होता है। ऐसे में शनि देव को प्रसन्न करने के लिए नीले लाजवन्ती के फूल चढ़ाने चाहिए , इसके अतिरिक्त कोई भी नीले या गहरे रंग के फूल चढ़ाने से शनि देव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं।सूर्यदेव- भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए नियमित रूप से जल और लाल रंग के फूल चढ़ाने की परंपरा होती है।
- हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाया जाता है। षटतिला एकादशी व्रत में तिल का छ: रूप में उपयोग करना उत्तम फलदाई माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जो जितना तिल दान करता है, उतने हजार वर्ष तक स्वर्ग में स्थान पाता है। षटतिला एकादशी पर तिल को पानी में डालकर स्नान करने और तिल का दान करने का भी विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं कि षटतिला एकादशी की तिथि, पूजा का मुहूर्त, और पारण का समय क्या है-षटतिला एकादशी शुभ मुहूर्तषटतिला एकादशी तिथि आरंभ: 27 जनवरी, गुरुवार, रात्रि 02.16 सेषटतिला एकादशी तिथि समाप्तल 28 जनवरी, शुक्रवार रात्रि 11.35 परऐसे में षटतिला एकादशी का व्रत 28 जनवरी को रखा जाएगा।पारण तिथि: 29 जनवरी, शनिवार, प्रातः 07.11 से 09.20 तकषटतिला व्रत का महत्व-------------शास्त्रों के अनुसार हर एकादशी का अलग महत्व है। षट्तिला एकादशी के व्रत से घर में सुख-शांति के वास होता है। जो भी श्रद्धालु षट्तिला एकादशी का व्रत करते हैं उनको जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं मान्यता है कि व्यक्ति को जितना पुण्य कन्यादान और हजारों सालों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उतना ही पुण्य षट्तिला एकादशी का व्रत रखने से भी प्राप्त होता है। अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिल से जुड़ा हुआ है। तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दू धर्म में तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। विशेषकर पूजा में इनका विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।तिल के जल से स्नान करें--------------पिसे हुए तिल का उबटन करेंतिलों का हवन करेंतिल मिला हुआ जल पीयेंतिलों का दान करेंतिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएंमान्यता है कि इस दिन तिलों का दान करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।षटतिला एकादशी व्रत विधि ----षटतिला एकादशी व्रत रखने वाल श्रद्धालुओं को गंध, फूल, धूप दीप, पान सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार (सोलह सामग्रियों) से पूजा करें।उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाएं।रात को तिल से 108 बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा इस मंत्र से हवन करें।भगवान की पूजा कर इस मंत्र से अर्घ्य दें- सुब्रह्मण्य नमस्तेस्तु महापुरुषपूर्वज। गृहाणाध्र्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।।रात को भगवान के भजन करें, अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।इसके बाद ही स्वयं तिल युक्त भोजन करें।यह व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है।
- आमतौर पर लोग घर बनवाते वक्त किचन के लिए कम कम स्पेस रखते हैं. जिसे वास्तु शास्त्र के नजरिए से अच्छा नहीं माना गया है. दरअसल वास्तु शास्त्र के जानकारों का मानना है कि किचन बनवाते समय जगह का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि रसोई के उपकरण और सामग्री के लिए पर्याप्त जगह होना चाहिए. किचन में फ्रीज सहित अन्य उपकरण कहां रखना उचित होगा, इसके बारे में जानते हैं.-वास्तु शास्त्र के मुताबिक अग्नि तत्व से किचन का संबंध है. ऐसे में किचन का अग्नि कोन में होना बेदह जरूरी है. पूरब और दक्षिण के कोन को आग्नेय या अग्नि कोन कहते हैं. अग्नि के रजस गुण के कारण यह दिशा किचन के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है. यदि इस दिशा में किचन बनवाना संभव न हो तो उत्तर-पश्चिम के कोन में रसोई बनवाई जा सकती है.-वास्तु शास्त्र के मुताबिक किचन में चूल्हा आग्नेय कोण में रखना शुभ होता है. जबकि खाना पकाने वाले का मुंह पूरब दिशा में होना चाहिए. क्योंकि इससे घर में धन की वृद्धि होती है. साथ ही सेहत भी अच्छा रहता है.-किचन में पीने का पानी, हाथ या बर्तन धोने के लिए नल ईशान कोण में होना शुभ है. इसके अलावा किचन में सिंक यानि बर्तन धोने के लिए उत्तर-पश्चिम की दिशा शुभ होती है.-किचन में खाली सिलेंडडर नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में रखना चाहिए, जबकि उपयोग में आने वाला सिलेंडर दक्षिण दिशा की ओर रखना शुभ होता है. इसके अलावा किचन में चावल, आटा, दाल, मसाले के डिब्बे, बर्तन आदि दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना शुभ होता है.-किचन में टोस्टर, गीजर, आइक्रोवेव ओवन आग्नेय कोण में रखना चाहिए. जबकि मिक्सर, जूसर, आदि आग्नेय कोण के समीप दक्षिण दिशा में रखना चाहिए.-अगर किचन में फ्रीज रखना चाहते हैं तो इसके लिए दक्षिण या पश्चिम दिशा उपयुक्त मानी गई है. रेफ्रीजिरेटर को भूलकर भी ईशान या नैऋत्य कोण में नहीं रखना चाहिए. क्योंकि इससे वास्तु दोष उत्पन्न होता है.-अगर किचन में काले रंग का पत्थर लगा हुआ है तो इसके निगेटिव एनर्जी के दुष्प्रभाव से बचने के लिए रसोई में स्वास्तिक का चिह्न बना सकते हैं. इसके किचन का वातावरण सकारात्मक हो जाता है.
- हिंदू धर्म में काले तिल से पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। शनि देव की पूजा के दौरान उन्हें प्रसन्न करने के लिए भी काला तिल चढ़ाया जाता है। वहीं पूर्णिमा और अमावस्या के दिन काला तिल दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। कहते हैं कि भगवान विष्णु की उपासना के दौरान उन्हें तिल के लड्डू का भोग लगाना भी शुभ होता है। हालांकि, काले तिल के जुड़े कई उपायों को करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि भरा माहौल बना रहता है। हम आपको ऐसे ही कुछ उपायों की जानकारी देने जा रहे हैं।ग्रह दोष करें दूरज्योतिष शास्त्र के मुताबिक अगर कुंडली में ग्रह दोष है, तो इससे करियर और कारोबार में बाधा आती है। इतना ही नहीं इस प्रभाव से प्रभावित व्यक्ति की शारीरिक स्थिति भी ठीक नहीं रहती हैं। अगर कुंडली में शनि दोष है, तो इसके लिए आप काले तिल से उपाय कर सकते हैं। इसके लिए हर शनिवार को जल में तिल मिलाकर अघ्र्य दें। कहते हैं कि इससे हर तरह की समस्या का समाधान हो सकता है।पितृ दोषऐसा माना जाता है कि कभी-कभी पितृ दोष के कारण भी जीवन में समस्याएं बनी रहती हैं। पितृ दोष दूर करने के लिए आप तिल से जुड़े उपाय अपना सकते हैं। इसके लिए अमावस्या और पूर्णिमा के दिन तिल को दान करें। कहा जाता है कि अगर पितृ नाराज रहते हैं, तो जीवन में आर्थिक और शारीरिक दोनों तरह की परेशानियां बनी रहती हैं।कॅरिअर के लिएकभी-कभी कड़ी मेहनत और लगन के बावजूद लोगों को कॅरिअर में वो सफलता नहीं मिल पाती है, जिसकी तलाश में वे अक्सर रहते हैं। करियर में बेहतर मुकाम पाने के लिए काले तिल से जुड़े उपाय शुभ माने जाते हैं। इसके लिए मंगलवार या शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर तेल के साथ काले तिल भी चढ़ाएं। ऐसा करीब 11 मंगलवार या शनिवार को करें।सूर्य देव को करें प्रसन्नकुंडली में सूर्य अगर मजबूत हो तो जीवन में सुख एवं समृद्धि भरा माहौल बना रहता है। कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए काले तिल से पूजा-पाठ शुरू करें। वैसे इसके लिए स्नान कर तिलांजलि करना शुभ होता है। माना जाता है कि इससे कुंडली में सूर्य मजबूत होता है।
- हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि (Magh Month Panchami Tithi) को बसंत पंचमी (Basant Panchami) का त्योहार मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन ज्ञान और संगीत की देवी मां सरस्वती (Maa Saraswati) का उद्भव हुआ था. इसलिए ये दिन माता सरस्वती की आराधना का दिन माना जाता है. ज्ञान, वाणी और कला में रुचि वालों के लिए ये दिन बेहद खास होता है. ये भी कहा जाता है कि अगर किसी छोटे बच्चे को शिक्षा प्रारंभ करानी हो, तो इस दिन से शुरुआत कराएं, इससे बच्चे को माता सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वो बच्चा काफी कुशाग्र बुद्धि वाला और ज्ञानवान बनता है. इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 5 फरवरी को शनिवार के दिन मनाया जाएगा. जानें बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा के बारे में.बसंत पंचमी शुभ मुहूर्तहिंदू पंचाग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पंचमी 05 फरवरी सुबह 03 बजकर 47 मिनट से शुरू होगी और 06 फरवरी की सुबह 03 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी. इस तरह बसंत पंचमी का पर्व 5 फरवरी को मनाया जाएगा. पूजा के लिए शुभ समय सुबह 07 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 57 मिनट तक है. राहुकाल सुबह 09 बजकर 51 मिनट से दिन में 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगा. राहुकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है, इसलिए इस समय पर पूजन आदि न करें.बसंत पंचमी पूजा विधिसुबह स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें. चाहें तो दिन भर का व्रत रखें या पूजा करने तक व्रत रख सकते हैं. पूजा के स्थान की सफाई करके चौक लगाएं और इस चौक पर माता की चौकी रखें. उस पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं. माता सरस्वती की प्रतिमा रखें. उन्हें पीला चंदन, पीले पुष्प, पीले रंग के मीठे चावल, पीली बूंदी या लड्डू, पीले वस्त्र, हल्दी लगे पीले अक्षत अर्पित करें. धूप दीप जलाएं. इसके बाद बसंत पंचमी की कथा पढ़ें या सुनें. माता सरस्वती के मंत्रों का जाप करें. इसके बाद माता सरस्वती की आरती करें.बसंत पंचमी कथापौराणिक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की, तो महसूस किया कि जीवों की सृजन के बाद भी चारों ओर मौन व्याप्त है. इसके बाद उन्होंंने विष्णुजी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुईं. अत्यंत तेजवान इस शक्ति स्वरूप के एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में पुष्प, वीणा, कमंडल और माला वगैरह थी. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, चारों ओर ज्ञान और उत्सव का वातावरण उत्पन्न हो गया. वेदमंत्र गूंजने लगे. जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी. तब से इस दिन को माता सरस्वती के जन्म दिन तौर पर मनाया जाने लगा.
- हिंदू धर्म में व्रत और त्योहारों का सिलसिला चलता ही रहता है. फरवरी का महीना इस मामले में बेहद खास है. अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से फरवरी साल का दूसरा महीना है. लेकिन हिंदू कैलेंडर (Hindu Calendar) में फरवरी में साल के आखिरी दो महीने शामिल हैं. 16 फरवरी को माघ मास समाप्त होगा और इसके बाद फाल्गुन की शुरुआत होगी. इस तरह फाल्गुन का आधा महीना भी फरवरी में ही शामिल रहेगा. माघ और फाल्गुन के महीने (Phalguna Month) में व्रत और त्योहारों की भरमार होती है. कुछ ही दिनों में फरवरी का महीना शुरू होने वाला है, ऐसे में यहां जानिए फरवरी माह में आने वाले व्रत और त्योहारों के बारे में.फरवरी माह के प्रमुख व्रत और त्योहार की लिस्टभौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या – मंगलवार, 1 फरवरीमाघ गुप्त नवरात्रि – बुधवार, 2 फरवरीचतुर्थी व्रत – शुक्रवार, 4 फरवरीबसंत पंचमी – शनिवार, 5 फरवरीरथ सप्तमी, अचला सप्तमी – सोमवार, 7 फरवरीदुर्गा अष्टमी व्रत, भीष्म अष्टमी – मंगलवार, 8 फरवरीमहानंदा नवमी – बुधवार, 9 फरवरीरोहिणी व्रत – गुरुवार, 10 फरवरीजया एकादशी – शनिवार, 12 फरवरीविश्वकर्मा जयंती, प्रदोष व्रत – सोमवार, 14 फरवरीमाघ पूर्णिमा, गुरु रविदास जयंती, माघ स्नान समाप्त – बुधवार, 16 फरवरीसंकष्टी चतुर्थी – रविवार, 20 फरवरीबुद्ध अष्टमी व्रत, कालाष्टमी – बुधवार, 23 फरवरीश्री रामदास नवमी – शुक्रवार, 25 फरवरीस्वामी दयानंद सरस्वती जयंती – शनिवार, 26 फरवरीविजया एकादशी – रविवार, 27 फरवरीसोम प्रदोष व्रत – सोमवार, 28 फरवरीइन त्योहारों का है विशेष महत्वमौनी अमावस्या : मौनी अमावस्या को शास्त्रों में विशेष मान्यता दी गई है. मान्यता है कि इस नदियों में देवताओं का वास होता है. इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है.बसंत पंचमी : ये दिन मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस है. इस दिन माता सरस्वती की विशेष पूजा करने का विधान है.अचला सप्तमी : माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी और रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि इस दिन नदियों में स्नान और सूर्य को अर्घ्य देने और दान पुण्य करने से व्यक्ति को आयु, आरोग्य और सुख समृद्धि प्राप्त होती है.माघी पूर्णिमा : माघी पूर्णिमा को लेकर शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन स्वयं भगवान विष्णु गंगा नदी में निवास करते हैं. इस दिन पवित्र नदियों के घाट पर उत्सव जैसा माहौल होता है.एकादशी : हर माह में दो एकादशी पड़ती हैं. सभी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित हैं. एकादशी को श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है. फरवरी के महीने में जया एकादशी और विजया एकादशी पड़ेंगी.प्रदोष : हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. ये व्रत भगवान शिव को समर्पित है और हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला माना गया है.
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हरे रंग में हरी सब्जियां, दालें, बिस्तर, पेड़-पौधे और कपड़े आदि शामिल हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, हरे रंग से संबंधित चीजों को पूर्व या फिर दक्षिण-पूर्व दिशा यानी आग्नेय कोण में रखना अच्छा होता है। साथ ही घर में हरी घास के छोटे-से बगीचे को इन्हीं में से एक दिशा में बनाना चाहिए।
वास्तु शास्त्र की मान्यता-
वास्तु शास्त्र के अनुसार, हरे रंग और इन दिशाओं का संबंध काष्ठ यानी लकड़ी से है। इसलिए हरे रंग की वस्तुओं को दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना बेहद शुभ माना जाता है। पूर्व दिशा में हरे रंग की चीजें रखने से घर के बड़े बेटे को जीवन में तरक्की हासिल होती है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक, आग्नेय कोण में हरे रंग की चीजों को रखने से बड़ी बेटी को लाभ मिलता है। - एक सफल गृहस्थ जीवन के लिए पति-पत्नी के बीच गुणों का मिलना बहुत जरुरी होता है, ये गुण कुंडली के द्वारा मिलाए जाते हैं। वैवाहिक दृष्टि से कुंडली मिलान इन पांच महत्वपूर्ण आधार पर किया जाता है - कुंडली अध्ययन,भाव मिलान, अष्टकूट मिलान, मंगल दोष विचार, दशा विचार। उत्तर भारत में गुण मिलान के लिए अष्टकूट मिलान प्रचलित है जबकि दक्षिण भारत में दसकूट मिलान की विधि अपनाई जाती है। आइए जानते हैं क्या है ये अष्टकूट मिलान-वर्ण -(1 अंक)वर्ण का निर्धारण चन्द्र राशि से निर्धारण किया जाता है जिसमें 4(कर्क) ,8 (वृश्चिक) , 12 (मीन) राशियां विप्र या ब्राह्मण हैं 1(मेष ), 5(सिंह) ,9(धनु) राशियां क्षत्रिय है 2(वृषभ) , 6(कन्या) ,10(मकर) राशियाँ वैश्य हैं जबकि 3(मिथुन) ,7(तुला),11(कुंभ) राशियां शूद्र मानी गयी हैं।वश्य- (2अंक)वश्य का संबंध मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं- द्विपाद, चतुष्पाद, कीट, वनचर, और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है? द्विपदीय राशि के अंतर्गत मिथुन, कन्या, तुला और धनु राशि आती हैं। चतुष्पदी राशि के अंतर्गत मेष, वृषभ, मकर, जलचर राशि के अंतर्गत कर्क, मकर और मीन कीट राशि के अंतर्गत वृश्चिक राशि और वनचर राशि के अन्तर्गत सिंह राशि आती है।तारा (3 अंक)तारा का संबंध दोनों (वर-वधु )के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाए गए हैं- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं। वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक गिने और प्राप्त संख्या को 9 से भाग करें यदि शेष फल 3 ,5 , 7 आता है तो अशुभ होता है ,जबकि अन्य स्थिति मे तारा शुभ होता है तारा शुभ होने पर 1-1/2 अंक प्रदान करते हैं। ऐसा ही कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिन जाता है। अत: इस प्रकार दोनों के नक्षत्र से गिनने पर शुभ तारा आता है पूर्णांक 3 दिए जाते हैं, यदि एक शुभ और दूसरा अशुभ तारा आता है तो 1 - 1/2 अंक दिए जाते हैं अन्य स्थिति में कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।योनि (4अंक)जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है। विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं- अश्व, गज, मेष, सर्प, श्वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। जन्म नक्षत्र के आधार पर योनि निर्धारित होती हैं जिसका विवरण इस प्रकार से है - यदि योनियां एक ही है तो 4 अंक , यदि मित्र है तो 3 अंक , यदि सम है तो 2अंक , शत्रु है तो 1अंक , और यदि अति शत्रु है तो कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।ग्रह मैत्री (5 अंक)वर एवं कन्या के राशि स्वामी से ग्रह मैत्री देखी जाती है। राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है।गण ( 6 अंक )गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैं- देव, राक्षस और मनुष्य। हम इसे यह भी कह सकते हैं कि सभी नक्षत्रों को तीन समूहों देव, मनुष्य और राक्षस में बांटा गया है। अनुराधा , पुनर्वसु , मृगशिरा , श्रवण , रेवती , स्वाति , हस्त ,अश्विनी और पुष्य इन नौ नक्षत्रों का देव गण होता है। पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, भरणी और आद्रा इन नौ नक्षत्रों का मनुष्य गण होता है। मघा ,आश्लेषा, धनिष्टा ,ज्येष्ठा , मूल , शतभिषा , विशाखा , कृतिका ,और चित्रा का राक्षस गण होता है । इस प्रकार यदि वर-कन्या दोनों के गण एक ही हो तो पूर्णांक 6 अंक, वर देव गण हो कन्या नर गण की हो तो भी 6 अंक, यदि कन्या का देव गण हो वर का नर हो तो 5 अंक यदि वर राक्षस गण का हो कन्या देव गण की हो तो 1 अंक और अन्य परिस्थितियों में कोई अंक नहीं दिया जाता है।भकूट (7 अंक)भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एक-दूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जाना जाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है। वर और कन्या की चंद्र राशि के आधार पर भकूट देखा जाता है। वृष और मीन, कन्या और वृश्चिक, धनु और सिंह हो तो शून्य अंक, तुला और तुला, कर्क और मकर, मिथुन और कुंभ हो तो सात अंक और समान राशि होने पर भी 7 अंक प्राप्त होंगे।नाड़ी ( 8 अंक)जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन प्रकार की नाडिय़ां होती हैं आदि, मध्य और अंत्या। इस कूट मिलान में वर -कन्या की एक नाड़ी नहीं होनी चाहिए , यदि दोनों की अलग-अलग नाड़ी हो तो पूर्णांक 8 अंक दिए जाते हैं जबकि अन्य स्थिति में ( जहां दोनों की एक ही नाड़ी होती है) कोई भी अंक नहीं दिया जाता है। जन्म राशि एक किन्तु नक्षत्र भिन्न अथवा नक्षत्र एक परन्तु राशि भिन्न अथवा चरण भिन्न होने पर दोष नहीं माना जाता है।कितने गुण मिलने से विवाह माना जाता है उत्तमकुंडली में ये सभी मिलकर 36 गुण होते हैं, जितने अधिक गुण वर-वधू के मिलते हैं, विवाह उतना ही सफल माना जाता है।18 से कम- विवाह योग्य नहीं अथवा असफल विवाह18 से 25- विवाह के लिए अच्छा मिलान25 से 32- विवाह के उत्तम मिलान, विवाह सफल होता है32 से 36- ये अतिउत्तम मिलान है, ये विवाह सफल रहता है
- हिंदू धर्म में पेड़ पौधों की विशेषता और इनके धार्मिक महत्व के बारे में बताया गया है। इस कड़ी में आज हम बात करेंगे आक के पेड़ की। इस पेड़ को आम भाषा में आकड़ा, अकउआ और मदार के नाम से जाना जाता है। ये पौधा आपको राह चलते आसानी से किसी भी बंजर भूमि में देखने को मिल जाएगा। इसमें सफेद और हल्के बैंगनी रंग के फूल आते हैं। माना जाता है कि आक के पेड़ में स्वयं विघ्नहर्ता गणेश का निवास होता है। इसके फूल भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। कहा जाता है कि अगर शुभ मुहूर्त में इसे घर में लगाया जाए तो ये पौधा आपके बड़े बड़े काम बना सकता है। यहां जानिए इसके बारे में।गंभीर रोग भी पकड़ में आ जाताज्योतिषियों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की बीमारी पकड़ में न आ रही हो, तो आक की जड़ का उपाय मददगार हो सकता है। इसके लिए रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक की जड़ घर लेकर आएं और उसे गंगाजल से धो लें। इस जड़ पर सिंदूर लगाएं और गुग्गल की धूप दें। इसके बाद गणपति के 108 मंत्र का श्रद्धा के साथ जाप करें। इसके बाद जड़ को रोगी के सिर के ऊपर से 7 बार उतारें और शाम को किसी सुनसान जगह पर जाकर गाड़ दें। ऐसा करने के कुछ समय बाद ही आपको रोगी का रोग पकड़ में आ जाएगा।संतान सुख दिलाने में मददगारआक की जड़ को संतान सुख दिलाने वाला भी माना जाता है। जो महिला संतान सुख से वंचित हो वो पीरियड से निवृत्त होने के बाद आक की जड़ को अपनी कमर में बांध ले। इसे लगातार अगले पीरियड आने तक बांधे रहना है। माना जाता है कि ऐसा करने से महिला को सन्तान का सुख अवश्य मिलता है।टोने- टोटके को बेअसर करताअगर सफेद फूलों वाले आक के पौधे को रविपुष्य योग में घर के मुख्य दरवाजे के पास लगाया जाए तो ये ये पौधा घर को बुरी नजर, टोना-टोटका, तन्त्र-मन्त्र के दुष्प्रभाव से बचाता है। इसे लगाने से परिवार पर बुरी आत्माओं, दुर्भाग्य और दुष्ट-ग्रहों की वृद्धि का प्रभाव भी नहीं पड़ता। यदि किसी व्यक्ति पर तान्त्रिक अभिकर्म किया हुआ है तो आक का एक टुकड़ा अभिमन्त्रित करके कमर में बांधने से तान्त्रिक क्रिया निष्फल हो जाती है।सौभाग्य लाने वालाइस पेड़ को सौभाग्य लाने वाला माना जाता है। अगर आपका भाग्य आपका साथ नहीं देता तो इसकी जड़ को अभिमंत्रित करके दायीं भुजा पर बांधें और गणेश जी का सौभाग्य वर्धक सकटनाशन स्तोत्र का पाठ करें।
























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