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गेहूं की सरकारी खरीद 11 प्रतिशत कम, अब तक 196 लाख टन गेहूं खरीदा

नयी दिल्ली. सरकार ने चालू विपणन वर्ष 2024-25 में अब तक 196 लाख टन से अधिक गेहूं खरीदा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम समेत सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए इसकी सालाना जरूरत 186 लाख टन है। खाद्यान्न की खरीद और वितरण के लिए सरकार की नोडल एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) अब बफर स्टॉक बढ़ाने के लिए 2024-25 सत्र में 310-320 लाख टन गेहूं खरीद के अपने लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास कर रही है। जरूरत पड़ने पर खुदरा कीमतों को नियंत्रित करने के लिए खुले बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए इस स्टॉक का इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि रबी सत्र की प्रमुख फसल गेहूं की खरीद पिछले साल की समान अवधि के 219.5 लाख टन से अब तक 11 प्रतिशत कम हुई है। इसका मुख्य कारण मध्य प्रदेश और पंजाब में कम खरीद का होना है। इस बारे में पूछे जाने पर एफसीआई के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अशोक के मीणा ने कहा, ''हम अपनी अनुमानित खरीद लक्ष्य को हासिल करने की राह पर हैं क्योंकि पंजाब और हरियाणा में गेहूं की आवक बहुत अच्छी है।'' उन्होंने कहा कि एफसीआई अकेले इन दोनों राज्यों से लगभग 200 लाख टन गेहूं की खरीद करेगा। केंद्र ने विपणन वर्ष 2023-24 (अप्रैल-मार्च) में 261.97 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। अधिकांश खरीद अप्रैल-मई के दौरान की जाती है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुमानों के मुताबिक, गेहूं का उत्पादन फसल वर्ष 2023-24 में 1,120.19 लाख टन होगा, जबकि पिछले वर्ष में यह 1,105.54 लाख टन था। कुछ राज्यों में उम्मीद से अधिक पैदावार होने पर उत्पादन लगभग 1,150 लाख (115 मिलियन) टन तक भी पहुंच सकता है। सूत्रों के मुताबिक, एफसीआई ने विभिन्न राज्यों के करीब 16 लाख किसानों से 2,275 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 45,000 करोड़ रुपये का गेहूं खरीदा है। पंजाब और हरियाणा में इस समय गेहूं की फसल की आवक अच्छी है। एफसीआई को पंजाब से 130 लाख टन और हरियाणा से 70 लाख टन की खरीद की उम्मीद है। सूत्रों ने कहा कि एफसीआई मई से पहले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में खरीद अभियान तेज कर सकता है क्योंकि उसे यहां की मंडियों में फसलों के देर से आने की उम्मीद है। कीमतों को नियंत्रित करने के लिए जरूरत पड़ने पर खुला बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) लाने के लिए अतिरिक्त स्टॉक रखने के बारे में सोचा जा रहा है। पिछले साल इस योजना के तहत 100 लाख टन से अधिक गेहूं आटा मिलों और अन्य गेहूं आधारित उद्योगों को भेजा गया था। एफसीआई ने मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में गुणवत्ता मानदंडों में ढील दी है।
 एक सरकारी अधिकारी ने कहा, "मध्य प्रदेश में खरीद चिंता का विषय है। लेकिन हमें उम्मीद है कि इसमें तेजी आएगी।" मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद कम होने के पीछे दाल की खेती को अपनाना, खेत पर ही कारोबारियों द्वारा खरीदारी और अच्छी राशि प्राप्ति के लिए अनाज अपने पास रखने जैसे कई कारक हो सकते हैं। मध्य प्रदेश में अब तक गेहूं की खरीद 34.66 लाख टन ही हुई है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 55.59 लाख टन थी। बफर स्टॉक के संबंध में केंद्र के पास एक अप्रैल तक केंद्रीय पूल में 75.02 लाख टन गेहूं था, जबकि उस तारीख को बफर मानक 74.6 लाख टन था। एक जुलाई के लिए बफर मानक 275.8 लाख टन है। चावल के मामले में एफसीआई अधिकारी ने कहा कि स्थिति बहुत आरामदायक है। एफसीआई को सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए 400 लाख टन चावल की वार्षिक जरूरत के मुकाबले विपणन वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) में 540 लाख टन की खरीद की उम्मीद है। अधिकारी ने कहा, "चावल के मामले में हमारे पास एक साल का अतिरिक्त स्टॉक है।" चावल का बफर स्टॉक फिलहाल 532 लाख टन है। आम आदमी को राहत देने के लिए केंद्र ने अब तक 5.6 लाख टन 'भारत चावल' बेचा है। इसे 29 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दर पर बेचा जा रहा है। इसके अलावा लगभग 9.6 लाख टन गेहूं भी 'भारत आटा' में बदलने के लिए दिया गया है। यह आटा 27.50 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेचा जा रहा है।

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