आज भी प्रासंगिक हैं समर्थ रामदास स्वामी की ‘दासबोध’
- महाराष्ट्र मंडल पहुंची समर्थ विद्यापीठ सज्जनगढ़ की उपकुलपति प्राची भिडे
रायपुर। छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास स्वामी की ओर से लिखित दासबोध एक महत्वपूर्ण मराठी आध्यात्मिक ग्रंथ है। इसका अर्थ है शिष्य को सलाह। 17वीं शताब्दी में लिखी गई दासबोध अद्वैत वेदांत पर आधारित आध्यात्मिक विचार और दैनिक जीवन प्रथाओं पर मार्गदर्शन देता है। यह ग्रंथ और समर्थ रामदास स्वामी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस कालखंड में हुआ करते थे। उक्ताशय के विचार महाराष्ट्र मंडल पहुंचीं समर्थ विद्यापीठ सज्जनगढ़ की उप कुलपति प्राची भिडे ने व्यक्त किए।
आध्यात्मिक समिति के इस आयोजन में प्राची ने कहा कि समर्थ रामदास स्वामी ने मराठी में कहा है कि ‘केल्या नी होत आहे आधी केले च पाहिजे’ अर्थात करने से होता है, कुछ करोगे नहीं तो होगा कैसा। स्वामी के उपदेशों को जन- जन तक पहुंचाने के लिए श्री समर्थ विश्वविद्यालय की स्थापना आषाढ़ शुद्ध एकादशी शके 1908 (जुलाई 1986) के दिन शिवथरघल (महाड़ के पास), जिला रायगढ़ में दासबोध की जन्मस्थली में हुई थी। विश्वविद्यालय ने शुरुआती 25 वर्षों के दौरान 'भारतीय संस्कृति दर्शन परीक्षा' के नाम से अपनी परीक्षाएं आयोजित की। इन परीक्षाओं के नाम प्रथम, द्वितीया, मुमुक्षु, साधक और उपासक थे और मनोबोध परीक्षा भी आयोजित की जाती थी।
उन्होंने कहा कि अब समर्थबोध परीक्षा हिंदी भाषिकों के लिए भी उपलब्ध होगी। साहित्य व प्रश्नपत्र भी हिंदी में मिलेंगे। विद्यापीठ में शालेय विद्यार्थी व वरिष्ठ जनों के लिए परीक्षा आयोजित की जाती है। श्री समर्थ रामदास स्वामीजी के विचार राष्ट्र उन्नति के लिए आज भी अनुकरणीय है। सज्जनगढ़ में बच्चों के लिए शिविर आयोजित किया जाता है। इसमें 14 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे शामिल होते हैं। यहां आप लोगों के सहयोग से भी शिविर आयोजित करने की मंशा है। जल्द ही इस दिशा पर कार्य किया जाएगा।
समर्थ विद्यापीठ मध्य भारत विभाग के केंद्र संचालक डा. अश्विन भागवत ने कहा कि समर्थ रामदास स्वामी ने विश्व की चिंता करते हुए चार वर्ष तक एक स्थान पर खडे़ रहकर साधना की। समर्थ संत परंपरा के दैदिप्यमान व्यक्तित्व है। उन्होंने पूरे देश में 1100 मठ का निर्माण करवाया। मठ क़ो स्वावलंबी बनाया और उनका व्यवस्थापन भी करवाया।
समर्थ विद्यापीठ मध्य भारत विभाग की नागपुर विभाग प्रमुख सौ. प्रज्ञा पुसदकर, महाराष्ट्र मंडल के सचिव आचार्य चेतन दंडवते ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। इससे पूर्व अतिथियों को स्वागत सूत की माला और शाल, श्रीफल भेंटकर किया गया।
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