सप्रे को ताउम्र पत्रकारिता का दिया वचन माखनलाल ने निभाया: शशांक
-महाराष्ट्र मंडल में आयोजित सप्रे जयंती समारोह में ‘वीणा’ के संपादक राकेश शर्मा को ‘छत्तीसगढ़ मित्र पं. माधवराव सप्रे साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान’
रायपुर। पं. माधवराव सप्रे ने निबंध स्पर्धा के विजेता माखनलाल चतुर्वेदी को 25 रुपये का इनाम देते हुए गुरु के रूप में उनसे एक वचन भी लिया था कि उम्रभर पत्रकारिता करते हुए लोगों को जागरूक करेंगे। माखनलाल जीवनभर सप्रे को दिए हुए वचन का पालन करते हुए अपनी पत्रकारिता से लोगों को जागरूक करते रहे। इस आशय के विचार माधवराव सप्रे जयंती समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष शशांक शर्मा ने व्यक्त किए।
महाराष्ट्र मंडल, छत्तीसगढ़ मित्र, छत्तीसगढ़ साहित्य व संस्कृति संस्थान के इस आयोजन में ‘वीणा’ के संपादक राकेश शर्मा को ‘छत्तीसगढ़ मित्र पं. माधवराव सप्रे साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान’ से सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथि शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि साल 1890 में जो राष्ट्रवाद था, वह 1980 के बाद उदारीकरण के दौर में कहीं खो गया। भारत में उदारीकरण कुछ मामलों में सही नहीं था, तो बहुत से मामलों में बिल्कुल सही था, जैसे उदारीकरण के कारण अब उत्तर भारत के लोग दक्षिण में रोजगार सहित विभिन्न कारणों से जाने लगे। तो दक्षिण के लोग उत्तर भारत आने लगे। देखते ही देखते दोनों ही क्षेत्रों के व्यंजन एक- दूसरे के क्षेत्रों में पसंद किए जाने लगे। वहीं नए वैवाहिक संबंधों के लिए भी लोगों के व्यवहार में उदारीकरण आ गया।
साधन से नहीं साधना से पत्रिका को सप्रे ने किया खडा: कर
कार्यक्रम के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध भाषाविद चितरंजन कर ने कहा कि 125 साल पहले पं. माधवराव सप्रे ने छत्तीसगढ. मित्र को साधन से नहीं साधना से खड़ा किया और तीन सालों तक विकट परिस्थितियों में प्रकाशित भी किया। सप्रे ने साबित किया कि व्यक्ति साधन से नहीं, साधना से बड़ा होता है। कर ने कहा कि एक बार गणेश शंकर विद्यार्थी ने कहा था कि यदि कोई मुझसे देश की आजादी या भाषा की आजादी में से कोई एक चुनने कहे, तो मैं भाषा की आजादी चुनूंगा क्योंकि बिना भाषा के देश खड़ा ही नहीं हो सकता। वहीं रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि हिंदी भाषा को सैकड़ों भाषा से इनपुट मिलता है। अनेक भाषा इसमें समाहित हैं। सप्रे को अंग्रेजियत से नफरत थी, अंग्रेजी से नहीं। वहीं आज की पीढ़ी भी उसी अंग्रेजियत से पीड़ित है जिनकी भाषा मैं एचुअली, बट, एंड जैसे अनेक अंग्रेजी शब्द ठूंसे हुए लगते हैं।
हिंदी पत्रकारिता अंग्रेजी की गोद में: गिरीश पंकज
इस मौके पर गिरीश पंकज ने कहा कि देश की आजादी से दशकों साल पहले शुरू हुई स्वदेशी पत्रकारिरता आज अंग्रेजी की बैसाखी पर चल रही है, या यह कहें कि अंग्रेजी की गोद में है। गांधी की पत्रकारिता में गांव था। वे गांव को समृद्धशाली बनाने के पक्षधर थे और आज की पत्रकारिता में गांव ही गायब है। स्वदेशी की हिंदी पत्रकारिता के लिए हमें अपना दायित्व निभाना होगा। खुलकर सामने आना होगा। हमें गांव में जाकर वहां की संस्कृति और परंपरा को फिर जीवित करना होगा।
समाज को सबसे ज्यादा साहित्य की जरूरत: राकेश शर्मा
पं. माधवराव सप्रे सम्मान से सम्मानित ‘वीणा’ के संपादक राकेश शर्मा ने कहा कि भारत जागेगा, तो दुनिया को नई दिशा मिलेगी। आज जहां हमारा समाज बैठा है, वहां पत्रकारों को नहीं बैठना है बल्कि लोगों को जगाना है। महात्मा गांधी ने कहा था कि जहां तक हमारी सभ्यता हमारे पुरखे देख रहे हैं, मुझे संदेह है कि कोई दूसरा अपनी सभ्यता को देख पाएगा। शर्मा ने कहा कि समाज को सबसे ज्यादा साहित्य की जरूरत है। इंसान जितना साहित्य से दूर होगा, उतना ही समाज तो जाने दीजिए... अपने आप से ही दूर होता जाएगा। सप्रे जयंती समारोह में बड़ी संख्या में साहित्यकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की।
कार्यक्रम में 'छत्तीसगढ़ मित्र' के जून 2025 अंक का विमोचन व डा. सीमा अवस्थी और डा. सीमा निगम लिखित ‘ऑपरेशन सिंदूर, डा. सुरेंद्र कुमार तिवारी की पुस्तक 'काबुई ग्रामर एंड वोकेबलेरी', डा. ऋचा यादव द्वारा लिखित 'पर्यावरणीय मुद्दे और सामाजिक परिप्रेक्ष्य' और दीप्ति श्रीवास्तव द्वारा लिखित 'मां उदास क्यूं है' का विमोचन भी मंचस्थ अतिथियों ने इनके लेखकों, कवियों- कवियत्रियों के साथ किया। मराठी और हिंदी लेखक प्रो. अनिल कालेले, भाऊराम ढोमने, शशि वरवंडकर और भिलाई से अनिता करडेकर व त्र्यंबक राव साटकर को भी इस अवसर पर सम्मानित किया गया।
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