ईमानदारी का थर्मामीटर
लघुकथा
- स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
स्वाति आज पहली बार सीमा के साथ बाजार गई थी । उसने देखा सीमा कुछ चुनिंदा दुकानदारों से ही खरीदारी कर रही थी । उसके कई काम की चीजें उनके पास न होने पर वह किसी और से वह सामान नहीं खरीद रही थी बल्कि उन्हें ही अगली बार मँगाकर रखने के लिए कह रही थी । स्वाति ने सीमा को किसी भी दूसरे दुकानदार से वह सामान खरीदने को कहा तो उसने मना कर दिया यह कहकर कि वे ईमानदार नहीं हैं ।
थोड़ी देर में किसी का चेहरा देखकर तुम कैसे कह सकती हो कि यह ईमानदार है या बेईमान ?" स्वाति ने अपनी शंका प्रकट करते हुए कहा । " मैं जान - बूझकर कई बार उन्हें दो - चार रुपये अधिक दे देती हूँ जो ईमानदार होते हैं वे सच बताते हुए पैसे वापस कर देते हैं , खोटी नीयत वाले चंद रुपयों के लाभ का मोह नहीं छोड़ पाते और ग्राहकों का विश्वास खो देते हैं । बस , यही है मेरा ईमानदारी परखने का थर्मामीटर "।स्वाति को भी भा गया था यह थर्मामीटर ।
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