सरस्वती वंदना
लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
नमन करूँ हे मात शारदे,
मुझको नित ही ज्ञान मिले ।
कलम करे शुचि कर्म निरंतर ,
लेखन को पहचान मिले ।।
द्वेष-दंभ छल कलुष भाव से ,
अंतस मेरा दूर रहे ।
गंगाजल सम निर्मल जीवन ,
खुशियों से भरपूर रहे ।
बढ़ती रहूँ सत्य के पथ पर ,
राह नहीं तूफान मिले ।
हृदय बने विशाल सागर सम ,
लहरों-सा उत्थान मिले ।।
अधरों पर मुस्कान सजाए ,
मधुरिम मीठी वाणी हो ।
शुभता का उजियारा मन में ,
कर्म सदा कल्याणी हो ।
स्नेह मिले मुझको अपनों का ,
ज्ञानी मित्र सुजान मिले ।
सुंदर , सरल , सहज हो जीवन ,
कभी नहीं अपमान मिले ।।
सुमन सरिस सुरभित सुंदर ,
मृदुल मनोहर मन मेरा ।
निशिगंधा-सी महकीं रातें ,
सुखद प्रात का पग-फेरा ।
साहस संबल सदा साथ हो ,
प्यार , मान - सम्मान मिले ।
क्षणिक सुखद यश-वैभव होते ,
भक्ति-शक्ति वरदान मिले ।।
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