सजल
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
बातें सुनना और सुनाना अच्छा लगता है।
कभी-कभी खुद में खो जाना अच्छा लगता है ।।
फिक्र सदा ही करते आए दुनिया वालों की।
अपने को भी कभी मनाना अच्छा लगता है।।
जिम्मेदारी के साये में भूल गए बचपन।
उन गलियों में दौड़ लगाना अच्छा लगता है।।
रेशम से रिश्तों के सारे रेशे हैं उलझे ।
धीरे-धीरे सब सुलझाना अच्छा लगता है।।
बुजुर्गों की दुआओं से ऐसे कुछ लोग मिले।
कड़ी धूप में छाया पाना अच्छा लगता है।।
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