तलत महमूद-कह गए थे...मेरी याद में तुम न आंसू बहाना...
- 24 फरवरी जयंती पर विशेष
ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि तलत महमूद ने कई फिल्मों में तपन कुमार के नाम से भी गीत गाए थे। ये उन दिनों की बात थी जब वो हिंदी सिनेमा में अपना सफर शुरू कर रहे थे। उन्होंने सोलह साल की उम्र में ही पहली बार आकाशवाणी के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड करवाया था. इस गाने को लखनऊ शहर में काफी प्रसिद्धि मिली। इसके बाद प्रसिद्ध संगीत कंपनी एचएमवी की एक टीम लखनऊ आई और इस गाने के साथ-साथ तीन और गाने तलत से गवाए गए। इस सफलता से तलत की किस्मत चमक गई। यह वह दौर था, जब सुरीले गायन और आकर्षक व्यक्तित्व वाले युवा हीरो बनने के ख्वाब संजोया करते थे। तलत के यादगार नगमों में -मेरी याद में तुम न आँसू बहाना, न जी को जलाना, मुझे भूल जाना और जलते हैं जिसके लिये, तेरी आँखों के दिये के अलावा कई गीत हैं, जो लोगों की जुबां पर हमेशा रहते हैं।
तलत महमूद का जन्म उत्तरप्रदेश लखनऊ के एक खानदानी मुस्लिम परिवार में 24 फरवरी, 1924 को हुआ था। उनके पिता का नाम मंजूर महमूद था। तीन बहन और दो भाइयों के बाद तलत महमूद छठी संतान थे। घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश इन्हें मिला। इनकी बुआ को तलत की आवाज की 'लरजिशÓ पसंद थी। भतीजे तलत महमूद बुआ से प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे। इसी रुझान के चलते 'मोरिस संगीत विद्यालयÓ, वर्तमान में 'भातखंडे संगीत विद्यालयÓ में उन्होंने दाखिला लिया। प्रथम गायकी शुरुआत में तलत महमूद ने लखनऊ आकाशवाणी से गाना शुरू किया।
तलत महमूद गायक और अभिनेता बनने की चाहत लिए 1944 में कोलकाता चले गए। उन्होंने शुरुआत में तपन कुमार के नाम से गाने गाए, जिनमें कई बंगाली गाने भी थे। कोलकाता में बनी फिल्म 'स्वयंसिद्धाÓ (1945) में पहली बार उन्होंने पाश्र्वगायन किया। 1949 में वो अपनी तकदीर आजमाने बंबई पहुंचे। तलत की प्रसिद्धि उनके पहुंचने से पहले ही वहां पहुंच चुकी थी। अनिल बिस्वास ने उन्हें पहला ब्रेक दिया। उन्होंने दिलीप कुमार की फिल्म 'आरज़ूÓ के लिए 'ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल, जहाँ कोई न होÓ गाया।
तलत के यादगार नगमें--
--सुजाता- 1959
जलते हैं जिसके लिये, तेरी आँखों के दिये
ढूँढ लाया हूँ वही, गीत मैं तेरे लिये
जलते हैं जिसके लिये
---छाया-1961
इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा
के मैं एक बादल आवारा
कैसे किसी का सहारा बनूँ
के मैं खुद बेघर बेचारा
--मिर्जा गालिब-1954
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही, ये माजरा क्या है
--बाबुल-1950
मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का
अफ़साना मेरा बन गया, अफ़साना किसी का
अफ़साना मेरा बन गया, अफ़साना किसी का
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