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प्रधानमंत्री मोदी और साइप्रस के राष्ट्रपति ने पश्चिम एशिया, यूरोप में जारी संघर्षों पर चिंता जताई

निकोसिया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि उन्होंने और साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस ने पश्चिम एशिया और यूरोप में चल रहे संघर्षों पर ‘‘चिंता जताई'' और उन दोनों का मानना है कि ‘‘यह युद्ध का युग नहीं है।'' मोदी ने क्रिस्टोडौलिडेस के साथ द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर विस्तृत चर्चा के बाद यह बात कही। दोनों नेताओं ने रक्षा, सुरक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु न्याय जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर वार्ता की। उन्होंने पश्चिम एशिया और यूरोप में संघर्षों सहित क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की।

  अपनी यात्रा के दौरान, मोदी और क्रिस्टोडौलिडेस ने एक इमारत की छत से निकोसिया के निकटवर्ती पहाड़ों को भी देखा, जो तुर्किये के नियंत्रण में हैं। इससे तुर्किये को एक संदेश मिला होगा, जिसने हाल में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान खुलकर इस्लामाबाद का समर्थन किया था। प्रधानमंत्री की साइप्रस यात्रा इस द्वीपीय देश के तुर्किये के साथ तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर महत्वपूर्ण है। मई में भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर चलाए जाने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा है।
  पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में चलाये गए ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकी ढांचे नष्ट कर दिये गए थे। दो दशकों से अधिक समय में साइप्रस की यात्रा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी वार्ता के बाद क्रिस्टोडौलिडेस के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हम सीमा पार से होने वाले आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में साइप्रस के समर्थन के लिए आभारी हैं।'' वार्ता के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि साइप्रस और भारत अंतरराष्ट्रीय एवं सीमापार से होने वाले आतंकवाद के अलावा हिंसक चरमपंथ की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं तथा शांति और स्थिरता को कमजोर करने वाले हाइब्रिड खतरों का मुकाबला करने के लिए अपनी साझा प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं। उन्होंने आतंकवाद को ‘‘कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति'' का जिक्र करते हुए, किसी भी परिस्थिति में ऐसे कृत्यों को उचित ठहराये जाने को खारिज कर दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमलों के लिए जिम्मेदार लोगों को ‘‘जवाबदेह'' ठहराया जाना चाहिए। मोदी ने किसी देश का नाम लिए बिना कहा, ‘‘हम दोनों ने पश्चिम एशिया और यूरोप में चल रहे संघर्षों पर चिंता व्यक्त की। उनका नकारात्मक प्रभाव केवल उन क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है। हम दोनों का मानना है कि यह युद्ध का युग नहीं है। बातचीत के माध्यम से समाधान और स्थिरता बहाल करना मानवता की मांग है।'' साइप्रस के राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमारे बीच ऐतिहासिक मित्रता है और संबंधों में विश्वास है।''
उन्होंने 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले को याद किया और कहा कि साइप्रस भारत के साथ ‘‘पूरी एकजुटता'' से खड़ा है। उन्होंने कहा कि साइप्रस आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ खड़ा है। राष्ट्रपति क्रिस्टोडौलिडेस ने यह भी कहा कि दोनों पक्षों ने साइप्रस मुद्दे पर भी चर्चा की और कहा कि साइप्रस विवादित उत्तरी क्षेत्र में तुर्किये के ‘‘अवैध कब्जे'' को समाप्त करना चाहता है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत और उसके लोगों के समर्थन के लिए हम साइप्रस गणराज्य की ओर से आभार व्यक्त करते हैं।'' उन्होंने साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भारत के योगदान का हवाला दिया। संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि साइप्रस और भारत ने ‘‘संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित प्रयासों को पुनः आरंभ करने के प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता व्यक्त की, ताकि संयुक्त राष्ट्र की सहमति वाले ढांचे और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुरूप, राजनीतिक समानता के साथ द्वि-क्षेत्रीय, द्वि-सामुदायिक संघ के आधार पर साइप्रस समस्या का व्यापक और स्थायी समाधान किया जा सके।'' इसमें कहा गया है, ‘‘भारत ने साइप्रस गणराज्य की स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और एकता के लिए अपने निरंतर समर्थन को दोहराया। इस संबंध में, दोनों पक्षों ने सार्थक वार्ता की बहाली के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के वास्ते एकतरफा कार्रवाई से बचने की आवश्यकता पर जोर दिया।'' पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित द्वीप राष्ट्र साइप्रस और पड़ोसी तुर्किये के बीच संबंध असहज रहा है। साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की वेबसाइट के अनुसार, तुर्किये सरकार ने 1960 की गारंटी संधि का हावाला देते हुए साइप्रस के उत्तरी तट पर एक व्यापक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः निकोसिया के उत्तर में मुख्य तुर्किये साइप्रस एन्क्लेव पर कब्जा कर लिया गया था। वर्ष 1974 में, भारत ने साइप्रस गणराज्य की संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के समर्थन में दृढ़ रुख अपनाया था। अपने प्रेस वक्तव्य में मोदी ने कहा कि उनकी यात्रा भारत-साइप्रस द्विपक्षीय संबंधों में एक नया अध्याय लिखने का ‘‘स्वर्णिम अवसर'' है। मोदी ने कहा कि साइप्रस के ‘विजन 2035' और विकसित भारत 2047 की दृष्टि में कई समानताएं हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस यात्रा के संबंध में ‘एक्स' पर एक पोस्ट में लिखा, ‘‘भारत-साइप्रस संबंधों को और प्रगाढ़ करने के लिए एक नयी गति।'' उन्होंने कहा कि प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के दौरान, दोनों नेताओं ने व्यापार और निवेश, आतंकवाद-निरोध और संस्कृति के पारंपरिक क्षेत्रों के साथ-साथ रक्षा उद्योग, कनेक्टिविटी, नवाचार, पर्यटन और गतिशीलता के नए क्षेत्रों में सहयोग को प्रगाढ़ करने के तरीकों पर चर्चा की। मोदी ने कहा कि साइप्रस भारतीयों के लिए भी पसंदीदा पर्यटन स्थल है और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ान के लिए प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने कहा, ‘‘सांस्कृतिक संबंधों को कैसे प्रगाढ़ किया जाए, हमने इस पर भी चर्चा की। साइप्रस में योग और आयुर्वेद की लोकप्रियता बढ़ रही है, जिसे देखकर खुशी होती है। पर्यटन एक और क्षेत्र है, जहां काफी संभावनाएं हैं। हमने संपर्क को बेहतर बनाने के तरीकों पर भी विचार-विमर्श किया।'' भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) और भारत-यूरोपीय संघ संबंधों पर भी उनकी बातचीत के दौरान चर्चा हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने साइप्रस के राष्ट्रपति को भारत आने का न्योता भी दिया।
मोदी ने संशोधित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए साइप्रस द्वारा समर्थन दोहराये जाने को लेकर राष्ट्रपति का आभार जताया।

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