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 बच्चों को बचकाने नहीं समृद्ध और गहरे साहित्य की जरूरत: सुशील शुक्ल

नयी दिल्ली.।  साहित्य अकादमी द्वारा बुधवार को हिंदी कहानी संग्रह ‘एक बटे बारह' के लिए वरिष्ठ रचनाकार सुशील शुक्ल को प्रतिष्ठित बाल साहित्य पुरस्कार दिए जाने की घोषणा किए जाने के बाद शुक्ल ने इस पर प्रसन्नता जाहिर करने के साथ ही कहा कि आज के समय में बच्चों को बचकाने नहीं समृद्ध और गहरे साहित्य की जरूरत है। पुरस्कार की घोषणा किए जाने के बाद सुशील शुक्ल ने  कहा,‘‘हमें प्रयास करना चाहिए कि बच्चों का साहित्य, कहानी, कविताएं केवल बच्चों की होकर न रह जाएं। उसका विषय ऐसा हो कि हर उम्र का व्यक्ति उनसे संवाद स्थापित कर सकें।'' उनका कहना था कि बाल साहित्य की विषय वस्तु समृद्ध होनी चाहिए।
शुक्ल ने कहा कि उनका कहानी संग्रह ‘एक बटे बारह' इसी तरह से लिखा गया है कि बच्चों के साथ ही हर उम्र का पाठक उससे जुड़ाव महसूस करता है और अपने लिए भिन्न भिन्न अर्थ लेकर लौटता है। उन्होंने पुरस्कार की घोषणा पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा, ‘‘ बहुत अच्छा लग रहा है, सुखद है कि साहित्य अकादमी ने बाल साहित्य जैसे कुछ नजरअंदाज इलाके में भी पुरस्कार स्थापित किया और इस इलाके में हो रहे काम को सराहा।'' उन्होंने कहा कि यह इस सोच को पुरस्कार मिला है कि बच्चों के लिए बचकाना साहित्य नहीं बल्कि समृद्ध एवं गहरा साहित्य जरूरी है। पिछले 18 वर्षों से बाल साहित्य के क्षेत्र से जुड़े सुशील शुक्ल तक्षशिला के बाल साहित्य एवं कला केंद्र, एकतारा के निदेशक पद के साथ ही, बच्चों की दो पत्रिकाओं- प्लूटो और साइकिल के संपादक भी हैं। वह चकमक के संपादक भी रहे हैं। लेखक ने बाल साहित्य पुरस्कार को अपनी मां को समर्पित किया जिन्होंने उन्हें देखना सिखाया। सुशील शुक्ल को उनकी पुस्तक "एक बटे बारह" के लिए वर्ष 2024 का "हरिकृष्ण देवसरे बालसाहित्य पुरस्कार" भी प्रदान किया जा चुका है। 
संवाद का सम्मान हुआ ;  पार्वती 
साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार के लिए चयनित आदिवासी कवयित्री पार्वती तिर्की का कहना था कि काव्य कर्म वास्तव में कविताओं के माध्यम से संवाद की कोशिश है और उन्हें इस बात की खुशी है कि इस संवाद का सम्मान हुआ है। झारखंड के कुडुख आदिवासी समुदाय से आने वाली कवयित्री पार्वती तिर्की को उनके कविता-संग्रह ‘फिर उगना' के लिए साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार 2025 से सम्मानित किए जाने की बुधवार को घोषणा हुई है। सोलह जनवरी 1994 को झारखंड के गुमला जिले में जन्मीं पार्वती तिर्की ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से हिन्दी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद वहीं के हिन्दी विभाग से ‘कुडुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष' विषय पर पी-एच.डी. की डिग्री हासिल की। उन्होंने बताया कि उनकी विशेष अभिरुचि कविताओं और लोकगीतों में है। वे कहानियाँ भी लिखती हैं।
‘फिर उगना' पार्वती तिर्की की पहली काव्य-कृति है जो वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी। इस संग्रह की कविताएँ सरल, सच्ची और संवेदनशील भाषा में लिखी गई हैं, जो पाठक को सीधे संवाद की तरह महसूस होती हैं। इन कविताओं में धरती, पेड़, चिड़ियाँ, चाँद-सितारे और जंगल सिर्फ़ प्रतीक नहीं हैं—वे कविता के भीतर एक जीवंत दुनिया की तरह मौजूद हैं। पार्वती तिर्की अपनी कविताओं में बिना किसी कृत्रिम सजावट के आदिवासी जीवन के अनुभवों को कविता का हिस्सा बनाती हैं। वे आधुनिक सभ्यता के दबाव और आदिवासी संस्कृति की जिजीविषा के बीच चल रहे तनाव को भी गहराई से रेखांकित करती हैं। उनका यह संग्रह एक नई भाषा, एक नई संवेदना और एक नए दृष्टिकोण की उपस्थिति दर्ज़ कराता है।

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