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निर्भया कोष की मदद से महिलाओं के लिए 854 ‘वन-स्टॉप' केंद्र स्थापित किए गए: अन्नपूर्णा देवी

नयी दिल्ली.  महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने शनिवार को कहा कि हिंसा से पीड़ित महिलाओं को आश्रय, परामर्श, चिकित्सा सहायता और कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए निर्भया कोष की मदद से पूरे भारत में महिलाओं के लिए 854 ‘वन-स्टॉप' केंद्र स्थापित किए गए हैं। अन्नपूर्णा देवी 'बालिकाओं की सुरक्षा: भारत में उनके लिए सुरक्षित और सक्षम वातावरण की दिशा में' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय वार्षिक हितधारक परामर्श को संबोधित कर रही थीं। इसका आयोजन ‘यूनिसेफ इंडिया' के सहयोग से उच्चतम न्यायालय की किशोर न्याय समिति द्वारा किया गया था। यह कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया, जिसके बारे में मंत्री ने कहा कि इससे चर्चा "विशेष रूप से सार्थक" रही। देवी ने कहा कि पिछले साल भारत में कानूनी रूप से गोद लिए गए बच्चों में 56 प्रतिशत लड़कियां थीं, जो सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव को दर्शाता है। उन्होंने कहा, ‘‘अब लड़कियों को बोझ नहीं, बल्कि आशा की किरण समझा जाता है।''
मंत्री ने महिला हेल्पलाइन 181, पुलिस थानों में महिला हेल्प डेस्क, कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास और शक्ति साधन जैसी पहलों और महिलाओं की सुरक्षा एवं आत्मनिर्भरता को मजबूत करने में उनकी भूमिका के बारे में भी बात की। उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘यह केवल एक नीतिगत चर्चा नहीं है, बल्कि हमारे राष्ट्र के भविष्य, हमारी सामाजिक चेतना और हमारी नैतिक जिम्मेदारी का एक जीवंत उदाहरण है।" कार्यक्रम में भारत के प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और अन्य लोग भी शामिल थे। देवी ने कहा कि "नारी शक्ति" प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण के मूल में है और मिशन शक्ति, मिशन वात्सल्य और मिशन पोषण 2.0 के माध्यम से सरकार का एकीकृत दृष्टिकोण महिलाओं की सुरक्षा, सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने लड़कियों की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए एक जीवन-चक्र दृष्टिकोण अपनाया है। हमारी सरकार की हर योजना में महिला सशक्तिकरण सर्वोच्च प्राथमिकता है।'' उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य महिलाओं को डिजिटल और वित्तीय साक्षरता, आत्मरक्षा प्रशिक्षण और जीवन कौशल शिक्षा प्रदान करके उनके भविष्य को मजबूत बनाना है। बाल शोषण के प्रति बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर जोर देते हुए, देवी ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम और शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे कानून बच्चों के लिए एक मजबूत कानूनी सुरक्षा जाल बनाते हैं। हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि बच्चों के सामने आने वाले खतरों की प्रकृति बदल रही है, साइबर-धमकी, ऑनलाइन ग्रूमिंग और डिजिटल तस्करी नयी चुनौतियां पेश कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार स्कूल-आधारित जागरूकता कार्यक्रम लागू कर रही है जिसमें मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक सहायता शामिल है ताकि हर बच्चा न केवल सुरक्षित रहे बल्कि मानसिक रूप से भी मज़बूत रहे।" मंत्री ने कहा, "लड़कियों के सम्मान को सिर्फ़ नीति ही नहीं, बल्कि संस्कृति बनाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा।" यूनिसेफ की भारत प्रतिनिधि सिंथिया मैककैफ्रे ने बाल संरक्षण में देश की प्रगति की सराहना की और किशोर न्याय बोर्ड, बाल कल्याण समितियों और विशेष पॉक्सो अदालतों की स्थापना को ठोस प्रगति बताया। उन्होंने कहा, ‘‘मिशन वात्सल्य, मिशन शक्ति और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे प्रमुख कार्यक्रमों ने ऐसी नींव रखी है जिसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है।'' मध्य प्रदेश के किशोर क्लब से लेकर तेलंगाना के भरोसा केंद्रों और ओडिशा व राजस्थान के वकालत समूहों तक, मैककैफ्रे ने सामुदायिक स्तर पर सफल हस्तक्षेपों पर प्रकाश डाला जो "बाल विवाह रोकने और युवा लड़कियों को सशक्त बनाने में मदद कर रहे हैं।'' हालांकि, उन्होंने रोकथाम, शिक्षा और उत्तरजीवी-केंद्रित देखभाल में निरंतर निवेश की आवश्यकता पर भी जोर दिया और कहा कि भारत में चार में से एक लड़की की शादी अभी भी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है। उन्होंने संस्थानों और राज्यों में सामूहिक कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा, ‘‘हर बच्चे को तत्काल, संवेदनशील, चिकित्सीय, मनोवैज्ञानिक और कानूनी सहायता मिलनी चाहिए। न्याय शीघ्र और सम्मानजनक होना चाहिए।''

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