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 इस दिवाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ प्रकाश की नयी कहानी गढ़ रहे हैं दिल्ली के कुम्हार

 नयी दिल्ली.  इस दिवाली, दिल्ली की कुम्हार कॉलोनी के कुम्हार देर रात तक दीयों को आकार देने और रंगने का काम कर रहे हैं, वहीं समुदाय के युवा सदस्य इस शिल्प में एक अप्रत्याशित उपकरण का उपयोग कर रहे हैं, वह है कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)। जो जिज्ञासा के रूप में शुरू हुआ था, वह रचनात्मकता का प्रयोग बन गया है, जिसमें सदियों पुरानी परंपराओं को डिजिटल युग की कल्पना के साथ मिश्रित किया गया है। यहां दीयों की कीमत उनके आकार और अन्य बारीकियों के आधार पर एक रुपये से लेकर हजारों रुपये तक होती है। छोटे, साधारण दीये स्थानीय बाजारों में थोक में बेचे जाते हैं, जबकि बारीकी से रंगे या खास डिजाइन वाले दीये के कुछ अनोखा चाहने वाले खरीदारों से अधिक दाम मिलते हैं। इस साल, कुछ परिवारों ने अपने छोटे सदस्यों में एक नयी तरह की रचनात्मकता देखी है, जो रंग और स्वरूप के लिए एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं। कॉलेज छात्र यश (19) कक्षाओं के बाद अपने परिवार की मदद करता है। उसने कहा, ‘‘हम इसका इस्तेमाल सिर्फ यह देखने के लिए करते हैं कि कौन से रंग एकसाथ अच्छे लगते हैं।'' यश ने कहा, ‘‘कभी-कभी यह बहुत ही अजीबोगरीब विचार देता है, लेकिन कभी-कभी यह वाकई बहुत अच्छे विचार भी देता है। हम इसकी हर बात की नकल नहीं करते, हम अपनी बात कहते हैं, लेकिन यह हमें अलग तरह से सोचने में मदद करता है।'' युवा कुम्हारों के लिए, तकनीक एक छोटा लेकिन उपयोगी उपकरण है, खासकर बड़े ऑर्डर की तैयारी और नये विचारों की तलाश में। यश ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि हम इसे ही सब कुछ तय करने देते हैं। हम बस विचार पूछते हैं। अंतिम डिजाइन अभी भी हमारे हाथों से ही आता है।'' हालांकि, पुराने कारीगरों के लिए यह अपरिचित और अनावश्यक लगता है। बनवारी लाल (62) बचपन से दिए बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक विधियों पर ही निर्भर रहना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे परिवार शिव और पार्वती के विवाह के समय से ही ऐसा करते आ रहे हैं। लाल ने कहा, ‘‘हमने अपने पिता और दादाओं को देखकर सीखा है। अब ये बच्चे अपने फ़ोन से सीखते हैं। मुझे नहीं पता कि वे दिन भर ऑनलाइन क्या करते रहते हैं, लेकिन अगर इससे उन्हें मदद मिलती है, तो शायद अब चीजें ऐसी ही हैं।'' जीवन भर मिट्टी के साथ काम करने वाले रघुनाथ (58) ने कहा कि तकनीक कौशल या अंतर्ज्ञान की जगह नहीं ले सकती। उन्होंने कहा, ‘‘मिट्टी का अपना जीवन है। आपको यह जानने के लिए इसे महसूस करना होगा कि यह कब तैयार है। कोई भी कंप्यूटर यह नहीं सिखा सकता।'' फिर भी, कुछ कारीगरों का मानना ​​है कि युवा पीढ़ी की जिज्ञासा इस शिल्प को दीर्घकालिक लाभ पहुंचा सकती है। कॉलोनी में एक छोटी सी कार्यशाला चलाने वाले धीरज (54) ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) ने अभी तक कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है, लेकिन यह अधिक ग्राहकों को आकर्षित करने में मदद कर सकता है। इस दिवाली पर अपनी मुश्किलें हैं। अक्टूबर की शुरुआत में हुई अप्रत्याशित बारिश ने कुम्हारों के तैयार माल का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद कर दिया है। धीरज ने कहा, ‘‘हमारे लगभग 20 प्रतिशत दीये बर्बाद हो गए हैं। हमने उन्हें सूखने के लिए बाहर रखा था और हमें बारिश की उम्मीद नहीं थी। बारिश अचानक आ गई। ऐसा होने पर आप उन्हें बेच नहीं सकते। हमें सारे फेंकने पड़े।'' 

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