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भारत सबसे बड़े वन कार्बन सिंक वाले शीर्ष 10 देशों में शामिल: एफएओ रिपोर्ट

 नयी दिल्ली. संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की एक नयी रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे बड़े वन कार्बन सिंक वाले शीर्ष दस देशों में शामिल है, जो 2021 और 2025 के बीच हर साल लगभग 15 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है। मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर, इस अवधि के दौरान वनों ने शुद्ध कार्बन सिंक के रूप में काम किया, जिससे वायुमंडल से प्रतिवर्ष लगभग 0.8 अरब टन सीओ2 हटाई गई। वन कार्बन सिंक जंगल के उस पारस्थितिकीय तंत्र को कहा जाता है जो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने की तुलना में इसका अधिक मात्रा में अवशोषण करता है। ‘‘वन उत्सर्जन और निष्कासन - वैश्विक, क्षेत्रीय और देश के रुझान 1990-2025'' शीर्षक वाली एफएओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021-2025 के दौरान, वैश्विक वनों ने वन भूमि पर प्रति वर्ष 3.6 अरब टन सीओ2 का संचयन किया। हालांकि, शुद्ध वन रूपांतरण से होने वाले उत्सर्जन, जो अनुमानित रूप से 2.8 अरब टन प्रतिवर्ष है, ने इसकी आंशिक भरपाई की। इसके परिणामस्वरूप, इस अवधि के दौरान वैश्विक वनों ने वायुमंडल से प्रतिवर्ष 0.8 अरब टन सीओ2 हटाई। शुद्ध वन रूपांतरण का मतलब है किसी क्षेत्र के वन आवरण में होने वाले शुद्ध परिवर्तन का माप, जिसमें वनों की कटाई और वनीकरण (पेड़ लगाने) दोनों को ध्यान में रखा जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक दशक पहले, यह शुद्ध निष्कासन लगभग दोगुना था, जो 1.4 अरब टन प्रति वर्ष था। वर्ष 2021 और 2025 के बीच, सबसे मजबूत वन कार्बन सिंक यूरोप और एशिया में थे, जो क्रमशः 1.4 अरब टन और 0.9 अरब टन सीओ2 प्रति वर्ष हटाते थे। अमेरिका और अफ्रीका में वनों की कटाई से सबसे अधिक उत्सर्जन दर्ज किया गया, जो क्रमशः 1.8 अरब टन और 0.7 अरब टन प्रति वर्ष था। रूसी संघ में प्रति वर्ष 1,150 एमटी सीओ2 का सबसे बड़ा कार्बन सिंक था, उसके बाद चीन (840 एमटी), अमेरिका (410 एमटी), ब्राजील (340 एमटी), भारत और बेलारूस (150 एमटी प्रत्येक), दक्षिण अफ्रीका (75 एमटी), घाना (55 एमटी), कोरिया गणराज्य (45 एमटी) और होंडुरास (35 एमटी) का स्थान था। इसके विपरीत, ब्राजील (प्रति वर्ष 1,242 एमटी सीओ2), कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (156 एमटी) और पेरू (131 एमटी) में 2021-2025 के दौरान शुद्ध वन रूपांतरण के कारण सबसे अधिक उत्सर्जन हुआ। अमेरिका और अफ्रीका समग्र रूप से सबसे बड़े उत्सर्जक बने रहे।

इस अवधि के दौरान शुद्ध वन रूपांतरण से एशिया का उत्सर्जन तेजी से घटकर 0.3 अरब टन प्रति वर्ष हो गया।
एफएओ की रिपोर्ट हाल में जारी वन संसाधन आकलन (एफआरए) 2025 के आंकड़ों पर आधारित है।

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