कभी फूल पढ़ना कभी खार पढ़ना...
ग़ज़ल
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
कभी फूल पढ़ना कभी खार पढ़ना
लिखा जिंदगी में वही सार पढ़ना ।
चुराती नजर में छुपा प्यार पढ़ना ।।
प्रभावित करें बाहरी रंग रोगन ।
टिकाकर रखे नींव आधार पढ़ना ।।
किनारे सदा बैठ कर मौज करते ।
नदी को नहीं नदी-धार पढ़ना ।।
सभी देखते हैं चमक रोशनी की ।
अँधेरी निशा भी कई बार पढ़ना ।।
रहें पागलों की तरह घूमते वे ।
नहीं आशिकों को गुनहगार पढ़ना ।।
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