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वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में वास्तु दोष नहीं होने पर सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। लेकिन अगर वास्तु में कोई गड़बड़ी होती है तो घर में क्लेश, तरक्की में बाधा और परेशानियां लगातार रहती है। वास्तु के अनुसार, हर एक दिशा में किसी न किसी देवता का वास माना गया है। इस कारण घर के बाहर की चीजों का प्रभाव भी पड़ता है। जानें घर के बाहर की किन चीजों का रखना चाहिए ध्यान-
कूड़ा-
वास्तु के अनुसार, जिन घरों में साफ-सफाई और चीजें रखने की दिशा ठीक होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। कई लोग अपने घर के सामने की कूड़ा जमा कर लेते हैं। घर के मुख्य द्वार के सामने कूड़ा जमा करने से दरिद्रता का वास होता है। ऐसे घरों में क्लेश, बीमारियां और धन हानि की आशंका बनी रहती है।
ऊंची सड़क का होना-
वास्तु के मुताबिक, घर का मुख्य द्वार हमेशा सामने वाली सड़क से ऊंचा होना चाहिए। जिन लोगों का घर उनके सामने बनी सड़क से नीचा होता है, वहां नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। ऐसे घर के सदस्यों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
कांटेदार पौधे-
वास्तु के मुताबिक, घर के मुख्य द्वार के सामने कांटेदार पौधे कभी नहीं लगाने चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि का वास नहीं होता है।
बिजली का खंभा-
वास्तु के मुताबिक, घर के ठीक सामने बिजली का खंभा नहीं होना चाहिए। घर के सामने बिजली का खंभा होने से घर के सदस्यों के बीच मनमुटाव बने रहने की मान्यता है।
पत्थर
वास्तु के अनुसार, कई बार लोग अपने घर के सामने बड़े-बडे़ ईट-पत्थर जमा कर लेते हैं। मान्यता है कि घर के सामने बड़े ईट-पत्थर जीवन में आने वाली मुश्किलों का कारण बनते हैं।
गंदा पानी
वास्तु शास्त्र के अनुसार, जिन घरों के सामने गंदा पानी जमा होता है, वहां मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है। घर के सामने गंदा पानी जमा होने से तरक्की में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। - इस साल दीपावली 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस बार विशेष संयोग है, जब नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली एक साथ मनाई जाएगी। वैसे तो दीपोत्सव का ये पर्व पूरे पांच दिनों तक चलता है। दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है, उसके बाद छोटी दिवाली और फिर अगले दिन बड़ी दिवाली मनाई जाती है। लेकिन इस बार तीनों ही त्योहारों की तारीखों को लेकर असमंजस है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार धनतेरस के अलगे ही दिन बड़ी दिवाली पड़ रही है। इस साल धनतेरस 23 अक्टूबर को है। इसके बाद छोटी और बड़ी दिवाली 24 अक्टूबर को। यानी साल 2022 में छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली पर्व एक साथ मनाया जाएगा।धनतेरस 2022कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 22 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 02 मिनट से हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 23 अक्टूबर शाम 6 बजकर 03 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार 23 अक्टूबर को धनतेरस मनाया जाएगा।छोटी दिवाली 2022इसके बाद 23 अक्टूबर को ही शाम 6 बजकर 04 मिनट से ही चतुर्दशी तिथि की शुरुआत हो जा रही है, जिसका अगले दिन 24 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 28 मिनट पर समापन होगा। ऐसे में उदया तिथि के आधार पर 24 अक्टूबर को छोटी दिवाली यानी नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा।दिवाली 2022फिर 24 अक्टूबर को ही शाम 05 बजकर 28 मिनट से अमावस्या तिथि लग जा रही है, जो 25 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। वहीं 25 अक्टूबर को शाम में यानी प्रदोष काल लगने से पहले ही अमावस्या समाप्त हो जा रही है। ऐसे में दिवाली का पर्व इस दिन नहीं मनाया जाएगा, बल्कि 24 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा।नरक चतुर्दशी 2022 शुभ मुहूर्तअभ्यंग स्नान मुहूर्त- 24 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 08 मिनट से सुबह 06 बजकर 31 मिनट तकअवधि - 01 घंटा 23 मिनट
काली चौदस 2022 डेट और मुहूर्तकार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर काली चौदस भी मनाई जाती है। इसमें मध्यरात्रि में मां काली की पूजा की जाती है। काली पूजा रात में होती है ऐसे में 23 अक्टूबर को काली चौदस की पूजा की जाएगी।काली चौदस मुहूर्त - 23 अक्टूबर 2022, रात 11 बजकर 42 मिनट से 24 अक्टूबर को रात में 12 बजकर 33 मिनट तक।दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्तलक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 53 मिनट से रात 08 बजकर 16 मिनट तक - शरद पूर्णिमा, कोजागरी और स्नान दान पूर्णिमा नौ अक्तूबर यानी रविवार को होगी। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को यह व्रत और पूजन करना चाहिए। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं।इस साल शनिवार की रात 3:30 के बाद पूर्णिमा तिथि शुरू होकर रविवार की अर्द्धरात्रि 2:24 तक रहेगी। निर्णय सिन्धु के मतानुसार आश्विन शुक्ल पूर्णिमा में पूरे दिन पूर्णिमा तिथि और रात्रि में मिलती है। उसी दिन रात्रि में कोजागरी व शरद पूर्णिमा का पूजन और खुले आसमान में खीर बनाकर रखना चाहिए। अतः रविवार को ही शरद पूर्णिमा व स्नान दान पूर्णिमा है।छत पर जालीदार कपड़े से ढककर रखें खीरधर्मशास्त्रानुसार रात्रि काल के प्रथम प्रहर में खुले आकाश में भगवान कृष्ण का आवाह्न कर उनका षोडशोपचार पूजन करके गाय के दूध में मेवा आदि डालकर पायस (खीर) का निर्माण करें। उसमें भगवान का भोग लगाएं। उस पात्र को किसी जालीदार कपड़े से ढककर रख दें। शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा की शीतल रश्मियों से अमृत की वर्षा होती है जो उस पायस (खीर) में समाहित हो जाती है। रात्रि के दूसरे प्रहर के अंत तक भगवान विष्णु का कीर्तन, भजन करें। बाद में भगवान को विश्राम मुद्रा में रखकर स्वयं भी शयन करें। प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व उस पायस रूपी प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें। धर्म शास्त्र के अनुसार उस अमृत रूपी प्रसाद को ग्रहण करने वाला व्यक्ति चिरंजीवी होता है। इसे कोजागरी व कौमुदी व्रत से भी जाना जाता है।
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वास्तुशास्त्र में दिशाओं का बहुत अधिक महत्व है। घर में रखी हर चीज किसी ना किसी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसे में यदि घर को वास्तु के अनुसार सजाया जाए तो उसके अंदर पॉजिटिव एनर्जी का वास होता है और घर के हर व्यक्ति सुखी, निरोग जीवन बिताता है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु दोषों को दूर करने के लिए घर के अंदर की सजावट बहुत बड़ी भूमिका अदा करती है। कौन सा सामान कहां रखा गया है। इस बात से घर के भीतर मौजूद एनर्जी प्रभावित होती है इसलिए घर बनाते वक्त उसे वास्तु शास्त्र के अनुसार सजाना बेहद जरूरी है। इससे घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आप घर में तोड़फोड़ करना चाहते हैं तो उसकी तो घर की छत पर एक बड़ा गोल आईना रख दें। जिससे उसकी छाया उस आईने में बनती रहे। इससे घर में तोड़फोड़ होने से जो वास्तु दोष उत्पन्न होता है। वह खत्म हो जाता है।
- हम सभी का स्वास्थ्य, हमारे खान-पान से जुड़ा हुआ है। ऐसे में गलत दिशा में रसोईघर का होना बहुत सारे वास्तु दोष उत्पन्न करता है इसीलिए घर में रसोई घर को आग्नेय कोण में बल्ब जलाकर रखें और बल्ब कोसुबह - शाम जलता हुआ रहने दें
- यदि आप किसी खाली जमीन पर घर बनाना चाहते हैं और उस जमीन पर घर बनाने का योग्य नहीं बन पा रहा। तो ऐसे में उस जमीन पर पुष्य नक्षत्र में एक अनार का पौधा लगा दे। इससे उस जमीन पर मकान बनने का योग बन जाएगा।
- हिंदू धर्म में स्वस्तिक को बेहद शुभ माना गया है। किसी भी घर में स्वास्तिक चिन्ह का होना बेहद शुभ संकेत होता है। ऐसे में वास्तु शास्त्र के अनुसार हमेशा 9 उंगली लंबा और 9 उंगली चौड़ा स्वास्तिक का चिन्ह घर के मेन गेट पर बनाएं। इससे घर सभी रोग और दोष से मुक्त रहता है।
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वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में रखा एक्वेरियम पॉजिटिव एनर्जी के साथ ही साथ सुख -समृद्धि भी लाता है। वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखकर घर में फिश एक्वेरियम रखने से घर का माहौल अपने आप खुशनुमा बन जाता है। वहीं दूसरी ओर, फिश एक्वेरियम को गलत जगह रखने से इसके उल्टा प्रभाव भी पड़ सकता है।
एक्वेरियम प्रकृति के पांच तत्वों का दर्शाता है। यह 5 तत्व आपस में मिलकर पॉजिटिव एनर्जी को बनाने का काम करते हैं। बहते हुए पानी से अलग तरह की ध्वनि उत्पन्न होती है जिसकी वजह से आस- पास का माहौल पॉजिटिव एनर्जी से भर जाता है।आइए जानते हैं वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में फिश एक्वेरियम कहां रखना चाहिए- फिश एक्वेरियम को वास्तु शास्त्र में बहुत प्रभावशाली माना गया है। फिश एक्वेरियम में रखा पानी जीवन को दिखाता है। एक्वेरियम में बहता हुआ पानी, पॉजिटिव एनर्जी को दिखाता है। इससे आपका जीवन शांत और वाइब्रेंट बना रहता है।- वास्तु शास्त्र के अनुसार एक्वेरियम को लिविंग रूम की दक्षिण पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। अगर आप एक्वेरियम को लिविंग रूम में नहीं रखना चाहते तो किसी दूसरी जगह उसे उत्तर दिशा में रखें।- ऑफिस में एक्वेरियम को रिसेप्शन एरिया के उत्तर या पूर्व दिशा में रखना चाहिए।- एक्वेरियम को मेन गेट की बाई दिशा में रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से पति पत्नी के बीच प्यार बना रहता है।- फिश टैंक को हमेशा लिविंग रूम की दक्षिण- पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। ताकि घर में आने वाला कोई भी व्यक्ति को आसानी से दिखाई दें। -
लगने लगेगा पढ़ाई में मन, बढ़ जाएगी याददाश्त, धारण करें पन्ना हर मुश्किल होगी आसान
पन्ना बुध ग्रह का रत्न है सामान्यतः यह हल्के हरे रंग का होता है। लेकिन इसके अलावा यह पांच और रंगों में पाया जाता है। बुध हमारी वाणी और बुद्धि को नियंत्रित करने वाला ग्रह माना जाता है। रत्न शास्त्र के अनुसार इस रत्न को धारण करने से किसी भी व्यक्ति को बहुत अधिक सफलता मिलने लगती है। किसी भी रत्न के दुष्प्रभाव से बचने के लिए उसे कुंडली के अनुसार रत्न धारण करें।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन और कन्या राशि के लोगों को पन्ना रत्न धारण करना चाहिए। इसके अलावा मकर और कुंभ राशि के लोग भी पन्ना रत्न धारण कर सकते हैं।पन्ना रत्न धारण करने की विधि--पन्ना रत्न को बुधवार के दिन धारण करना चाहिए। इसे रेवती नक्षत्र में धारण करना बहुत शुभ माना जाता है। पन्ना रत्न धारण करने से पहले इसे दूध या गंगाजल से शुद्ध कर लें। इसके बाद बुध ग्रह के मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिएआइए जानते हैं पन्ना रत्न धारण करने के फायदे--- यदि कोई व्यक्ति पन्ना रत्न धारण करता है तो उसकी बुद्धि का बहुत अधिक विकास होने लगता है।- कन्या राशि के लोग यदि पन्ना रत्न धारण करते हैं तो उन्हें बिजनेस ,नौकरी जैसे कार्यों में अपार सफलता मिलने लगती है।- मिथुन राशि वाले यदि पन्ना रत्न धारण करते हैं तो परिवार में आने वाली सभी तरह की परेशानियां कम हो जाती है।- इस रत्न को धारण करने से वाणी की प्रभावशाली क्षमता बढ़ जाती है।- पन्ना रत्न धारण करने से पेट से जुड़ी सभी समस्याएं से राहत मिलती है।- पन्ना रत्न धारण करने से व्यक्ति की याद रखने की क्षमता बढ़ती है और उसका पढ़ाई लिखाई में अधिक मन लगने लगता है। -
वास्तु शास्त्र में सही दिशा में सोने का बहुत अधिक महत्व है, कई बार गलत दिशा में सोने की वजह से रिश्तों में कड़वाहट आ जाती हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार, सोने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखने से रिश्तों के बीच की पैदा होने वाली कड़वाहट को दूर किया जा सकता है और रिश्तों के बीच की मिठास हमेशा बनी रहती है। देखभाल ,प्यार और सम्मान किसी भी रिश्ते की नींव होती है।
अच्छी नींद स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है यह आपको तनाव मुक्त रखता है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि नींद पूरी न होने की वजह से दिनभर चिड़चिड़ापन और थकान महसूस होती हैं। अगर लंबे समय तक ठीक प्रकार से नींद न ली जाए तो अनिंद्रा जैसे भयंकर समस्या पैदा हो सकती हैं इसलिए स्वस्थ जीवन के लिए रोजाना पूरी नींद लेना बहुत जरूरी है। ताकि आप पूरे दिन एक्टिव बने रहें। वास्तु शास्त्र के अनुसार आपका बेड दक्षिण -पश्चिम की दीवार से सटा हुआ होना चाहिये। विवाहित जोड़े को वास्तु के अनुसार अपना सिर दक्षिण, दक्षिण -पूर्व और दक्षिण -पश्चिम की ओर रखना चाहिए। कभी -भी अपना सिर उत्तर दिशा में ना रखें इससे आप दिनभर तनावग्रस्त और थका हुआ महसूस करेंगे।
कमरे में जिस तरह की एलर्जी का मौजूद होती है। हम अपने आसपास उसी तरह के माहौल को महसूस करते हैं। इसलिए बेड के आसपास की जगह को ज्यादा भरा हुआ ना रखें। सोते वक्त पत्नी को हमेशा बेड के दाहिनी ओर जबकि पति को बाईं ओर सोना चाहिए।
आजकल लोग इलेक्ट्रॉनिक गैजेट मोबाइल ,लैपटॉप या दूसरे उपकरणों का बहुत अधिक प्रयोग करने लगे हैं। ऐसे में सोते समय कभी-भी इन चीजों को अपने बिस्तर के करीब ना रखें। इन उपकरणों से लगातार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स निकलती है। जिसकी वजह से आपको बहुत सारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। -
ज्योतिषशास्त्र की तरह अंक ज्योतिष से भी जातक के भविष्य, स्वभाव और व्यक्तित्व का पता लगता है। जिस तरह हर नाम के अनुसार राशि होती है उसी तरह हर नंबर के अनुसार अंक ज्योतिष में नंबर होते हैं। अंकशास्त्र के अनुसार अपने नंबर निकालने के लिए आप अपनी जन्म तिथि, महीने और वर्ष को इकाई अंक तक जोड़ें और तब जो संख्या आएगी, वही आपका भाग्यांक होगा। उदाहरण के तौर पर महीने के 2, 11 और 20 तारीख को जन्मे लोगों का मूलांक 2 होगा। जानें 5 अक्टूबर का दिन किन लोगों के लिए शुभ रहेगा...
मूलांक 5-
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।
माता से धन प्राप्ती के योग बन रहे हैं।
दाम्पत्य सुख में वृद्धि होगी।
किसी मित्र के सहयोग से रोजगार के अवसर मिल सकते हैं।
आय में वृद्धि होगी।
पारिवारिक जिम्मेदारियां बढ़ सकती हैं।
परिवार में मान-सम्मान बढ़ेगा।
नौकरी में पदोन्नति के योग बन रहे हैं।
मूलांक 7-
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।
कुटुंब परिवार में धार्मिक कार्य होंगे।
संतान सुख में वृद्धि होगी।
उच्च शिक्षा एवं शोध आदि कार्यों के लिए विदेश प्रवास की संभावना बन रही है।
नौकरी में कार्यक्षेत्र में परिवर्तन के योग बन रहे हैं।
स्थान परिवर्तन भी संभव है।
मन में शांति व प्रसन्नता के भाव रहेंगे।
आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे।
माता व परिवार की किसी बुजुर्ग महिला से धन की प्राप्ती के योग बन रहे हैं।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा। -
दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है 5 दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार हिंदुओं का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। दशहरे के बाद से ही घरों में दीपावाली की तैयारियां शुरू हो जाती है। कहा जाता है कि दीपावाली के दिन श्री राम ,माता सीता और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास काट कर अयोध्या वापस आएं थे। इसी खुशी में वहां के लोगों ने पूरे अयोध्या में घी के दीपक जलाएं।
दीपावली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। दीपावली को दीपों के त्योहार भी कहते है। वास्तु शास्त्र के अनुसार दीए को जलाने से पहले हमें कुछ बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार कुछ साधारण से नियमों का ध्यान रखने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर में सुख- समृद्धि हमेशा बनी रहती है।
- यदि आपके घर में कोई मंदिर है तो सबसे पहले दीयों को मंदिर में जला कर रखें।
- दीए में गोल बाती की जगह, लंबे बाती का प्रयोग करना चाहिए। तेल में दिए जलाएं।
- दीपक जलाकर जिस थाली में रखें, उसी थाली में सोने व चांदी से बने आभूषण रखना न भूलें। इससे माता लक्ष्मी बेहद प्रसन्न होती है।
- मंदिर में दीया जलाने के बाद तुलसी के पौधे में दीए जलाएं। अगर आपके घर में तुलसी का पौधा ईशान कोण में स्थित है। तो ऐसे में तुलसी के पौधें में दीया जलाना काफी शुभ होगा। इससे माता अन्नपूर्णा प्रसन्न होती है और घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं होती। - आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को विजयदशमी भी कहा जाता है। नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजा की जाती है और दशहरा के दिन विसर्जन किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया और मां दुर्गा ने महिषासुर का अंत किया था।दशहरा पर वास्तु में बताए कुछ आसान से उपाय अवश्य करने चाहिए, आइए जानते हैं इनके बारे में---दशहरा पर अस्त्र-शस्त्र पूजा करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। दशहरा पर सुंदरकांड का पाठ अवश्य करना चाहिए। दशहरा पर शाम के समय माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए मंदिर में झाड़ू का दान करें। इस दिन पुस्तकों, वाहन आदि की पूजा की जाती है। दशहरा के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। दशहरा के दिन हनुमान जी की पूजा करना सबसे लाभकारी माना जाता है। इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। वास्तु शास्त्र के अनुसार रावण दहन की लकड़ी को घर लेकर आना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा निकल जाती है। नवरात्र के दिनों में जौ से अंकुर निकल आते हैं उसे जयंती कहा जाता है। विसर्जन करने से पहले एक लाल कपड़े में थोड़ी सी जयंती बांधकर तिजोरी में रख दें। दशहरा के दिन श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें। इस दिन पूरे परिवार के साथ घर के आंगन में हवन करना शुभ माना जाता है। दशहरा के दिन घर में सेंधा नमक से पोंछा लगाएं। इस दिन शमी के पेड़ के पूजन का विशेष महत्व है। दशहरा पर घर में रंगोली बनाएं। ऐसा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इस दिन हलवा बनाकर परिवार के सदस्यों को साथ खाना चाहिए, इससे परिवार में मधुरता बनी रहती है।
- आज पूरे देशभर में विजयादशमी का त्योहार मनाया जा रहा है। यह त्योहार असत्य पर सत्य के जीत के प्रतीक के रूप में हर वर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि पर भगवान राम ने लंका नरेश और महान ज्ञानी रावण को युद्ध में परास्त करके वध किया था। इसके अलावा इसी तिथि पर मां दुर्गा ने महिषासुर नाम के दैत्य का संहार किया था। इसी कारण से विजयादशमी का त्योहार हर वर्ष रावण,मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले का दहन करके मनाया जाता है। दशहरे के दिन पंडालों में स्थापित मां दु्र्गा की पूजा का समापन हो जाता है। आइए जानते हैं दशहरे का महत्व और पूजा मुहूर्त।दशहरा के दिन शमी और देवी अपराजिता की पूजा जरूर करना चाहिए। इसके साथ ही नीलकंठ के दर्शन करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और धनलाभ होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने शमी के पेड़ के ऊपर अपने अस्त्र शस्त्र छिपाए थे,जिसके बाद युद्ध में उन्होंने कौरवों पर जीत हासिल की थी। इस दिन घर की पूर्व दिशा में शमी की टहनी प्रतिष्ठित करके उसका विधिपूर्वक पूजन करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है,महिलाओं को अखंड सौभग्य की प्राप्ति होती है एवं इस वृक्ष की पूजा करने से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।ऐसे करें अपराजिता की पूजाविजयदशमी के दिन अपराजिता की पूजा करने का विधान है। अपराजिता की पूजा से सालभर तक कार्यों में जीत हासिल होती है और किसी भी काम में रूकावट नहीं आती। इस दिन दोपहर बाद घर के ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा को अच्छे से साफ करके, उसे गोबर से लीपकर, उसके ऊपर चंदन से आठ पत्तियों वाला कमल का फूल बनाना चाहिए और संकल्प करना चाहिए-मम सकुटुम्बस्य क्षेम सिद्धयर्थे अपराजिता पूजनं करिष्ये”अगर आप ये मंत्र न पढ़ पाएं तो आपको इस प्रकार कहना चाहिए कि हे देवी ! मैं अपने परिवार के साथ अपने कार्य को सिद्ध करने के लिये और विजय पाने के लिये आपकी पूजा कर रहा हूं। इस प्रकार कहकर उस कमल की आकृति के बीच में अपराजिता का पौधा रखना चाहिए।विजय का सूचक है पानदशहरा के दिन रावण,कुम्भकर्ण और मेघनाद दहन के पश्चात पान का बीड़ा खाना सत्य की जीत की ख़ुशी को व्यक्त करता है। इस दिन हनुमानजी को मीठी बूंदी का भोग लगाने बाद उन्हें पान अर्पित करके उनका आशीर्वाद लेने का महत्वहै। विजयादशमी पर पान खाना, खिलाना मान-सम्मान,प्रेम एवं विजय का सूचक माना जाता है।नीलकंठ के दर्शन है शुभलंकापति रावण पर विजय पाने की कामना से मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने पहले नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे। नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का प्रतिनिधि माना गया है। दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन और भगवान शिव से शुभफल की कामना करने से जीवन में भाग्योदय,धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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दशहरा (विजयादशमी) आश्विन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को 'विजया दशमी' के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष दशहरा पर्व 5 अक्टूबर (बुधवार) को मनाया जाएगा। दशहरा वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है्, अन्य दो चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा तिथि हैं।
दशहरा एक अबूझ मुहूर्त है यानि इसमें बिना मुहूर्त देखे शुभ कार्य किए जा सकते हैं। दशहरे के दिन शस्त्र पूजा की भी मान्यता है। कहा जाता है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है, उसमें विजय प्राप्त होती है। धार्मिक संस्थान 'विष्णुलोक' के ज्योतिषविद् पंडित ललित शर्मा ने बताया कि दशहरा पर्व दस प्रकार के पाप- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सप्रेरणा प्रदान करता है। विजयादशमी के दिन भगवान श्रीराम का विधिवत् पूजन करना चाहिए।
यह रहेगा मुहूर्त
पंडित ललित शर्मा ने बताया कि दशमी तिथि 4 अक्टूबर दोपहर 2.20 बजे से 5 अक्टूबर दोपहर 12 बजे तक रहेगी। श्रवण नक्षत्र 4 अक्टूबर को रात्रि 10.51 बजे से 5 अक्टूबर को रात्रि 9.15 बजे तक रहेगा। विजयादशमी पूजन का शुभ मुहूर्त प्रातः 7.44 बजे से प्रातः 9.13 बजे तक, इसके बाद प्रात: 10. 41 बजे से दोपहर 2.09 बजे तक रहेगा। इसमें भी विजय मुहूर्त दोपहर 2.07 बजे से दोपहर 2.54 बजे तक रहेगा। हालांकि राहु काल दोपहर 12 बजे से 1.30 बजे तक रहेगा। राहु काल में किए गए कार्यों का शुभ फल प्राप्त नहीं होता, अतः राहुकाल में शुभकार्य नहीं करने चाहिए।
इस मंत्र का करें जाप
ॐ दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्
किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण
यह पर्व किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की सीमा नहीं रहती और इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए के लिए वह उनका पूजन करता है। -
हिंदू धर्म में दशहरा का बहुत अधिक महत्व होता है। असत्य पर सत्य की जीत के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था। दशहरा के दिन भगवान श्री राम की विधि- विधान से पूजा- अर्चना की जाती है। दशहरा के दिन हवन करना भी शुभ माना जाता है। हवन करने से दुख- दर्द दूर होते हैं और सुख- समृद्धि में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं हवन की विधि और सामग्री...
हवन विधि...
दशहरा के दिन प्रात: जल्दी उठ जाना चाहिए।
स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
शास्त्रों के अनुसार हवन के समय पति- पत्नी को साथ में बैठना चाहिए।
किसी स्वच्छ स्थान पर हवन कुंड का निर्माण करें।
हवन कुंड में आम के पेड़ की लकड़ी और कपूर से अग्नि प्रज्जवलित करें।
हवन कुंड में सभी देवी- देवताओं के नाम की आहुति दें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिए। आप इससे अधिक आहुति भी दे सकते हैं।
हवन के समाप्त होने के बाद आरती करें और भगवान को भोग लगाएं। इस दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होते हैं। आप हवन के बाद कन्या पूजन भी करवा सकते हैं।
हवन साम्रगी-
आम की लकड़ियां, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पापल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन का लकड़ी, तिल, कपूर, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलैठी, अश्वगंधा की जड़, बहेड़ा का फल, हर्रे, घी, शक्कर, जौ, गुगल, लोभान, इलायची, गाय के गोबर से बने उपले, घी, नीरियल, लाल कपड़ा, कलावा, सुपारी, पान, बताशा, पूरी और खीर।
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दशहरे के दिन रावण का दहन कर विजयादशमी के पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं ,देश में ऐसी भी कुछ जगह हैं, जहां दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि उसकी पूजा की जाती है। आज हम आपको ऐसी ही कुछ जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है।
1. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में रावण का दहन नहीं किया जाता है। वहां के लोगों का मानना हैं कि रावण ने भगवान शंकर को बैजनाथ कांगड़ा में ही अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया था और तब से लेकर अब तक वहां के लोग रावण को शिव का परम भक्त मानकर ,उसकी पूजा करते हैं।
2. जोधपुर के मौदगिल में रावण को ब्राह्मण समाज का वंशज माना जाता है। इसी वजह से वहां के लोग रावण का दहन करने की बजाय उसकी पूजा कर उसकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान भी करते हैं।
3. उत्तर प्रदेश के बिसरख में रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि वहां रावण और रावण के पिता ऋषि विश्वा की पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रावण का जन्म उत्तर प्रदेश के बिसरख में हुआ था। उस जगह का नाम ऋषि विश्वा के नाम पर ही इसी विश्वा के नाम पर बिसरख पड़ा।
4.महाराष्ट्र के एक गांव गढ़चिरौली में भी लोग रावणका दहन करने की जगह उसकी पूजा करते है। कहा जाता है कि रावण देवताओं का पुत्र था और उसने अपने जीवन में कोई भी गलत काम नहीं किया।
5. उज्जैन के चिकली गांव में भी रावण का पुलता जलाने की जगह उसकी पूजा की जाती है। लोगों का मानना है कि यदि रावण की पूजा नहीं होगी ,तो पूरे गांव का सर्वनाश हो जाएगा इसलिए हर साल दशहरे के दिन इस गांव में रावण की बड़ी सी मूर्ति स्थापित कर उसकी पूजा की जाती है। - राक्षस राज रावण के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं, किन्तु रावण के परिवार के विषय में बहुत लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। आज इस लेख में हम संक्षेप में रावण के परिवार के विषय में जानेंगे।रावण के पिता सप्तर्षियों में से एक महर्षि पुलत्स्य के पुत्र महर्षि विश्रवा थे। महर्षि विश्रवा की पहली पत्नी का नाम इलविदा था जिनसे उन्हें कुबेर नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। कुबेर यक्षों के अधिपति बनें। विश्रवा ने दूसरा विवाह सुमाली नामक राक्षस की पुत्री कैकसी से किया। विश्रवा और कैकसी के तीन पुत्र हुए - रावण, कुम्भकर्ण एवं विभीषण। इसके अतिरिक्त दोनों की एक कन्या भी थी - शूर्पणखा।वैसे तो रावण की कई पत्नियां थी किन्तु रामायण में रावण की दो प्रमुख पत्नियों और छ: पुत्रों का वर्णन मिलता है:मंदोदरी: ये मयासुर और हेमा की बड़ी पुत्री थी और रावण की पटरानी। मायावी और दुदुम्भी इसके भाई थे जिनका वध वानर राज बाली ने किया। इनकी गिनती पंचकन्याओं में की जाती है। इनसे रावण को दो पुत्रों की प्राप्ति हुई।मेघनाद: रावण का सबसे बड़ा पुत्र। महान योद्धा, पुराणों में वर्णित एकमात्र अतिमहारथी। एकमात्र ऐसा योद्धा जिसके पास तीनों महास्त्रों - ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र थे। महादेव के प्रिय, इंद्र को भी जीतने वाले। श्रीराम और लक्ष्मण को भी नागपाश में बांध दिया था। लक्ष्मण के हाथों वध हुआ।अक्षयकुमार: रावण का सबसे छोटा पुत्र। कई दिव्यास्त्रों का ज्ञाता। अल्पायु में ही वे अशोक वाटिका में हनुमान से उलझ बैठे और वीरगति को प्राप्त हुए।धन्यमालिनी: मयासुर और हेमा की दूसरी पुत्री और मंदोदरी की छोटी बहन। इनसे रावण को 4 प्रतापी पुत्रों की प्राप्ति हुई।अतिकाय: रावण का दूसरा पुत्र, महान योद्धा। एक बार कैलाश पर उत्पात मचाने के कारण भगवान शंकर ने इसपर अपना त्रिशूल फेंका। अतिकाय ने उस त्रिशूल को बीच में पकड़ लिया और नम्रता पूर्वक महादेव को प्रणाम किया। तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसे कई दिव्यास्त्र दिए। ब्रह्मदेव के वरदान के अनुसार इसका वध केवल ब्रह्मास्त्र द्वारा ही संभव था। इसका लक्ष्मण के हाथों वध हुआ।नरान्तक: रामायण के अनुसार इसके अधीन रावण के 72 करोड़ राक्षसों की सेना थी। लंका युद्ध में ये अतिकाय और देवान्तक के साथ लडऩे को आया और हनुमान के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ।देवान्तक: महान योद्धा और रावण की सेना का एक सेनापति। कई देवताओं को भी परास्त किया। देवान्तक का पुत्र महाकंटक ही युद्ध के बाद राक्षस कुल का एकमात्र जीवित योद्धा था जिसे श्रीराम ने क्षमादान दिया।त्रिशिरा: तीन सर वाला श्रेष्ठ योद्धा। लंका युद्ध मे इसने अपने बाणों से हनुमान को बींध डाला। तब क्रोधित होकर हनुमान ने युद्ध मे इसका वध कर दिया।इसके अतिरिक्त ऐसी मान्यता है कि रावण की एक प्रमुख पत्नी और थी जिसके विषय में किसी ग्रन्थ में अधिक वर्णन नहीं मिलता।कुम्भकर्ण का विवाह दैत्यराज बलि की पुत्री वज्रज्वला से हुआ जिससे उसे कुम्भ और निकुम्भ नामक पराक्रमी पुत्र प्राप्त हुए। कुम्भकर्ण की दूसरी पत्नी कर्कटी थी जो विराध राक्षस की विधवा थी जिससे कुम्भकर्ण ने बाद में विवाह किया। उससे उसे भीम नामक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका वध महादेव के हाथों हुआ। उसी के नाम पर भगवान शिव भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। लंका युद्ध में कुम्भकर्ण का वध श्रीराम के हाथों हुआ।विभीषण का विवाह गंधर्व शैलूषा की पुत्री सरमा से हुआ जिससे उसे त्रिजटा नामक पुत्री की प्राप्ति हुई जो अशोक वाटिका में सीता की सुरक्षा करती थी। रावण की मृत्यु के पश्चात विभीषण ने मंदोदरी से भी विवाह किया। विभीषण सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं जो आज तक जीवित हैं।शूर्पनखा का विवाह दैत्यजाति के एक योद्धा विद्युतजिव्ह से हुआ जिसका वध रावण ने अपने दिग्विजय के दौरान किया। उसके वध के पश्चात रावण ने शूर्पणखा को दण्डकारण्य का अधिपति बना दिया जहाँ वो खर-दूषण की सहायता से राज्य करती थी। शूर्पणखा की मृत्यु का कोई वर्णन रामायण में नहीं मिलता। कुछ ग्रंथों में वर्णित है कि लंका युद्ध के पश्चात शूर्पणखा ने सात्विक जीवन बिताते हुए अपने शरीर का त्याग किया।दुर्भाग्यवश विभीषण को छोड़ समस्त राक्षस वंश का लंका युद्ध में नाश हो गया।
- जीवन में धन की भूमिका महत्वपूर्ण है। धन बिना जीवन नहीं चल सकता। हस्तरेखा विज्ञान में रेखाओं से जीवन में धन की स्थिति का आकलन किया जाता है। रेखाओं से पता लगाया जा सकता है कि जीवन में धन का आगमन होगा या नहीं और होगा तो कितना। इसी के साथ रेखाओं से व्यक्ति के जीवन में यात्राओं का भी पता किया जा सकता है। जानिए धन और यात्राओं केा लेकर क्या कहती हैं आपकी हाथों की रेखाएं।-कोई रेखा यदि चंद्र रेखा से निकलकर बुध पर्वत तक जाए अथवा बुध पर्वत पर पहुंचे तो ऐसे व्यक्ति यात्रा में अचानक धन मिलता है।-चंद्र पर्वत से निकलकर कोई रेखा हथेली को पार करते हुए गुरु पर्वत तक पहुंचे तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में लंबी विदेश यात्राओं का लाभ मिलता है।-यदि चंद्र पर्वत से निकली यात्रा रेखा स्पष्ट रूप से हृदय रेखा में जाकर मिले तो इस स्थिति में यात्रा के दौरान प्रेम होने और फिर प्रेम विवाह होने की संभावना बनती है।-यात्रा रेखा पर क्रॉस और इसके पास चतुष्कोण का होना ठीक नहीं है। ऐसा होने पर यात्रा का कार्यक्रम टालना पड़ता है।-चंद्र पर्वत से निकली यात्रा रेखा का मस्तिष्क रेखा में मिला यात्रा में व्यवसायिक समझौते अथवा अनुबंध का संकेत देता है।-चंद्र रेखा हथेली के बीच से ही अथवा मुड़कर वापस चंद्र पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति विदेश में व्यापार या नौकरी करने के बाद किसी मजबूरी के चलते अपने देश वापस लौट आता है।-चंद्र और शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो और जीवन रेखा शुक्र क्षेत्र को घेरती हुई इसके मूल तक जाए, चंद्र पर्वत पर स्पष्ट यात्रा रेखा भी हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में अनेक यात्राएं करता है।----
- वास्तु शास्त्र एक भारतीय परंपरा है। जिसके अनुसार दिशाओं को ध्यान में रखकर घर का नक्शा बनाने से सभी दिशाओं में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है। जिसकी वजह से घर का वातावरण हमेशा खुशहाल बना रहता है। वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखकर घर को सजाने-संवारने से घर में निगेटिव एनर्जी का वास नहीं होता है।वास्तु शास्त्र एक्सपर्ट के अनुसार कभी भी घर में रसोई घर के सामने बेडरूम कभी नहीं बनाना चाहिए। ऐसा करने से घर में वास्तु दोष जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है। अगर आपके घर में बेडरूम और रसोई घर दोनों एक दूसरे के विपरीत है तो ऐसे में इस प्रकार के वास्तु दोष को दूर करने के लिए रसोई घर में एक दरवाजे का होना बेहद जरूरी है। रसोई घर में काम करते वक्त और काम खत्म होने के बाद दरवाजे को बंद करके रखें।यदि आपका रसोई घर बहुत छोटा है और ऐसे में दरवाजा लगाना आपके लिए संभव नहीं है तो ऐसे में आप अपने बेडरूम का दरवाजा बंद करके रख सकते हैं।अगर आप बेडरूम का दरवाजा भी बंद करके नहीं रखना चाहते तो ऐसे में रसोई घर और बेडरूम को जोड़ने वाली छत की सीलिंग में एक विंड चाइम्स लटकाएं। विंड चाइम्स अधिक भारी ना हो। उस पर डॉल्फिन या दिल की जैसी बड़ी आकृतियां न बनी हों। विंड चाइम्स खरीदने से पहले देख लें कि उसमें लगे सभी चाइम्स सम संख्याओं में हो उदाहरण के लिए 6 या 8। सम संख्या वाले विंड चाइम्स छत की सीलिंग में लटकाने से वास्तु दोष दूर होता है।
- नवरात्रि के पर्व को उत्साह और उमंग से साथ मनाया जाता है। हर साल नवरात्रि के नौ दिन नवदुर्गा की पूजा होती है। इस दौरान दुर्गा पंडाल सजते हैं। माता दुर्गा की भव्य और विशाल प्रतिमाएं सजती हैं। नवरात्रि के मौके पर गुजरात समेत कई राज्यों में गरबा और डांडिया का आयोजन किया जाता है। लोग डांडिया खेलते हैं और गरबा करते हैं। इसे माता की आराधना से जुड़े खास उत्सव की तरह मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि नवरात्रि में डांडिया और गरबा क्यों खेलते हैं? डांडिया और गरबा क्या धार्मिक महत्व है?नवरात्रि में गरबा करने और डांडिया खेलने का धार्मिक महत्व है। इन दोनों नृत्य को मां दुर्गा से नाता है। गरबा को मां दुर्गा की प्रतिमा के आसपास या जहां माता की ज्योत जगाई होती है, वहां किया जाता है। गरबा गर्भ शब्द से लिया गया है, जो माता के गर्भ में शिशु के जीवन को दर्शाता है। गरबा करते समय नृत्य करने वाले गोले में नृत्य करते हैं, जो जीवन के गोल चक्र का प्रतीक है। वहीं डांडिया नृत्य मां दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध को प्रदर्शित करता है। डांडिया की रंगीन छड़ी को मां दुर्गा की तलवार मानी जाती है। इस कारण डांडिया को तलवार नृत्य भी कहते हैं।नवरात्रि में क्यों खेलते हैं डांडिया?नवरात्रि नौ दिन का पर्व है। इन नौ दिनों नें माता के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। नौ दिन ज्योत जलाई जाती है। डांडिया भी नवरात्रि के नौ दिन खेलते हैं। हर शाम भक्त मां की पूजा के लिए एकत्र होते हैं और डांडिया करते हैं। गुजरात में लगभग हर घर और गली में मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने डांडिया किया जाता है और माता को प्रसन्न किया जाता है।नवरात्रि में गरबा भी करते हैं। महिलाएं, पुरुष और बच्चे एक गोल आकृति में एकत्र होकर गरबा करते हैं। इस दौरान जहां गरबा करते हैं, उसके केंद्र में एक गरबा, एक मिट्टी का बर्तन रखते हैं, जिसमें सुपारी, नारियल और चांदी का सिक्का रखा जाता है।डांडिया और गरबा में अंतरवैसे तो डांडिया और गरबा दो अलग तरह के नृत्य हैं। लेकिन दोनों का नाता माता दुर्गा और नवरात्रि से जुड़ा है। हालांकि डांडिया और गरबा में एक विशेष अंतर है। गरबा मां दुर्गा की आरती से पहले किया जाता है, जबकि डांडिया आरती के बाद खेला जाता है।डांडिया के लिए प्रॉप के तौर पर रंग बिरंगी डांडिया स्टिक की जरूर होती है, जबकि गरबा के लिए किसी चीज की जरूरत नहीं होती। लोग अपनी दोनों हथेलियों को जोड़कर ताली बजाते हुए गरबा करते हैं और गरबा ज्योत के आसपास नृत्य करते हैं।---
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शारदीय नवरात्र के 10वें दिन दशहरा मनाया जाता हैं। इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम ,अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के लिए वनवास काट रहे थे। तभी दुष्ट, अहंकारी रावण प्रभु श्रीराम की कुटिया में साधु का वेश धारण करके माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ लंका लेकर चला जाता है।
लंका पर आक्रमण करने से पहले श्रीराम ने शमी के वृक्ष के सामने झुक कर अपने विजय के लिए प्रार्थना की थी। जिसके बाद श्रीराम ने रावण का वध कर दिया था। तभी से ऐसी मान्यता है कि शमी की पत्तियों को स्पर्श करने मात्र से मनुष्य की सभी कष्ट और समस्याएं दूर हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि शमी का पेड़ घर मे लगाने से देवी देवताओं की कृपा हमेशा बनी रहती है। साथ ही साथ शमी का पेड़ शनि देव के गुस्से से भी रक्षा करता है। शमी की पत्तियों को बांटने से घर में सुख -समृद्धि का वास होता है। पुराणों में शमी के वृक्ष की महिमा का बहुत जिक्र किया गया है।
शमी की पेड़ की फलता- फूलता देख कर ,उस साल सूखे की स्थिति बन रही है या नहीं इस बात का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। शमी का पेड़ घर के पूर्वोत्तर दिशा में लगाना चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार रोजाना शमी के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से शनि देव के गुस्से से बचा जा सकता है। -
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सब कुछ महत्वपूर्ण है, जिसमें सोने की दिशा भी शामिल है। वास्तु के दृष्टिकोण से सोने की दिशा आपके जीवन को बदल सकती है।वास्तु के अनुसार जोड़ों के लिए सही सोने की दिशा भी सुरक्षा, प्यार और आपको और आपके जीवनसाथी से संबंधित होने की भावना प्रदान करती है। कपल्स के लिए बेडरूम का वास्तु ऐसा होना चाहिए कि माहौल रिश्ते को मजबूत करें। यदि दम्पति घर का स्वामी है तो शयन कक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। यदि जोड़ा नवविवाहित है और बड़े भाई/कामकाजी माता-पिता के साथ रह रहा है, तो बेडरूम उत्तर-पश्चिम में होना चाहिए। विवाहित जोड़ों को उत्तर पूर्व के बेडरूम से बचना चाहिए, क्योंकि यह स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। आइए जानते हैं विवाहित स्त्रियों का किस दिशा में सोना शुभ है।
सोते समय इस दिशा में न करें पैर-वास्तु शास्त्र के अनुसार विवाहित महिलाओं को सोते समय सर दक्षिण की ओर रखना चाहिए। महिलाएं गलती से भी दक्षिण दिशा में पैर करके न सोएं। दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है । ऐसा करने से शरीर की ऊर्जा का नाश होता है। महिलाएं घर की लक्ष्मी मानी जाती है और ऐसे में महिलाओं को सोने की अन्य दिशाओं का ज्ञान भी होना आवश्यक है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा धन के स्वामी कुबेर की मानी जाती है। यदि महिलाएं इस दिशा में पैर करके सोएंगी तो आर्थिक जीवन भी प्रभावित होने की संभावना है। इतना ही आपके आय-व्यय का संतुलन भी बिगड़ सकता है।-विवाहित महिलाओं को सोते समय यह भी ध्यान देना चाहिए कि वह उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच में पैर करके न सोएं। उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच के स्थान को वायव्य कोण कहते हैं। मान्यता है कि इस दिशा में सोने से महिलाएं अपने रिश्ते से अलग होने का विचार कर सकती हैं।-वास्तु शास्त्र के अनुसार, विवाहित ही नहीं अविवाहित कन्याओं को भी सोने की दिशा के बारे में ध्यान रखना चाहिए। अविवाहित कन्याओं को दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। कन्याओं को उत्तर दिशा में पैर करके सोने से शीघ्र विवाह योग्य वर मिलते हैं। -
नवरात्रि हिंदुओं के लिए बहुत बड़ा त्योहार है। जिसे हर जगह बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि को हिंदुओं में सबसे अधिक समय तक चलने वाले त्योहार के रूप में जाना जाता है। 9 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में देवी दुर्गा के अलग- अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा को शक्ति का स्वरूप माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहा है।
शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 26 सितंबर से हो रहा है। 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में देवी दुर्गा की उपासना की जाती है।
नवरात्र के पहले दिन सफेद रंग के वस्त्र धारण करने वाली मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। सफेद रंग शांति का प्रतीक है। इस दिन सफेद कलर के कपड़े पहने से मन जे भीतर शांति और शीतलता का अनुभव करेंगे।
नवरात के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन लाल रंग पहनना काफी शुभ माना जाता है।
नवरात्र के तीसरे दिन नीले रंग के कपड़े पहन काफी शुभ होता है। इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
नवरात्र के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। कुष्मांडा देवी यश और धन की वर्षा करती है। देवी को पीला रंग बेहद पसंद है इसीलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने से माता काफी प्रसन्न होती है।
नवरात्र के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की अर्चना की जाती है। इस दिन हरे रंग के कपड़े पहन कर माता को प्रसन्न किया जा सकता है।
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। इस दिन ग्रे कलर के कपड़े पहने से आपका मन बेहद प्रसन्न रहेगा।
नवरात्र के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस दिन ऑरेंज रंग के कपड़े पहनने से आप अपब भीतर एक अलग तरह के जोश और उत्साह का अनुभव करेंगे।
नवरात्र के आठवें दिन देवी महागौरी का आराधना की जाती है। इस दिन मोरपंख से हरे रंग के कपड़े पहनने से आप पूरा दिन आनंद का अनुभव करेंगे।
नवरात्र के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। पिंक कलर को प्यार और उदारता का उदारता का प्रतीक माना जाता है इस दिन पिंक कलर के कपड़े पहनने से आपको परिवार और दोस्तों से ढेर सारा मिलेगा। -
पितृपक्ष को श्राद्धपक्ष भी कहते हैं इस साल पितृपक्ष 10 सितंबर को प्रारंभ हुआ जो 25 सितंबर तक चलेगा। पितृपक्ष में अपने पितरों का पिंडदान करने से उन्हे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। यदि आपको अपने पितृ की मृत्यु तिथि से जुड़ी कोई जानकारी नहीं है तो ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या के दिन उनका पिंडदान कर अपना और अपने कुल का आप उद्धार कर सकते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष भाद्रपद माह के पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। इस समय लोग अपने पितृ की आत्मा के शांति के लिए उनका पिंडदान करते हैं। इससे कुंडली की पितृ दोष जैसी समस्याओं से भी मुक्ति मिल जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सर्वपितृ अमावस्या के दिन इन 5 बड़ी गलतियों को करने से बचना चाहिए। ताकि आप लगने वाले पितृ दोष से मुक्ति पा सके।
नई वस्तु न खरीदें-
पितृपक्ष के समय कोई भी नई वस्तु न खरीदे, पितरों के विदाई के दिन बाल और नाखून न कटवाएं। ऐसा करने से आपको पितृ दोष के गंभीर परिणाम का सामना करना पड़ सकता है।
सर्वपितृ अमावस्या को करे पिंडदान -
यदि आपको अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद है तो उस तिथि के अनुसार उनका पिंडदान करें। अगर आपको अपने पितरों की तिथि पता नहीं है तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन ही उनका पिंडदान करें।
सात्विक भोजन करे-
सर्वपितृ अमावस्या के दिन मांस , मछली, अंडा मदिरा आदि का सेवन करने से बचें इस दिन सिर्फ सात्विक या साधारण भोजन करे।
दान करे-
सर्वपितृ अमावस्या के दिन घर पर दान दक्षिणा लेने आये किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ विदा न करें ऐसा करने से पितृदोष के भयानक परिणाम हो सकते हैं।
पशु-
पक्षी का रखे विशेष ध्यान - पितृपक्ष के समय किसी भी गरीब या असहाय व्यक्ति को अपमानित न करें, सभी की मदद करे और उन्हें आदर और सम्मान दे। पितृपक्ष के समय किसी भी कौवे ,कुत्ते चींटी का किसी भी तरह का कोई नुकसान न पहुंचाए -
ज्योतिष में शुक्र को महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। शुक्र ग्रह के शुभ होने पर मां लक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। वहीं शुक्र देव के अशुभ होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शुक्र देव नवरात्रि से पहले राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। 24 सितंबर को शुक्र राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। इस दिन शुक्र देव कन्या राशि में प्रवेश कर जाएंगे। ग्रहों के राशि परिवर्तन का सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। शुक्र के राशि परिवर्तन करने से कुछ राशियों के अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे।
मेष राशि-
कारोबार के विस्तार की योजना साकार होगी।
भाइयों का सहयोग मिलेगा।
घर-परिवार में मांगलिक कार्य होंगे।
वस्त्रादि उपहार भी मिल सकते हैं।
नौकरी में परिवर्तन के साथ दूसरे स्थान पर भी जाना पड़ सकता है।
आयात-निर्यात कारोबार में लाभ के अवसर प्राप्त होंगे।
माता का सहयोग मिलेगा।
वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।
मिथुन राशि-
आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे।
घर-परिवार की सुख सुविधाओं का विस्तार होगा।
कार्यक्षेत्र में परिवर्तन संभव है।
माता का सहयोग मिलेगा।
लाभ में वृद्धि की संभावना है।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।
धन- लाभ होगा।
कन्या राशि-
वाणी में मधुरता रहेगी।
परिवार का साथ मिलेगा।
कारोबार की स्थिति में सुधार होगा।
घर-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं।
किसी मित्र के सहयोग से कारोबार विस्तार होगा।
लाभ के अवसर मिलेंगे।
पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा।
परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं।
वृश्चिक राशि-
मन में प्रसन्नता का भाव रहेगा।
नौकरी में किसी दूसरे स्थान पर जाना हो सकता है।
आय में वृद्धि होगी।
अफसरों का सहयोग मिलेगा।
परिवार का भी सहयोग मिलेगा।
शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समय शुभ रहेगा। -
शारदीय नवरात्रि को शुरू होने में अब कुछ दिन ही बाकी हैं। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना या घटस्थापना की जाती है। मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के त्योहार का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। इस साल नवरात्रि 26 सितंबर, सोमवार से शुरू हो रहे हैं, जो कि 4 अक्टूबर तक रहेंगे। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी 26 सितंबर को घटस्थापना की जाएगी। जानें घटस्थापना का शुभ मुहूर्त व संपूर्ण विधि-
प्रतिपदा तिथि कब से कब तक-
प्रतिपदा तिथि सितम्बर 26, 2022 को 03:23 ए एम बजे से प्रारंभ होगी, जो कि सितम्बर 27, 2022 को 03:08 ए एम बजे समाप्त होगी।
घटस्थापना शुभ मुहूर्त 2022-
आश्विन घटस्थापना सोमवार, सितम्बर 26, 2022 को
घटस्थापना मुहूर्त - 06:11 ए एम से 07:51 ए एम
अवधि - 01 घंटा 40 मिनट
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 11:48 ए एम से 12:36 पी एम
अवधि - 48 मिनट
ऐसे करें कलश स्थापना:
कलश की स्थापना मंदिर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए और मां की चौकी लगा कर कलश को स्थापित करना चाहिए। सबसे पहले उस जगह को गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें। फिर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश को स्थापित करें। कलश में आम का पत्ता रखें और इसे जल या गंगाजल भर दें। साथ में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ कलश में डालें। कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र से लपेट कर रखें। चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें। इन्हें लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ा दें। कलश स्थापना के साथ अखंड दीपक की स्थापना भी की जाती है। कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके मंत्र जाप करें और फूल और चावल मां के चरणों में अर्पित करें। मां शैलपुत्री के लिए जो भोग बनाएं, गाय के घी से बने होने चाहिए। या सिर्फ गाय के घी चढ़ाने से भी बीमारी व संकट से छुटकारा मिलता है।
विशेष मंत्र : ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै। मंगल कामना के साथ इस मंत्र का जप करें। - शारदीय नवरात्र 26 सितंबर को प्रारंभ और चार अक्तूबर को नवमी तक रहेंगे। पांच अक्तूबर को विजय दशमी का पर्व मनेगा। हर दिन माता के अलग-अलग दिव्य स्वरूप की आराधना होगी। शारदीय नवरात्र में घर-घर कलश स्थापना कर आदि शक्ति माता भवानी की आराधना होगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने से पहले देवी शक्ति की अराधना की थी।ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि इस बार नवरात्र में नवरात्रि की तिथियों को लेकर को घटत बढ़त नहीं हो रही है। नवरात्रि की सभी तिथियां 26 सितंबर से 4 अक्टूबर तक एक सीधे क्रम में रहेंगी। 26 को प्रतिपदा प्रथम नवरात्र होगा। 27 को द्वितीय और इसी क्रम में तीन अक्टूबर को दुर्गा अष्टमी और चार अक्टूबर को महानवमी होगी। ज्योतिषों के अनुसार इस साल मां दुर्गा हाथी की सवारी पर पृथ्वी लोक आएंगी। जिस दिन से नवरात्रि का प्रारंभ होता है उसी दिन के अनुसार माता अपने वाहन पर सवार होकर आती हैं। विजयदशमी को बुधवार के दिन नौका की सवारी से मां वापस जाएंगी। माता की नौका की सवारी को बहुत शुभ माना गया है। ऐसे में इस बार शारदीय नवरात्र आते हुए भी और जाते हुए भी बहुत शुभ फलों की वृद्धि करने वाले रहेंगे।घटस्थापना या कलश स्थापना शुभ मुहूर्त----प्रतिपदा तिथि आरंभ - 26 सितंबर सुबह 3 बजकर 23 मिनटप्रतिपदा तिथि का समापन - 27 सितम्बर सुबह 03 बजकर 08 मिनट परघटस्थापना या कलश स्थापना शुभ मुहूर्त - अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 48 मिनट से 12 बजकर 36 मिनट के बीच करना उत्तम होगा।--





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