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अमेरिकी शुल्क का प्रभाव छह महीने से ज्यादा टिकने वाला नहीं: सीईए नागेश्वरन

 मुंबई.  मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी. अनंत नागेश्वरन ने बुधवार को कहा कि अमेरिकी शुल्क से जुड़ी चुनौतियां ज्यादा टिकने वाली नहीं है और एक या दो तिमाहियों में समाप्त हो जाएंगी। उन्होंने यह भी कहा कि देश अन्य दीर्घकालिक चुनौतियों से जूझ रहा है और उन्होंने इससे निपटने के लिए निजी क्षेत्र से और अधिक प्रयास करने का आग्रह किया। नागेश्वरन ने वित्त वर्ष 2024-25 में वृद्धि दर में आई नरमी के लिए कर्ज से जुड़ी कड़ी स्थिति और नकदी की समस्याओं को जिम्मेदार ठहराया। वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024-25 में 6.5 प्रतिशत रही जो एक साल पहले 9.2 प्रतिशत थी। नागेश्वरन ने कहा कि सही कृषि नीतियां वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि में 25 प्रतिशत की वृद्धि कर सकती हैं। उन्होंने अमेरिकी शुल्क के बारे में कहा कि रत्न एवं आभूषण, झींगा और वस्त्र जैसे क्षेत्रों पर पहले चरण का प्रभाव पड़ने के बाद दूसरे और तीसरे चरण के प्रभाव पड़ेंगे। उनसे निपटना ‘अधिक कठिन' होगा। नागेश्वरन ने कहा कि सरकार स्थिति से अवगत है और प्रभावित क्षेत्रों के साथ बातचीत शुरू हो चुकी है। आने वाले दिनों में नीति निर्माताओं की प्रतिक्रिया मिलेगी, लेकिन लोगों को धैर्य रखना होगा। इस महीने के अंत में व्यापार वार्ता के लिए अमेरिकी अधिकारियों के भारत आने की अटकलों के बीच उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में होने वाली आगामी बैठक इस वार्ता के नतीजों को प्रभावित कर सकती है। उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता के बारे में कोई भी विवरण देने से इनकार करते हुए कहा कि इस समय विश्व स्तर पर हालात बहुत अस्थिर हैं और संबंध सहयोग से गतिरोध की ओर बढ़ रहे हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क के प्रभाव के बारे में कहा, ‘‘मेरा मानना है कि मौजूदा स्थिति एक या दो तिमाहियों में सुधर जाएगी। मुझे नहीं लगता कि दीर्घकालिक दृष्टिकोण से, भारत पर इसका कोई खास प्रभाव पड़ेगा, लेकिन अल्पावधि में इसका कुछ असर जरूर होगा।'' नागेश्वरन ने कहा कि कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता कि राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर उच्च शुल्क लगाने का फैसला क्यों किया। उन्होंने कहा कि क्या यह ऑपरेशन सिंदूर का नतीजा है या इससे भी ज्यादा रणनीतिक। हालांकि, मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि शुल्क संबंधी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने से हमें कृत्रिम मेधा के प्रभाव, महत्वपूर्ण खनिजों के लिए एक देश पर निर्भरता और उनके प्रसंस्करण तथा आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने सहित अधिक ‘महत्वपूर्ण चुनौतियों' से अनजान नहीं रहना चाहिए। उन्होंने निजी क्षेत्र से इन दीर्घकालिक चुनौतियों से निपटने के लिए और अधिक प्रयास करने का आह्वान किया। उन्होंने वादा किया कि सार्वजनिक नीति इसमें सहायक की भूमिका निभाएगी। नागेश्वरन ने कहा, ‘‘आने वाले वर्षों में हमारे सामने उत्पन्न होने वाली बड़ी रणनीतिक चुनौतियों को देखते हुए, निजी क्षेत्र को भी बहुत कुछ सोचना होगा...। निजी क्षेत्र को अगली तिमाही के बजाय दीर्घकालिक दृष्टिकोण के बारे में भी सोचना होगा...।'' उन्होंने कहा कि सरकार ने अनुसंधान को बढ़ावा देने के मकसद से राशि आवंटित की है और अब निजी क्षेत्र को इस क्षेत्र में अपने निवेश को बढ़ाने की जरूरत है। सीईए ने कहा कि भारतीय युवा अत्यधिक स्क्रीन उपयोग, अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन आदि से उत्पन्न शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिससे लोगों में तनाव बढ़ रहा है और यहां तक कि आत्महत्या के विचार भी आ रहे हैं। उन्होंने इस चुनौती से निपटने के लिए निजी क्षेत्र से मदद मांगी। उन्होंने वित्त वर्ष 2025-26 में निजी क्षेत्र द्वारा किए गए पूंजीगत व्यय का स्वागत किया।

 सीईए ने यूपीआई उपयोग के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि विशेष रूप से शहरी उपभोग के संबंध में खपत की स्थिति ‘काफी अच्छी' है। उन्होंने अफसोस जताया कि सेवाओं की खपत को दर्शाने के लिए कोई उचित आंकड़ा स्रोत नहीं है। सूचीबद्ध कंपनियों की आय से जानकारी प्राप्त करना भी सही उपाय नहीं हो सकता है क्योंकि उपभोग गैर-सूचीबद्ध क्षेत्र की ओर बढ़ रहा है। नागेश्वरन ने चीन के बारे में कहा, ‘‘हमें सुरक्षा के पहलू को भी समझना होगा... और 100 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार घाटे को संख्या से आगे देखने की जरूरत है। समाधान के तौर पर, आयात के स्रोतों में विविधता लाने की जरूरत है और इसमें निजी क्षेत्र की भूमिका होगी। उन्होने चीन का नाम लिए बिना कहा कि केवल एक देश ही महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति करता है और यह खनिज सेमीकंडक्टर और कृत्रिम मेधा प्रौद्योगिकी के लिए जरूरी है। इसकी आपूर्ति ‘बेहद अस्थिर' है। सीईए ने कहा, ‘‘हम कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता से महत्वपूर्ण खनिजों के आयात पर निर्भरता की ओर नहीं बढ़ सकते...। इस बात को समझने की जरूरत है कि कम-से-कम कच्चे तेल (स्रोत) ज्यादा विविध हैं।'' नागेश्वरन ने कहा कि एआई से रोजगार विस्थापन होगा। ऐसे में एआई को अपनाने में सावधानी बरतने की जरूरत है। ‘हमें उन क्षेत्रों को चुनना होगा जहां हम कृत्रिम मेधा का उपयोग करने की अनुमति देते हैं और यह भी कि हम ऐसा कितनी तेजी से करते हैं।'' उन्होंने कहा कि अगले 10-12 वर्षों में प्रतिवर्ष कम- से-कम 80 लाख नये रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है।

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