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 "मासिक धर्म स्वच्छता पर बेहतर जागरुकता की ज़रूरत- वर्णिका शर्मा

-"अब समय है चुप्पी तोड़ने का, खुलकर बोलने का" — अमरजीत सिंह छाबड़ा
-विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस पर प्रेरणास्पद चर्चा और सम्मान समारोह का आयोजन
 रायपुर / ब्लू बर्ड फाउंडेशन द्वारा विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के अवसर पर वृंदावन हॉल, सिविल लाइंस में चर्चा और सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. वर्णिका शर्मा मुख्य अतिथि रहीं तथा छत्तीसगढ़ राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री अमरजीत सिंह छाबड़ा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।डॉ. शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा, “मासिक धर्म पर कैसी शर्म? यह विषय मन से जुड़ा है। पहले मन को समझें, स्वीकार करें, फिर शर्म जैसी कोई बात नहीं रह जाती।” उन्होंने कहा कि यह समय है जब समाज को मासिक धर्म जैसे विषयों पर खुलकर संवाद करने की आवश्यकता है। ऐसे आयोजनों से न केवल वर्जनाएं टूटती हैं, बल्कि सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन को भी बल मिलता है।
श्री अमरजीत छाबड़ा ने कहा, “हम एक ऐसे समाज से आए हैं जहाँ चुप्पी को मर्यादा माना जाता था। पीड़ा को सहना सिखाया जाता था, परंतु बोलने से रोका जाता था। आज जब महिलाएं, पुरुष और युवा मिलकर खुलकर बोल रहे हैं, तो यह बदलाव स्वागत योग्य है। यह संवाद नई पीढ़ी को साहस देगा।”
इस आयोजन का उद्देश्य मासिक धर्म के प्रति सामाजिक जागरूकता बढ़ाना, इससे जुड़ी भ्रांतियों को तोड़ना और एक स्वस्थ, संवेदनशील तथा समानता-आधारित संवाद की संस्कृति को बढ़ावा देना था।
कार्यक्रम का संयोजन ब्लू बर्ड फाउंडेशन की निदेशक श्रीमती सुधा वर्मा और होटल पाम क्लब इन एवं रूफटॉप वेलनेस की संचालिका श्रीमती सोना काले द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
इस वर्ष की थीम रही — “बाधाएं तोड़ना, आवाज़ों का उत्सव मनाना।”
पैनल चर्चा की मुख्य बातें: 
कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों की प्रख्यात महिलाएं पैनलिस्ट के रूप में शामिल हुईं और मासिक धर्म से जुड़े मिथकों, स्वास्थ्य मुद्दों और सामाजिक दृष्टिकोणों पर सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए:
* डॉ. संजना अग्रवाल, स्त्री रोग विशेषज्ञ: मासिक धर्म को "अशुद्ध" मानने की धारणा का खंडन करते हुए बताया कि यह जैविक प्रक्रिया महिला स्वास्थ्य का संकेत है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में टैम्पोन व मेंस्ट्रुअल कप के प्रति जागरूकता बढ़ रही है।
* डॉ. उज्ज्वला वर्मा, त्वचा रोग विशेषज्ञ: लंबे समय तक सैनिटरी नैपकिन के प्रयोग से होने वाली त्वचा समस्याओं की जानकारी दी और समय-समय पर उत्पाद बदलने की सलाह दी।
* डॉ. निमिषा काले , स्वास्थ्य कार्यकर्ता: विद्यालयों में मासिक धर्म शिक्षा अनिवार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे लड़कियों को शुरू से ही जानकारी और आत्मबल मिले।
* मिस आस्था वर्मा, सह-संस्थापक, अमानत: कमज़ोर वर्ग की लड़कियों पर मासिक धर्म से जुड़ी मान्यताएँ का प्रभाव और उनकी शिक्षा में रुकावटों पर प्रकाश डाला।
* श्रीमती स्निग्धा चक्रवर्ती, निदेशक, माँ फाउंडेशन: मासिक धर्म के रक्त को "गंदा" मानने की भ्रांति को तोड़ते हुए इसे एक स्वाभाविक, स्वच्छ प्रक्रिया बताया।
* श्रीमती प्रियंका शर्मा, पुलिस निरीक्षक: पुरुष प्रधान क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं पर मानसिक दबाव और आत्मविश्वास की चुनौतियों को रेखांकित किया।
* मिस कामना बावनकर, इस्कॉन प्रचारक: बाह्य व आंतरिक स्वच्छता दोनों पर बल देते हुए धार्मिक ग्रंथों में मासिक धर्म के मानवीय दृष्टिकोण की चर्चा की।
* मिस निधि काले, विधि छात्रा: मासिक धर्म के दौरान किसी भी गतिविधि में रोक लगाने का कोई कानूनी आधार नहीं है, और इसे मानव अधिकारों के तहत मान्यता देने की मांग की।
* श्रीमती हर्षा साहू, आत्म-रक्षा प्रशिक्षक: बताया कि मासिक धर्म के दौरान भी लड़कियां शारीरिक रूप से सक्षम होती हैं और आत्मरक्षा सहित सभी गतिविधियाँ कर सकती हैं।
* श्रीमती सुनीता जड़वानी,  संचालिका, खूबसूरत बुटीक: आत्मविश्वास बढ़ाने वाले परिधानों को अपनाने की सलाह दी और घरेलू कामकाजी महिलाओं को जागरूक करने की बात कही।
 
सम्मान समारोह:
कार्यक्रम के अंत में स्वास्थ्य, शिक्षा, आत्मनिर्भरता और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्रों में अनुकरणीय कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया। इन महिलाओं के योगदान को न केवल समाज के लिए प्रेरणास्रोत माना गया, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक मजबूत संदेश भी बना।
 
इस प्रेरणादायक कार्यक्रम में समाज के विभिन्न वर्गों से बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे, जिनमें शिक्षाविद्, चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, युवतियाँ एवं छात्र-छात्राएँ शामिल थे। ब्लू बर्ड फाउंडेशन ने इस आयोजन के माध्यम से मासिक धर्म जैसे संवेदनशील विषय को मुख्यधारा में लाने की दिशा में एक साहसिक और सराहनीय कदम उठाया है।

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