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 आपातकाल के दौरान नागरिकों के  मौलिक अधिकारों का किया गया हनन - महापौर मधुसूदन यादव

संविधान की हत्या आपातकाल के दंश को सहन करने वाले नागरिकों तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को पुर्नस्थापित करने के लिए संघर्ष करने वाले मीसा बंदियों के सम्मान में किया गया रैली का आयोजन
 - वर्ष 1975 में आपातकाल के समय राजनांदगांव के लोकतंत्र सेनानी मीसा बंदी एवं उनके परिजनों को किया गया सम्मानित
-  लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखने एवं संविधान के संरक्षण के लिए आपातकाल के दुष्परिणाम को बताया गया
- संविधान की हत्या आपातकाल पर आधारित फोटो प्रदर्शनी लगाई गई
- आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर आपातकाल से प्रभावित जन नेताओं, पत्रकारों एवं नागरिकों के सम्मान में उस कालखंड को याद करते हुए मनाया गया यह दिन

राजनांदगांव  । लोकतंत्र की हत्या आपातकाल तथा संविधान की हत्या आपातकाल के दंश को सहन करने वाले को स्मरण करने तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को पुनस्थापित करने के लिए संघर्ष करने वाले लोगों के सम्मान में आज रैली का आयोजन किया गया। रैली गुरूद्वारा से प्रारंभ होते हुए शहर के नगर पालिक निगम राजनांदगांव के टाऊन हाल पहुंची। इस अवसर पर संविधान की हत्या आपातकाल पर आधारित फोटो प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसका नागरिकों ने अवलोकन किया। इस दौरान वर्ष 1975 में आपातकाल के समय राजनांदगांव के लोकतंत्र सेनानी मीसा बंदी जिन्होंने जेल में बंदी के रूप में यातना झेली उन्हें तथा उनके परिजनों को सम्मानित किया गया।
महापौर श्री मधुसूदन यादव ने कहा कि भारतीय संविधान देश की आत्मा है और भारतीय संविधान के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1975 से 1977 की समयावधि में आपातकाल लागू कर संविधान की हत्या की थी। 1971 के आम निर्वाचन में श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी। तत्कालीन जननेता श्री जयप्रकाश नारायण ने उच्च न्यायालय में इस निर्वाचन के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय लिया गया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने श्री जय प्रकाश नारायण को निर्वाचन में हराने के लिए सरकारी तंत्र का दुरूपयोग किया था तथा उन्हें दोषी पाया गया। उन्हें 6 साल के लिए किसी भी निर्वाचित पद पर आसीन होने से वंचित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 352 अंतर्गत राष्ट्र में आपातकालीन परिस्थितियों में आपातकाल लगाया जा सकता है, लेकिन अपने पद का दुरूपयोग करते हुए व अपनी सत्ता बचाने के लिए उन्होंने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इस दौरान नागरिकों के विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा मौलिक अधिकारों का हनन किया गया। आपातकाल के दौरान लोगों में भय एवं असुरक्षा का माहौल रहा तथा देश के बड़े नेताओं एवं नागरिकों ने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया। 1977 की आम निर्वाचन में देश की जनता ने वोट के माध्यम से आपातकाल का विरोध किया। आपातकाल के दौरान बड़ी संख्या में नागरिकों, पत्रकारों, नेताओं को मीसा में बंद किया गया था। उनके स्मरण में आज लोकतंत्र की हत्या आपातकाल दिवस मनाया जा रहा है।
इस अवसर पर लोकतंत्र सेनानी मीसा बंदी श्री कुलवंत सिंह कक्कड़, मीसा बंदी की पत्नी श्री निर्वाणी की पत्नी श्रीमती बसंतलता निर्वाणी, मीसा बंदी श्री धनुकलाल के पोते एवं परिजनों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समाज सेवी श्री कोमल सिंह राजपूत, अपर कलेक्टर श्री प्रेम प्रकाश शर्मा, नगर निगम आयुक्त श्री अतुल विश्वकर्मा, एसडीएम श्री खेमलाल वर्मा एवं अन्य जनप्रतिनिधि, अधिकारी एवं नागरिक उपस्थित रहे। इस अवसर पर संविधान की हत्या आपातकाल को घटना क्रम को वीडियो के माध्यम से दिखाया गया तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखने एवं संविधान के संरक्षण के लिए आपातकाल के दुष्परिणाम को बताया गया। आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर आपातकाल से प्रभावित जन नेताओं, पत्रकारों एवं नागरिकों के सम्मान में उस कालखंड को याद करते हुए यह दिन मनाया जा रहा है।

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