लोगों तथा समाज की अनुकूलता व प्रतिकूलता से अपने मन की शान्ति न खोवे, इसके लिये इस बात को समझना परमावश्यक!!
• जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 417
(भूमिका - हमारे घर, परिवार, समाज, देश और उसके आगे विश्व में अनेक झगड़े, तनाव और अशान्ति का माहौल दिखलाई पड़ता है, जिनसे अक्सर हम परेशान हो जाया करते हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इस संसार के संबंध में समझा रहे हैं कि ऐसा क्यों होता है? क्यों लोग क्षण क्षण में अनुकूल-प्रतिकूल हो जाते हैं और हम क्या करें कि इनकी अनुकूलता-प्रतिकूलता का प्रभाव हमारी मानसिक शान्ति पर न पड़ सके......)
....यह तो संसार है, इसमें सब कुछ कहने वाले लोग हैं - सही भी और गलत भी। फिर गलत कहने वाले तो, निन्यानवे प्रतिशत हैं और यह ईश्वर के खिलाफ वाली पार्टी है। मायाबद्ध लोग जो न कहें वह थोड़ा ही है। सत्यगुणी बुद्धि हो गई, तो सत्यगुणी बात कहने लगे। रजोगुणी बुद्धि हो गई तो हमारा निर्णय रजोगुणी हो गया। तमोगुणी बुद्धि हुई कि तमोगुणी बात बोलने लगे। इसलिये जब हमारी स्वयं की बुद्धि ही एक सी नहीं रहती तो दूसरों से हम क्यों आशा करते हैं कि वह हमारी बात का समर्थन ही करे। यह कभी सतयुग में नहीं हुआ, त्रेतायुग में नहीं हुआ, द्वापर में नहीं हुआ फिर आज क्या होगा?
सारे संतों ने इसीलिये लिखा 'तुम मत देखो किसी की ओर, न किसी की सुनो, बस अपना काम करो'।
यह संसार तो सत्व, रजो व तमोगुण में पागल हो रहा है इसलिये 'तिन कर रहा करिय नहि काना'। लोगों को, समाज को खुश करना, याने लोकरंजन - यह एक बहुत बड़ा रोग लगा लिया है हमने कि लोग हमें अच्छा कहें। यदि अच्छा कहलवाने की बीमारी हम समाप्त कर दें तो घर के परिवार में, और विश्व के पचास प्रतिशत झगड़े, मानसिक अशान्ति ऐसे ही समाप्त हो जाये।
• सन्दर्भ - अध्यात्म संदेश पत्रिका, जुलाई 1997 अंक
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