सावन के महीने में भूलकर भी न चढ़ाएं शिवलिंग पर ये पूजा सामग्री
पंडित प्रकाश उपाध्याय, बालोद
जुलाई से सावन का पवित्र महीना आज 22 जुलाई से प्रारंभ हो गया है। वैदिक पंचांग के अनुसार सावन महीने का समापन 19 अगस्त, सोमवार को होगा। इस बार सावन माह में 5 सोमवार पड़ रहे हैं। साथ ही सावन की शुरुआत और समापना दोनों ही सोमवार के दिन होने से बहुत ही दुर्लभ संयोग बना हुआ है। शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में शिवलिंग पर गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, भांग, बेर, शमीपत्र और कनेर के फूल अर्पित किए जाते हैं, ताकी भगवान भोलनाथ जल्द प्रसन्न हो जाएं। वहीं शास्त्रों में कुछ पूजा सामग्री को शिवजी को अर्पित करने की मनाही होती है। आइये जानते हैं इनके बारे में -
शिवजी की पूजा में तुलसी दल वर्जित
हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत ही पवित्र माना गया है और पूजा अनुष्ठान में तुलसी के पत्तों को चढ़ाने की परंपरा है। भगवान विष्णु, भगवान कृष्ण और हनुमान जी की उपासना बिना तुलसी दल के पूर्ण नहीं मानी जाती है, लेकिन भगवान शिव की पूजा में तुलसी दल का उपयोग वर्जित माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने तुलसी के पति असुर जालंधर का वध किया था। इसलिए उन्होंने स्वयं भगवान शिव को अपने अलौकिक और दैवीय गुणों वाले पत्तों से वंचित कर दिया।
शिवलिंग पर केतकी के फूल को न चढ़ाएं
शिवलिंग पर केतकी के फूल को चढ़ाना वर्जित माना गया है। शिवपुराण की कथा के अनुसार केतकी फूल ने ब्रह्मा जी के झूठ में साथ दिया था, जिससे रुष्ट होकर भोलनाथ ने केतकी के फूल को श्राप दिया और कहा कि शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा। इसी श्राप के बाद से शिव को केतकी के फूल अर्पित किया जाना अशुभ माना जाता है।
शिवजी की पूजा में नहीं होता हल्दी का प्रयोग
शिव जी को कभी भी हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए क्योंकि हल्दी को स्त्री से संबंधित माना गया है और शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है ऐसे में शिव जी की पूजा में हल्दी का उपयोग करने से पूजा का फल नहीं मिलता है। इसी वजह से शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। ये भी मान्यता है कि हल्दी की तासीर गर्म होने के कारण इसे शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित माना जाता है इसलिए शिवलिंग पर ठंडी वस्तुएं जैसे बेलपत्र, भांग, गंगाजल, चंदन, कच्चा दूध चढ़ाया जाता है।
शंख बजाना और शंख से जल अर्पित करना है वर्जित
भगवान शिव की पूजा में कभी शंख का प्रयोग नहीं किया जाता है। दैत्य शंखचूड़ के अत्याचारों से देवता परेशान थे। भगवान शंकर ने उसका वध किया था, जिसके बाद उसका शरीर भस्म हो गया,उस भस्म से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शिवजी ने शंखचूड़ का वध किया इसलिए कभी भी शंख से शिवजी को जल अर्पित नहीं किया जाता है।
कुमकुम या सिंदूर
सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना हेतु अपने मांग में सिंदूर लगाती हैं और भगवान को भी अर्पित करती हैं। लेकिन शिव तो विनाशक हैं, यही वजह है कि सिंदूर से भगवान शिव की सेवा करना अशुभ माना जाता है।
टूटे हुए चावल
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव पर अखंड और धुले हुए साफ़ चावल चढ़ाने से उपासक को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध माना गया है इसलिए यह शिव जी को नही चढ़ता।शिवजी के ऊपर भक्तिभाव से एक वस्त्र चढ़ाकर उसके ऊपर चावल रखकर समर्पित करना और भी उत्तम माना गया है।
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