जैसे जल मथने से घी नहीं निकलता, ऐसे ही बिना भगवान की भक्ति के सत्य-अहिंसा आदि गुण मिलना असंभव है!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 294
(भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 35-वें दोहे पर विचार करें, जो कि 'भक्ति' के महत्व पर प्रकाश डाल रही है...)
• भक्ति-शतक | दोहा संख्या 35
सत्य अहिंसा आदि मन!, बिन हरिभजन न पाय।
जल ते घृत निकले नहीं, कोटिन करिय उपाय।।35।।
भावार्थ ::: सत्य, अहिंसादि दैवीगुण केवल श्री कृष्ण भक्ति से ही मिल सकते हैं। जैसे पानी मथने से घी नहीं निकल सकता। ऐसे ही अन्य करोड़ों उपायों से भी दैवीगुण नहीं मिलते।
व्याख्या ::: सत्य बोलना आदि दैवी गुण हैं। सभी व्यक्ति इन गुणों से प्यार भी करते हैं। क्योंकि दैवी गुणों के अध्यक्ष श्रीकृष्ण के अंश हैं। हम दूसरों से जो चाहते हैं वही हमारा स्वभाव है। किसी के झूठ बोलने आदि पर हम लोग एतराज़ करते हैं, भले ही स्वयं दिन में सैकड़ों झूठ बोलते हों। इससे सिद्ध हुआ कि दैवी गुण सत्य अहिंसादि भगवान् से ही संबंध रखते हैं एवं इसके विपरीत झूठ, हिंसादि, माया से संबंध रखते हैं। इसी से मायिक वस्तुओं के लोभ में हम लोग झूठ आदि का अवलंब (सहारा) लेते हैं। अतः जब तक भगवान् की भक्ति न की जायगी तब तक अंतःकरण शुद्ध ही न होगा। बिना अंतःकरण शुद्ध हुये हम सत्य आदि दैवीगुणों का प्रदर्शन मात्र कर सकते हैं किंतु वास्तव में दैवीगुण युक्त नहीं हो सकते। केवल मन से सोचने मात्र से हमारा मन शुद्ध न होगा। हां, यह हो सकता है कि बार-बार सोचने से, परलोक के भय से कुछ मात्रा में बहिरंग रूप से इन गुणों का दिखावा कर लें।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' (दोहा संख्या - 35)
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
*+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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