दुर्गा महतारी
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
नवराते आये हे मइया, सज गे हे अँगना द्वारी।
लुगरा चूरी लाली पहिरे, बइठे दुर्गा महतारी ।।
चक्र पद्म धारे हे मइया, महिषासुर ला संहारे।
रक्तबीज बर काली बनगे, मधु कैटभ भाई मारे।
दुर्मुख शुंभ निशुंभ ल तारे, जनम धरे कष्ट मिटाए।
दया क्षमा धन विद्या देवी, तोर कृपा ले सुख आए।
कंठ मुंड के माला पहिरे, तैं चामर खप्परधारी ।।
नवराते आये हे मइया, सज गे हे अँगना द्वारी।।
लाल फूल दशमत के चढ़थे, लाल चुनरिया हा सोहे ।
धूप दीप नैवेद्य आरती, फल नरियर दूबी मोहे ।
फलाहार नौ दिन उपास रहि, भक्तन के सुन ले माता।
दूरिहा कलह कलेष ला कर, ओ सुख संपति के दाता ।।
करबे माँ कल्यान सबो के, सबके हस पालनहारी ।।









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